Veer Shiromani Maharana Prataap - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

वीर शिरोमणिःमहाराणा प्रताप।(भाग-(२)

सांगा को मिली पराजय अब, भीतर ही भीतर खाती है।
बाबर से बदला लेने को,हर पल ही जलती छाती है।।
प्रण उसने कठिन लिया ऐसा, प्रतिशोध नहीं जब तक लूंगा।
सिर पर पगड़ी अब तब जाये, महलों में पग भी तब दूंगा।।
अगणित घाव लगे थे तन पर, वह था पूर्णतः शक्ति हीन।
पर बदले को ऐसे तड़पे, जैसे तड़पती जल बिन मीन।।
जब उसने सुुना कि बाबर ने, अब चंदेरी को घेरा है।
मेदनी राय से मित्रता है, बाबर भी बैरी मेेेरा है।।
चाकर से तत्क्षण बतलाया, हमने मन में यह ठाना है।
मुझको चंदेरी मदद हेतु ,रण में अवश्य ही जाना है।।
अतः देर अब करो नहीं तुम, मेरे डोले को सजवाओ।
मुझे लिटा डोले में लेना, कैसे भी रण को दिखलाओ।‌।
सांगा की इच्छानुसार अब, वह चंदेरी को सजते हैं।
धोखा मिलता है सांगा को, वह प्राण राह में तजते हैं।।
वह सांगा शूरवीर जिसने, मुगल नींव को हिला दिया था।
सर्वनाश के डर से उसको,विष अपनों ने पिला दिया था।।
सांगा का सुत था उदयसिंह, जिसको मेेवाड़़ी ताज मिला।
उधर मुगल अत्याचारों ने, सारे भारत को दिया हिला।।
बाबर का पोता था अकबर, दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
जल रही चक्षु में ज्वाला थी, वह था सत्ता मद में ऐंठा।।
हर समय खटकता अकबर को, नयनों में बस राजपुताना।
उसने लक्ष्य एक ठाना था, किसी तरह से शीश झुकाना।।
राजपूती भूमि अकबर को,मक्का की तरह लुभाती थी।
जिसको पाने की खातिर ही,उसकी नजरें ललचाती थीं।।
प्रथम वर्ग में वह राजा थे, जो खुद अकबर के दास बने।
द्वितीय वर्ग में वह नृप थे, जिनका मुुगलों से समर ठने।।
जब हारे रण वह मुगलों से, झंडा मुगलों का फहराया।
तीसरे वर्ग ने प्राण तजे, सिर मुगलों को नहीं झुकाया।।
राजस्थान विजित करने का, जो एक और भी कारण था।
वह जन्मभूमि से था लगाव, जिस पर आधारित यह रण था।।
जन्मा अकबर अमरकोट में,सो उसने देखा यह सपना।
जिस माटी में बीता बचपन,उस पर भी राज करुं अपना।।
अकबर अब रणनीति बनाकर, राजपुताने की ओर बढ़ा।
तब पथ पर राणा उदयसिंह, था पर्वत बनकर हुआ खड़ा ‌।।
नागौर,मेवात जीत लिया, मुगल छावनी हुयी अजमेर।
जैतारण को विजित किया था, बना डाला गुलाम आमेर।।
अकबर ने आमेर नृपति की, बेटी का डोला बुला लिया।
जो वीर न शीश झुकाते थे, मृत्यु की गोद में सुला दिया।।
चित्तौड़ जीतने को अकबर, मुगलों की सभा बुलाता है।
मेवाड़ी राणा उदयसिंह, फूटी आंखों न सुहाता है।।
अब सभी मुगल सरदारों को, बस महायुद्ध करना होगा।
शीश काट बैरी का लोगे,या फिर तुमको मरना होगा ‌‌‌।।
