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नए व पुराने विचारों में गाँधी (lekh )

नए व पुराने विचारों में गाँधी

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कितनी-कितनी बातें --कितनी कितनी अफवाहें ,कितनी नाराज़गी और न जाने कितने लोगों की सहमति -असहमति जुड़ी है गाँधी के नाम से ! एक ऐसा दीया जिसने जला दिया स्वयं को ,रोशनी भरी

लोगों के दिलों में ,जीवन से लेकर सब कुछ जीवन को ही लौटा देना ? कौन कर सकता है ?एक लंगोटी का बाबा ही न ? जिसको किसी का भी न तो हो लालच और न ही हो किसी के प्रति कोई विशेष

आकर्षण ,न हो द्वेष और न ही हो कोई ईर्ष्या |यह कोई संत ही कर सकता है जिसके मन में सबके लिए एकसा भाव हो,संवेदना हो | इसीलिए गाँधी जी को 'साबरमती के संत' की उपाधि मिली होगी |

जो भरा हो केवल भावों से ,करुणा से,भीतरी प्रकाश से ,ओज से और केवल प्रेम से छलकते ह्रदय से ! ऐसा संत ही सब प्रकार के द्वेषों से अछूता रह सकता है | अब उसे लोग कहाँ समझ पाएंगे

? जब आज का जीवन न जाने कितने परितापों की कैद में जी रहा है ,कुंद हो गए हैं लोग !वैसे यदि यहाँ कहा जाए कि गाँधी को समझना जितना सरल है ,उतना ही कठिन ! कोई अतिश्योक्ति नहीं

होगी |

गाँधी केवल एक नाम नहीं ,एक संस्थान हैं ,एक पूरा का पूरा युग हैं और हैं एक ऐसा प्रभामंडल जिनके प्रभाव से पूरे विश्व में कोई भी नहीं बच पाया | वो बात अलग है कि किसी भी कठिन व

अविश्वसनीय काम को करने के लिए कुर्बानियाँ देनी होती हैं और लोगों की दृष्टि में बुरा साबित होना पड़ता है |

गाँधी जी के साथ सबका ही जुड़ाव रहा चाहे वो राजनैतिक स्तर पर हों ,सामजिक स्तर पर हों अथवा किसी और स्तर पर !

यह एक स्वाभाविक सत्य है कि किसी भी काम को शुरू करने वाले को ही अपमानित किया जाता है फिर चाहे उसके परिणाम कितने ही सकारात्मक क्यों न निकलें लेकिन पहले तो उसके प्रति

लोगों का रवैया नकारात्मकता का रहता ही है | गाँधी जी ने अपना सर्वस्व बलिदान करके भी क्या कम यातनाएं झेलीं ,कम प्रताड़ित हुए ? देश-विदेश सब स्थानों पर ही जहाँ उनके विचारों के कद्रदान

थे वहीं उनमें अपशब्द कहने वाले न तब कम थे ,न ही आज कम न हैं | किन्तु प्रत्येक दिल में किसी न किसी रूप में गाँधी समाए हैं ,इसको भी नकारा नहीं जा सकता | प्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल

जी की दृष्टि कुछ ऐसे देखती है ;

दुःख से दूर पहुँचकर गाँधी

सुख से मौन खड़े हो

मरते-खपते इंसानों के

इस भारत में तुम्हीं बड़े हो

(केदारनाथ अग्रवाल)

दूसरे वरिष्ठ ,प्रसिद्धि प्राप्त कवि श्री हरिवंशराय बच्चन के मन में कुछ अन्य प्रश्न ही उठ रहे हैं ;

एक दिन इतिहास पूछेगा

कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था ,

जिसे समय अधिकार ,शोषण,स्वार्थ

हो निर्लज्ज ,हो निशंक ,हो निर्दवन्द

सद्य -जगे ,संभले राष्ट्र में घुन से लगे

जर्जर उसे करते रहे थे ,

तुम कहाँ थे और तुमने क्या किया था ?

(कवि श्री हरिवंशराय बच्चन )

कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी की दृष्टि में गाँधी की तस्वीर कुछ और ही है ;

गाँधी तूफ़ान के पिता

और बाजों के भी बाज थे

क्योंकि वे नीरवता की आवाज़ थे

तात्पर्य यह कि किसी को भी समझने के लिए,किसीके विचारों को जानने के लिए सबकी दृष्टि एक सी नहीं होती | मनुष्य अपने -अपने विचारों व चिंतन के अनुसार अर्थ निकाल लेता है |

यदि वर्तमान युग की बात करें तो मेरे हाथ में युवा कवि श्री ओमप्रकाश शुक्ल की एक पुस्तक आई है जिसमें उन्होंने गाँधी जी के ऊपर जो रचनाएँ लिखी हैं वे सभी आज समाज के वातावरण से

