Irsha ne paap ka bhagidar bana diya - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

ईर्ष्या ने पाप का भागीदार बना दिया (मध्य भाग)

उस कक्ष में बैठा व्यक्ति जिसे वो सुन्दरी अपना पति बता रही थी एक वृद्ध था जिसकी आयु उस स्त्री से तीन गुना अधिक थी अब मेरे मन में उस मन मोहिनी के लिए प्रेम के साथ दया भाव भी उत्पन्न होने लगा मैं मन ही मन उसके भाग्य पर खेद व्यक्त करने लगा

अभी मैं इन परिस्थितियों पर विचार कर ही रहाँ था के सामने बैठे बुढ़े ने अत्यंत आदरपूर्वक मेरा स्वागत किया और अपने साथ बिठा लिया उसने मुझसे मेरा परिचय माँगा तो मेने उसे अपने उपर एक के बाद एक तुट पड़ी आपदाओं का विस्तार से वर्णन किया

जिसको सुन वो बुढ़ा बड़ा ही भावुक हो गया और सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला
तुम्हारी आप बीती सुन कर मुझे बड़ा दुख हुआ किन्तु हम और आप केवल भाग्य के हाथ की कठपुतलियां है हम भाग्य को बदल नहीं सकते
परन्तु जिस प्रकार हर रात के बाद दिन निकलना निश्चिंत होता है उसी प्रकार अच्छे और बुरे भाग्य का समय भी एक तय अवधि तक निर्धारित होता हैं और मुझे विश्वास है के अब तुम्हारे दुर्भाग्य की अवधि समाप्त हो गई है ।

उसकी इस प्रकार की बातें सुन मुझे वो एक सदपुरूष और निष्ठावान व्यक्ति प्रतीत हुआ
हमने भोजन के साथ विभिन्न प्रकार के विषयों पर चर्चा की भोजन पश्चात मैं अपने कक्ष में विश्राम के लिये आगया लेकिन मुझे रात भर निन्द नहीं आई मैं ये सोच कर दुविधा में था के एक ओर वो बुढ़ा मुझे एक सज्जन व्यक्ति प्रतीत होता वहीं दुसरी ओर अपने से अत्यधिक छोटी आयु की स्त्री से विवाह करना उसके दुष्ट और चरित्रहीन होने का प्रमाण दे रहे थे इनमें से कौन सा रूप सत्य था और कौन सा छल ये समझ पाना मेरे लिए बड़ा ही कठिन सीध हो रहा था
अगली सुबह हम एक
अन्य बन्दरगाह पर पहुँचे इस देश में बुढ़ा अपने माल और सेवकों के
साथ व्यापार के लिये उतरा और मुझे कुछ व्यापारी गुण सीखाने हेतु अपने साथ ले लिया
बुढ़े ने बड़ी कुशलतापूर्वक अपने माल को मोटे मुनाफे के साथ बेच दिया मैं केवल उसको देख कर सीखता ही रहाँ वैसे भी मुझे और कुछ करने की अनुमति ना थी

दो दिन में पुरा माल समाप्त करने के पश्चात वो बुढ़ा मुझे एक कपड़ो के बड़े व्यापारी की दुकान में ले गाया व्यापारी ने बुढ़े को देख कर स्वयं उसकी आओ भगत की थोड़ी देर इधर-उधर की बातों के बाद व्यापारी ने मूल्यवान वस्त्रों की कइ थान बुढ़े के आगे प्रस्तुत की जिसे बुढ़े ने अत्यंत हर्षित हो कर देखा और उनकी जांच की
जो थान बुढ़े को जच जाति वो उस थान को अलग करता जाता अंत में मोलभाव होने लगा मैंने देखा के बुढ़े को कपड़ो का कोई अधिक ज्ञान नही है जिसके कारण व्यापारी बुढ़े को दोषपूर्ण और मिलावटी थान अत्यधिक मुल्यो मे चेप रहा था मैं अंतिम क्षण तक ये सब चुपचाप देखता रहा जब बुढ़े ने अशर्फीयो की थैली निकाल कर व्यापारी के आगे की तो मैंने झपट्टा मार कर छीन ली इस पर बुढ़ा तिलमिला गया और कुछ बोलने ही वाला था उससे पहले मैंने व्यापारी की कपट नीति बता दि जीसे सुन बुढ़ा भौचक्का सा रह गया और व्यापारी मारे भय के कांपने लगा उसे डर था यदि हमनें उसका ये नीच भेद खोल दिया तो इस पर उसका व्यापार तो ठप होगा ही साथ में राजा द्वारा जो दण्डित किया जायगा सो अलग
अब वो बुढ़े के चरणों में गिर कर क्षमा याचना करने लगा वो इतना रोया की बुढ़े को व्यापारी पर दया आ गई और उसके विरुद्ध बिना किसी कारवाई के वहा से चल दिया हा उसने बिना दाम चुकाये चुने हुए कपड़ो की थाने अपने साथ ले लीये व्यापारी ने भी कुछ ना बोलने में ही अपनी भलाई समझीं
बुढ़ा मेरी कपड़ो की परख से बहुत प्रभावीत हुआ और जहाज पर पहुँच कर उसने मेरी कोशलता और गुणों की भरपूर प्रशंसा की साथ ही मुझे प्रसन्न हो कर ईनाम स्वरुप बीस स्वर्ण मुद्राएं दी और मुझे एक तय आय के साथ काम पर रख लिया

