Jivanki kahaniya - ek nai yatra ? books and stories free download online pdf in Hindi

जीवन की कहानियां - एक नई यात्रा ?

एक नई यात्रा

दिसम्बर की स्याह सर्द रात प्रकृति के कोने-कोने में पसर चुकी थी ।

उसने अपने आप को गर्म शाल के अंदर गठरीनुमा बांध लिया था । रेल्वे प्लेटफार्म पर बिखरे लगेज और ठण्ड के मारे चादरों और गर्म कपडों में दुबके प्रतीक्षारत यात्री एक से दिखते थे ।

आज 25 तारीख है । उसने अलसाई सी हाथ पसारे घड़ी पर नजर डाली - दो बजने को दस मिनिट । अरे ! अब तो 26 तारीख हो चली । 25 दिसम्बर को गुजरे एक घण्टा पैंतालीस मिनिट हो गया । उसे लगा समय के दरिया में बहते किसी यात्री तिनके सी डूबती उतराती जीवन के झंझावतों के थपेडे खाती वह किस मोड पर आ खड़ी हुई है ।

25 दिसम्बर पूरी दुनिया में बड़े दिन के लिए याद किया जाता है । उसके लिए भी यह दिन किसी उत्सव से कम न था । इस दिन वह इस दुनिया में आई थी । कल उसका जन्म दिन था । उसका मस्तिष्क मानो किसी गणितज्ञ सा गुणा-भाग करने लगा । जिन्दगी के सफर के वह तीस पड़ाव पूरे कर चुकी थी । आज सावन के साथ चलते-चलते तीन साल, पांच महीने, पच्चीस दिन और लगभग एक घण्टा-पैंतालीस मिनिट हो गए । इतने समय पूर्व उसकी शादी सावन से हुई थी ।

तभी रेल्वे प्लेटफार्म पर हो रहे एनाउंसमेंट ने उसके मन-मस्तिष्क में चल रहे गणित में व्यवधान डाल दिया । उसको गंतव्य तक ले जाने वाली गाड़ी समय से ढाई घंटे लेट थी । उफ... एक घंटे और प्रतीक्षा करनी होगी । शादी के बाद से अब तक वह प्रतीक्षा ही तो करती आई है.... खुशियों की ..... पति की.... । अपलक उसकी ऑखों के सामने उसका वजूद मानो अपनी कथा कहने लगा ।

वह एक सीधी, सरल, खूबसूरत लड़की थी । पिता सरकारी स्कूल में प्रायमरी के शिक्षक थे । तीन बहनों में वह सबसे बड़ी थी, दो भाई सबसे छोटे । सहकारी स्कूल की छोटी सी नौकरी और बड़ा परिवार । बड़े अभावों को झेलना पड़ता था परिवार को । लेकिन उसके पिता ने अपने बच्चों को कोई कमी न होने दी । अच्छी शिक्षा और सदाचरण देने में कोई कमी न रखी । उन्होंने घर में एक छोटे सी किराने की दुकान डाल रखी थी । स्कूल के बाद खाली समय में दुकान पर बैठ जाते । दुकान भले ही खूब न चलती हो किन्तु घर के नून-तेल आदि का खर्चा निकल जाता था । यह भी क्या कम था । बाकी खर्चों के लिए वेतन और टयूसन से काम चल जाता था ।

उनकी सरकारी नौकरी स्थानीय स्कूल में थी जो प्रतिदिन दो से तीन घन्टे में पूरी हो जाती थी । शेष समय लगभग पूरे दिन पिताजी हम लोगों के बीच घर में बने रहते थे । हमारे और मम्मी के हर सुख- दुख में हर पल साथ रहते । कभी लगा नहीं कि जीविकोपार्जन के लिए घर के मुखिया को परिवार से दूर रहना पड़ता है । सब एकदम सहज लगता था । उसके मन में कहीं एक बात बैठती रही कि जीवन साथी ऐसा हो जो उसके पिताजी की तरह हर पल उसके आसपास रहे ।

‘सुदर्शना के लिए लड़का ढूँढ़ने में कोई परेशानी नहीं होगी, वह है ही इतनी सुन्दर और योग्य ।‘ करीबी रिश्तेदार मेरे पिताजी को सांत्वना देते रहे । उनका सीना गर्व से फूल जाता । उन्हें मुझ पर नाज था । मैंने बी.एस.सी. प्रथम श्रेणी में पास की । छोटी बहने और मॉ मेरी तारीफ करते नहीं अघाती ।

