Licence ki Lathi in Hindi Short Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | लाइसेंस की लाठी

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लाइसेंस की लाठी

लाइसेंस की लाठी

वरुण ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और तेजी से कॉलेज के लिए निकल गया । लगभग 50000 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से उसकी मोटरसाइकिल सड़क पर दौड़ रही थी । उसके आगे 100 1000 चल रही थी जिसका संकेतक बता रहा था कि वह सड़क पर दाहिनी और कट पर मुड़ने वाली है । यह देखकर वरुण अपनी बाइक की गति धीमी करता हुआ उससे पहले आगे चलने वाली गाड़ी में अपने भाई और चल रहे साइकिल चालक को टक्कर मारकर जोरदार ब्रेक मारा, जिससे साइकिल चालक रक्तरंजित होकर नीचे गिर गया और पीछे चल रहे वरुण तथा दो अन्य वाहन-चालक चोटग्रस्त हो गये । वरुण अपनी चोट की चिंता नहीं करते हुए भावावेश में कार चालक को खींचकर बाहर निकालते हुए चिल्लाया -

"साले ! इंडिकेटर राइट हैंड को दे रहा है, गाड़ी लेफ्ट को मोड़ रहा है ! गाड़ी को मोड़ने से पहले स्पीड कम करने की भी जरूरत नहीं समझता ! ड्राइविंग करना नहीं आता, तो गाड़ी चलाने का शोक क्यों पालता है ! यह सड़क तेरे बाप की नहीं है, सार्वजनिक है ! गाड़ी ड्राइविंग करने का अपना शौक पूरे करने के लिए आम जनता को कुचलने का परमिट नहीं मिल गया है तुझे !"

"सॉरी ! सॉरी ! भाई साहब, मैं आपके इलाज और गाड़ी की टूट-फूट का हर्जाना दे दूँगा ! सॉरी ! आईअम रियली सॉरी !"

"घमंड में तुम लोगों को कभी अपनी जवाबदेही का एहसास नहीं होता ! इसकी जान चली जाती, तो तेरी सॉरी और तेरे पैसे से लौट आती क्या ? पैसे की चकाचौंध में तुम्हें इंसान भी कीड़ों-मकोड़ों की तरह दिखते हैं ! पहले उन्हें कुचलते हो, फिर पैसे के बल पर अपराध करके बच निकलना चाहते हो !" वरूण ने तिरस्कारपूर्ण मुद्रा में कहा । अब तक दुर्घटना स्थल पर भीड़ एकत्र हो चुकी थी। संवेदनशील लोगों ने घायलों की सहायता का उपक्रम आरंभ कर दिया था । कुछ ही मिनट पश्चात् पुलिस आ पहुंँचे और गंभीर रुप से घायल साइकिल चालक को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करके तुरंत निकट के अस्पताल में भिजवाया । वरुण को अधिक चोट नहीं आयी थी, किंतु वह कार चालक को उसकी लापरवाही के लिए कानून द्वारा दंडित कराने के लिए खड़ा हुआ था । अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह तीन-चार दिन तक निरंतर पुलिस थाना के चक्कर लगाता रहा, परंतु कार-चालक के विरुद्ध एक एफ.आइ.आर. तक नहीं लिखा सका । इन तीन-चार दिनों में उसको ज्ञात हुआ कि गंभीर रुप से घायल साइकिल सवार ने अपने इलाज हेतु कुछ रुपए लेकर चालक से समझौता कर लिया है । वरुण समझौते के मूड़ में नहीं था । पिता के बार-बार समझाने पर भी समझने के लिए तैयार नहीं था और अंततः उसने कार चालक के विरुद्ध कोर्ट में केस फाइल कर दिया । वरुण के पिता इस केस को 'आ बैल मुझे मार' उक्ति को चरितार्थ करने वाला व्यर्थ का कार्य समझते थे । वे क्षणे-क्षणे वरुण को उसकी ईमानदारी और नेकनामी के लिए कोसते रहते थे । वरुण इन सब बातों से विचलित न होकर दृढ़-भाव से अपनी राह चलता रहा । किंतु दो वर्ष तक केस चलने के पश्चात् कार-चालक के पक्ष में न्याय का निर्णय सुनकर वह अत्यधिक व्यथित तथा विचलित हो गया । कोर्ट के निर्णयानुसार, "चूँकि वरुण के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था और संभवत वरुण की अपनी असावधानी से उसकी बाइक दुर्घटनाग्रस्त हुई थी, इसलिए वह अपनी शारीरिक-मानसिक-आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए दावेदार नहीं हो सकता है । इसके विपरीत कार-चालक के पास सरकार के संभागीय परिवहन कार्यालय द्वारा जारी किया हुआ चालक परिपत्र है, जो यह सिद्ध करता है कि वह ड्राइविंग में निपुण है । अतः संबंधित मामले में निर्दोष है !"