अबकी यात्रा पहले से अधिक लम्बी थी
मैं काफी सुखद और सन्तुष्ट था मैं सच्चे मन से ईश्वर को धन्यवाद करता के आखिरकार उसने मुझे एक उचित स्थान पर पहुंचा दिया
अब हम अगले स्थान की ओर निकल पड़े
परन्तु एक बात मेरे मन को समय-समय पर विचलित कर देती असल में वो सुन्दरी जब भी मेरे आस-पास होती तो मुझे ऐसे ताड़ती जैसे कोई बात कहना चाहती हो लेकिन जब मैं उसके पास जाता तो वो मुँह फेर कर चली जाती जैसे मैं कोई अपरिचित हुँ
उसका ये व्यवहार मेरी समझ से परे था और यही बात मेरे मन को विचलित कर देती थी उसके इस प्रकार के व्यवहार से मैं खिसीया सा गया था
अर्थात एक दिन उचित अवसर पा कर एकांत में मैंने उसे रोका और उसके इस विचित्र व्यवहार का कारण पुछा तो वो बिना उत्तर दिए जाने लगी
आवेश में आकर मैंने उस सुन्दरी का हाथ पकड़ लिया वो थोड़ा झटपटाइ फिर चिंता मय भाव दर्शाते हुये बोली कृपा करके मुझे जाने दे नहीं तो अनर्थ हो जायेगा
मैं सुन्दरी से कुछ ओर बोलता के उससे पहले ही मुझे किसी कि भयंकर गर्जन सुनाई दि मैंने पिछे मुड़ कर देखा वो बुढ़ा लाल आँखों के साथ क्रोधित अवस्था में खड़ा था उसे देख वो स्त्री भय से पीली पड़ गई और वहाँ से दोड़ कर चली गई
मेरे द्वारा हुई इस सरल भूल को महा पाप करने जीतना दण्ड देने के लिये उसने क्रोध में कुछ बोला अजगर ------ भीम-------

बस फिर किया था क्षण भर में दो दैत्याकार भयंकर व्यक्ति वहाँ प्रकट हो गए बुढ़े के आदेश पर मुझे बान्ध दिया और मेरे पीठ पर से कपड़े फाड़ डाले वो दोनों इतने बलवान थे के मै कुछ ना कर सका मैं निस्सहाय सा पड़ा था तभी एक सन्नाटे दार ध्वनि करता और हवा को चिरता हुआ एक कोढ़ा मेरी पीठ पर पड़ा और खाल को उधेड़ता हुआ चला गया उस दुष्ट के एक कोढ़े ने मुझे असहनीय पीड़ा दी मैं उस बुढ़े से क्षमा माँग दया करने को कहता ईश्वर की सौगन्ध दे कर रूकने की प्रार्थना करता
परन्तु वो अपने प्रतिशोध की अग्नि मै इतना भभक राहा था के सब व्यर्थ सीध हो रहा था और एक के बाद एक करके कोढ़े मुझ पर बरसते गए और हर कोढ़ा पहले से अधिक कष्ट देता दसवें कोढ़े की पीड़ा मेरी क्षमता से बाहिर थी जिसके कारण मैं मुर्छीत हो गया
जब आँख खुली तो चारों ओर सन्नाटे दार वायु अपने पुर्ण वेग से चल रही थी मैं अभी तक बंधा हुआ था कुछ क्षण पश्चात मुझे कीसी के आने की आहट सुनाई दि तो मैं भय के कारण मुर्छीत होने का ढोंग करने लगा जब वे लोग मेरे पास आएं तो मुझे पता चला के एक सेवक और दुसरी सेवीका थी जो आपस मे कुछ इस प्रकार की बातें कर रहे थे