मैं यह सोच रही थी कि अब इसके बाद क्या । क्या मैं और आगे पढ़ूँ या कहीं छोटी-मोटी नौकरी कर लूँ । पिताजी को आर्थिक मदद पहुँचा सकूँ । तभी सावन जी का रिश्ता मेरे लिए आया । मेरे लिए यह पहला और आखिरी रिश्ता था । उन्होंने मुझे देखा और हॉ कह दिया । मैने भी उन्हें देखा और बात की- वे अति सरल और सहज लगे । पिताजी को निर्णय लेने में समय लगा । वे चाहते थे कि उनका होने वाला दामाद सरकारी सेवा में हो । सावन एक प्रायवेट कम्पनी में अधिकारी थे । रिश्तेदारों से गहन चर्चा हुई और निर्णय लिया गया कि लड़का प्रतिष्ठित कम्पनी में कार्य करता है, उसकी मासिक आय अच्छी है तथा जाना - पहचाना परिवार है । अत: शादी तय हो गयी ।

पिताजी ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसका विवाह बड़ी धूम-धाम से किया और जैसे सुदर्शना की खुशियों में सावन आ गया । सावन जैसा सजीला, सौम्य और कर्तव्य के प्रति समर्पित पति पाकर वह बेहद खुश थी । तभी........

बदबूदार ठण्डी हवा शॉल के भीतर शूल सी चुभ गई । उसका मन कसैला हो गया । क्या वास्तविकता का धरातल इतना कसैला और कठोर होता है । प्लेटफार्म के सामने के दोनों रेल्वे ट्रैक खाली हो गये थे इसलिए ठण्डी हवा सीधे प्लेटफार्म पर आ रही थी । उसने अपनी ऑखे पुन: घड़ी पर टिका दी । दिसम्बर की तेज ठण्ड ने जैसे घड़ी की सुईयों को जकड़ रखा था । ज्यों-ज्यों घड़ी की सुईयॉ आगे सरक रही थी ठण्ड बढ़ती जा रही थी । आधा घन्टे और..... । एक बारगी वह सोचने लगी क्यों न महिला प्रतीक्षालय में चली जाये । लेकिन उसे तो जल्दी थी । जाने की । शॉल पुन: ठीक से सॅवारा और गठरी बन बैठी ।

‘सुदर्शना.... ऑफिस में काम बहुत रहते हैं । फिर मार्केटिंग मैनेजर होने के नाते जिम्मेदारियॉ भी हैं । इसलिए लेट हो जाता हूँ ।‘, सावन सुदर्शना की नाराजगी का स्पष्टीकरण दे रहा था ।

‘हर दूसरे रोज लेट आना मुझे अच्छा नहीं लगता । मैं बिल्कुल अकेली पड़ जाती हूँ । तुम बस मेरे आसपास रहा करो’, सुदर्शना ने गुस्से को छोंड़कर लाड़ जताते हुए कहा ।

‘अच्छा बाबा ठीक है अब तो माफ करो ।‘, सावन ने अपने कान पकड़ते हुए एक बैठक लगा दी वह बेतहासा हॅस पड़ी ।, ‘चलो माफ किया, एक अधिकारी का ऐसा करना शोभा नहीं देता ।‘

समय, यूँ ही खट्टे मीठे पलों को समेटे गुजरने लगा । लेकिन सावन का देर-सबेर आना जारी रहा । वह अपने अकेलेपन से घबराने लगी । जहॉ वह अपने घर में सब लोगों से घिरी रहती थी । यहाँ नितांत अकेलापन उसे सालता था । देर से आना, रूठना-मनाना और अगले दिन फिर वही । आज उसका जन्मदिन था 25 दिसम्बर ।

‘देखो सुदर्शना मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ । हम शाम को बर्थडे सेलिब्रेट करेंगे । अभी तुम्हें केवल हैप्पी बर्थ डे से काम चलाना पड़ेगा । मुझे बहुत जरूरी काम से जाना होगा । तुम नाराज न होना ।‘, सावन ने आफिस की फाईल समेटी और बाहर निकलते हुए कहा, ‘बस गया और आया ।‘

वह इन्तजार करती रही रोज की तरह । न सावन आये न फोन । मोबाइल पर रिंग करने से जवाब भी नहीं । सुदर्शना जैसे आपे से बाहर हो गयी । तीन साल के लगातार दमन ने उग्र रूप धारण कर लिया और उसने फैसला ले डाला । एक सूटकेस में जरूरी कपड़े डालकर वह रेल्वे स्टेशन की ओर निकल पड़ी । किसी अनजाने सफर पर । शायद पिता के घर या कहीं और..... बाद में सोंचेंगे ।