वरुण ने चीख-चीखकर कहा - "जज साहब ! आप स्वयं हम दोनों का ड्राइविंग टेस्ट लेकर अंतिम निर्णय लीजिए कि हम दोनों में से कौन ड्राइविंग में निपुण है ? वरुण की इस दलील पर खचाखच भरा हुआ हॉल ठहाकों से गूँज उठा, जब स्वयं न्यायाधीश ने व्यंग्यात्मक लहजे मे कहा -

"हम मैदान में जाकर आपका ड्राइविंग टेस्ट लेंगे, तो इस कुर्सी पर कौन बैठेगा ? उस कार्य के लिए सरकार ने संभागीय परिवहन कार्यालय में दूसरे अधिकारियों को नियुक्त किया हुआ है !" न्यायाधीश के प्रत्युत्तर में वरुण ने कई बार ऊँचे स्वर में चिल्ला-चिल्लाकर बताया कि संभागीय परिवहन कार्यालय में टेस्ट लेकर नहीं, पैसे लेकर चालक-प्रपत्र बाँटे जा रहे हैं, किंतु अपने दृढ़ता, साहस और ईमानदारी के बदले में उसको उपहास के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला ।

पराजित होकर कोर्ट-परिसर से बाहर आते समय वरुण के मनःमस्तिष्क में उस समय के घटनाक्रम का एक चित्र स्पष्ट होकर चलचित्र की भाँति उभरने लगा, जब वह छोटी-बड़ी सभी प्रकार की गाड़ियाँ कुशलतापूर्वक चलाने के अपने हुनर पर गर्व करते हुए धन-बल से प्राप्त किए हुए चालक प्रपत्र (फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस) को निरर्थक और महत्त्वहीन कहता था । अपने इसी दृष्टिकोण के चलते हुए आज उसके पास अपना वैध चालक-प्रपत्र नहीं था, जबकि उसकी बहन शाइना के पास पूर्णरूपेण वैध चालक-प्रपत्र है, जबकि उसने आज तक किसी गाड़ी का स्टेयरिंग छुआ तक नहीं है । उस समय वरुण ने अठ्ठारह वर्ष की आयु पार करके उन्नीसवें वर्ष में पदार्पण किया ही था, तभी उसके पिता का आदेश मिल गया था कि यथाशीघ्र अपना चालक-प्रपत्र बनवाले ! एक वर्ष यूँ ही लापरवाही में बीत गया । वरुण की ओर से चालक-प्रपत्र बनवाने के प्रति कोई रुचि नहीं देखकर पिता ने पुनः कठोरतापूर्वक आदेश देते हुए आज्ञा पालन की नसीहत दी ।

पिता की नाराजगी देखकर वरुण ने उसी दिन चालक-प्रपत्र के लिए आवेदन करने का निश्चय किया और उसी क्षण आरटीओ दफ्तर जाने के लिए तैयार हो गया था । वरुण से एक वर्ष छोटी उसकी बहन शाईना पिता और भाई के बीच होने वाली बातें सुनकर शीघ्रतापूर्वक तैयार होकर आयी और आग्रह करने लगी -

"पापा ! मैं भी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना चाहती हूँ ! मैं भी भाई के साथ बनवाने के लिए जाऊँ ?"

