Arjit Mishra

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Hey, I am on Matrubharti!

अभी कुछ महीने पहले खबर आई थी की कुछ खालिस्तानी आतंकवादी विदेशी धरती पर अलग-अलग हालातों में मारे गए| कोई कुछ खुलकर तो नहीं बोल रहा था पर हमारे जैसे लोग, जो बचपन से जेम्स बांड जैसी फ़िल्में देखकर बड़े हुए हों और जिन्हें हमेशा ये अफ़सोस रहा हो कि हिंदुस्तान विदेश में बैठे देश के दुश्मनों से बदला क्यूँ नहीं लेता, यही मान कर खुश हो रहे थे कि हिन्दुस्तानी एजेन्सी ने बदला ले लिया|

हमारी कल्पना सच्चाई में बदली, जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने स्वयं ये स्वीकार किया कि हिन्दुस्तानी एजेन्सी ने एक नागरिक को उनकी धरती पर मार गिराया| हालांकि कूटनीतिक प्रतिबद्धता के चलते कोई भी देश विदेशी धरती पर की गयी ऐसी किसी भी कार्यवाही को स्वीकार नहीं करेगा, किन्तु पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी देश ने पहली बार हिन्दुस्तानी एजेन्सी की उसके देश में की गयी कार्यवाही का आरोप लगाया है|

सच जो भी हो, सन्देश साफ़ है कि विदेशी धरती से हिन्दुस्तान के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वाले सुधर जाएँ वरना हम घुस कर मारेंगे|

जय हिन्द||

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आज पुश्तैनी संपत्ति से सम्बंधित एक काम के सिलसिले में तहसील कार्यालय जाना हुआ| चूँकि सम्बंधित बाबू से बात हो चुकी थी, इसलिए मैं सीधे न्यायलय कक्ष के पास स्थित उसके कमरे में चला गया| उस समय वो किसी से बात कर रहा था| मुझे देखते ही उसने नमस्कार किया और दो मिनट रुकने का आग्रह किया| मैं न्यायलय कक्ष के आस पास ही टहलने लगा| काफी भीड़ थी वहां| हर व्यक्ति फाइलों को समेटे परेशानी में इधर उधर भाग रहा था| कुछ पत्थर की और कुछ स्टील के बेंच पड़ी हुई थीं, जिनमे से पत्थर की अधिकाँश खाली ही थीं| मेरा कोई बैठने का ख़ास इरादा नहीं था लेकिन पत्थर की बेंच पर बैठना भी मुझे मंज़ूर नहीं था| नज़र दौड़ा कर मैंने देखा एक स्टील की बेंच पर सिर्फ एक बुजुर्ग महिला बैठी हुई थी| शायद किसी पास के गाँव से तारीख़ पर आई होगी| ऐसा लगा जैसे उसने मेरी मनःस्थिति को भांप लिया| अचानक से वो उठी और मुझसे बोली “भैया, आप यहाँ बैठ जाओ”|

मेरे द्वारा संकोचवश मना करने पर उसने एक माँ की तरह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बेंच पर बैठा दिया और खुद जाकर एक कोने में फ़र्श पर बैठ गयी| कुछ पल के लिए मेरा शरीर और मेरा दिमाग जैसे सुन्न पड़ गया हो| मैं बस उस शख्सियत को देखता रहा| मैं उसे नहीं जानता था, न ही वो मुझे जानती थी और शायद ज़िन्दगी में दुबारा कभी मुलाक़ात भी न हो, किन्तु उसके द्वारा मुझपर लुटाई गयी कुछ पलों की ममता ने मुझे भावविभोर कर दिया| सहसा ही मन में आया कि वास्तविकता में हमारे संस्कार और हमारी संस्कृति सिर्फ गावों में ही जीवित है| मैंने आँखें बंद कीं और सिर स्वयं ही श्रद्धा से उस महान माता के सम्मान में झुक गया|

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तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु एवं भारत के धर्मशाला में स्थापित निर्वासित सरकार के प्रमुख दलाई लामा ने यह बयान देकर सबको चौंका दिया, कि तिब्बत चीन से स्वतंत्रता नहीं अपितु चीन के अधीन रहकर स्वायत्तता चाहता है| इस बयान के साथ पिछले पैंसठ सालों से संघर्षरत तिब्बतियों की रही सही उम्मीद भी ख़त्म हो गयी| अगर इतने सालों के संघर्ष का अंत चीन की ताक़त के आगे समर्पण ही था, तो ये तो तभी कर देना अच्छा था| याद रहे, कि इतने सालों का संघर्ष तिब्बत की राजनैतिक सत्ता के लिए नहीं था, अपितु चीन के हमलों से तिब्बती नस्ल और संस्कृति को बचाने के लिए था| पिछले कई दशकों में चीन ने तिब्बत के भौगोलिक और सांस्कृतिक परिवेश को बहुत हद तक बदल ही दिया है| शायद दलाई लामा को भी यही लगा होगा कि अब इस संघर्ष से समझौते की तरफ बढ़ना ही उचित है| शायद यही वक़्त की मांग भी है|

किन्तु इस संघर्ष के दौरान जिन तिब्बतियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, उनका बलिदान आखिरकार बेकार चला गया और तिब्बत से जान बचाकर आये दलाई लामा को शरण देकर एवं अपनी ज़मीन पर तिब्बत की निर्वासित सरकार को मंज़ूरी देकर भारत को चीन से हमेशा के लिए दुश्मनी मिली|

