Shree maddgvatgeeta mahatmay sahit - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

श्रीमद्भगवतगीता महात्त्म्य सहित (अध्याय-१४)

जय श्रीकृष्ण बन्धुवर!
भगवान की अशीम अनुकम्पा से आज श्रीमद्भगवतगीता जी के चौदहवें अध्याय को लेकर उपस्थित हूँ। आपसभी बन्धुजन स3 निवेदन है कि आप सभी बन्धुजन श्रीगीता जी के इस अध्याय के अमृतमय शब्दो को पढ़कर, सूनकर और सुनाकर अपने जीवन को कृतार्थ करे!
जय श्रीकृष्ण!
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🙏श्रीमद्भगवतगीता अध्याय-१४🙏

श्री भगवान ने कहा- फिर भी ज्ञानों में श्रेष्ठ ज्ञान तुमको बताता हूँ। जिसके जानने से सारे मुनिजन मोक्ष रूप परम् सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। ज्ञान की सहायता से मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए लोग दृष्टि के समय जन्मते नहीं और प्रलयकाल में कष्ट नहीं पाते। हे भारत! परब्रम्हा मेरी योनि है, मैं उसमें गर्भों में जो विभूतियाँ उत्पन्न होती हैं उनका उत्पत्ति स्थान प्रकृति है और मैं बीज देने वाला पिता हूं। हे महाबाहु! प्रकृति से उतपन्न सत्व, रज और टीम तीनों गुण देह में रहने वाले निर्विकार आत्मा को बाँध लेते हवीं। इनमें तत्व निर्मल होने के कारण प्रकाशक और निरूपद्र्व है, जो प्राणी को सुख और ज्ञान के साथ बाँधता है। हे कौन्तेय! रागात्मक रजोगुण से तृष्णा और आसक्ति उतपन्न होती है जो प्राणी को कर्म के साथ बाँधता है। तमो गुण की उत्पत्ति अज्ञान है, यह भ्रम, आलस्य, निंद्रा से प्राणी को बाँधता और मोह में फंसाता है। हे भारत! सत्व सुख उत्पन्न करता है, रज कर्म पैदा करता है, तम सब ज्ञानों को ढककर प्रमाद पैदा करता है। हे भारत! सत्व गुण, रज और तम को दबाकर बढ़ता है, इस प्रकार रज सत्व और तम। को और तम सत्व तथा रज को दबाकर बढ़ना चाहता है। इस देह में इन्द्रियों द्वारा जब ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो तब समझिए की सत्वगुण की विशेष बुद्धि हुई है। हे भारत! रजो गुण की बुद्धि में लोभ, कर्मों में प्रवत्ति, कर्मों को आरम्भ अशांति और इच्छा उत्पन्न होती है। हे कुरुनन्दन! तमोगुण की प्रबलता में अविवेकी, अनुघम, प्रमाद और मोह ये सब होते हैं। जब देह की सत्व गुण की उदय में मृत्यु होती है। तो वह रजोगुण के प्रकाशमय लोक को पाता है। रजोगुण के उदय में मरकर कर्मों में आसक्त मनुष्य में जन्म लेता है और तमो गुण के उदय में मरा हुआ मूढ़ योनि में जन्म पाता है। सात्विक पूण्य कर्म का फल भी सात्विक कलंक रहित होता है राजस कर्मफल दुःख और तामस कर्म का फल अज्ञान है। सत्व से ज्ञान उत्पन्न होता है, रज से लोभ तथा टीम से प्रमाद, मोह से अज्ञान की उत्पत्ति होती है। सात्विक पुरुष का उत्तम, राजस को मध्यम और अधम तामसी लोंगो को नीच गति प्राप्त होती है। जो दृष्टिकोण से अलग अर्थात् निर्गुण साक्षीमात्र आत्मा जो जान लेता है, वह मेरे रूप को प्राप्त होता है। जो शरीर मे उतपन्न होने वाले सत्व, रज, तम इन तीनो गुणों को जीत लेता है वह जन्म, मृत्यु, बुढापा और रोग से छूटकर मुक्ति पाता है। अर्जून ने पूछा- हे प्रभो कैसे मालूम हो कि अमुक मनुष्य ने तीनों गुणों को पार किया? उसका क्या बर्ताव है? किन उपायों से वह तीनों गुणों को त्यागता है? श्री कृष्ण भगवान बोले- है पांडव प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह होने से जो दुःखित न हो, निवृत्ति होने में उनकी इच्छा न करे, उदासीन मनुष्य के सामने जिसका सब दुःख समान है और गुणों के कर्म होते ही रहतें हैं यह जानकर जो निश्चिंत रहता है और कभी विचलित नहीं होता, जिसको सुख और दुःख, मिट्टी, पत्थर, और स्वर्ण, प्रिय और अप्रिय निंदा और स्तुति समान है, जो धीर है, जिसने सभी बखेड़े त्याग दिए हैं उसे गुणातीत कहते हैं जो अनन्य भक्ति से मुझे पूजता है वह इन तीनों गुणों को जीतकर ब्रम्हा भाव पाता है, क्योंकि ब्रम्हा का विकार रहित मोक्ष का, सनातन धर्म और अखण्ड सुख का भंडार मैं हूँ।