"ड्राइविंग आती है तुझे ? चली है, लाइसेंस बनवाने के लिए !" वरुण ने उपहासात्मक मुद्रा में ठहाका लगाते हुए कहा ।

"ड्राइविंग नहीं आती है, तो क्या हुआ ? लाइसेंस बन जाएगा, तब ड्राइविंग भी सीख लूँगी ! मेरी फ्रेंड नीशू को साइकिल चलाना भी ठीक से नहीं आता है, फिर भी उसके पापा ने उसका ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया हुआ है । पापा कहिए ना भाई से कि वह अपने साथ मेरा भी ड्राइविंग लाइसेंस बनवा दे !" शाइना की की लगन को देखकर पिता ने उसका आग्रह स्वीकार करते हुए वरुण को आदेश दिया कि अपने साथ शाइना के चालक-प्रपत्र का भी आवेदन करे !

वरुण और शाइना जब आरटीओ दफ्तर पहुँचे, दोपहर के ग्यारह बज चुके थे । लाइसेंस के लिए आवेदन करने वालों की लम्बी-लम्बी पंक्तियाँ लगी हुई थी । जितनी भीड़ आवेदकों की थी, उससे भी अधिक भीड़ आ.टी.ओ. के बाहर आवेदकों की सहायता करने वाले 'परोपकार धर्मों परमो धर्मः' उक्ति को पोषित करने वाले भले मानुषों की थी । परोपकारियों की इतनी बड़ी संख्या को देखकर शाइना अपनी उत्सुकता का संवरण न कर सकी । वह बोली -

"भाई किसी सरकारी विभाग में पहली बार यह सुविधा देख रही हूँ कि सहायता करने वाले स्वयं ग्राहक के पास आकर कदम-कदम पर सेवा का अवसर माँग रहे हैं ।"

"कोई परोपकारी नहीं है, सब दलाल बैठे हैं यहाँ !" तुम सीधे आगे बढो ! वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए वरुण ने शाइना को निर्देश दिया - "दलाल - मतलब दलाल ! मतलब, पैसा खाकर लाइसेंस बनवाने वाले !"

वरुण द्वारा बताए गए मतलब का विश्लेषण करते हुए शाइना आगे बढ़ गयी । आर.टी.ओ. परिसर में प्रवेश करके वरुण ने दो-चार लोगों से आवेदन करने की प्रक्रिया के विषय में ज्ञात किया । शाइना हर व्यक्ति द्वारा दी गयी वांछित जानकारी को शांत होकर ध्यानपूर्वक सुनती रही, क्योंकि बीच में बोलने का अर्थ था, अपने भाई वरुण को अप्रसन्न करना, जोकि वह कदापि नहीं चाहती थी । आवेदन हेतु यथावश्यक जानकारी करने के पश्चात् वरुण ने साइना से कहा, मैं आवेदन के लिए फार्म लेकर आता हूँ, तब तक तू यहाँ बैठ ! वहाँ लाइन में दोनों को खड़े होकर व्यर्थ में परेशान होने की आवश्यकता नहीं है !"

"ठीक है ! साइना ने सहमति में सिर हिला दिया और वरुण ने जहाँ बैठने के लिए निर्देश दिया था, बैठ गयी । वरुण के जाने के उपरांत वहाँ पर राकेश नामक एक परोपकारी भला मानुस आ पहुँचा -

"मैडम ! लाइसेंस बनवाने के लिए किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो ...! मैडम, काम समय पर होगा ; ईमानदारी से होगा और कम से कम खर्च पर होगा ! एक बार सेवा करने का अवसर देकर देखिए, आगे से अपने परिचितों का लाइसेंस बनवाने के लिए भी हमें ही ढूँढते रहोगे !"

