Purn-Viram se pahle - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 10

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

10.

प्रणय का अक्सर ही फोन आता रहता था| जब उसको पता लगा कि मां को सांस लेने और चलने-फिरने में दिक्कत होने लगी है| उसने वापस बीस दिन का प्रोग्राम बनाया| जिस कंपनी में वह काम करता था जब उन्होंने छुट्टियां देने के लिए मना कर दिया| प्रणय ने अपनी नौकरी छोड़कर हिंदुस्तान आने का फैसला कर लिया|

प्रीति की तबीयत दिनों-दिन खराब हो रही थी| यह तो बहुत अच्छा हुआ कि प्रणय भी उस समय कानपुर में ही था| उस काली रात को मैं कभी भी नहीं भूल पाता हूँ| जब हम दोनों रात भर अपनी बारी-बारी से ड्यटी प्रीति के पास लगाते थे ताकि कभी ऐसा न हो कि हम सो जाएं और सोते-सोते प्रीति को कोई जरूरत पड़े तो हममें से कोई न हो|

जिस दिन प्रीति ने प्रणय और मेरा साथ छोड़ा.. मैं प्रीति के पास सोया हुआ था| जैसे ही प्रीति ने बहुत तेज सांसे लेना शुरू किया और उसको बोलने में तकलीफ़ होने लगी मैंने दौड़कर प्रणय को जगाया ताकि वो भी आकर मेरी कुछ मदद कर सके|

हमने प्रीति की ऑक्सीजन का लेवल भी बढ़ाया पर प्रीति सांस लेने में बेहद कठिनाई महसूस कर रही थी| प्रणय बराबर उसकी पीठ को सहला रहा था और मैं उसकी छाती को| पर उसकी बेचैनी हम दोनों को बेचैन कर रही थी|

फिर अचानक धीरे-धीरे प्रीति को दर्द में आराम आना शुरू हुआ.....और उसकी सांस धीरे-धीरे करके ठंडी पड़ती गई| हम दोनों चुपचाप लाचार खड़े हुए उसको जाता हुआ देखते रहे| प्रीति की निगाहें जाने से पहले हम दोनों की तरफ ही टिकी हुई थी मानो वो हम दोनों से ही कह रही हो...

“तुम दोनों अपना ख्याल रखना|” समीर जानते हो जाते-जाते उसकी आँखों से आंसुओं की बूंदे जैसे ही लुढ़ककर हम दोनों के हाथों पर गिरी उसकी टूटती साँसों के साथ हम दोनों की बहुत सारी धड़कने रुक गई|

प्रीति के जाते ही प्रणय पहली बार मेरे गले से लगकर बहुत जोर से रोआ था| हम दोनों बाप-बेटे न जाने कितनी देर तक एक दूसरे के गले लगे रोते रहे|

इस बीच प्रणय ने हमारे फैमिली डॉक्टर को फोन करके बुला लिया था| वह तुरंत ही घर आ गए और उन्होंने प्रीति को निर्जीव डिक्लेअर कर दिया|

प्रीति के जाने के तेरह दिन बाद तक प्रणय मेरे साथ रहा| उसने न सिर्फ मुझ को संभाला बल्कि घर की हर जरूरत में या अपनी मां की किसी भी संस्कार में वो मेरे साथ खड़ा रहा| प्रीति के जाने के तेरह दिन बाद प्रणय के लिए वापस अमेरिका से उसी कंपनी से वापस फोन आया कि वह उस कंपनी को वापस ज्वाइन करें क्योंकि वह लोग प्रणय के काम से बेहद खुश थे|

प्रणय मुझे छोड़कर जाने के लिए कतई तैयार नहीं था| पर मैंने उसको समझाया कि अभी जाकर अपनी नौकरी ज्वाइन करें| बाद में हिंदुस्तान में अगर उसको अच्छी नौकरी का ऑफर मिले तो वो जरूर यहाँ आकर ज्वॉइन करें| जानते हो समीर प्रणय ने मुझसे क्या कहा..

