Purnata ki chahat rahi adhuri - 20 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 20 - अंतिम भाग

पूर्णता की चाहत रही अधूरी

लाजपत राय गर्ग

बीसवाँ अध्याय

नीलू को कॉलेज आये अभी एक हफ्ता ही हुआ था कि एक दिन जब शाम को वह हॉस्टल पहुँची तो उसे अपने नाम डाक से आया एक लिफ़ाफ़ा मिला। भेजने वाले का कोई नाम-पता नहीं लिखा था। भेजने वाले पोस्ट ऑफिस की स्टैम्प शिमला की थी। उसने लिफ़ाफ़ा फाड़कर पत्र निकाला। पत्र दो पंक्तियों का था - नीलू, तुझे शायद अभी तक पता नहीं होगा, मीनाक्षी तेरी बड़ी बहिन नहीं बल्कि मम्मी है। तू मीनाक्षी की नाजायज औलाद है। - कैप्टन प्रीतम सिंह। ‘नाजायज औलाद’ को रेखांकित किया हुआ था। पत्र पढ़कर नीलू को कोई झटका या आघात नहीं लगा, जैसा कि कैप्टन ने सोचकर यह पत्र लिखा था। हाँ, उसे अचम्भा इस बात का अवश्य हुआ कि कैप्टन इतनी नीच हरकत भी कर सकता है। उसने फ़ोन करके मीनाक्षी को इसकी सूचना दी तो उसने कहा - ‘नीलू बेटे, उस कमीन द्वारा इस तरह की हरकत की ही उम्मीद थी। तुम इस ओर ध्यान न देकर अपनी पढ़ाई पर कंसन्ट्रेट करो। ..... हरीश सुरभि को मेरी देखभाल के लिये यहाँ ले आया था। बच्चियाँ बड़ी प्यारी हैं। सारा दिन बुआ जी, बुआ जी करती रहती हैं। सुरभि और बच्चे हफ्ता-दस दिन मेरे पास रहेंगे। इसलिये तू मेरी चिंता बिल्कुल मत करना।’

......

प्री-अरेस्ट बेल के लिये कैप्टन प्रीतम की ओर से किये जा रहे प्रयास ज़िला न्यायालय में असफल हो गये, तब उसके वकील ने कहा कि अब दो ही रास्ते हैं - कोर्ट में सरेंडर या हाई कोर्ट में अपील। कैप्टन छिपते-छिपाते तंग आ चुका था, पैसा भी लग रहा था। बिज़नेस भी प्रभावित हो रहा था। दूसरे, वकील ने उन्हें आश्वस्त किया था कि सरेंडर करने के बाद बेल जल्दी-से-जल्दी करवाने की कोशिश करेगा। अत: कैप्टन ने लगभग एक महीने बाद कोर्ट में सरेंडर कर दिया और उसे जुडिशयल लॉकअप में भेज दिया गया। जिस दिन यह समाचार मीनाक्षी को मिला, उसने मन्दिर में प्रसाद चढ़ाया।

सरेंडर करने के बाद कैप्टन को एक सप्ताह बाद तीस हज़ार के पर्सनल बॉन्ड पर ज़मानत मिल गयी। ज़मानत के आदेश की कॉपी वकील से लेकर कुलविंदर ही उसे जेल से रिहा करवा कर घर लाया। जब नहाने-धोने के पश्चात् चाय-नाश्ता हो गया तो कैप्टन ने कहा - ‘कुलविंदर, अब मैं फ़ॉर्महाउस जाऊँगा।’

‘यारा, अज दी रात साड़े कौल ही रह, कल सवेरे चला जावीं।’

‘नहीं, अब तो मैं जाऊँगा ही। बहुत दिन धक्के खा लिये, अब कुछ दिन फ़ॉर्म पर रहकर ताजगी महसूस करना चाहता हूँ। तेरा तथा भरजाई का बहुत-बहुत धन्यवाद कि ऐसे समय में मेरा साथ दिया।’

‘धनवाद वाली केहड़ी गल्ल ऐ। ऐवें शरमिंदा ना कर। अजेहे मौक़े ही दोस्त कम्म आऊँदे हन।..... दार जी होरां नूं साड़े वल्लों सत श्री अकाल कहीं।’

..........

कैप्टन की ज़मानत की सुनवाई के समय एडवोकेट सूद ने डटकर विरोध किया। उसने अदालत के समक्ष तर्क रखा कि मेरी मुवक्किल कैप्टन की ब्याहता होने के नाते उसके मकान पर ही रहती है। यदि कैप्टन को ज़मानत दी जाती है तो वादी मीनाक्षी का उस घर में प्रतिवादी के साथ रहना मुश्किल होगा। और यदि वादी को एक छत के नीचे रहने को मजबूर होना पड़ा तो क्या गारंटी है कि प्रतिवादी दुबारा उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने की कोशिश नहीं करेगा।

कैप्टन के वकील ने अपने मुवक्किल कैप्टन के हक़ में दलील दी कि वादी मैडम मीनाक्षी एक उच्च अधिकारी है। पहले भी उसके पास सरकारी आवास था, अब भी ज़िला प्रशासन से प्रार्थना पत्र देकर वह सरकारी आवास का प्रबन्ध कर सकती है। जब तक ऐसा प्रबन्ध नहीं होता, वह सरकारी विश्रामगृह में भी रह सकती है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपने आदेश में एक शर्त लगा दी कि प्रतिवादी कैप्टन प्रीतम सिंह आज से एक सप्ताह तक अपने घर नहीं जायेगा, जहाँ वादी मीनाक्षी रह रही है और इस दौरान वादी मीनाक्षी अपने लिये अलग रहने का प्रबन्ध कर ले।