"अच्छा ! कितने दिन में बनवा दोगे ?"

"मैडम, लर्निंग बनवाना है ?"

"हाँ !"

"यही, पन्द्रह से तीस दिन लग जाएँगे !"

"कितने रुपए लगेंगे ?"

" पन्द्रह सौ रुपए लगेंगे, मैडम !"

"अभी एक महीना पहले मेरी एक फ्रेंड ने बनवाया था, पाँच सौ रुपये में ! यहाँ बैठकर मैं उसी का वेट कर रही हूँ ! तुम पाँच सौ में बनवा दो, तो बताओ !"

"चलिए, एक हजार दे देना !"

"नहीं ! मेरा काम पाँच सौ में हो रहा है, फिर मैं एक हजार क्यों दूँ !"

"मैडम, न मेरी न आपकी, छह सौ दे देना ! फीस आपको अलग से जमा करनी पड़ेगी !"

"नहीं, फीस अलग से नहीं ! सिर्फ छह सौ ही दूँगी !"

"मैडम जी, इन छह सौ रुपयों में से हमें कुछ ज्यादा नहीं बचेगा ! इनमें से हमें अंदर भी कई जगह देना पड़ता है ।

"चलिए, ठीक है ! आप बताइए, मुझे क्या करना है ? परीक्षा भी देनी पड़ेगी ?"

"आपको कुछ नहीं करना है, मैडम जी ! बस मुझे छह सौ रुपये, अपना आइ.डी. प्रूफ़, रेजीडेंस प्रूफ़ और एज प्रूफ के लिए अपना हाई स्कूल का सर्टिफिकेट देकर यह फॉर्म भर दीजिए ! इसके बाद मेरे साथ चलकर फीस जमा करके आपको फोटो अपना खिंचवाना है और डिजिटल सिग्नेचर करना है !"

शाइना ने राकेश से आवेदन फॉर्म ले लिया और उसे भरने लगी । जब तक उसने फॉर्म भरा, तब तक उसका भाई वरुण भी आवेदन फॉर्म लेकर आ गया । वरुण के आते ही शाइना ने उसको राकेश के साथ हुई सोदेबाजी के विषय में बताते हुए कहा कि वह परीक्षा नहीं देना चाहती है, बल्कि ...। शाइना का निर्णय सुनकर वरुण ने क्षणभर तक उसकी ओर घूरकर देखा और सपाट शैली में बोला -

"ड्राइविंग करना नहीं आता, तो ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की क्या आवश्यकता है ?"

"आवश्यकता है, भाई ! ड्राइविंग करना मैं जल्दी ही सीख लूँगी !" शाइना ने विनती की मुद्रा में कहा । वरुण ने शाइना का आग्रह स्वीकार कर लिया और राकेश के साथ यथावश्यक सारी बातें पुनः स्पष्ट रुप से निश्चित करके बहन का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का कार्य सौंप दिया ।

शाइना एक-एक करके क्रमशः चार खिड़कियों पर गयी । प्रत्येक खिड़की पर जाने से पहले राकेश उसके आवेदन-पत्र पर एक संख्या अंकित करके शाइना द्वारा खिड़की के अंदर भिजवाता रहा और अगले कुछ ही मिनट में सत्यापित होकर सभी प्रमाण-पत्रों सहित आवेदन-पत्र शाइना के हाथ में आता रहा । लगभग बीस मिनट में शाइना के चालक- प्रपत्र के आवेदन की प्रक्रिया संपन्न हो गयी । आवेदन की प्रक्रिया संपन्न होने के पश्चात राकेश ने वरुण से कहा -