अथ श्रीमद्भगवतगीता का चौदहवाँ अध्याय समाप्त।
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🙏अथ चौदहवें अध्याय का महात्त्म्य🙏
श्री नारायणजी बोले- हे लक्ष्मी! उत्तर देश काश्मीर के सरस्वती क्षेत्र में एक विद्वान रहता था वहां के राजा सूर्यवर्मा की संगल द्वीप के राजा के साथ प्रिति थी एक समय राजा ने संगलद्वीप से बड़े हीरे जवाहारात मोती घोड़े बहुत कीमत के भेजे थे तब काश्मीरी राजा ने मन मे विचारा की मैं क्या भेजूं? एकदिन अपने मंत्री से पूछा कि हम क्या भेंजे? मंत्री ने कहा जो वस्तु न हो सो भेजना अच्छा है। राजा ने कहा और तो सब वस्तु हैं एक शिकारी कुत्ते वहां नहीं है वह भेजो सोने के जंजीरो के साथ बंधे हुए मखमलों के गदेले की डोलियों में बिठा कर संगलद्वीप में पहुँचाये देखकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। कहा ये शिकारी कुत्ते यहां नहीं थे यह मित्र ने बहुत अच्छा किया हम शिकार खेला करेंगे। कि दिन बीते एकदिन राजा शिकार खेलने चला और भी शिकार खेलने वाले साथ चले संगलद्वीप के राजा ने दूसरे राजाओं के साथ शर्त बांधी जिसका कुत्ता शिकार मारे सो लेवें सब राजाओ ने अपने-२ कुत्ते छोड़े एक सुस्या निकला उसके पीछे कुत्ते दौड़े, सुस्या दूर निकल गया और कुत्ते पीछे रहे संगलद्वीप के राजा के कुत्ते ने सुस्या को पकड़ा लोंगों ने शोर किया कुत्ता दुचिता हो गया सुस्या फिर भागा कुत्ते के दांत सुस्या को लगे थे, रुधिर टपकता जाए, सुस्या भागा जाय और कुत्ते पीछे रह गये जाते-२ वन में एक कच्चा तालाब पानी से भरा था। उसके तट पर कुटिया थी वहां साधु रहता था उस तालाब में सुस्या जा गिरा श्वान भी पीछे जा गिरा। इतने में राजा भी घोड़ा दौड़ा कर पहुँचा तो देकहे दोनों मरें पड़े है और देव देह पाकर बैकुण्ठ को चले है। राजा को देखकर उन्होंने कहा- है राजन्! तू धन्य है तेरे प्रताप से हमने देव देही पाई है। राजा ने पूछा यह कैसे तब उन दोनों ने कहा। हम नहीं जानते इस जल को छूने से हमें देव देह मिली है। राजा ने कहा धन्य मेरे भाग्य जो तुम्हारा उद्धार हुआ है इतना कहकर बैकुण्ठ को गया। राजा ने नमस्कार करके पूछा है सन्तजी! वार्ता खो यह कौतुक आश्चर्य को देखा सुस्या श्वान दोनों का इस जल के स्पर्श करने से उद्धार हो गया। यह जल कैसा है, उस सन्त ने कहा हे राजन्! मेरा गुरु यहां रहता था। नित्य स्नान कर गीता के चौदहवें अध्याय का पाठ किया करता था मैं भी यहां स्नान करके गीता का पाठ करता हूँ राजा ने कहा धन्य हो सन्त जी आपके प्रताप से ऐसी योनियों का उद्धार हुआ है, मेरे भी भाग्य हैं जो आपका दर्शन हुआ है संत ने कहा तुम कहाँ के राजा हो उसने उसने नित्य प्रति गीता जी के चौदहवें अध्याय का पाठ सुनने लगा नित्य प्रति सुनने से राजा का उद्धार हुआ देह त्याग कर बैकुण्ठ को गया। श्री नारायण जी ने कहा- हे लक्ष्मी हुआ देह त्याग कर बैकुण्ठ को गया। श्री नारायण जी ने कहा- है लक्ष्मी! चौदहवें अध्यायय का यह महात्त्म्य मैंने तुमको कहा है।
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💝~Durgesh Tiwari~