BANDHAN JANMOKA-CHAPTER-7 books and stories free download online pdf in Hindi

बंधन जन्मोंका - 7 - अंतिम भाग

( प्रिय वाचक मित्रों , आपका बहुत बहुत धन्यवाद, एवं मातृभारती का भी बहुत बहुत धन्यवाद । प्रकरण-6 में हमने देखा कि सोना और सूरज एवं उनके सभी दोस्तों दार्जिलिंगकी सैर करके कलकता लौट आए हैं। सूरज बङुत ही ज्यादा खुश था, नहीं , खुशीसे पागल था । वह सोना को मिलने अपनी ही धूनमें जा रहा था। और अति खुशी भी कभी कभी दुःख का कारन बन जाती हैं, इसी तरह सूरज के बारेमें भी वैसा ही हुआ । खुशी के मारे उसका अपने आप पर काबू ही न रहा और कार अकस्मात इतना भयंकर हुआ कि बडी दुर्घटनामें परिवर्तित हुआ । सूरज की कार गहरी खाईमें जा गिरि । इसके आघात कारण सोना की मौत भी वहीं पर हुई । अब आगे....)

प्रकरण- 7

पंकजरोय, घर पर आए और दोस्तोको फोन लगानेको कहा, शर्मिला ने समीरको फोन लगाया , तो उसने कहा, कि हमलोग तीन घन्टेके पहले साथ थे। वह सोनाको मिलने जानेवाला था। काली मंदिर, अब शर्मिला को बड़े डरावने विचार सताने लगे, पंकजरोयने एक एक करके सभी दोंस्तों के यहां फोन लगाये , सबने कहा,तीन घन्टे पहले साथ थे। पंकजजीने पुलिसमें रीपोर्ट भी लिखाई। पंकजरोय भी कलकता के बड़े रईसोमेंसे एक थे। सारी पुलिस काममें लग गई। उधर नाणावटीजीको भी ये खबर दोंस्तोंने दी। समीर ने कहा लास्ट में जब सूरजसे बात हुई थी,तब लोकेशन हावरा ब्रीज था। सब हावरा ब्रीज पहूँचे। पुलिस अफ्सरोने सब कुछ खोजा,, पांच घन्टोकी कड़ी मेहनतके बाद दोंनों की बोड़ी पुलिस ढूंढ पाई। शर्मिलाकी हालत बहुत नाजुक थी ,उसे एम्युलन्स बुलवाके अस्पतालमें भर्ती किया गया ।

दोनोंके अंतिम क्रिया आदि के बाद पंकजजीने एकदिन डो. नाणावटी को फोन लगाया कि मेरी गलतीके कारण आज ये दिन देखना पड रहा हैं। डो. नाणावटीने कहा, पंकजजी दिल छोटा मत करो, मैने भी जवान बेटी खोई हैं। होनी के आगे किसीकी नहीं चलती,क्या करे? बड़ी नाजों से पाला था मैने अपनी बेटीको, पंकजजीने कहा, मुझसे उसकी माँ की हालत देखी नहीं जाती। समीरने बताया था कि आप तो राजी थे। हा , इसी बातका तो अफसोस हैं कि बेटे और बहुका सुख हमारे भाग्यमें नहीं लिखा। मुझे ये पता होता तो मैं सूरजका लग्न बड़ी धूमधामसे पीछले साल ही करा देता। पंकजजीने बड़े निःश्र्वासके साथ कहा । क्या करे हमारे दोनों के दुःख समान है, डो.नाणावटीने कहा, चलो कुछ काम हो तो बताना। अच्छा , जयश्रीकृष्ण,सामनेसे आवाज़ आई, जय श्रीकृष्ण, कुछ समय बीतता चला गया। पंकजजी अपनी पत्नी की तबियत के लिए डो. की सलाह अनुसार दार्जिलिंग रहने चले गए।

डो. नाणावटी भी अपनी वृध्धावस्था के कारण अपनी पत्नी के भाई यानि की सोनाके मामा के यहाँ रहने आ गए। अब उसके साले के यहाँ एक लडकी का जन्म हुआ था, लडकी दों सालकी थी। विधि का खेल ही समझो।शर्मिलाको दार्जिलिंग आनेके बाद लडका हुआ। वह चार साल का था। बेटेका नाम था रवि। और सोनाके मामाने कहा था। हमारे यहाँ तो सोना ही आई हैं, इसीलिए हमतो उसे सोनाही बुलाएंगे। दोनों परिवार आसपास ही रहते थे। बच्चे बड़े होने लगे,,,,,,,,,,,, एकदिन सोनाने अपने पिताजी यानि कि डो.नाणावटीजीको खेल खेलमें डो. नाणावटी कहा, उसके पिताजी के कान चमके। वो तो मान गए ईश्वरकी गत ऩ्यारी है। तब सोना तीन साल की थी। उसने पक्का मान लिया यहीं हमारी सोना है। तबसे वो उसका विशेष ख्याल रखने लग गए।

