Iti marg ki sadhna paddhati - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

3. अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग (रजि०) का संक्षिप्त विवरण

इति मार्ग की साधना पद्धति

 

3. अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग (रजि०)का संक्षिप्त विवरण

 

परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी (परम पूज्य भाई साहब जी महाराज) ने अपने सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज (परम पूज्य दद्दा जी महाराज) द्वारा प्रदान की गई आनन्द-योग पद्धति के सिद्धातों को जनमानस में प्रचार व प्रसार हेतु अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग की स्थापना 1969 में की। आनन्द योग राजयोग का एक परिष्कृत प्रारूप है जिसमें राजयोग में आने वाली कठिनाईयों को दूर करके सहजता पूर्वक अध्यात्म के उच्चतम शिखर तक पहुंचा जा सकता है। आनन्द योग का पवित्र ज्ञान वही प्राचीन ब्रह्म-ज्ञान है जो महर्षि अष्टावक्र जी ने अपने प्रिय शिष्य राजा जनक को प्रदान कर उन्हें जीवन के वास्तविक उद्देश्य ‘‘आत्म-साक्षात्कार रूपी'' सत्य का दिग्दर्शन कराया।

आनन्द योग की साधना पद्धति में राजयोग, सहजयोग, हठयोग, कर्मयोग, भक्ति योग व ज्ञान योग का समुचित समन्वय है। फलस्वरूप इस साधना से गृहस्थाश्रम के सम्पूर्ण सांसारिक कार्यकलाप धर्मानुकूल सम्पन्न होने के साथ-साथ सच्चा आनन्द, आध्यात्मिक चक्रों का जागरण, सुषुप्ति, सहज समिाध व जीवन-मुक्त अवस्था की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं।

यह तरीका सभी धर्मों, जातियों व सम्प्रदायों के लिए एक अद्‌भुत ईश्वरीय देन है जिसको अपनाने से खुशहाल पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण बनता है। अपनी कार्यक्षमता व दक्षता बढ़ाने की यह एक सुदृढ़ साधना पद्धति है।

यह विद्या केवल हिन्दुओं की ही धरोहर नहीं रही वरन्‌ इसका प्रचार प्रसार अन्य धर्मों में भी हुआ। मुस्लिम सूफी सन्तों की एक लम्बी श्रृंखला रही जिन्होंने बड़े त्याग व बलिदान के साथ इस ज्योति को जलाये रखा। हज़रत बाक़ी बिल्ला साहब कुददुसुरूह नक्श बन्दिया पहले मुस्लिम सन्त हुए जो भारत में आये और उन्होंने भारत में इस विद्या का प्रचार और प्रसार किया। परमसन्त महात्मा कुतुवे-वक्त हजरत मौलाना फजल अहमद खाँ साहिब कुद्‌दूसुरूह और उनके छोटे भाई परम सन्त मौलाना अब्दुल ग़नी खाँ साहिब कुद्‌दूसुरूह ने सर्वप्रथम हिन्दुओं में इस विद्या का प्रचार किया। हजरत मौलाना फजल अहमद खाँ साहिब कुद्‌दुसुरूह ने अपने परम प्रिय शिष्य परम सन्त महात्मा श्री रामचन्द्र जी महाराज (परम पूज्य लाला जी महाराज) को अपना उत्तराधिकारी चुना।

सन्त सद्‌गुरुओं की एक गौरवशाली श्रृंखला ने आज तक ब्रह्म-ज्ञान की ज्योति को प्रज्ज्वलित कर रखा है। इस श्रृंखला में परम सन्त महात्मा श्री रामचन्द्र जी महाराज (परम पूज्य लाला जी महाराज) उनके छोटे भाई परम सन्त महात्मा श्री रघुबर  दयाल जी महाराज (परम पूज्य चच्चा जी महाराज, उनके सुपुत्र परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज (परम पूज्य दद्दाजी महाराज) एवं परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज (परम पूज्य भाई साहब जी महाराज) एवं उनकी धर्मपत्नी परम सन्त महात्मा रूपवती देवी जी (परम पूज्या माता जी) जैसे उच्चतम कोटि के सत्गुरु हुए। परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज ने जीवन पर्यन्त आनन्द-योग पद्धति द्वारा आध्यात्मिक साधना का प्रचार व प्रसार कर समस्त भारतवर्ष और कतिपय विदेशों में भी इस संस्था के अनेकों केन्द्र स्थापित किये।

