Purnata ki chahat rahi adhuri - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 6

पूर्णता की चाहत रही अधूरी

लाजपत राय गर्ग

छठवाँ अध्याय

अगले दिन ऑफिस तथा शहर में मीनाक्षी और हरीश की प्रमोशन का समाचार जैसे-जैसे लोगों को पता चला, अधिकारी-कर्मचारियों के साथ-साथ उनके चाहने वाले शहरवासी भी उन्हें बधाई देने आने लगे। कुछ लोगों ने फ़ोन पर ही बधाई देकर औपचारिकता निभा ली। शाम को मीनाक्षी ने हरीश को बुलाकर बताया - ‘मैंने तो फ़ोन पर प्रमोशन ऑर्डर का नम्बर ले लिया था और चार्ज भी छोड़ दिया है। ऑफिस वाले फ़ेयरवेल पार्टी के लिये पूछ रहे थे। मैंने तो उन्हें कह दिया कि कल सुबह मैं अम्बाला ज्वाइन करने के लिये जा रही हूँ। जब ज्वाइनिंग टाइम लेकर आऊँगी, तब पार्टी कर लेंगे। तुम्हारा कब ज्वाइन करने का प्लान है?’

‘मैम, जैसे वहाँ के हालात हैं, मैं तो डाक से ऑर्डर आने की प्रतीक्षा करूँगा। उसके बाद भी ज्वाइनिंग टाइम अवेल करने के बाद ही जाने की सोच रहा हूँ। हाँ, कर्फ़्यू पहले हट गया तो पहले भी ज्वाइन कर सकता हूँ।’

.........

ज़िले की इंचार्ज की तुलना में रेंज की इंचार्ज बनने पर मीनाक्षी के पास काफ़ी फ़ुर्सत रहती थी, क्योंकि रेंज में काम की उतनी मारा-मारी नहीं होती जितनी कि ज़िले में होती है। कार्यप्रणाली के बदलाव से मीनाक्षी ने फ़ुर्सत के समय को आनन्ददायक बनाने के लिये कैंट में स्थित ब्रिटिश-काल की ‘सरहिंद क्लब’ की सदस्यता ले ली। वैसे तो इस क्लब की सदस्यता केवल मिलिटरी के अफ़सरों, पदस्थ एवं सेवानिवृत्त, के लिये ही रिज़र्व है, किन्तु सिविल प्रशासन के उच्च अधिकारियों को भी सदस्यता मिल जाती है। अम्बाला रेंज की इंचार्ज होने के नाते मीनाक्षी को सदस्यता मिलने में कोई कठिनाई नहीं आयी। इस तरह ऑफिस बाद के समय में अकेलेपन की समस्या काफ़ी हद तक हल हो गयी। परिचय का दायरा भी दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। एक दिन क्लब में वह अकेली बैठी कॉफी पी रही थी कि चुस्त कसे हुए बदन, ऊँचे क़द, सामने वाले को भीतर तक भेदती आँखों वाले टिपटॉप ड्रेसेड व्यक्ति ने उसकी टेबल के पास आकर सावधान की मुद्रा में खड़े होकर निवेदन किया - ‘मैडम, आप अकेली बैठी हैं, क्या मैं आपको कम्पनी दे सकता हूँ या कहिए कि क्या मैं आपकी कम्पनी का आनन्द ले सकता हूँ?’

मीनाक्षी को इस व्यक्ति की अदा में एक तरह के आकर्षण का अहसास हुआ। उसने इस व्यक्ति को कई बार क्लब में देखा था, किन्तु कभी परिचय का अवसर नहीं मिला था। अतः उसने कहा - ‘अवश्य। स्वागत है आपका।’ और उसके बैठने के बाद पूछा - ‘आप कॉफी लेंगे?’

उसने बेतकल्लुफ़ी से कहा - ‘कॉफी भी ले लेंगे। पहले परिचय तो हो जाये।....मैं कैप्टन प्रीतम सिंह और आप?’

‘मीनाक्षी।’

‘बस इतना ही, न कुछ आगे न पीछे?’