“पापा एक शर्त पर मैं वापस जा रहा हूँ आप मेरे साथ वहां रहने चलेंगे|” मैंने उससे कहा

“प्रणय अभी मैं इसी घर में रहना चाहता हूं| यहां तुम्हारी मां के साथ मैंने काफी समय गुजारा है| मैं उसकी यादों के बीच उसको महसूस करना चाहता हूं|”

मेरी बात को सुनकर प्रणय मुझसे जिद नहीं कर पाया और उसने मुझसे कहा ‘जब भी आपको ठीक लगे आप मेरे पास चले आइएगा| मैं आपका इंतजार करूंगा|’

धीरे-धीरे करके और समय बीतता गया जैसे ही प्रीति के मृत्यु को एक साल हुआ मैंने प्रणय को शादी कर लेने के लिए राजी किया| प्रणय शादी नहीं करना चाहता था पर मेरी जिद के आगे उसे झुकना पड़ा|

बाकी काफी सारी बातें मैं तुम दोनों को सुना चुका हूं| अब जैसे-जैसे मुझे प्रीति या प्रणय से जुड़ी कोई बात याद आएगी तुम दोनों के साथ जरूर शेयर करूंगा.. यह मेरा वादा है| अब प्रखर यह सब बोलकर समीर और शिखा की तरफ देखने लगा तो समीर ने उठकर प्रणय को अपने गले लगाया और उससे कहा..

“तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुमको प्रीति जैसी पत्नी और प्रणय जैसा बेटा मिला| मैं भी बहुत भाग्यशाली हूं.. मुझे शिखा जैसी पत्नी मिली| अब हम ईश्वर से यही प्रार्थना करेंगे कि हमेशा खुश रहे| एक दूसरे के साथ अपनी खुशियों को मिल-बांट सकें|”

प्रखर की बात सुनते हुए अब रात काफी हो चुकी थी| जब प्रखर ने अपने घर जाने को कहा तो शिखा ने दोनों को टेबल पर आकर साथ में खाना खाने के लिए आग्रह किया..

“प्रखर काफी रात हो गई है| हम तीनों में से किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया है| टेबल पर आ जाओ खाना बिल्कुल तैयार है|.. हम साथ में ही खाना खाते हैं|”

प्रीति किचन में खाना लगाने चली गई| तब समीर और प्रखर टेबल पर आकर बैठ गए और प्रीति ने उन दोनों को गरमा-गरम रोटियां सेक कर खिलाई| फिर अपनी भी रोटी सेककर उन दोनों के साथ उसने अपना भी खाना लगा लिया| तीनों ने बहुत प्रेम से खाना खाया| जाने से पहले प्रखर ने शिखा को कहा...

“आज के खाने को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा| आज प्रीति और मेरी शादी की वर्षगांठ थी| आज मैं वैसे भी बहुत अकेलापन महसूस कर रहा था पर तुम दोनों के साथ, मेरा अकेलापन बँट गया| जितना भी तुम दोनों को मैं थैंक्स बोलना चाहूँ कम रहेगा| अब मैं चलूंगा समीर| हम कल मिलते हैं|” बोलकर प्रखर गेट की ओर बढ़ गया|

समीर और शिखा उसको गेट तक छोड़ने गए और उसको गुड नाईट बोल कर दोनों अंदर आ गए और वह अपने घर चला गया|

समीर ने अपने घर में प्रविष्ट होते हुए शिखा से कहा….

“प्रखर में बहुत सहनशीलता है....बहुत बैलेन्स्ड है प्रखर| रिश्तों को दिल से महसूस करता है तभी हर क्षण में घटित हुआ उसके लिए मायने रखता है| मुझे तो लगता है प्रखर के संपर्क में आकर बहुत कुछ सीख रहा हूँ मैं| दिल की बातें कह देने से इंसान हल्का हो जाता है| शिखा एक बात कहूँ.. तुम्हारा मित्र मुझे बहुत पसंद आया| समीर की बात को सुनकर शिखा ने सहमति से अपना सिर हिलाया और मुस्कुराकर समीर को गले लगाकर कहा..

“तुम भी बहुत अच्छे हो.. हमेशा ध्यान रखना|”

शिखा की बात सुनकर समीर मुस्कुराये और सोने चले गए| पर शिखा उन दिनों के ख्यालों में पहुँच गई जब तीनों रिटायरमेन्ट के बाद मिले ही थे| तब से उन तीनों का मिलना-मिलाना बराबर चल रहा था|

एक दिन जब शिखा और समीर प्रखर के यहाँ बैठे थे तब समीर ने प्रखर से पूछा..

“मैं बहुत दिन से एक बात पूछना चाहता था प्रखर| हर बार सोचता फिर भूल जाता| अभी याद आ गया है तो पहले यह बताओ तुम्हारा होम-टाउन कौन सा है..हम दोनों की तो पैदाइश ही यहीं की है| सो फाइनली हम दोनों ने अपना आखिरी डेरा यही लगाने का मानस बनाया| पर तुम भी आगरा के ही हो क्या?”