एडवोकेट सूद ने मीनाक्षी को कोर्ट के आदेश से अवगत कराया तो उसने हरीश को फ़ोन पर सूचित करने में देर नहीं की। हरीश उसी दिन शाम को आ गया। मीनाक्षी ने उसे बताया कि एक-दो दिन में मैं रेस्टहाउस में जाने की सोच रही हूँ। बैंक लॉकर मेरे नाम ही है। ज्वैलरी वग़ैरह उसमें रख दूँगी। एक-दो अटैचियों में ज़रूरत के कपड़े रखकर बाक़ी दो-तीन नग तुम अपने साथ ले जाना। जब सरकारी कोठी मिल जायेगी तो ही बाक़ी की व्यवस्था हो पायेगी।

‘दीदी, जब तक सरकारी कोठी नहीं मिलती, आप हमारे साथ रहो।’

‘नहीं हरीश, रोज़ आने-जाने के सफ़र की थकावट मेरे लिये अच्छी नहीं। इसलिये रेस्टहाउस ही ठीक रहेगा।’

...........

अदालतों के जैसे ढंग हैं, मीनाक्षी और कैप्टन का केस भी दो साल तक चलता रहा। एक साल तक पुलिस ने अदालत में चालान ही प्रस्तुत नहीं किया। चालान प्रस्तुत होने तथा कोर्ट द्वारा चार्जिज फ्रेम करने के बाद भी कैप्टन के वकील ने केस को लटकाने की भरसक कोशिश की। जब केस में दोनों पक्षों ने दलीलें पेश करनी आरम्भ की तो कैप्टन के वकील का पहला तर्क था कि मीनाक्षी ने नीलू जो कि उसकी बेटी है, को अपनी छोटी बहिन बताकर विवाह के समय कैप्टन प्रीतम से विश्वासघात किया।

एडवोकेट सूद ने कोर्ट को बताया कि यह तथ्य कैप्टन द्वारा मीनाक्षी पर जानलेवा प्रहार करने का कारण नहीं था बल्कि कैप्टन ने पहले नीलू को उसके हॉस्टल से अपने होटल-रूम में ले जाकर उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश करना तथा दुर्घटना वाली रात के आख़िरी पहर में सोयी हुई नीलू के बिस्तर में घुस कर उसके साथ अश्लील हरकत थी, जिसे जब मीनाक्षी ने रोकने की कोशिश की तो कैप्टन आपे से बाहर हो गया और उसने पहले राइफ़ल से मीनाक्षी को पीटा तथा अन्त में राइफ़ल का बट उसके सिर पर दे मारा। परिणामस्वरूप, मीनाक्षी के सिर से खून की धार बहने लगी और वह बेहोश हो गयी। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार मीनाक्षी के शरीर के अन्य भागों पर लगी बाह्य चोटों के साथ सिर पर गहरी चोटें थीं और सिर पर दस टाँकें लगाने पड़े थे।

तीन-चार पेशियों पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कैप्टन को दोषी करार दिया तथा सजा सुनाने के लिये चार दिन बाद की तारीख़ तय कर दी।

सजा सुनाने वाले दिन मीनाक्षी और कैप्टन की ओर से उनके वकीलों के अतिरिक्त हरीश तथा कुलविंदर भी उपस्थित थे।

जज साहब ने सजा सुनाते हुए ऑर्डर का अंतिम पैरा पढ़ा : ‘वादी मीनाक्षी एक उच्च प्रशासनिक पद पर कार्यरत है। प्रतिवादी कैप्टन प्रीतम सिंह सेना से उच्च पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात् स्वयं का व्यवसाय कर रहा है। प्रतिवादी द्वारा अपने से अठारह-बीस वर्ष छोटी नीलू के साथ किये गये वासनायुक्त व्यवहार को रोकने के लिये मीनाक्षी द्वारा उठाया गया कदम बिल्कुल सही था, किन्तु आवेश के वशीभूत प्रतिवादी कैप्टन प्रीतम सिंह द्वारा मीनाक्षी पर राइफ़ल से प्रहार किसी तरह भी क्षम्य नहीं है। नीलू मीनाक्षी की बेटी है, यह तथ्य तो बाद में सामने आता है, उससे पहले का कैप्टन प्रीतम सिंह का कृत्य सामाजिक तथा क़ानून की दृष्टि से अक्षम्य अपराध है, जिसके लिये यह अदालत उसे दो साल की सजा सुनाती है। साथ ही प्रतिवादी कैप्टन प्रीतम सिंह को छूट देती है कि यदि वह चाहे तो वादी मीनाक्षी के विरुद्ध विवाह से पूर्व एक अहम् व्यक्तिगत सत्य को प्रकट न करने के लिये ब्रीच ऑफ ट्रस्ट का केस दायर कर सकता है। प्रतिवादी कैप्टन प्रीतम सिंह की बेल ख़ारिज की जाती हैं। उसे तुरन्त जुडिशयल लॉकअप में भेजा जाए।

न्यायालय का फ़ैसला सुनकर एडवोकेट सूद ने मीनाक्षी और हरीश को बधाई दी। कुलविंदर ने कैप्टन को ढाढ़स बँधाने की नाकामयाब कोशिश की। कैप्टन की आँखों से आँसू टपक ही पड़े।

समाप्त