‘क्यों इतना काफ़ी नहीं? नाम ही तो पहचान होती है व्यक्ति की। सरनेम लगाने में मैं विश्वास नहीं रखती। बाक़ी सब तो आना-जाना है। आज मैं कुछ हूँ, कल मैं कुछ और थी, और कल मैं कुछ और होऊँगी।’

‘वाह, क्या बात कही है! - आज मैं कुछ हूँ, कल मैं कुछ और थी, और कल मैं कुछ और होऊँगी - आपकी इस बात से भी सहमत हूँ कि नाम ही पहचान होती है व्यक्ति की, किन्तु जो शेक्सपीयर ने लिखा है, उसे भी झुठलाया नहीं जा सकता -

What is in a name? that which we call a rose

By any other name would smell as sweet.

‘आपका नाम मीनाक्षी न होकर और कुछ भी होता, आपका सौन्दर्य वैसा ही होता, जैसा कि अब है।’

दरअसल, जवानी की उम्र पार कर प्रौढ़ता की ओर कदम रखती मीनाक्षी के चेहरे की लुनाई तथा जवानी की रवानी क़ायम थे। असल में, यौवन जाने की उम्र होने पर भी मीनाक्षी की शारीरिक सुडौलता ने यौवन को बाँध रखा था। अपने सौन्दर्य की सराहना किसे अच्छी नहीं लगती! मीनाक्षी भी अपवाद नहीं थी। उसने कहा - ‘कैप्टन साहब, आपका आभार कि आप मेरे बारे में ऐसा सोचते हैं।’

‘मीनाक्षी जी, मैं लाग-लपेट में विश्वास नहीं करता। जैसा लगता है, वैसा कह देता हूँ।’

‘बहुत ख़ूब। काफ़ी दिलचस्प लगते हैं?...... अब तो आपके लिये कॉफी का ऑर्डर कर दूँ?’

‘वैसे तो इस समय मैं पैग लेना पसन्द करता हूँ, लेकिन पता नहीं कि आप शौक़ फ़रमाती हैं या नहीं, इसलिये आज के लिये और आपसे दोस्ती की ख़ातिर मैं कॉफी ही ले लूँगा। बातों-बातों में आपकी कॉफी तो ठंडी हो गयी होगी, इसे रहने दो। गर्मागर्म कॉफी मँगवाते हैं।’

कोई आधा-एक घंटा वे बातें करते रहे। मीनाक्षी ने घड़ी पर निगाह डाली। साढ़े आठ बजने वाले थे। उसने उठते हुए कहा - ‘अच्छा कैप्टन साहब, चलती हूँ। फिर मुलाक़ात होगी। तब तक के लिये बॉय।’

‘मुझे इंतज़ार रहेगा।’

क्लब से बाहर आयी तो ड्राइवर तैयार मिला, क्योंकि मीनाक्षी ने उसे पहले ही बोल रखा था कि साढ़े आठ बजे तक वापस चलेंगे।

..........

अभी प्रात: के छ: बजे थे, फिर भी सूर्य काफ़ी ऊपर आ चुका था। धूप में तपिश का अहसास होने लगा था। कैप्टन प्रीतम ने विश्रामगृह पहुँच कर मीनाक्षी के कमरे की बेल बजायी। मीनाक्षी बाथरूम में थी। उसने सोचा, चपरासी आया होगा चाय पूछने के लिये। अतः अन्दर से ही बोली - ‘रुको, आती हूँ।’

दरवाजा खोला तो सामने कैप्टन को खड़े देखकर आश्चर्यचकित रह गयी। उसने सोचा भी न था कि इस समय भी कैप्टन आ सकता है। अतः आश्चर्यमिश्रित स्वर में कहा - ‘आप....?’

‘गुड मॉर्निंग मीनाक्षी जी। शायद आप फ्रैश हो चुकी हैं। आपने बताया था कि आप छ: बजे सैर के लिये लॉन में निकलती हैं। मैंने सोचा, क्यों न आपको अपने साथ लम्बी सैर करवा लाऊँ।’

‘हाँ, मैं तैयार हूँ, किन्तु रात तो आपने ऐसा कोई प्रोग्राम बनाया नहीं था।’

‘यदि आपको बुरा लगा हो तो माफ़ी चाहूँगा। दरअसल सब कुछ पूर्व निर्धारित करने की बजाय कभी-कभी कुछ ऐसा भी करना चाहिये, जिसमें सरप्राइज़-एलिमेंट हो तो जीवन में रस का प्रवाह बना रहता है और जीवन में बोरियत नहीं आती।’

‘इसमें बुरा लगने वाली कोई बात नहीं है। मुझे चाय पीकर सैर करने की आदत है। आप चाय लेंगे?’