"वरुण जी ! आप मुझे फी-रिसिप्ट की फोटो कॉपी कराके दे जाइए और निश्चिंत रहिए ! कहीं कोई समस्या होगी, तो मैं देख लूँगा ! आप मेरा मोबाइल नंबर नोट कर लीजिए ! कभी आवश्यकता पड़े, तो संपर्क कर सकते हैं !" वरुण ने राकेश का मोबाइल नंबर लिख लिया और शुल्क प्राप्ति की एक छाया-प्रति उसको दे दी ।

"भाई ! मेरे आवेदन की सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है । अब आप आवेदन कर सकते हैं !" शाइना ने वरुण से कहा ।

"मैं आज आवेदन नहीं कर सकूँगा । आज मैं अपने ओरिजिनल डॉक्युमेंट नहीं लाया था । डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होने के बाद ही मेरा आवेदन आगे बढ़ेगा । तभी मैं परीक्षा दे पाऊँगा ! अब घर चलें !"

"चलो !" शाइना ने उत्तर दिया । उसके बाद दोनों ने घर की ओर प्रस्थान किया ।

अगले दिन वरुण प्रातः बिस्तर से शीघ्र उठा ; यथोचित समय पर आर.टी.ओ. दफ्तर पहुँचा और अपने आवेदन की पूरी प्रक्रिया सहित परीक्षा सम्पन्न करके घर लौट आया । घर लौटकर उसने बताया

"पन्द्रह प्रश्न थे । नौ प्रश्नों का सही उत्तर देना आवश्यक था, लेकिन ...!"

"लेकिन ...? साइना ने और उसके पिता ने एक स्वर में प्रश्न किया ।

"लेकिन कुछ प्रश्न ही गलत पूछे गये थे, जिनका कुछ उत्तर हो ही नहीं सकता था । कुछ प्रश्न सही पूछे गये थे, तो उनके विकल्पों में दिए गये उत्तर गलत थे । कुछ, जो प्रश्न भी सही थे, और उत्तर भी सही थे और जिनका उत्तर मुझे ज्ञात था, उन्हें मैंने कर दिया । परिणाम जैसा आएगा, देखा जाएगा ।"

"भाई छह सौ रुपये देकर आपके लाइसेंस का कल ही सारा काम पूरा हो जाता और बीस दिन में ड्राइविंग लाइसेंस घर पर पहुँच जाता । लेकिन, आप मेरे बराबर समझदार नहीं है ना ! अब देखना छह सौ रुपये तो आप आने-जाने में अपनी मोटरसाइकिल के पेट्रोल में ही खर्च कर देंगे ! भाग-दौड़ अलग से करेंगे !" शाइना ने अपनी समझदारी का बखान किया, तो पिता ने भी उसका समर्थन करते हुए कहा -

"देख लेना ! रिजल्ट ठीक न आए, तो ले-देकर लाइसेंस बनवा लेना !"

"पापा ! ड्राइविंग का हुनर और अपनी जवाबदेही का एहसास ड्राइविंग लाइसेंस की अपेक्षा अधिक जरूरी है ! आप जानते हैं, मुझमें ड्राइविंग का अनुपम कौशल है ! सभी छोटी-बड़ी गाड़ियाँ कुशलतापूर्वक चलाता हूँ । अच्छे-अच्छे पानी भरते हैं, मेरे सामने ! फिर आप ही बताइए, चरित्र का भी कोई मूल्य होता है या नहीं ! एक कानूनी कागज़ के टुकड़े के लिए अपना चरित्र भ्रष्ट करना उचित नहीं है ! मेरा ड्राइविंग लाइसेंस बने या न बने, मैं इमानदारी की राह नहीं छोड़ना चाहता !"