इस श्रृंखला के सभी गृहस्थ सन्त एवं सद्‌गुरू गृहस्थ धर्म का शास्त्रानुसार पालन करते हुए अपनी आजीविका का स्वयं उपार्जन करने वाले रहे हैं। जीवनपर्यन्त इन सत्गुरुओं ने सच्चे जिज्ञासुओं में ब्रह्मज्ञान का प्रचार किया व इन सन्तों ने स्वयं को गुरू कहलाने से हमेशा परहेज किया व अहं को कभी अपने पास फटकने नहीं दिया। इसलिए इन सभी महान्‌ विभूतियों ने अपने सत्संग में प्रेम व सेवा से परिपूर्ण पारिवारिक वातावरण विकसित किया, जहाँ सब सत्संगी, सत्संग को एक परिवार व अपने को उस परिवार का सदस्य मानते हैं। सत्संग की इस महान्‌ परम्परा के अनुरूप इस सिलसिले (परम्परा) के सभी सत्गुरू अपने अनुयाइयों में प्रेम पूर्वक लाला जी महाराज, चच्चा जी महाराज, दद्दाजी महाराज, भाई  साहब  जी व माता जी भैया जी जैसे पारिवारिक संबोधनों से संबोधित किए जाते रहे हैं।  

इन गृहस्थ सत्गुरुओं ने ऐसी विधि का विकास किया जो सबके लिए उपयोगी है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म रंग, स्तर या किसी भी व्यवसाय का हो। सत्संग में ध्यान द्वारा ईश्वर में चित्त की एकाग्रता प्राप्त करने को अधिक महत्त्व दिया जाता है। नियमित विधि के अनुसार अभ्यास करने से सच्चे जिज्ञासुओं को सुषुप्ति, उलटधार, आध्यात्मिक चक्रों का जागरण, 24 घण्टे का ध्यान, सहज समाधि और आत्म साक्षात्कार जैसे सुन्दर और दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होते हैं। अभ्यास करने वाले साधकों को आन्तरिक शान्ति व दिव्य आनन्द की अनुभूति होती है। ऐसे साधक के हृदय से प्रेम, दया व विनम्रता छलकती रहती है और उसके सांसारिक  कार्य भी परमात्मा व सद्‌गुरु कृपा से ठीक प्रकार चलते रहते हैं। ऐसा साधक अपने सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर (आत्मा) का अनुभव ज्ञान प्राप्त कर कृत-कृत्य हो जाता हैं और जीवन मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है।

इति मार्ग-आधुनिक काल में आनन्द योग के वर्तमान पथ-प्रदर्शक परम सन्त महात्मा श्री सुरेश जी महाराज (परम पूज्य भैया जी) संरक्षक,  अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग (रजि) दिल्ली इस विद्या को आत्मसात कर जन जन को इस क्रियात्मक आनन्द-योग की विद्या से अवगत व योगाभ्यास करा रहे हैं ।

इस परम्परा के सद्‌गुरुओं का मूलभूत सिद्धान्त रहा है कि आंतरिक ध्यान-योगाभ्यास व उपासना से ही मानव जीवन में समुचित मानवीय गुणों, आत्मिक उत्थान एवं आध्यात्मिक जीवन का विकास संभव है। इति मार्ग-आनन्द योग एक ऐसी विधि व विद्या है जिसके सतत्‌ प्रयास व अभ्यास से गृहस्थ जीवन का समुचित पालन करते हुए निरन्तर परमात्मा की याद सहज रूप से बनी रहती है और सच्चा आनन्द व शान्ति प्राप्त होती है। परम पूज्य भैया जी के द्वारा इस साधना पद्धति के क्रियात्मक साधना शिविर सत्संग समागम के उत्तरोत्तर आयोजन से देश के सभी प्रान्तों के श्रद्धालु व साधक सुधीजन लाभान्वित हो रहे हैं।

सामाजिक व आध्यात्मिक उत्थान के लिए देश के विभिन्न प्रदेशेां में प्रत्येक माह में आनन्द योग साधना सत्संग शिविरों के अतिरिक्त सम्पूर्ण देश के लगभग 1500 सत्संग केन्द्रों पर संरक्षक (पूज्य भैया जी) द्वारा मनोनीत सत्संग संचालकों द्वारा साप्ताहिक ध्यान-योगाभ्यास प्रत्येक रविवार, व बृहस्पतिवार, को किया व कराया जाता है। इन सभी सत्संग केन्द्रों पर मासिक अखण्ड शान्ति पाठ (ध्यान-योगाभ्यास)के कार्यक्रम भी सम्पन्न होते हैं।

 

विशेष जानकारी हेतु

Website: www-abssatsang.com

e-mail:info@abssatsang.com, dr_janardansingh@yahoo.com

Mb.: 98102 39677

आनन्द योग - दिव्य विज्ञान -A Divine Science के आध्यात्मिक उत्सवों के कार्यक्रमों में ध्यान व योगाभ्यास के सिद्धान्तों के विवरण को टी. वी. चैनल 'साधना' पर प्रातः 6.00 से 6.20 बजे तक (मंगलवार से रविवार) व You Tube "Ananad Yog" चैनल पर किसी भी समय देखा व सुना जा सकता है।

 

Share

NEW REALESED