‘नहीं। मैं पी कर आया हूँ। दिन का कोई और समय होता तो अवश्य आपका साथ देता, लेकिन इस समय नहीं। आप चाय पीजिए। तब तक मैं लॉन में टहलता हूँ।’

लॉन में आने पर कैप्टन को महसूस हुआ कि रजनीगंधा की भीनी-भीनी ख़ुशबू अभी भी शीतल पवन के संग वातावरण को मादक बनाये हुए थी। दस-एक मिनट पश्चात् ही मीनाक्षी ने आकर कहा - ‘चलिए कैप्टन साहब, मैं तैयार हूँ।’

‘चलिए।’

विश्रामगृह से निकल कर कैप्टन मीनाक्षी को गोल्फ कोर्स की ओर ले गया।

आज मीनाक्षी ने मुद्दतों बाद एक घंटे से अधिक की सैर की थी, वरना तो वह बीस-पच्चीस मिनट ही लॉन में टहला करती थी। कैप्टन के साथ तो चलना भी बहुत तेज गति से पड़ा था। उसकी सुस्त चाल को देखकर कैप्टन बार-बार ‘बकअप’ बोलकर उसे तेज चलने के लिये प्रेरित करता रहा था। बीच-बीच में स्वयं अपनी रफ़्तार धीमी कर लेता था ताकि मीनाक्षी की साँसें न उखड़ें।

जब वे वापस आये तो मीनाक्षी ने कहा - ‘कैप्टन साहब, यदि मैं रोज़ इतनी सैर इतनी तेज़ी से करने लगूँ तो मेरे ‘ एक्सट्रा पौंड’ दिनों में ही ग़ायब हो सकते हैं।’

कैप्टन ने मीनाक्षी को ऊपर से नीचे तक निहारते हुए कहा - ‘मीनाक्षी जी, मुझे तो कहीं ‘एक्सट्रा पौंड’ दिखायी नहीं देते। फिर भी यदि आप महसूस करती हैं और आपको लगता है कि मेरे साथ सैर करने से आपके ‘एक्सट्रा पौंड’ दिनों में ही ग़ायब हो सकते हैं तो बन्दा सेवा में हाज़िर है। हुक्म करें, मैं तो हर रोज़ हाज़िर हो ज़ाया करूँगा हुक्म की तामील करने के लिये।’

‘जब तक मुझे सरकारी कोठी अलॉट नहीं होती, तब तक मुझे रेस्टहाउस में ही रहना है। कम-से-कम तब तक तो यह रूटीन जारी रखा जा सकता है।’

‘ऑय एम हैप्पी टू हियर दिस। मैं रोज़ आता रहूँगा। छ: बजे या कुछ पहले?’

‘छ: बजे ठीक है। यदि आपको एतराज़ न हो तो चाय इकट्ठे पी लिया करेंगे।’

‘मुझे भला एतराज़ क्यों होगा, रादर इट विल वी मॉय प्लेज़र। अब मैं चलता हूँ। आपने भी ऑफिस के लिये तैयार होना होगा। बॉय।’

‘बॉय।’

कैप्टन तेज कदमों से विश्रामगृह से बाहर चला गया और मीनाक्षी कमरा बन्द करके नहाने-धोने के उपक्रम में जुट गयी। जब व्यक्ति का अन्तर्मन प्रसन्न होता है और वह अकेला होता है तो उसकी प्रसन्नता स्वत: ही गुनगुनाहट में प्रस्फुटित होने लगती है। मीनाक्षी भी नहाते समय गुनगुनाने लगी, क्योंकि आज के दिन का शुभारम्भ एक ऐसे व्यक्ति के मिलन से हुआ था जिसका व्यक्तित्व सकारात्मक ऊर्जा से लबालब था। आम धारणा है कि वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में बहुत जल्दी संक्रमित होती है। यह भी उतना ही सत्य है कि जीवन में किसी सकारात्मक ऊर्जावान् व्यक्ति से मिलना स्वयं में नयी ऊर्जा का संचार करता है।

क्रमश..