वरुण का उत्तर सुनकर उसके पिता और शाइना चुप हो गये । दस दिन पश्चात् वरुण की परीक्षा का परिणाम आया, जिसमें वह असफल घोषित किया गया था । लेकिन, इसी के साथ यह भी सुविधा दी गयी थी कि आवेदन की प्रक्रिया पूरी करके उसी शुल्क में वह पुनः परीक्षा दे सकता है । बीस दिन पश्चात् शाइना का लर्निंग लाइसेंस घर पहुँच चुका था । अतः पिता ने वरुण को समझाया कि वह भी राकेश को छह सौ रुपये देकर चालक-प्रपत्र बनवा ले, किंतु अब भी उसका वही उत्तर था । इस बार उसने अपने उत्तर में कुछ शब्द अतिरिक्त जोड़ दिए थे कि रिश्वत के लालच में अधिकारी उन अभ्यर्थियों को जानबूझकर अनुत्तीर्ण करते हैं, जो दलालों के बिना सीधे स्वयं आवेदन करते हैं । मैं आजीवन परीक्षा देता रहूँगा, लेकिन दलाल द्वारा लाइसेंस नहीं बनवाऊँगा । वरुण ने आजीवन परीक्षा देने के लिए कह तो दिया, परंतु एक बार असफल होने के पश्चात् परीक्षा नहीं दी । इसी प्रकार धीरे-धीरे छह महीने बीत गये, जबकि इस समयांतराल में शाइना ने अपना लाइसेंस लर्निंग से पक्का भी करवा लिया था।

अतीत की स्मृतियों में डूबा हुआ वरुण जब घर लौटा, तो वह विचित्र-सी उदासी और झुंझलाहट से भरा हुआ था । बार-बार वह एक ही बात कह रहा था, "मैं अपराधी को दंड दिलाए बिना चुप नहीं बैठूँगा ! कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध मैं हाईकोर्ट में अपील करूँगा ! वहाँ पर भी न्याय नहीं मिला, तो सुप्रीम कोर्ट में जाऊंँगा !" वरुण के पिता ने उसको बार बार समझाने का प्रयास किया -

"दुर्घटना में गंभीर रुप से घायल साइकिल चालक उस कार-चालक को क्षमा कर चुका है, जिसने उसको चोट पहुँचाई थी । फिर तू क्यों उसके पीछे पड़ा है ? इस प्रश्न के उत्तर में वरुण की तर्कसंगत और संवेदनायुक्त दलील थी -

"क्योंकि एक-दो हजार रुपये में ड्राइविंग लाइसेंस खरीदकर सड़क पर बेखौफ वाहन दौड़ाने वाले जिन लोगों को किंचित मात्र भी अपने जवाबदेही का एहसास नहीं है । यदि उन को यूँ ही खैरात में माफ़ी पार्टी जाती रही, तो भविष्य में न जाने सड़क पर यह और कितने लोगों को अपनी कार से रौंदेगा ! यह ही क्यों, न जाने ऐसे कितने लोग एक-एक दो-दो हजार रुपये के लाइसेंस धारक ड्राइवर बेखौफ होकर अपनी लापरवाही से सड़क पर चलने वालों को कुचलते रहेंगे !"

यद्यपि वरुण के पिता अपने बेटे के अकाट्य तर्कों से पूर्ण सहमत थे, किंतु वे यह नहीं चाहते थे कि अपनी पढ़ाई-लिखाई और घर के महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़कर व्यर्थ ही वह कोर्ट-कचहरी के पचड़े में पड़ता फिरे । वह चाहते थे कि अपने जीवन के स्वर्णिम क्षणों का सदुपयोग वह अपनी शैक्षिक सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए करे ! उन्होंने वरुण को अपने विचारों से बार-बार अवगत कराया, वरुण को उनके विचार रास नहीं आ रहे थे । वरुण को अपने दृष्टिकोण के प्रति दृढ़ और अविचल देखकर पिता का पारा चढ़ गया । उन्होंने सपाट शैली में वरुण को चेतावनी दे डाली कि निरर्थक विषयों को लेकर कोर्ट-कचहरी में खर्च करने के लिए उसको एक पैसा भी नहीं देंगे !