प्लेटफार्म पर ट्रेन की तेज आवाज से वह पुन: वर्तमान में आ गई । उसने जल्दबाजी में घड़ी की ओर देखा - तीन बज रहे थे । शायद यही ट्रेन हो । वह उठने का उपक्रम करने जा रही थी । लगभग चलती ट्रेन से सावन को उतरते देख वह चौंक गई और पुन: शॉल में सिमट गई उसके मन में प्रश्नों का बवंडर सा आ गया । कहकर तो गये थे अभी गया और अभी आया.... फिर..... ।

तभी सावन उसके पास आकर किसी की प्रतीक्षा करने लगा । शायद कोई और भी था उसके साथ । एक उड़ती सी दृष्टि सावन ने सुदर्शना पर डाली किन्तु शॉल में लिपटे होने के कारण वह उसे पहचान न सका । ट्रेन के रूक जाने के काफी देर बाद एक उम्र दराज सूटेड-बूटेड व्यक्ति ट्रेन से सम्हलते हुए उतरा और सावन के करीब आया ।

‘सारी सर मैं जल्दबाजी में ट्रेन के रूकने से पहले उतर गया ।‘, सावन ने लगभग झुकते हुए अदब के साथ उस व्यक्ति से माफी मॉगी ।

‘सावन ऐसी जल्दबाजी ठीक नहीं । जीवन बहुत कीमती है ।‘, उस व्यक्ति ने सलाह दी ।

‘क्या करें सर ! आज तो इन्तेहॉ हो गयी । एक तो मोबाइल डेमेज हो गया दूसरे व्यस्तता में अपनी श्रीमती जी को फोन भी नहीं कर सका ।‘, सावन के चेहरे पर परेशानी स्पष्ट झलक रही थी ।

‘मेरा मोबाइल यूज कर लेते ।‘

‘मैं आपको परेशान नहीं करना चाहता था ।‘

‘हाँ भई, आज बहुत परेशान हो गये । मीटिंग बेवजह लम्बी खिंच गयी । ऊपर से ट्रेन भी नहीं मिली सो अलग ।‘, बुजुर्गवार व्यक्ति की हालत ठीक नहीं थी, ‘मैने तुम्हें मजबूर किया था साथ चलने के लिए । सोचा था काम जल्दी निपट जायेगा । देखो, साथ रहोगे तो सीखोगे ।‘

‘जी सर, लेकिन आप एडवाईज करें । मैं यह जॉब छोंड़ना चाहता हूँ ।‘

‘लेकिन क्यों ?’, बुजुर्गवार व्यक्ति ने सावन के कंधे पर हाथ रखते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि डाली ।

‘सर, आई लव माई वाईफ टू मच । मार्केटिंग में रोज-रोज समय-बे-समय घर पहुँचता हूँ । उसे यह सब पसन्द नहीं । मेरा वैवाहिक जीवन परेशानियों से भर गया है । आज तो उसका बर्थ डे था । सेलीब्रोट भी नहीं कर सका ।‘

बुजुर्गवार व्यक्ति ने अफसोस जताते हुए कहा, ‘आई एम वैरी सॉरी फार दैट । फिर दूसरा क्या काम करोगे तुम । तुम तो मार्केटिंग में एक्सपर्ट हो । अभी तो तुम्हें बहुत आगे जाना है । इतनी हैंडसम सैलरी और इतना अच्छा जॉब छोंड़ना ठीक नहीं । मैं तो कहता हूँ भाभी जी से बात करो । कहो तो मैं मदद करूँ ।‘

‘नहीं सर बहुत हो गया । मुझे यह जॉब बदलना ही होगा ।‘, सावन ने जैसे दृढ़ निश्चय कर लिया था ।

‘सोच लो, मैं भी इसी दौर से गुजरा हूँ तब यहाँ पहुँचा हूँ । मैं तो सलाह दूँगा एक बार नहीं दस बार सोचना फिर निर्णय लेना । और सुनो, आज तुम्हारी छुट्टी । यू सेलिब्रोट होल डे । चलो-चलो फटाफट निकलो भाभी नाराज होंगी ।‘, कहते हुए बुजुर्गवार व्यक्ति दूसरी ओर चल दिया ।

‘गुड नाईट सर ।‘, सावन ने उन्हें विदा दी और ब्रीफकेस उठाकर गेट की ओर बढ़ा । तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए रोककर कहा, ‘गुड मार्निंग मैं यहाँ हूँ ।‘, सावन सुदर्शना की आवाज सुनकर पलटा ।, ‘अरे तुम यहाँ ।‘

‘हाँ मैं, तुम्हें लेने आई हूँ । बहुत इंतजार कराते हो ।‘, सुदर्शना के मुख पर खेलती खुशी को देखकर सावन ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया, ‘नाऊ बी सेलिब्रोट होल डे ।‘

सूने प्लेटफार्म पर एक नई सुबह की चहल-पहल शुरू हो गई थी ।


@ राकेश सोहम्

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