Tasrif ka tokra ghayal ho gaya books and stories free download online pdf in Hindi

तशरीफ का टोकरा घायल हो गया.

तशरीफ का टोकरा घायल हो गया...{व्यंग्य}

डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव

महाराणा प्रताप हाउसिंग सोसाइटी,

हनुमान गढ़ कमान के सामने, नांदेड़ -४३१६०५

मो.९४०५३८४६७२

“सुनो जी, घर का सारा राशन खत्म हो गया हैं | आज ही आपको राशन लाना पड़ेगा | वरना श्याम को पेट भरकर हवा ही खानी पड़ेगी | उसकी हमारे पास कोई कमी नहीं है |” बाबूराव की धर्मपत्नी ने अपने धर्मपति को प्यार से डांट पिलायीं | बाबूराव के ह्रदय में प्यार भरे डर की लहरे कम्पन के रूप में मुखरित होने लगी थी | उस वक्त धर्मपत्नी किसी योद्धा से कम नहीं दिखायीं दे रही थी | साड़ी को कमर में खोसा हुआ था | दायें हाथ में आंटे से सना बेलन था | बायाँ हाथ कमर पर मुट्ठी भीच कर रखा हुआ था | बाल बिखरे हुए थे | कुछ पल के लिए बाबूराव को देवी के दर्शन हो गये थे |देवी के दर्शन वह अकसर धारावाहिकों में करता था किन्तु आज साक्षात देवी प्रेम से भरी, क्रोधी मुद्रा में सम्मुख खड़ी आज्ञा दे रही थी | बाबूराव की क्या मजाल की देवी की आज्ञा का उलंघन करें | उसने तुरंत हांमी भरते हुए कहा, “ जी, अभी लाता हूँ |” अबतक सोफे पर बैठा बाबुराव पुराना पेपर बड़े गौर से खंगाल रहा था |एकाएक देवी की आज्ञा होते ही उसने पेपर को ऐसे हाथ से छोड़ा जैसे अचानक जमीन पैरों के निचे से खीसक जाती हैं |

बाबूराव उठकर भीतर के कमरे में घुस गया | बाहर आया बाथरूम का दरवाजा खोला और भीतर धरस गया | भीतर जाते समय उसके चेहरे पर जंगल की तरह दाढ़ी के बाल खुशियों से लहलहा रहे थे | कुछ समय के बाद जब बाथरूम का दरवाजा खुला तो देखा दाढ़ी की सारी ख़ुशी छीन ली गई थी | जंगल साफ हो चूका था | अचानक बाबुराव जंगली जानवर से इन्सान बन गया था | धर्मपत्नी ने देखा तो कुछ समय के लिए वह पहचान नहीं पायी थी कि वह उसका ही धर्मपति है| अपने धर्मपति के ऐसे मदन अवतार को देखकर उसके गालों में लालिमा उमड़ आयी थी |धर्मपत्नी बसंत में मुस्कुराने वाले पुष्प वाटिका के सामान अपने धर्मपति के सामने महकने लगी थी |इससे आगे किस्सा कुछ आगे बढ़ जायें, बाबूराव बाथरूम से निकलकर सीधे भीतर के कमरे में घुस गया | अबतक नाईट पेंट और टी शर्ट से ही घर में काम चल जाया करता था | उस वक्त बहुत दिनों के बाद प्रेस किया हुआ पेंट और शर्ट पहन लिया | आलमारी से परफ्यूम निकाला अपने कपड़ो को सुगंधित किया | बालों को जमाया |आयने में अपने आप को देखकर कोई गीत गुनगुनाने लगा था |

“घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही,

रस्ते में हैं उसका घर, कल सुबहा देखा तो,

बाल बनाते खिड़की में आयी नजर |”