पिता की चेतावनी ने वरुण के धुंधुआती क्रोधाग्नि में घी का काम किया और अब उसमें आग की ऊँची-ऊँची लपटें उठने लगी थी । हंगामा करते हुए उसने सारा घर सिर पर उठा लिया कि जब तक शाइना का ड्राइविंग लाइसेंस नष्ट नहीं कर देगा, तब तक चैन से नहीं बैठेगा । उस समय वरुण के व्यवहार को देखकर प्रतीत होता था कि वह अर्धविक्षिप्त हो चुका है । किंतु, उसके मुख से निसृत एक-एक शब्द यह सिद्ध कर रहा था कि वह पूर्णरूपेण उचित मार्ग पर अग्रसर है । किन्तु, वर्तमान युग में उसके जैसे गिने-चुने व्यक्ति ही उचित राह पर चल रहे हैं । परिणाम की चिन्ता किये बिना प्रायः सभी व्यक्ति स्वार्थ की अंधी दौड़ में पागल हो रहे हैं ; भागमभाग हैं !

"आज यदि मैंने शाइना का ड्राइविंग लाइसेंस नष्ट नहीं किया, तो योग्यता और परिश्रम के बिना प्राप्त किए गए इस लाइसेंस को जेब में रख कर कल यह भी उस कार-चालक की भाँति सड़क पर वाहन लेकर निकलेगी । हम सब जानते हैं, इसे गाड़ी चलाना नहीं आता, फिर भी पैदल साइकिल या मोटरसाइकिल से चलने वाले लोगों को रौंदकर यह इसी लाइसेंस बल पर स्वयं को निर्दोष सिद्ध करेगी !"

वरुण का उन्माद बढ़ता ही जा रहा था । परिवार का प्रत्येक सदस्य उसको समझा-समझाकर थक चुका था । सभी परेशान हो रहे थे । अंत में शाइना स्वयं आगे आयी, उसने वरुण से अनुनय-विनय करते हुए विनम्र निवेदन किया -

"भाई ! आपकी समस्या है कि मुझे गाड़ी चलाना नहीं आता है, इसलिए मैं ड्राइविंग लाइसेंस रखने की अधिकारी नहीं हूँ ! मैं ड्राइविंग करना सीख लूँ, तब तो आपको कोई आपत्ति नहीं होगी ना ? मैं आज ही से ड्राइविंग सीखना शुरु कर दूँगी ! आप मुझे सिखाएँगे ?" शाइना के विनीत भाव तथा विनम्र निवेदन के समक्ष वरुण का आवेश ढीला पड़ गया । धीरे-धीरे उसका क्रोध इस आश्वासन से शांत हो गया कि प्रातः सात बजे उठकर शाइना सर्वप्रथम ड्राइविंग सीखने के लिए जाएगी । वरुण के शांत होने के पश्चात् पूरे परिवार ने चैन की साँस ली ।

पिता शायना से बहुत प्रसन्न थे कि उसने उचित समय पर सरलतापूर्वक ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था और अब ड्राइविंग सीखने के लिए भी तैयार है । इतना ही नहीं, आज अपने सौम्य स्वभाव और संतुलित व्यवहार से उसने उद्दंड और लगभग अर्धविक्षिप्त अवस्था को प्राप्त अपने भाई वरुण को शांत करके पिता के हृदय में एक विशेष स्थान सृजित कर लिया था । इन सब बातों से प्रसन्न होकर पिता ने शाइना को अपनी गाड़ी देना भी स्वीकार कर लिया था । पन्द्रह दिन तक नित्य प्रातः सात बजे से दस बजे तक वरुण के निर्देशन में शाइना गाड़ी चलाने का अभ्यास करती रही । पन्द्रह दिन पश्चात् उसने वरुण से मुख्य सड़क पर गाड़ी चलाने की अनुमति माँगी । किंतु, वरुण ने उसको यह कहते हुए अनुमति नहीं दी कि अभी तक वह ड्राइविंग में निपुण नहीं है । अगले दिन प्रातः वरुण को शहर से बाहर जाना था । जाते-जाते वह शाइना को मुख्य सड़क पर गाड़ी लेकर न जाने के लिए कठोर निर्देश दे कर गया था, किंतु वरुण के घर से निकलते ही शाइना गाड़ी लेकर मुख्य सड़क पर ड्राइविंग करने के लिए निकल पड़ी ।