उधर रवि भी बड़ा होने लगा था। शर्मिलाजी अपने सूरजको तो नहीं भूल पाई थी, लेकिन उस्का दुःख थोडा रवि के प्यारमें छीप गय़ा था। दोनों परिवारकी आवन जावन भी लगी रहती थी। और कभी कभी अपना पीछला दुःख दोनों एकदूजे से बाँटते थे।

अब पंकजीके मनका बोझ भी थोडा कम हुआ था। एक रविवारकी शाम थी , दोनों परिवार गार्डनमें बैठे थे,अचानक रवि दौडता हुआ शर्मिला के पास आया और कहने लगा , देखो माँ सोना मेरा नाम बीगाड रही हैं, मुझे सूरज,,,सूरज,,,, पुकार रहीं हैं, उसे कहोना ! की मैं सूरज नहीं रवि हूँ ।

शर्मिला,पंकजजी, डो, नाणावटी सबने यह वार्तालाप सूना,तो दांतो तले ऊँगली दबा गए !!! शर्मिला,पंकजजी और डो. नाणावटीने ईश्वरका बड़ा उपकार समझा,,, कि हमारे जीतेजी यह गूंटली सोल हो गई, पंकजीने कहा,प्रभु तेरी लीला अद्भुत है !!!तेरा पार न कोई पाया, नहीं पा सकेगा >

शर्मिलाने सोनाको समझाया कि बेटा, उसका नाम सूरज नहीं हैं, रवि तो उसे रवि बुलाओना ! ओ.के. आन्टी रवि बुलाऊँगी, लेकिन कभी कभी मेरा मन सूरज बुलाना चाहे तो बूला सकती हूँ ना ! सर्मिलाने कहा, बुला लेना, दोनों फिर एकसाथ खेलने लगे।

रवि और सोना स्कूल जाने लगे,,, दोनों को दार्जिलिंग का बड़ा फेमस और बड़ा महँगा स्कूल था, जो, सेन्ट जोसेफ उसमें दाखला दिलाया गया, समय बीतता चला गया, दोंनों बड़े होने लगे ।

एकदिनकी बातहैं, सोना की बर्थडे पार्टी थी। बड़ी चहलपहल थी, सबको ईन्वाईट किया गया था ।स्कूलके प्रिन्सीपल भी आएथे । सोनाकी कोठी तो बड़ी थी ही, म्युझिक,,,,, सोनाने कहा, रविने अपनी दोंस्त सोनाके बर्थडे पर एक धमाकेदार गिफ्ट सोना को देनेका वादा किया था। जब सोनाने पूछा था,,तो रविने बतानेसे इनकार किया था,वह बोला सरप्राईझ हैं,सरप्राईझ कोई कैसे बताता ? एसा कहकर वह सोनाको चिड़ाता था, अब सारे मेहमान आ चुके थे। सोनाके इस जनमके मम्मी-डेडी यानि की सोनाके मामा-मामी जिसका नाम था । रोशनी और प्रकाश आ चुके। अब केक आनेकी और काटनेकी देर थी। रोशनी झगमगी और हेपी बर्थडे का स्वर गूँजने लगा । रोशनीके साथ साथ डान्स भी शुरू हुआ, सोनाको आज सोलहवा साल शुरू हुआ। रवि को अठारहवा, दोनों डान्स कर रहे थे। अचानक रवि एक कोने मेंसे गिटार उठा लाया । और बजाने लगा , वादा करले साजना,,,, तेरे बिना मैं न रहूँ,,,मेरे बिना तु न रहे,,,,, हों के जुदा,,,, सोनाने प्रतिसाद दिया,,,,, ये वादा रहा,,,,, तो रविने भी झूमके गाया,,,, ये वादा रहा,,,,, जबसे मुझे मेरा प्यार,,मिला ,,अपनी तो बस हैं यहीं दुआ,,,हर जनम यू मिलके रहेंगे,,,, हर जनम यू मिलके रहेंगे,,,, सोनाने कहा,,, मैं धड़कन तु दिल हैं पिया,,, मैं बाती तु मेरा दिया,,,,,,,,,, हम प्यारकी ज्योत जगाएँ,,,,मैं राहीं मेरी मंझील हैं तु,,,,,,,, जीवनभर साथ निभाएँ,,,,,,,,,,, ये वादा रहा । शर्मिला सोचमें पड गई थी , कि रविने कब गिटार सीखी, पूरा गार्डन तालीयोंकी गूंजमेँ बदल गया। जो प्रिन्सीपल थे वह सूरजका दोंस्त समीर था, वह आगे आया, और बोला, नियतिने अपना काम कर दिया हैं।सोनाको भी ख्याल आ गया ।सूरज कहकर ये सूरजके गले लग गई। अब सूरजको भी वहीँ एहसास हुआ। सोना उसे पुकार रहीं है,दोनों और वहाँ जो भी मौजूद थे, सब की आँखों से हर्षाश्रु छलक रहे थे,,,,,,,,,,,,,,,,,,पूर्ण.......

( copyright is only for author & as well as matrubharti...BY:- DR BHATT DAMYANTI )

डो.भट्ट दमयन्ती, राजकोट,गुजरात.........................................................