चित्तौड़ दुर्ग यदि जीत लिया,जग में गाजी कहलाओगे।
दौलत अकूत, सुन्दर बेगम,उपभोग हेतु सब पाओगे।।
सुन्दर हीरे उदयसिंह के, अब मिलकर सारे लूटेंगे।
राजपूत चूहों पर बढ़कर, बाजों समान सब टूटेंगे।।
इधर मंत्रणा करता अकबर, सेना में जोश जगाता है।
उधर मेवाड़ के राणा को, चाकर संदेश सुनाता है।।
चाकर से सुनकर संदेशा, राणा के दृग थे लाल हुये।
मानो धरती के नाश हेतु, शिव महाकाल विकराल हुये।।
आपात सभा का आयोजन, तत्क्षण राणा ने करवाया।
सामंत डटे आकर आसन,हर ओर शोर था यह छाया।।
किस कारण से राणा जी ने,असमय यह सभा बुलाई है।
निश्चित ही विशेष कारण है, विपदा की बेला आई है।।
उदयसिंह से कारण जाना,तब सामंतों ने ठानी है।
अपनी जान भले खप जाये, राणा की जान बचानी है।।
यदि राणा सुरक्षित धरती पर, मेवाड़ धरा के गौरव हैं।
आशा जीवित उनके रहते, बाहरी मदद भी संभव है।।
सामंतों ने यही सोंचकर, था उदयसिंह से तभी कहा।
बस बहुत सहन कर चुके सभी, अब हमसे जाता नहीं सहा।।
आप निकल अब जायें सुरक्षित, चित्तौड़ हमारे हाथों में।
मरते दम तक हम लड़े समर, चले तेग दिन-रातों में।।
मेड़तिया जयमल-पत्ता को, सेनापति सबने था माना।
गढ़ से बाहर राणा निकले, अरावली में लिया ठिकाना।।
इधर मुगल सरदारों ने था, चित्तौड़ दुर्ग को घेर लिया।
जयमल-पत्ता ने मुगलों की, आशा पर पानी फेर दिया।।
मोर्चाबंदी करी किले की, गढ़ के द्वारों को बंद किया।
हर सैनिक रक्त पिपासु हुआ, हर-हर का नाद बुलंद किया।।
राणा विहीन चित्तौड़ दुर्ग, अकबर था जान नहीं पाया। कल्पना मात्र से सिहर उठे, वह उदयसिंह पर जय पाया।‌।
हर ओर पड़ा गढ़ पर घेरा, जैसे कंठ को घेरे हार।
राह बनी थी मुगल छावनी,द्वार-द्वार पर तोप की मार।।
तीन मास तक मुगलों का दल, घेरे पर ऐसे डटा रहा।
जो भी विरोध करता उनका, था पथ से सबको हटा रहा।।
इस अवधि मध्य जब अकबर को, जाकर चाकर ने बतलाया।
अब राणा नहीं दुर्ग में है,जयमल सेनापति कहलाया।।
अकबर ने मन में मान लिया, गढ़ विजित करेगा वह पल में।उसकी तोपों की मारों से, भगदड़ मचती है रिपु दल में।।
निज सेना को आदेश दिया, आज्ञा का तत्क्षण पालन हो।
बस मेरे ही निर्देशन में, अब सेना का संचालन हो।।
गढ़ के सम्मुख जल्दी जाओ, मिट्टी के पर्वत बनवाओ।
टीले पर तोपें चढ़वाओ, गोलों की वर्षा करवाओ।।
देखें कब तक वह राजपूत, गढ़ के भीतर छिपे रहेंगे।
सब क्षुधा-तृषा से अकुलाकर, अब कुत्ते की मौत मरेंगे।।
यद्यपि जानता अकबर मन में,हार नहीं जयमल मानेगा।
राजपूत शाका चुन लेगा, वह समर भयंकर ठानेगा।।
मुगलों ने आज्ञा पालन कर, गोलों पर गोले बरसाये।
धन्य वीर जयमल-पत्ता थे, वह नहीं तनिक भी घबराये।।