कुल मिलाकर धर्मपत्नी के देवी अवतार से प्रेम रूपी भय से भयभीत बाबुराव भीतर से बड़े प्रसन्न नजर आ रहे थे | मानों वे कब से इस बात की ही प्रतीक्षा कर रहे थे | बाबुराव अपने साजन रूप को धारण कर बाहर के कमरे में प्रवेश कर गये | धर्मपत्नी कबसे प्रतीक्षा में पलक पावड़े बिछायें अपने धर्मपति का ही इंतजार कर रही थी | जैसे ही उसके धर्मपति बाहर आये धर्मपत्नी ने बाबुराव के हाथों में एक चिठ्ठी थमा दी | ना ..ना .. यह कोई प्रेम प्रत्र नहीं था | आप जो समझ रहे हो वही राशन की सूचि थी | वैसे आप समझदार हैं |आपको चिट्ठी और राशन की सूचि का अंतर भली-भांति पता हैं | बाबुराव को भी अच्छी तरह से पता है कि चिट्ठी और सूचि क्या होती हैं | विवाह से पहले सुगंधी इत्र से मह्लने वाली चिठ्ठियां हुआ करती थी | लेकिन विवाह के बाद आटे, धुल, पसीने, तेल से अभिषेक हुई सूचि ही उसके पास आती हैं | उसने अपने धर्मपत्नी द्वारा दी सूचि हाथ में ली और पेंट की जेब में सरका दी | धर्मपत्नी ने सूचि के साथ हाथ में थैलियाँ भी दे दी | बाबुराव अपने दोनों हाथों में थैली थामे सैर सपाटे को जैसे निकलते है, वैसे ही निकल पड़े थे |

अपने घर को लांगकर बाबुराव राशन लेने के लिए चल पड़े थे | फिर से कोई गीत उनके मदन अवतार से बाहर निकल पड़ा था |

“प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है |

हर घड़ी पे हर गम से बेगाना होता हैं |”

हाथों की थैली गीत की धुन के साथ गोल कभी आगे-पीछे घूम-घूम कर नृत्य प्रस्तुत कर रही थी | राशन की दूकान कुछ ही दुरी पर थी | बाबुराव सोचने लगे कि लो आ गयी राशन की दुकान, अभी राशन भर लेते है और तुरंत घर पहुंच जायेंगे | गीत गाते हुए वे अपने कदमों को आगे बढ़ाते हुए जा ही रहे थे कि अचानक उनके पश्च भाग पर किसी ने लाठी से वार कर दिया | बाबुराव जब तक पलट कर देखते तब तक दो तीन डंडों ने उनके पश्च भाग को गम्भीर रूप में घायल कर दिया था | बाबुराव ने पीड़ित हो कर पीछे पलट कर देखा कि पुलिस अपने हाथों में डंडा लिये उसकी ठुकाई करने के लिए उत्सुक खड़े हैं | उसने इस डंडों के प्रहार का कारण जानना चाहा तो और कुछ डंडों से उसके शरीर पर प्रहार किया गया | उसमें से एक पुलिस वाला बड़ा दयावान था | उसे सिर्फ दो डंडे मारने के बाद दया आगयी थी | इसीलिए उसने अपने साथी पुलिस से रुकने के लिया कह दिया | और प्रहार सहने वाले बाबुराव की बात सुनने के लिए कहा | बाबुराव का मदन अवतार कहीं लुप्त हो चूका था | वह डंडों के प्रहार से भयभीत हो कर कहीं अदृश्य हो गया था | बाबुराव अपने वास्तविक रूप में आकर अपनी पीड़ा की कथा सुनाने लगे | बाबुराव के पीड़ा की कथा सुनकर पुलिस की आँखों में आसूँ आ गये थे | सबने अपने डंडो को बाजू में रखकर बड़े प्यार से बाबुराव को जो अबतक धरती पुत्र बने थे, उन्हें उपर उठाया | एक ने बाबुराव का हाथ पकड़ा,दुसरे और तीसरे ने बाबुराव की थैली पकड़ी और राशन की दुकान तक लकार छोड़ा | और अपने काम पर लौट गये |

बाबुराव राशन के दुकान के सामने बने सफेद गोले में जाकर खड़े हो गये थे | खड़े होने में दिक्कत हो रही थी | फिर भी गोले में खड़े थे | मानों यह गोला कोरोना राक्षस से बचने का सुरक्षा कवच था | पुरे भारत में कोरोना राक्षस ने हाहाकार मचाया हुआ था | वह कभी भी किसी भी वक्त कहीं भी पहुँच सकता था | वह बाहर घुमने वाले लोगों का शिकार कर रहा था | सारी सृष्टि में उसका प्रकोप छाया हुआ था | अबतक लाखों लोगों को उसने अपनी हैवानियत का शिकार बनाया था | उससे बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था | क्या राजा क्या प्रजा सब उसकी नजरों में बराबर थे | किन्तु दो तरह के उपाय थे | जिस कारण उसके प्रकोप से बचा जा सकता था | एक घर में रह कर | दूसरा बाहर जाते समय मुह पर मास्क और हाथों पर सेनीटैझर | उस दिन बाबुराव ने यह उपाय नहीं किया था | इसीलिए पुलिस ने उसकी रक्षा के लिए उसकी कुटाई कर दी थी |