“समीर! मैं पैदा भी आगरा में हुआ और मेरा काफ़ी समय इस शहर में गुजरा है| मेरे बाऊजी आर्मी में थे| मैं उनका एकलौता बेटा था| सो उनकी काफ़ी साल आगरा में ही पोस्टिंग रही| मेरी स्कूल कॉलेज की पढ़ाई-लिखाई का काफी समय इसी शहर में गुजरा| इस शहर से मेरा बहुत गहरा नाता है समीर..वो कहते हैं न ‘जहां बार-बार मन्नत के धागे बांधे हो.....वो शहर बांधे धागों को खोलने को बार-बार पुकारता है..’

यह वाक्य बोलकर प्रखर ने शिखा की ओर चुपके से देखा फिर अपनी बात आगे बढ़ाई...

“तभी तो मेरी आखिरी पोस्टिंग भी इसी शहर में हुई| इस शहर को मैने कभी मर्जी से नहीं छोड़ना चाहा समीर| मेरा बस चलता तो इस शहर को कभी छोड़ता ही नहीं..इस शहर में मेरी रूह बसती थी|”

आज भी शिखा को प्रखर की कही हुई बातें हरारत दे रही थी| आज फिर से शिखा को उसकी कविता ‘रूह’ याद आई....जो अक्सर प्रखर उसको कॉलेज में सुनाया करता था...

“दिल का एक हिस्सा/ मन्नत के धागों से बंधा/ रूहों का होता है/सुनते हैं वहाँ कोई/बहुत दिल से जुड़ा रहता है/दिखता नहीं वो कोना/ न ही वो रूह नज़र आती है/तभी तो ऐसे रिश्तों को समझ पाना आसान कहाँ होता है/खामोश रूहे वहीं सकूँ से गले मिला करती हैं/कहने को तो कुछ नहीं/पर महसूस करने को बहुत कुछ हुआ करता है/दिल के उसी कोने में/रूहों का आरामगाह हुआ करता है..

प्रखर इसकी आखिरी लाइन को न जाने कितनी बार दोहराता और शिखा से बोलता..

“शिखा तुम उसी आरामगाह में रहती हो मेरे साथ हरपल..हरक्षण...कभी छोड़ कर जाना नहीं मुझे|”....

और न जाने कब तक प्रखर उसकी आँखों में खुद को खोजता रहता|

कई-कई बार अपने लिखे को प्रखर इतनी तन्मयता से सुनाता कि उसके साथ-साथ शिखा के भी आँसू निकल आते थे| इस कविता को सुनाने के लिए प्रखर ने कितना खूबसूरत माहौल बनाया था| आज प्रखर के बोलने पर वही अतीत शिखा के सामने सचित्र खड़ा हो गया|

“शिखा तुम आज कॉलेज के बाद लाइब्रेरी में रुक रही हो न.....मुझे तुमको कुछ सुनाना है कल रात सिर्फ़ तुम्हारे लिए कुछ लिखा..उस शिखा के लिए जिसमें मेरी जान बसती है..रुकोगी न|”

“आज घर जल्दी जाना था प्रखर कोई रिश्तेदार आने वाले हैं..”

“तुम्हारी रिश्ते के लिए तो नहीं.....बस ऐसी खबर कभी मत देना..मर जाऊंगा कसम से..”

“यह कसम-वसम तुमने कब से खाना शुरू कर दिया प्रखर...”

“जब से तुम मेरे करीब आई हो.. हर वो चीज़ करता हूँ जो हमेशा तुम्हारे साथ रहने की गारंटी महसूस करवाए...”

“सच्ची में बहुत पागल हो तुम प्रखर..”

“पागल हूँ बस तुम्हारे लिए.. आज से नहीं सदियों से..मुझे ऐसा महसूस होता है..”

उस दिन जब दोनों लाइब्रेरी में मिले वहाँ बहुत शांत माहौल था| वहाँ काफ़ी स्टूडेंट्स पढ़ रहे थे| लाइब्रेरी में खामोशी इतनी थी कि पन्नों के पलटने की आवाज़ें भी गौर से सुनने पर सुनाई दे रही थी| दोनों ने अपने नाम की रजिस्टर में एंटी की और लाइब्रेरियन की ओर देखा| वो दोनों को अच्छी तरह जानता था कि पढ़ने-लिखने वाले छात्र हैं सो उसने इशारे से पीछे की एकांत वाली जगह का इशारा कर दिया| दोनों वहाँ जाकर बैठ गए|

क्रमश..