Maa Bharti - Gulami ke baad ka Bharat books and stories free download online pdf in Hindi

मा भारती - गुलामी के बाद का भारत

जिन्होंने हमारे भारत देश को गुलाम बनाया और देशवासियों पर भयंकर अत्याचार किये, उन अंग्रेजों की नई साल को न मनाने पर तर्क प्रस्तुत करती मेरी कविता........
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नये साल के आ जाने पर,
                कितना ज्यादा शोर है,
कुछ लोगों की हालत देखो,
                पागलपन की ओर है।
अँगरेजों के नये साल पर, 
                यह इतना चिल्लाते हैं,
भूल के सारे स्वाभिमान को, 
                यह पागल बन जाते हैं।
राम-कृष्ण के वँशज हैं हम, 
                हम भारत के वासी हैं,
हमने जिनको पूजा है वो, 
                ऋषि-मुनि, सन्यासी हैं।
हम करते अभिमान हमेशा, 
                अपनी ही परिपाटी पै,
महाराणा की तलवारों पै, 
                पावन हल्दीघाटी पै।
जौहर की गाथाओं पै, 
                हरदम अभिमान करेंगे हम,
वीरों के चरणों का वन्दन, 
                सीना तान करेंगे हम।
मुझे गर्व खुद पर है कि मैं, 
                भारत माँ का बेटा हूँ,
कभी नहीं मैं इस कारण, 
                ईसा के पग में लेटा हूँ।
मुझे सेकुलर होने का,
                हरगिज़ न ढोंग दिखाना है,
नहीं किसी को खुश करने को,
                स्वाभिमान भुलाना है।
अपनी सँस्कृति और सभ्यता, 
                भाषा से है प्यार मुझे,
गैरों के चरणों को छूना, 
                हरगिज न स्वीकार मुझे।
सारी दुनियाँ में सर्वोत्तम, 
                भारत माँ की थाती है,
कष्ट किसी को नहीं दिया, 
                यह सबको सुख पहुँचाती है।
सर्वश्रेष्ठ को छोड़ भला क्यों, 
                नीच सँस्कृति अपनाऊँ, 
भारत माँ के उच्च भाल पै, 
                क्यों मैं धब्बा लगवाऊँ।
मैं न इतना मूरख हूँ कि, 
                ईसा के पीछे डोलूँ,
इससे नहीं वास्ता फिर क्यों, 
                हैप्पी न्यू ईयर बोलूँ।
ईसा के बेटों ने मेरा, 
                भारत किया ग़ुलाम था,
जिसकी ख़ातिर वीरों ने फिर, 
                लड़ा महासंग्राम था।
लाखों देशवासियों ने जब,
                अपना लहू बहाया था,
उनके बलिदानों के कारण,
                आज़ादी को पाया था।
उन वीरों के बलिदानों का, 
                न अपमान करूँगा जी,
नई साल पै ईसा का मैं, 
                न गुणगान करूँगा जी।
ऐ भारत में रहने वालो,
                स्वाभिमान को लाओ तुम,
गैरों के कदमों में पड़कर,
                न मूरख कहलाओ तुम।
भारत की महिमा तो सारे,
                जग ने ही स्वीकारी है,
उसका न सम्मान करो तो,
                बुद्धि सड़ी तुम्हारी है।।
ख़ूब मनाओ त्यौहारों को,
                ख़ूब मिठाई खाओ तुम,
पर गोरों को देख-देख के,
                न हुड़दंग मचाओ तुम।
पीकर के शराब के प्याले,
                मूरख न तुम बन जाओ,
रात-रात भर जाग-जाग कर,
                जाहिल न तुम कहलाओ।
मेरे प्यारे देशवासियो, 
                बुद्धि ज़रा लगाओ तो,
अपनी सँस्कृति और सभ्यता,
                का अभिमान जगाओ तो।
हमें नहीं पश्चिमी सभ्यता,
                के पीछे पड़ जाना है,
सबसे आगे रहना है न,
                पिछलग्गू बन जाना है।
छोड़ के वैदिक धर्म किसी को,
                न स्वीकार करेगा जी।।
" सत्यम  भारत की,
                परम्परा से प्यार करेगा जी।
नव सम्वत्सर जब आयेगा, 
                ढँग से उसे मनाऊँगा,
अंगरेजों की नहीं कभी, 
                हैप्पी न्यू ईयर गाऊँगा।।

--https://youtu.be/C0m1uI96c9E
satyam 9983255754