बाबुराव गोले में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे | पुलिस के डंडो वाले बर्ताव पर गुस्सा भी आ रहा था | उसे लग रहा था कि काश वह “प्रतिज्ञा गैंग” का सदस्य होता तो पुलिस को सबक जरुर सिखाता | प्रतिज्ञा गैंग कोरोना के उस युग में भी तालाबंदी को नहीं मान रहे थे | यह वह क्रांतिकारी गैंग थी | जो “तालाबंदी” के कारण प्रतिज्ञा गैंग को पराधीनता में जकड़ी हुई गैंग मानते थे | वे किसी भी हालात में अपने गैंग के उसूलों, नियमों को टूटने नहीं देना चाहते थे | वे वीर और निर्भीक थे | वे कोरोना से नहीं डरते थे | कोरोना से दो हाथ करने के लिए उन्होंने कमर कसली थी | जो भी उनके क्षेत्र में कोरोना योद्धा डॉक्टर और पुलिस आते उनको पत्थर, लाठी, गाली, थूक, अश्लील हरकतो के अस्त्रों से कठोर प्रहार से पराजित कर देते थे | और विजय का जश्न मनाते थे |

बाबुराव “प्रतिज्ञा गैंग” को याद कर ही रहा था कि उसका नम्बर आ चूका था | उसने राशन की दुकान पर अपनी थैली और सूचि थमा दी | कुछ देर बाद राशन की दूकान से दो भरी हुई थैली बाहर आयी | बाबुराव ने बिल दिया थैलियाँ उठाई और अपने घर की और चलता बना था | बाबुराव का वास्तविक रूप शरीर की पीड़ा से ग्रसित हो कर मन ही मन गीत गा रहा था | “क्या से क्या हो गया |...” गीत गाते-गाते वह काँपते हुए शरीर को लेकर गली तक पहुँच गया था | जैसे ही गली आ गयी | उसके चेहरे पर थका हुआ मदन अवतरीत हो गया था | और कोई खुशियों से भरा गीत गाता हुआ घर तक आ पहुंचा | दरवाजे का बेल बजा धर्मपत्नी ने दरवाजा खोला और अपने ही धर्मपति को देखकर पूछा, “आपको कौन चाहिए ?” धर्मपत्नी ने अपने बाबुराव को पहचानने से इंकार कर दिया था | जाते समय मदन अवतार में गये अपने धर्मपति अब कोई और बनके आये हैं | बाल बिखरे हुए धुल से सना-डंडों के प्रहार से सुजा शरीर | बात भी सही थी | जाते समय तो पतले मदन अवतार में धर्मपति राशन लाने के लिए गये थे | पर उस अवतार को धर्मपत्नी समझ नहीं पायी थी | कुछ देर बात बाबुराव ने ही कहा, “ अरे मेरी धर्मपत्नी मैं तेरा धर्मपति, तेरा साजन हूँ |” धर्मपत्नी ने गौर से देखा कि यह तो उसका ही धर्मपति है | उसने झट से हाथों की थैली उठा ली और अपने धर्मपति को घर में ले लिया | धर्मपति ने अपने और पुलिस के बिच हुए घमासान युद्ध की विस्तार से सूचना दी | धर्मपत्नी को अपने किये पर कुछ पश्चाताप हुआ | अपने धर्मपति जो अबतक खड़े थे उन्हें बैठने के लिए कहा | इस पर बाबुराव ने कहा, “ मैं इस वक्त बैठ नहीं सकता | पुलिस के साथ हुए घमासान युद्ध में मेरे तशरीफ का टोकरा घायल हो गया हैं |”

“सुनो जी ! घर का सारा राशन खत्म हो गया हैं | तुम्हे आज ही राशन लाना होगा | यह रही सूचि |” देवी अवातार में धर्मपत्नी ने पूरे एक माह बाद, घर का राशन खत्म होने की प्यार भरी सूचना अपने धर्मपति को सम्बोधित करते हुए दी थी |धर्मपत्नी की बात सुनना ही था कि बाबुराव ने मुह खोलकर आसमान की और देखा और अपने दोनों हाथ तशरीफ के टोकरे पर रख दियें | उसे पुलिस का डंडोंवाला प्रेम याद आ गया |

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