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तानाजी’- फिल्म रिव्यू - सफलता का ‘भगवा’ लहेराएगा..?

ऐतिहासिक फिल्म बनाना तलवार की धार पर चलने जितना मुश्किल है. करोडो खर्च करने के बावजूद एसी फिल्मों के बोक्सऑफिस पर असफल होने की संभावनाएं ज्यादा होतीं है. संजय लीला भंसाली जैसा एकाद ही सर्जक है जो बार बार देखनेलायक और सुपरहिट ऐतिहासिक फिल्में बना सकता है, बाकी ज्यादातर आशुतोष गोवारिकर जैसे ही होते है जो दर्शनीय ‘जोधा अकबर’ के बाद ‘मोहेंजो दारो’ जैसी बकवास और ‘पानीपत’ जैसी औसतन पिरियड फिल्म देकर दर्शकों को निराश करते है. मराठी एक्टर-लेखक-निर्देशक ओम राउत अपनी पहेली ही हिन्दी फिल्म में एक ऐतिहासिक विषय को प्रस्तुत कर रहे है. क्या वो कामियाब हुए है, चलिए पता करते है.

‘तानाजी- द अनसंग वॉरियर’ कहानी है 17वीं सदी की जब मुगलिया सल्तनत दिल्ली पर कब्जा करके उत्तर भारत में अपनी जडें जमा चुकीं थीं. मुगल शहेनशाह औरंगजेब अब दक्षिण भारत पर फतेह करना चाहता है, और उसके लिए उसे मराठा साम्राज्य के गढ माने जाने वाले ‘कोंढाणा’ के किले को जीतना होगा. सिंहगढ के नाम से भी मशहूर कोंढाणा के राजा है शिवाजी महाराज. मुगल सेना के आक्रमण से कोंढाणा को बचाने का जिम्मा लेते है शिवाजी के बचपन के दोस्त तानाजी. स्वराज की जंग में मराठा सैनिक जी-जान लगा देते है, पर क्या वो कोंढाणा के मस्तक पर भगवा लहेराने में कामियाब होते हैं, ये जानने के लिए आपको देखनी पडेगी ‘तानाजी- द अनसंग वॉरियर’.

‘तानाजी’ के निर्देशक ओम राउत का काम एवरेज से उपर कहा जा सके एसा है. प्रकाश कापडिया के साथ मिलकर उन्होंने ही स्क्रिप्ट लिखी है जो कुछ खास नहीं है तो बकवास भी नहीं है. सभी कलाकारों से उत्तम काम निकलवाने में निर्देशक कामियाब हुए है. प्रकाश कापडिया के डायलोग्स कुछ दृश्यों में बहोत बढिया है तो कई जगह थोडे कमजोर भी लगते है. धर्मेन्द्र शर्मा का एडिटिंग अच्छा है. गनीमत है की सवा दो घंटे की फिल्म को बिलकुल भी खींचा नहीं गया है. फर्स्ट हाफ में फिल्म धीमी गति से आगे बढती है पर इन्टरवल के बाद फिल्म पकड बना लेती है.

अभिनय में सैफ अली खान अव्वल साबित होते है. औरंगजेब के वफादार साथी उदयभान सिंह राठोड की नकारात्मक भूमिका में उन्होंने जो कमीनापन, जो दरिंदगी दर्शाइ है, वो तारीफ के काबिल है. हांलाकी वो ‘पद्मावत’ के ‘अलाउद्दिन खीलजी’ के खौफ की उंचाई तक नहीं पहुंच सकते लेकिन फिर भी उनका काम काफी सराहनीय है. फिल्म में कहीं कहीं लगता है की उनकी जगह अगर संजय दत्त जैसा कोई उंचा-तगडा अभिनेता होता तो इस पात्र का वजन और ज्यादा होता, लेकिन अपने साधारण डिलडौल के बावजूद सैफ ने अपने मजबूत अभिनय से इस किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है. अपने सनकी अंदाज से वो थोडीबहोत कोमेडी करने में भी कामियाब हुए है. अजय देवगन ने भी तानाजी के पात्र में प्रसंशनीय काम किया है. वीर मराठा यौद्धा के शौर्य को उजागर करने में वो कहीं कमजोर नहीं लगते. दोनों कलाकार काफी फिट लगे और दोनों ने ही जमकर एक्शन किया है. कहानी युद्ध पर आधारित होने की वजह से इस फिल्म में महिला पात्रों को ज्यादा अवकाश नहीं मिल सका. काजोल की भूमिका इतनी छोटी है की उनके डायहार्ड फैन्स को निराशा होगी. लेकिन काजोल इतनी सशक्स अभिनेत्री है की वो जब भी पर्दे पर आतीं हैं, उस सीन में अपनी छाप छोड जाती है. 27 साल की करियर में ये उनकी पहेली एतिहासिक फिल्म है. पतिदेव अजय के साथ उनकी केमेस्ट्री भी पर्दे पर निखर के सामने आई है.

