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Lawyer,Author, Poet, Mob:9990389539 Listen my Poem at:https://www.youtube.com/channel/UCCXmBOy1CTtufEuEMMm6ogQ?view_as=subscriber
#Poetry #Kavita #Man #Habbit #Desire #कविता #आदमी #आदतें #हसरतें सत्य का पालन करना श्रेयकर है। घमंडी होना, गुस्सा करना, दूसरे को नीचा दिखाना , ईर्ष्या करना आदि को निंदनीय माना गया है। जबकि चापलूसी करना , आत्मप्रशंसा में मुग्ध रहना आदि को घृणित कहा जाता है। लेकिन जीवन में इन आदर्शों का पालन कितने लोग कर पाते हैं? कितने लोग ईमानदार, शांत, मृदुभाषी और विनम्र रह पाते हैं। कितने लोग इंसान रह पाते हैं? बड़ा मुश्किल होता है , आदमी का आदमी बने रहना।
एक व्यक्ति के जीवन में उसकी ईक्क्षानुसार घटनाएँ प्रतिफलित नहीं होती , बल्कि घटनाओं को प्रतिफलित करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। समयानुसार झुकना पड़ता है । परिस्थिति के अनुसार ढ़लना पड़ता है । उपाय के रास्ते अक्सर दृष्टिकोण के परिवर्तित होने पर दृष्टिगोचित होने लगते हैं। बस स्वयं को हर तरह के उपाय के लिए खुला रखना पड़ता है। प्रकृति का यही रहस्य है , अवसान के बाद उदय और श्रम के बाद विश्राम।
जात आदमी के #Shorts #Poetry #Hindi_Kavita #Nature_of_Man #कविता #आदमी #जात_आदमी_के #आदमी_की_औकात आदमी का जीवन द्वंद्व से भरा हुआ है। एक व्यक्ति अपना जीवन ऐसे जीता है जैसे कि पूरे वक्त की बादशाहत इसी के पास हो। जबकि हकीकत में एक आदमी की औकात वक्त की बिसात पे एक टिमटिमाते हुए चिराग से ज्यादा कुछ नहीं। एक व्यक्ति का पूरा जीवन इसी तरह की द्वन्द्वात्मक परिस्थियों का सामना करने में हीं गुजर जाता है और वक्त रेत के ढेर की तरह मुठ्ठी से फिसलता हीं चला जाता है। अंत में निराशा के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगता । व्यक्ति के इसी द्वंद्व को रेखांकित करती है ये कविता"जात आदमी के"।
सरकार खा गई #Shorts #Poetry #Kavita #Autocracy #Dictator #कविता #सरकार #तानाशाही जहाँ कहीं भी अन्याय है, निरंकुशता है, कविता का धर्म बनता है कि कमियों को उजागर करे। ये कविता सरकार की निरंकुश प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाती हुई लिखी गई है। प्रस्तुत है कविता"सचमुच सब सरकार खा गई"।
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