tum na jane kis jaha me kho gaye - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 14 - खुशियों के वर्ष


मनाली

हमारे संस्थान की तरफ से हम लोग मनाली जा रहे थे। १५ दिनों का एडवेंचर ट्रिप था ये। काउंट डाउन शुरू था। पहली बार मैं किसी हिल स्टेशन जा रही थी। दिल्ली से हमारी बस तैयार थी। हम सब खूब उत्साहित थे। साथ में थे सोनी सर। आधी रात तक अंत्याक्षरी चलता रहा। सर ने भी एक से एक गाने सुनाए और मैं तो हर गाने में साथ दे ही रही थी। थक कर कब सोए सब , याद भी नहीं और जब नींद खुली - तो धरती अपने सर्वोत्तम रूप में सामने बिछी थी। हमारी बस रुकी थी ढाबे पर किसी , हमलोग अब पहुंचने वाले थे मनाली। मेरी तो आंखें खुली की खुली रह गई। दौड़ी बूथ की तरफ मैं।

" मम्मी, तुम सोच नहीं सकती कितनी सुंदर जगह है।"

"नाना, बहुत बहुत मनोरम दृश्य है सब तरफ।" और नाना वहां की और सारी खासियतें बता देते।

फिर कॉल तुम्हें ही लगाया था मैंने। इतनी सुंदर जगह अकेले कैसे होती मैं। पिछले कई कई सालों से निरंतर साथ ही तो थे तुम मेरे, हर जगह , हर पल।

" अगली बार हमलोग साथ आएंगे यहां।"

आंखों ही आंखों में पी रही थी मैं सारे दृश्यों को। देवदार के लंबे वृक्ष, दूर तक फैली पर्वत श्रेणियां। हरे मखमली कालीन सी बिछी हरियाली सब तरफ। कुछ क्षण को भूल गई मैं खुद को। अदभूत, भव्य, विशाल । निराला की पंक्तियां स्वत:लबो पर आ गए :

" मुकुट शुभ्र हिम-तुषार , प्राण प्रणव ओंकार,
ध्वनित दिशाएँ उदार , शतमुख-शतरव-मुखरे !"

पर हम सिर्फ घूमने नहीं आए थे। हमें तैयार किया जा रहा था आने वाले कठिन जीवन के लिए। तो दिनचर्या भी वैसे ही कठोर थी।

सुबह ४ बजे से रात्रि ८बजे तक का कार्यक्रम निर्धारित था हमारा। सुबह व्यायाम से दिन प्रारंभ होता था फिर पर्वतारोहण, रॉक क्लाइंबिंग, रैपलिंग, रिवर क्रॉसिंग जैसे अनेक क्रिया कलाप दिन भर चलते रहते। व्यास कुंड, हिडिंबा मंदिर, सोलन दर्रा , रोहतांग पास - सारी जगह पैदल गए हम। मनाली की सुंदरता हृदय के अंतर तक समा गई। खूब थकते हम, खूब मस्ती करते। व्यास कुंड में हमने छलांग लगाई ।लगा शरीर के एक- एक दर्द को खींच लिया गर्म पानी के सोते ने।

अन्तिम रात हमें आला डिनर खिलाया गया और मूवी दिखाई गई। बहुत सारी स्मृतियां और सबके लिए बहुत सारे उपहारों से भरी मैं निकल पड़ी अपने काफिले के साथ। मेरी कल्पनाओं में हर क्षण तुम साथ थे।


घर भागने को बेचैन था मन मेरा। कितनी सारी बातें बतानी थी सबको।

कोरोमण्डल एक्सप्रेस के साफ खाली - खाली से डब्बे से बाहर देखना हमेशा अच्छा लगता था मुझे। आज वो मजा फ्लाईट या एसी ट्रेन भी नहीं देता मुझे। ट्रेन की गति और बाहर के दृश्य के साथ एक - एक कर मेरी स्मृतियों के पटल खुलते जाते।

३१ दिसंबर की वह सुबह , जिसकी तैयारी मैंने करीब एक महीने से की थी। तुम्हारा जन्मदिन था। अलग - अलग कई गिफ्ट लिए थे मैंने। वैसे तो २१ वां जन्मदिन था तुम्हारा, पर मेरे लिए तो पहला था। तुम, मुझे और मेरे तीनों भाई - बहन को साथ लेकर इश्क़ मूवी दिखाने गए थे। और फिर पटना के प्रसिद्ध मे फेयर होटल में। रिशी को डोसा बहुत पसंद है पर उसने कुछ और ऑर्डर किया। बाद में जब मैंने पूछा उससे कारण , तो पता चला कि हर्ष भैया के सामने हाथ से कैसे खाता डोसा वो। कांटे - छुरी के साथ तब तक सातवीं में पढ़ने वाला मेरा छोटा भाई सहज नहीं था। वासु शुरू से बिंदास था। कोई फर्क नहीं पड़ता था उसे दूसरों से।

वो दो वर्ष मेरे जीवन के खुशनुमा वर्षों में से एक हैं। दमकने लगी थी मैं। खुद के प्रति बेहद सजग। हर्ष दिनों दिन मेरे करीब आता जा रहा था।

४दिन बाद मेरा जन्मदिन था। मेरी प्रिय पुस्तक के साथ एक छोटे से लाल रैपर में लिपटे उस उपहार की खुशबू मेरे प्रथम प्रेम की तरह आज भी सांसों में है। पिंक पर्पल बॉक्स में आया इवाना सिर्फ परफ्यूम नहीं है मेरे लिए। उसकी याद आज भी उन दिनों में पहुंचा देती है मुझे। कितने आश्चर्य की बात है कई सालों से बाजार से अनुपस्थित है वह ब्रैंड। मानो उसे सिर्फ खास कर तैयार किया गया हो मेरे खास वर्षों के लिए,जिनकी याद इवाना की खुशबू में लिपटी हुई ही आती है।

रीतेश ने कहा भी था एक दिन - " कौन सा परफ्यूम लगाती तो तुम, तुम्हारे जाने के कई घंटे तक तुम्हारी खुशबू रहती है।"

लाईब्रेरी में बैठे एक दिन जब हम अपने - अपने भविष्य की योजना बना रहे थे,उस दिन पहली बार मैंने देखा कि तुम्हारी आंखें काली हैं। आश्चर्य है पिछले एक साल से हम लगातार मिल रहे थे, और अभी तक मेरे मन में मेरी कल्पनाओं वाले हर्ष की छवि थी, जिसमे मुझे लगता था कि भूरी आंखे हैं तुम्हारी।

तेजी से भागते ट्रेन में सब पीछे छूट रहा था बीते समय की तरह। पिछली बार जब तुम मिलने आए थे तो एक नक्शा था तुम्हारे पास। " ये हमारे घर का नक्शा है। मैंने सोचा तुम्हें दिखा दूं तुम्हारे कमरे का डिजाइन। "

इतनी व्यावहारिक तो कभी थी ही नहीं मैं , जो उस उम्र में घर के बारे में सोचती। पर अच्छा लगा था देख कर।

और पिछली बार जब तुम मिलने आए, तो शरीर और बन गया था। पता चला सीडीएस का इंटरव्यू देख कर आए थे तुम। अचानक बहुत सजग होने लगे थे करियर को लेके। बताया था तुमने, जल्दी कुछ करना चाहता हूं तुम्हारे लिए।