अकबर विस्मित था निज मन में, गढ़ में कितना है रसद भरा।
कैसा होगा जयमल योद्धा, जो अकबर से भी नही डरा।।
पांच मास पूरे होने को,हम गढ़ को जीत नहीं पाये।
महावीर जयमल-पत्ता हैं,रण में सबके मान मिटाये।।
अब अकबर ने आदेश दिया, वृहद गजों को तुरत बुलाया।
अफीम-मदिरा पिला सभी को,क्षण में उनका होश भुलाया।।
मदमस्त हाथियों से उसने, ठोकर फाटक पर मरवायी‌।
गढ़ भेद न पायी चाल नयी, अकबर को कुछ लज्जा आयी।‌।
मुठ्ठी भर राजपूत सेना, लाखों मुगलों पर भारी है।
उनके रणकौशल के आगे,हर चाल हमारी हारी है।।
जिनके शर के आगे मेरे, गोले भी फीके पड़ते हैं।
वह बन जाते हैं कालतुल्य, जब महासमर में लड़ते हैं।।
अगली आज्ञा पर मुगल फौज, दूर-दूर तक फैल गयी थी। संभव जिस पथ से मदद मिले,उस पर वह बन शैल गयी थी।।
दीवारें-नींव खोदने हित,चमड़े के छावन बनवाये।
उसके नीचे से मुगल फौज, कारीगर सारे भिजवाये।।
गढ़ के बुर्जों से राजपूत,भारी पत्थर बरसाते थे।
उनके तीखे तीर मुगल को, यमपुर का पता बताते थे।।
एक दिवस जब मध्य रात में, दीवारें जयमल चुनवाता।
इधर जागता अकबर भी था, वह कहीं टहलता था जाता।।
अकबर की जैसे नजर पड़ी, तो ठिठक गया वह कुछ थोड़ा।
'संग्राम' हाथ में लेकर अब, उसने दबा दिया था कोढ़ा।।
गोली सीधी सीने पर थी, अब जयमल पड़ा भूमि पर था।
गढ़ में अन्न था रहा नहीं,तरकस में नहीं एक शर था।।
समाचार पाया पत्ता ने, नयनों में छायी थी लाली।
निज आंसू पोंछ लिये उसनेे, शाका को याद करीं काली।।
थी सूरज की पौ फटी नहीं,जल गयी थी जौहर-ज्वाला।
अपने पुरुषों की आन हेतु,भस्म हुयीं सब नारी-बाला।‌।
नारी-बालाओं से घर में, बस होती सदा रोशनी थी।
वह चलीं गईं जौहर पथ पर, पुरुषों को डगर खोजनी थी।
प्रातः होते ही राजपूत, तुलसी-दल मुख में धरते हैं।
मिट्टी का टीका माथे पर, केसरिया बाना करते हैं।‌।
प्रण लिया सभी ने निज मन में, अंतिम श्वास तक समर करें।
हम आज मिटाकर मुगल वंश,रण में वीरों की मौत मरें।।
सूरज जैसे निकला नभ में, गढ़ के दरवाजे खोल दिये।
मुगलों का खोज मिटाने को,सब हर-हर, बम-बम बोल दिये।।
मुठ्ठी भर राजपूत सैनिक, लाखों मुगलों पर भारी थे।
मुगलों के लिए आज रण में, वह बनते प्रलयंकारी थे।।
सब भली-भांति मन में जानें, हमको तो निश्चित मरना है।
कैसे माटी का कर्ज चुके, वह काम सभी को करना है।।
निज जान हथेली पर रखकर, वह समर भयंकर करते थे।
मुगलों को रण में काट-काट, खुद वीर मृत्यु को वरते थे।। अकबर ने सारे वीरों को,घेर-घेर कर मरवाया।
अगणित लाशों के ढेरों पर, झंडा मुगलों का फहराया।।
गढ़ जीत लिया था अकबर ने,निज फतवा जारी करवाया।
बूढ़े-अबोध बच्चों को भी, कातिल बन उसने मरवाया।।