अन्य कलाकारों की बात करें तो शिवाजी महाराज के रोल में शरद केलकर खूब जचे. वो बिलकुल असली शिवाजी लगे. क्यूंकी फिल्म की कहानी तानाजी के इर्दगिर्द घूमती है तो शिवाजी के पात्र को ज्यादा स्पेस नहीं दी गई. औरंगजेब बने ल्यूक केनी, राजमाता जीजाबाई के पात्र में पद्मावती राव, राजकुमारी कमल बनीं नेहा शर्मा और पिसल के पात्र में अजिंक्य देव ठीकठाक लगें.

फिल्म का संगीतपक्ष फिल्म के मूड के हिसाब से है. केवल दो गाने कहानी के बीच में डाले गए है, बाकी दो गाने बेकग्राउन्ड में बजते है. ‘शंकरा’ गाने की कोरियोग्राफी बढिया है.

फिल्म के टेकनिकल पासें बहोत ही दमदार है. जापानी महिला सिनेमेटोग्राफर केइको नाकाहारा के कैमेरे ने कमाल का रिजल्ट दिया है. फिल्म की हर एक फ्रेम बडी ही खूबसूरत लगती है. सेट डिजाइनिंग, कोस्च्युम्स, हैर स्टाइलिंग जैसे डिपार्टमेन्ट में भी ‘तानाजी’ में कहीं कोई कमी नहीं रही. फिल्म का बेकग्राउन्ड म्युजिक सोलिड है और एक्शन कोरियोग्राफी माशाल्लाह. फिल्म के आखरी 20 मिनट में जो युद्ध दिखाया गया है वो रोंगटे खडा कर देता है. युद्ध की कलाबाजीयां, जीत के लिए अपनाए जानेवाले हथकंडे… इन सब में काफी नयापन है, और उनका फिल्मांकन भी काफी रोचक ढंग से किया गया है. तलवार से कटते हाथ-पैर-सर, शरीर को छलनी करते नूकिले तीर… सब कुछ बडा ही परफेक्ट लगता है. अजय-सैफ के बीच की हाथापाई भी एकदम धांसू है. ये कहेना गलत नहीं होगा की फिल्म की असली जान उसके एक्शन सीन्स ही है.

150 करोड के बजेट में बनी इस फिल्म को बडा ही भव्य लूक दिया गया है. पूरी फिल्म में कम्प्युटर ग्राफिक्स की भरमार है. हर दूसरी फ्रेम का बेकग्राउन्ड एनिमेटेड है, जो कभी कभी बडा ही प्रभावशाली लगता है और कभी कभी अनुभवी आंखे पकड लेती है की फलाना दृश्य कम्प्युटर की देन है या फिर ढिमका प्राणी नकली है. फिल्म के VFX अच्छे होने के बावजूद कहीं कहीं खामीयां देखने को मिलती है.

कुल मिलाकर देखें तो ‘तानाजी- द अनसंग वॉरियर’ काफी महेनत से बनाई गई एक देखनेलायक फिल्म है. अगर आप फिल्में केवल मनोरंजन के लिए देखते है तो शायद आपको ये फिल्म पसंद नहीं आएगी. मराठा इतिहास की गौरवगाथा लेकर आई, दमदार एक्शन से सजी इस भव्य, ऐतिहासिक फिल्म को मैं दूंगा 5 में से— वैसे पूरी फिल्म को 3 स्टार्स देना था लेकिन फिल्म की आखरी 20 मिनिट के जबरदस्त एक्शन के लिए एक एक्स्ट्रा स्टार तो बनता है— पूरे 4 स्टार्स.