प्रभावित होकर लिखी गई हैं | लिखते हैं ,

हज़ारों जिन्ना पनपते दिखे हैं

लाखों जयचंद गरजते दिखे हैं

चरित्रहीन ही चरित्रवान बने हैं

पापी भी देखो भगवान बने हैं

जब चारों ओर पाप ,हिंसा ,अकरुणा ,व्यभिचार का बोलबाला हो ,तब परिप्रेक्ष में छवि दिखाई देती है गाँधी की | जब जीवन में अशांति का अनुभव होता है ,तब याद आते हैं गाँधी और जब हम

चरित्र की बात करते हैं तब याद आते हैं गाँधी !

गाँधी ,गाँधी चिल्लाकर कर क्या गाँधी को हम जी सकते हैं ? गाँधी को समझना जितना सरल है ,उन्हें जीना उतना ही कठिन ! आज मनुष्य की स्थिति जीवन ढोने और जीवन जीने के बीच

लटककर रह गई है | गाँधी के बैनर तले न जाने क्या-क्या हो रहा है ,न जाने कितने दुष्कर्म पनप रहे हैं ,हम बात करते रहते हैं गाँधी की विचारधारा की ,उनके भीतर उमड़ते भावों की ,उनकी अहिंसा

परम धर्म की किन्तु क्या आज हम उन बातों को किसी भी प्रकार से व्यवहार में ला पा रहे हैं ? केवल शोर? प्रचार? जिसमें गाँधी न जाने कहाँ खो गए हैं | वे किसको दिखाई देते हैं |? केवल नोट

संभालने के समय गाँधी जी की याद बहुत शिद्द्त से आती है अन्यथा सबकी आँखों पर गांधारी की पट्टी के साथ कानों में भी बहरेपन का समावेश हो गया है |

आज हम सब जिस मौसम में जी रहे हैं उससे निकलने का रास्ता क्या कोई सहज,सरल दिखाई देता है ? हिंसा को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले गाँधी कर्म के सिध्दांत में जीवन भर विश्वास करते रहे

,शांति के लिए जीए और शांति के लिए ही लोगों की गालियाँ खाईं ,अंत में अपने से अप्रसन्न लोगों के बीच से एक बंदे से गोली भी खाई | प्रश्न यह है कि आज भी यदि गाँधी में कुछ नहीं था ,हम उन्हें

क्यों याद करते हैं ? क्यों उनके आदर्शों की बात करते हैं ? क्यों आज समाज की विद्रूपता देख हमारी आँखें भर आती हैं | डेढ़ पसली के व्यक्ति ने पूरे विश्व भर को अपनी मुट्ठी में किस प्रकार बिना

तीरो-तलवार के कैद कर लिया !

गाँधी की राजनीति और आज की सत्ता की राजनीति में कहाँ कोई मेल दिखाई देता है? प्रगति के नाम पर जन-कल्याण से जुड़े मुद्दों पर क्या-क्या नहीं हो रहा है? बिना कर्म किए सत्ता पर अपना

प्रभाव जमाने का प्रयास क्या आज के नेता में नहीं है? ज़माने भर में खून-खराबा ,मार-धाड़ ,दिखावा,स्वार्थ ,हिंसा का चारों ओर बोलबाला गाँधी के विचारों की गहन स्मृतियों में खींचकर नहीं ले जाता ?

गाँधी को राष्ट-पिता का ख़िताब देकर क्या भारतवासियों का कर्तव्य पूरा हो जाता है ? शांतिऔर प्रेम के स्वप्न देखने वाले गाँधी ने अपने भारत का जो चित्र अपने स्वप्नों में भरा था ,वह अधूरा है ,हम

सब इस वास्तविकता से परिचित हैं | युवा कवि ओमप्रकाश ,जिन्होंने गाँधी को केवल सुना,पढ़ा है ,देखा तक नहीं ,उनके विचारों से प्रश्न उपजता है ;

"क्या हम हर क्षण-हर पल

सिर्फ़ गाँधी की दुहाई देंगे

मृत्यु के पश्चात भी

क्या अच्छे और बुरे कार्य के लिए

उन्हें ज़िम्मेदार ठहराते रहेंगे ?

मौसम के लिहाज़ यानि आज की परिस्थिति में गाँधी जी के विचारों की कितनी प्रासंगिकता महसूस की जा रही है | गांधी जी के विरोध में खड़े रहने वाले लोग न कल कम थे और न ही आज कम हैं

किन्तु गाँधी के विचारों पर यदि भारत चल लेता,व्यवहार में ले आता तो आज हम सबकी यह दुर्दशा न होती | आतंकवाद के इस युग में सहनशीलता ,सत्य,अहिंसा ,करुणा की बात को हवा में

उड़ाकर कौनसा देश संपन्न व सुखी,शांति से रह सकता है ?