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सुबह के सर्द मौसम में हवा की एक लहर आई, मै पूछा क्या मेरे महबूब का पैगाम है लायी||
नहीं तो बस बता दे ये कि मैं बेचैन हूँ फिर क्यूँ, यकीं क्यूँ तुझपे है तू उसकी खैरियत लायी||
छुआ होगा उन्ही जुल्फों को जिनमे कैद हूँ अब मैं, उन्ही पलकों को जिनकी शर्म में भी अब तलक हूँ मैं||
दिया होगा इशारा कुछ हसीं नज़रों ने भी तुमको, लरजते होंठ भी तुमसे बयां कुछ तो किये होंगे||
हो गए हम दूर कि अब मिल नही सकते, तड़प सकते हैं मन में आह भी अब भर नही सकते||
इंसानियत के सामने एक आफ़त है यूँ आई| बना दी जिसने हम सभी के दरमियान खाई|
मुफलिसी का दौर एक सारे जहाँ में है, जिधर भी आँख उठती है गम-ओ-ग़ुरबत का डेरा है||
मगर उम्मीद है करवट बदल देगा समय फिर से, एक बार फिर से हर तरफ अम्न-ओ-सुकूं होगा||
जज़बात मेरे सुनकर हवा भी मुस्काई, बोली तेरे महबूब ने भी ली थी अंगडाई|
एहसास उसको भी तेरा शायद हुआ होगा, जब उसके गालों को प्रिये मैंने छुआ होगा|
कह नही सकती हूँ ज्यादा, बस इतना समझ ले तू|
वो तुझसे प्यार करती है तू उससे प्यार करता है||

संकट के इस काल में सभी दोस्तों को समर्पित|
स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें|
अर्जित मिश्रा

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ये क्या कर लिया......ये क्या कर लिया तुमने सुशांत! गर्मी भरी दोपहर में अपने कमरे में एसी की ठंडक में आराम से बैठे हुए मोबाइल पर अचानक तुम्हारी आत्महत्या की खबर देखी| सहसा विश्वास ही नही हुआ| दिल और दिमाग दोनों ने यही कहा “फर्जी खबर है”| लेकिन कुछ ही देर में न्यूज़ चैनल्स पर इस खबर की तस्दीक हो गयी कि तुम चले गए| सब कुछ टीवी पर देखते सुनते हुए भी यकीन नही हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे कि ये सब किसी पटकथा का हिस्सा हो और तुम अपने चरित्र को जी रहे हो| आखिर तुम्हारी उम्र ही क्या थी| अभी-अभी तो तुमने भारतीय सिनेमा के माध्यम से करोड़ो लोगों के दिलों में अपनी जगह बनायीं थी| सभी को ये विश्वास था की तुम भारतीय सिनेमा के शिखर पर पहुँचने की योग्यता रखते हो| बचपन से ही एक प्रतिभाशाली छात्र जो अपने विषय क्षेत्र में उपलब्ध असीम संभावनाओं को छोड़कर एक नयी और अनजान दिशा का चयन करता है, वह इतना कमज़ोर तो नही हो सकता| अपने घर में मौजूद टेलेस्कोप से चाँद-तारे देखने वाला और यहाँ तक की चाँद पर जमीन खरीदने वाला व्यक्ति यूँ ज़िन्दगी से हताश कैसे हो सकता है| तुमने सिर्फ अपनी योग्यता और मेहनत के दम पर बिना किसी फ़िल्मी प्रष्ठभूमि के अपना एक अलग मुकाम बना लिया ये काबिले तारीफ है| लेकिन मेरे दोस्त ये फैसला करके तुमने अपने चाहने वालों को बहुत मायूस कर दिया| ज़रा सोंचों जो नौजवान तुम्हे अपना आदर्श मानते हैं, छोटे शहरों में रहने वाले जो बड़े-बड़े सपने देखते हैं, वो तुम्हारे इस अंजाम से अपना हौसला खो बैठेंगे|
समाचारों में पता चला कि तुम भारतीय सिनेमा में व्याप्त भाई-भतीजावाद के काफी लम्बे समय से शिकार हो रहे थे| कुछ बड़े प्रतिष्ठित निर्माता/निर्देशक/अभिनेता जो मिलकर एक गैंग की तरह भारतीय सिनेमा को संचालित करते हैं, उन्हें तुम्हारे इस सिफ़र से शिखर तक की यात्रा से इर्ष्या थी| एक तरह से तुम्हारा अघोषित बायकाट कर दिया गया था| कुछ विडियो क्लिप्स आज कल वायरल हो रही है, जिन्हें देखकर अब ऐसा एहसास होता है कि तुम किन परिस्थितिओं में हमारा मनोरंजन कर रहे थे| यकीन मानों अब ऐसा लग रहा है जैसे की तुम्हारे इस कदम के लिए हम सब भी जिम्मेदार हैं| आखिर भारतीय सिनेमा के उन स्वघोषित बाहुबलियों को हमने ही तो इतना बड़ा बना दिया कि उन्हें सब अपने से छोटे नज़र आने लगें| तुम विश्वास रखो जिन्होंने तुम्हारे साथ गलत किया है भगवान उन्हें कभी माफ़ नही करेगा| और रही बात हम लोगों की, तो देख लेना, जैसे इन्होने तुम्हारा बायकाट किया था, आज से हम सब इन लोगों का बायकाट करते हैं|
यूँ तो मृत्यु कभी सही नही होती, लेकिन शायद तुम्हारी मृत्यु से उन करोंड़ों नौजवानों की आँखें खुल जाएँ जो तुम्हारे गुनहगारों को सितारा मानते हैं, अपना आदर्श मानते हैं|
जहाँ भी रहो....खुश रहो....मेरे दोस्त!

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