सेवीका - क्या हाल कर डाला मालिक ने इसका मुझे तो इस पर बड़ी दया आती है उने कैसे दया ना आई

सेवक- तुम भुल रही हो उन लोगो को जिन्को मालिक ने तब तक कोढ़े पड़वाये जब तक यमराज ने उनके प्राण ना हर लिये थे उनकी तुलना में ईसको भाग्य शाली समझो जो अब तक जीवित है

सेवीका- मालिक के इस दया भाव के पीछे भी स्वयम का स्वार्थ है वो जान चुके है इसके रहते वो कपड़ो के व्यापार मे कितना अधिक लाभ प्राप्त कर पाएगें

सेवक- सही कहां तुमने वो दुष्ट जितना नीच और पापी है उससे कई गुना अधिक लालची है बस युँ समझो के उसकी लालसा ने इसे जीवित छोड़ देने पर विवश कर दिया

बस इसी प्रकार का वाद-विवाद करते हुये वो दोनों चले गए उनके जाते ही ना जाने क्यों मुझे बहुत पहले एक महात्मा द्वारा दिया हुआ उपदेश याद आ गया
पराई स्त्री पर नजर डालने वाले व्यक्ति का जीवन सदैव संकटों से घिरा रहता हैं और अतं में उसके प्राणों पर बन आती है
बस इसको याद आते ही मैंने भगवान को स्वयम की जीवन रक्षा के लिये धन्यवाद किया और सौगन्ध खाई के कभी भी किसी विवाहित स्त्री से आकर्षित नही होउंगा
थोड़ी देर पश्चात एक वैद दो सेवकों के साथ आया और मुझे खोल कर अपने साथ मेरे कक्ष ले आया उस समय तक मुझे तेज़ बुखार हो चुका था
वैद एक दयालु और विनम्र भाव का व्यक्ति था भगवान भला करे उसका
उस महापुरूष ने सच्चे मन से मेरी चिकित्सा और भरपूर सेवा की उसके द्वारा बनाई औषधि भी अति उत्तम थी उसने किसी चमत्कार की तरहां केवल दो ही दिनों में मेरे घावों को भर कर मुझे चलने-फिरने के योग्य बना दिया मेरे प्रति वैद की निष्ठा और कार्यलग्न से प्रसन्न हो कर मैने उसे दस स्वर्ण मुद्राएं उनमे से दि जो बुढ़े ने मुझे ईनाम स्वरुप दी थी

एक स्थान पर बैठे बैठे मैं उब गया था जिसके कारण मैं खुले में आकर सेर करने लगा उस दिन का वातावरण साधारण दिनों की तरहां समान्य था किन्तु मुझे वो बड़ा ही आनंददायक लग रहा था मैं वहाँ की स्वच्छ वायु से स्वयम को संतुष्ट कर ही रहाँ था के एकाएक मेरी द्रष्टि एक ओर गई जहाँ पर वो सुन्दरी मोन बैठी किसी बात का शोक बना रही थी कुछ ही क्षणों में उसने मेरे ओर देख लिया और अनपेक्षित रूप से मुझसे आलीपटी वास्तव मे होना तो ये चाहिए था के मै उसे झटक कर अलग कर देता किन्तु उसके रोंद्र रूप ने मेरे हृदय को पिघला दिया और तो और मुझे इतने गम्भीर दण्ड मिलने के पश्चात भी कोई भय ना था अब वो सिसकियाँ लेकर दुखी कंठ में बोलने लगी
मैं तुमसे अपार प्रेम करती हूँ किन्तु मेरे दुष्ट पति के कारण भयभीत थीं के कहीं उसे इसकी भनक भी पड़ी तो वो तुम्हारी दुर्गति करदेगा ये सोच कर मैं तुमसे कटती थी और जीस का भय था वो अनर्थ हो ही गया उसके प्रति उत्तर में मैं बोला हे सुन्दरी जो कुछ तुमने कहा है यदि सत्य है तो हम याहा से भाग कर कहीं दुर चलते है अगर तुम्हें भय हो के वो बुढ़ा हमे खोज निकाल लेगा तो इस भय से तुम्हें मुक्त करने के लिए मैं उसका वध किये देता हुँ बस एक तुम हाँ करों इस पर वो स्त्री बोली
ऐसा करने पर मै अपने परिवार के प्रण संकट में डाल दूँगी जो मुझे कतई स्वीकार नहीं होगा
मेरे पूछने पर उसने अपना वृतांत बताया