दो दिन पश्चात् जब वरुण घर वापस लौटा, तब उसको ज्ञात हुआ कि मुख्य सड़क पर गाड़ी चलाते हुए एक ट्रक के साथ शाइना की टक्कर हो गयी, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गयी थी । उस समय घटना-स्थल पर उपस्थित संवेदनशील लोगों ने ही उसको अस्पताल में भर्ती कराया और उसके पास में मिले कुछ डाक्यूमेंट्स की सहायता से उसके घायल होने की सूचना घर पर दी गयी । शाइना के दुर्घटनाग्रस्त होने की सूचना पाकर वरुण के चेहरे पर शोक मिश्रित क्रोध का भाव उभर आया । उसी भावावेश में उसने तत्क्षण घर से प्रस्थान किया और यथाशीघ्र अस्पताल में पहुँच गया ।

जब वरुण अस्पताल में पहुँचा, तब तक शाइना की चेतना लौट चुकी थी । वरुण सीधा शाइना के बिस्तर के निकट गया, परंतु उसने लेशमात्र भी सहानुभूति प्रकट नहीं की बल्कि अपने हृदय की गहन पीड़ा को छुपाते हुए रुंधे स्वर में बोला -

शाइना सच-सच बताना ! दुर्घटना तेरी असावधानी से हुई थी अथवा ट्रक ड्राइवर की असावधानी से ?"

"भाई ! सच तो यह है, ट्रक ड्राइवर की कोई गलती नहीं थी ! दुर्घटना में सारी गलती मेरी थी ! मेरी असावधानी से ही एक्सीडेंट हुआ ! अब मुझे समझ में आ रहा है कि मैं अभी ड्राइविंग में निपुण नहीं हूँ ।! मेरी गाड़ी की गति इतनी अधिक थी, जितनी कि नहीं होनी चाहिए थी ! आत्मविश्वास के अभाव में मैं एक्सीलेटर, इंडिकेटर, ब्रेक और स्टेयरिंग सब पर एक साथ ध्यान नहीं रख सकी और ट्रक से टक्कर हो गयी । सॉरी भाई ! आज के बाद मैं मेन रोड पर गाड़ी लेकर तभी आऊँगी, जब आप की अनुमति मिल जाएगी !" शाइना ने यह शब्द अपराधबोध की शैली में कहे थे, किंतु जब वरुण को ज्ञात हुआ कि इन दो दिनों में ट्रक ड्राइवर के विरुद्ध एफ.आइ.आर. दर्ज हो चुकी है और दुर्घटना में हुई शारीरिक-आर्थिक क्षति की पूर्ति के लिए केस फाइल करने की तैयारी चल रही है, तब क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गयी । वह दोनों हथेलियों से अपना सिर पकड़ते हुए भावावेश बोला-

"मैं जानता था, एक दिन यही होगा ! जब तक आर.टी.ओ. के बाहर परोपकारी दलालों की भीड़ लगी रहेगी ; आर.टी.ओ.के भ्रष्ट अधिकारी आवेदकों के ड्राइविंग कौशल को को परखे बिना थोक में चालक-प्रपत्र बाँटते रहेंगे, तब तक तब तक यही होता रहेगा, ऐसी ही दिन-प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाएँ होती रहेंगी और स्वार्थ के अंधे गाँठ के पूरे कौशल रहित लोग दलालों की सहायता से तैयार ड्राइविंग लाइसेंस की लाठी से कानून को हाथ से रहेंगे !"

***