Kanto se khinch kar ye aanchal - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

काँटों से खींच कर ये आँचल - 1

काँटों से खींच कर ये आँचल

रीता गुप्ता

अध्याय एक

क्षितीज पर सिन्दूरी सांझ उतर रही थी और अंतस में जमा हुआ बहुत कुछ जैसे पिघलता जा रहा था. मन में जाग रही नयी-नयी ऊष्मा से दिलों दिमाग पर जमी बर्फ अब पिघल रही थी. एक ठंडापन जो पसरा हुआ था अंदर तक कहीं दिल की गहराइयों में, ओढ़ रखी थी जिसने बर्फ की दोहर, आज स्वत: मानों गलने लगी थी. मानस के नस नस पर रखी शिलाएं अब स्खलित होने को बेचैन थीं. भले जग का सूर्यास्त हो रहा हो पर मेरे अंदर तो उदित होने को व्याकुल हो उठा था. एक लम्बी कारी ठंडी उम्र का कारावास मैंने झेला था, अब दिल में उगते सूरज को ना रोकूंगी. अंतस के तमस को चीरते आदित्यनारायण को अब बाहर आना ही होगा.

धूल उड़ाती उसकी कार नज़रों से ओझल भले ही हो चुकी थी, पर लग रहा था वह सर्वविद्यमान है. अपनी समस्त भौतिकता समेट वह जा चुकी थी पर ऐसा क्या छोड़ गयी थी कि उसका होना मुझे अभी भी महसूस हो रहा था. चुनने लगी मैं सजगता से, यहाँ – वहां बिखरी हुई उसको. चुन चुन मैं सहेजने लगी. कितना विस्तृत था उसका अस्तित्व, भला मैं कितना समेटती. जितना मैं चुन सकी उसको, अपनी गोद में रख मैं बुनने लगी-गुनने लगी. मन कर रहा था कि फिर उसे अपने गले लगा लूँ. प्यास बुझती ही नहीं, वर्षों की अतृप्त बंजर दिल पर पहली बार तो मानों रिश्तों की ओस पड़ी थी. इस स्वाति प्रभा ने दिल मन मस्तिष्क सब आलोकित कर दिया था.

“अरे तुम बाहर क्यूँ बैठी हो और रों क्यूँ रहीं हो?”

इन्होने आ कर कहा तो मैं चौंक गयी.

“आप कब आये, मुझे पता ही नहीं चला?”, मेरे आंसू बह रहें थे और मुझे भान ही नहीं था. वास्तव में आंसू सिर्फ खारा पानी नहीं होतें हैं, ये तो मन के अबोले शब्द होतें हैं. रंगविहीन होते हुए भी कभी इन्द्रधनुषी तो कभी कालें रंग समेटे ह्रदय का दर्पण बन टप से चू जातें हैं अंतस किरणों सी.

“अच्छा-अच्छा घर पहुँच गयी, बढ़िया है आराम करो अब”, ये फोन पर बोल रहें हैं लगता है इनकी बेटी अपने घर पहुँच गयी.

’इनकी’..... क्या वाकई सिर्फ इनकी ही बेटी?

जा कर मैं लेट गयी पलंग पर. मन और देह दोनों भारी लग रहें थें. तभी दरवाजे पर खड़े रामसिंह ने तन्द्रा भंग की,

“सूप ले आया हूँ, दीदी जी बोल कर गयीं है कि ठीक आठ बजे आपको मिक्स वेजिटेबल सूप जरूर पिला दूँ”

“लाइए दीजिये यहाँ”, रामसिंह से सूप ले मैं पीने लगी, कनखियों से मैंने देखा ये हमेशा की तरह अपनी स्टडी रूम में व्यस्त हैं और अपने फाइल के पन्ने पलट रहें हैं. पन्ने फाइल के पलटे जा रहें हैं और मन मेरा.

***