गाँधी जी के दर्शन के कायल वो लोग हैं जो शांति से रहना चाहते हैं | सर्वधर्म भाव के लिए गाँधी जी का विश्वास आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था | आज जब पूरे विश्व में

अशांत,असहनशीलता ,क्रूरता ,फैली हुई है उस समय गाँधी का बार-बार स्मरण हो आना बड़ा स्वाभाविक है | जाति -भाषा,वर्गभेद के बीच में पिसता मनुष्य कभी न कभी गाँधी के विचारों पर आकर

ठहरता है

युग-पुरुष ने लोगों के मन में स्वतंत्र विचारों की स्वाधीनता की भावना जागृत की | न केवल भारत वरन पूरे विश्व में ही में नैतिक रूप में अहिंसा का मार्ग ,पाखंड में विश्वास न होना आदि का

विचार प्रवाहित किया |

कुछ कारणों से गाँधी जी नाराज़गी के दायरे में आते हैं किन्तु यह भी चिंतन की बात है कि कुछ घटनाएँ परिस्थितिजन्य होती हैं ,वो हो जाती हैं , उनका परिणाम क्या होगा ,यह उस समय पता

नहीं चलता | कुछ लोग नाराज़ हैं उनसे ,यह अलग बात है किन्तु यह तो स्वीकारना होगा कि युद्ध ,घृणा किसी समस्या का समाधान नहीं है |

आज हम सभ्य होने का दंभ भरते हैं और नैतिक मूल्यों का ह्रास कर रहे हैं | अपनी भारतीय नीति दर्शन का सार ---सत्यं ,शिवं ,सुंदरम की परछाईं तक भी हमारे युवाओं के आस-पास तक नहीं

है |क्या इन सबका होना आवश्यक नहीं ?

सत्य,अहिंसा,ब्रह्मचर्य,अस्तेय,अपरिग्रह,अस्पृश्यता जितने नैतिक मूल्य थे ,उनको एक चिराग़ लेकर खोजने की ज़रुरत महसूस हो रही है | हम शारीरिक श्रम ,सर्व धर्म भाव को ,

नैतिकता को खदेड़कर समाज में चोरी,हत्या,आतंक,रिश्वत,जमाखोरी,गरीबी,वर्ग-संघर्ष आदि के मार्ग पर चल पड़े हैं |

गाँधी जी ने निम्न ग्यारह व्रतों पर आग्रह किया है ;

1--सत्य ---अस्ति सत्य जो विचार,आचरण द्वारा उसका पालन आवश्यक

2 --अहिंसा ---मन,वचन ,कर्म से भी किसी को पीड़ा न पहुँचाना

3--ब्रह्चर्य---अनुशासित शारीरिक संबंध

4 --अस्वाद ---रोटी ,कपड़ा,मकान तीन मूलभूत आवश्यकताएं (अमीर के खाने से कुछ बचाकर गरीब का पेट भरा जा सकता है| )

5--अस्तेय ---किसी से बिना पूछे उसकी वस्तु का प्रयोग न करना

6--अपरिग्रह ---आवश्यकतानुसार वस्तुएं एकत्रित करना

7 --अभय---काम-क्रोध आदि से डरना किन्तु मृत्यु व् अन्य किसी से भी न डरना

8 --अस्पृश्यता निवारण --किसी बी जाती,धर्म,कुल,क्षेत्र का मनुष्य हो उसके प्रति प्रेम

धर्म,जाती,सम्प्रदाय के नाम पर न लड़ना

9 --शारीरिक श्रम --कितना भी समर्थ व्यक्ति क्यों न हो ,अपना कार्य स्वयं करना ,किसी की भी सम्पत्ति देश की है

10--सर्व धर्म भाव ---गांधी के अनुसार सहिष्णुता सर्व धर्म भाव ! चाहे किसी की भी पूजा की पद्धति अलग हो किन्तु सभी धर्मों का आदर से ही कल्याणकारी भाव उत्पन्न हो सकते हैं |

11--स्वदेशी---अपने देश में बनी चीज़ों का प्रयोग

उपरोक्त व्रतों में से यदि हम कुछेक भी व्यवहारिक रूप में अपने जीवन में उतार लें तो कोई संशय नहीं कि आज के भारत पर छाई काली बदलियाँ हटेंगी और हमारे देश का स्वरूप एक

बेहतर भारत के रूप में पुन: रोशन होगा | एक बार फिर से हमारा भारत विश्व भर में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित होगा |

डॉ. प्रणव भारती