tum na jane kis jaha me kho gaye - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 6 - हमारा मिलना


'कोजी स्वीट्स कॉर्नर ' हर्ष खड़ा था अपने किसी परिचित के साथ। मैं और संयोगिता भी पहुंचे। सामने आया वो अजनबियों वाली मुस्कुराहट के साथ और इधर प्रेम में आकंठ डूबी मैं। आमने - सामने हम दोनों थे पर हमारे इरादों में जमीन - आसमान की भिन्नता थी। मैं अपने ५साल पुराने प्रिय से मिलने आयी थी और वो अपनी बात साफ करने के लिए। मेरी वाचलता कहीं खो सी गई थी।

" हमको अच्छा नहीं लगता कोई हम नाम तिरा,
कोई तुझ सा हो फिर नाम भी तुझ सा रखें।"
- अहमद फ़राज़

पहले से और दिव्य दिखता हुए हर्ष। दिल्ली बहुत रास आयी थी उसे। हल्के स्लेटी रंग के वी नेक टीशर्ट में उसका रंग और निखर रहा था। दिल्ली का पानी है भी अच्छा। शरीर पहले से थोड़ा भर गया था , लग रहा था इस बीच कसरत करना शुरू किया है इसने।

अचानक मेरी तंद्रा टूटी।

"कुछ पूछना है आपको।", मेरा बहुत अपना चिर - परिचित प्रेमी अपनी उसी सम्मोहक मुस्कुराहट के साथ पूछ रहा था। पहली बार इतने नजदीक से देखा मैंने। उफ़, कितना सुंदर है।

तभी देखा , बहुत सारी दृष्टि मेरी तरफ थी। बहुत देर से शायद मैं हर्ष को एकटक निहार रही थी।

मैंने कहा - "चलिए , मेरे घर चलते हैं।"

छुटकी खुश हो गई हमें देख कर। खुशी से अंदर जा कर बहुत सारा प्लेट सजा लाई। सब प्रेम से खा रहे थे।

प्रश्न उसका यथावत था। उसने ही कहना शुरू किया।

" मैं क्या आपका वह पत्र देख सकता हूं, जोकि आपके हिसाब से मैंने लिखा है।"

मेरी आवाज़ को मैंने जवाब देते सुना - "नहीं।"

कैसे बताती। इन पांच सालों में वो पत्र मेरे लिए क्या था। कई कई बार उसे पढ़ा था मैंने।अब तो उस पत्र से भी इतना प्रेम था मुझे कि किसी अजनबी को नहीं दिखाना चाहती मैं।

"ठीक है।" उसने अपना पेन निकाला और अपना नाम और पता लिखा। साथ में अपना टेलीफोन नंबर भी।

"आप इस पेपर से हैंडराइटिंग मिला सकती हैं। पत्र मैंने आज तक किसी को नहीं लिखा है। फिर भी किसी तरह का मन में कोई प्रश्न हो, तो आप फोन कर सकती हैं इस नंबर पर।"

मेरा दिमाग शून्य हो चुका था। कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि मेरी प्रतीक्षा की परिणति यह होगी।

हमेशा से कल्पना में मेरी तरह के प्रेम में डूबे , सुंदर पत्र लिखने वाले, तारीफों के पुल बांधने वाले - प्रेमी की कल्पना की थी मैंने।

"और कुछ। " उठ खड़ा हुआ वह।

"नहीं।" मैंने कहा।

मेरी मनःस्थिति से अपरिचित छुटकी खुश थी मेरे लिए।

पांच बजने वाले थे। आज सब आमंत्रित थे पापा - मम्मी की शादी की सालगिरह पर।

सुंदर सा आयोजन रहा। संयोगिता मेरे घर ही ठहर गई उस रात।

सारी रात नींद नहीं आई मुझे, ना ही संयोगिता सोई उस रात। अपने ५साल के इंतजार से भी इश्क़ कर बैठी थी मैं। दिन - रात , उठते - बैठते, कहीं भी आते - जाते तुम मेरे साथ ही तो थे इन तमाम सालों में।

' मुझे चांद चाहिए ' की नायिका की पंक्ति ध्यान में आ गई , जो उसने कहा था उस पुस्तक में 'प्रेम की मेरी अपनी परिभाषा ' - शीर्षक के तहत , 'जिसके बारे में सोच कर आपको रात में नींद आए।' और मुझे तो रात में इन कई सालों से तुम्हें सोच कर ही नींद आई है । कैसे नींद आती मुझे आज रात? किसका ध्यान करूं मैं?