Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 2

अध्याय-2

5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट से आधा घंटा बीत गया, परंतु दोनों मे से कोई एक शब्द नहीं बोला।
अचानक एक छात्र आईसक्रीम लेकर उसके सामने से गुजरा, दोनो चुप्पी तोड़ते हुए एक साथ बोले -
आईसक्रीम खाओगे ?
और एक साथ हँस पड़े।
ठीक है तुम बैठो सुबोध मैं आईसक्रीम लेकर आती हूँ, पर आज मुझे तुम्हारा जवाब जानना ही है।
मीता उठकर आईसक्रीम लेने कैंटीन चली गई। सुबोध अब भी चिंतन में था। तभी मीता वापस आ गई।
हाँ तो तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया सुबोध।
मैं तुम्हारे मन की भावों का सम्मान करता हूँ मीता, परंतु कोई भी उत्तर देने से पहले तुम्हे मेरे परिवार के विषय में जानना चाहिए।
मैं एक सब्जी बेचने वाली फैमिली से आता हूँ मीता। मेरी माँ मंडी में सब्जी बेचती है और पिताजी सब्जी को ठेले में लेकर गली-गली घूमते हैं। मेरा एक बड़ा भाई भी है जो उस काम में उनकी मदद करता है और वो तीनो मिलकर मुझे पढ़ा रहे हैं। मुझसे उनको बहुत उम्मीदें है मीता। अब तुम अपनी फैमिली के बारे में बताओ।
मेरे पिताजी संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी हैं सुबोध। मेरी माँ यही कलेक्टोरेट में राजपत्रित अधिकारी हैं और मेरा एक बड़ा भाई भी है जो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। मुझे पिताजी की तरह लोक सेवा आयोग में चयनित होकर अधिकारी बनने की इच्छा थी इसलिए उनके निर्णयानुसार ही बी.ए. करने का निश्चय किया था। मीता ने बताया।
अब बताओ मीता। तुम कहाँ इतने बड़े परिवार की लड़की और मैं बहुत ही निम्न परिवार का लड़का। क्या कभी तुम्हारा परिवार इस बात को स्वीकार कर पाएगा। मुझे तुम पसंद हो मीता। मैं तुमसे शादी भी करना चाहता हूँ परंतु तुम अपने परिवार को कैसे राजी करोगी ये तुम सोच लो।
तुम्हारी बात में प्वाइंट तो है सुबोध। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस परिवार से आते हो, मुझे तो सिर्फ तुमसे मतलब है, परंतु मेरे परिवार वाले तो थोड़ी रूढ़ीवादी परंपरा के है, पता नहीं वो मानेंगे कि नहीं। उनको मनाना तो बहुत ही कठिन कार्य है। एक तरीका है कि यदि तुम कोई बड़ी सरकारी नौकरी हांसिल कर लो तो शायद वो लोग मान जाए।
वो तो मैं कोशिश करूँगा ही मीता। पर ये तो दिवास्वप्न है। कब बड़ा अधिकारी बनूँगा और कब हमारी शादी होगी। अभी फिलहाल तो मुझे अपने परिवार का आर्थिक बोझ कम करने के लिए कोई छोटी मोटी ही सही नौकरी करनी पड़ेगी।
अगर तुम्हारे परिवार वालों को मानना होगा तो उसी आधार पर भी मान सकते हैं।
लेकिन अगर वो नहीं माने तब भी मैं तुमसे शादी करूंगी सुबोध। तुम निश्चिंत रहो मुझे सिर्फ तुम्हारी स्वीकार्यता चाहिए।
ठीक है मीता पहले हम अपनी पढ़ाई पूरी कर ले फिर फैसला लेने के लिए तो पूरा जीवन पड़ा है।
अब दोनो ज्ःयादातर समय साथ ही रहते। साथ ही पढ़ते, साथ ही तैयारी करते और साथ ही अपने जीवन के सपने बुनते। स्नातक के अंतिम वर्ष तक ना तो मीता ने और ना ही सुबोध ने अपने घर में कुछ पता चलने दिया।
आज स्नातक अंतिम वर्ष का रिजल्ट आया था। मीता खुशी से सुबोध को बता रही थी, तुम्हें पता है सुबोध हम दोनो ही प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए है।
हाँ मीता तुमको बधाई हो।
बधाई और धन्यवाद के असली हकदार तुम हो सुबोध। अगर तुम मेरी तैयारी नहीं करवाते तो शायद मैं इतने माक्र्स कभी नही ला पाती। तुम्हारा शुक्रिया।
वास्तव में मीता को सुबोध की संगत का ही असर था कि वो उम्मीद से अधिक माक्र्स लाई थी। दोनो को अब आगे क्या करना है ये सोचना था। सुबोध कुछ ऐसा करना चाहता था कि जल्दी से जल्दी वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार सके। वो अपने भाई की शादी के लिए भी सपोर्ट करना चाहता था। उसने ज्यादा ऊँचे सपने नहीं सजा रखे थे। बस इतना ही चाहता था कि उसे कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए और वो अपने परिवार को आर्थिक संबल दे सके।
इधर मीता तो आसमान पर थी उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। घर में सबने उसकी दिल खोलकर प्रशंसा की थी अच्छे नंबर लाने पर। पर मीता जानती थी कि इन नम्बरों के पीछे सुबोध का ही हाथ है। उसकी माँ श्यामा देवी को कुछ-कुछ महसूस हो रहा था। एक दिन उन्होने पूछा -
क्या बात है मीता, इतना खुश तो मैंने तुमको पहले कभी नहीं देखा ?
मेरे अच्छे नंबर आए है माँ इससे अधिक खुशी की बात और क्या होगी।
नहीं, नहीं सिर्फ नंबर वाली बात से तुम इतनी खुश तो नहीं हो सकती। तुम्हारे तो इससे भी पहले अच्छे नंबर आए हैं, दसवीं और बारहवीं में। पर आज की खुशी तो देखते ही बन रही है, क्या बात है ? मुझे नहीं बताओगी ?
कोई भी बात नहीं है माँ। मीता बोली।
क्यों मुझे दोस्त नहीं समझती। मीता की माँ उसकी दोस्त ज्यादा थी।
समझती हूँ माँ।
फिर बताती क्यूँ नहीं ? कोई मिल गया है क्या ?
मीता शरमा गई।
अरे! मेरी बेटी तो शरमा रही है। मतलब सचमुच कोई मिल गया है।
हाँ माँ, तुम सही बोल रही हो। मुझे सचमुच कोई मिल गया है।
अच्छा क्या नाम है उसका ?
सुबोध, सुबोध नाम है माँ उसका।
अच्छा तो एक बार मिलवाने लेकर आओ। बात करते हैं उससे। उसकी माँ ने हंसी में ही सुबोध को घर लाने और उनसे मिलाने की हिदायत दे डाली।
ये सुनते ही मीता उतावली हो गई। उसने माँ को गले लगा लिया।
पक्का माँ! मैं उसे लेकर जरूर आऊँगी। यह कहकर वो बाहर निकल गई। उसे जैसे पंख लग गए थे कि कब वो सुबोध से मिले कब उसे ये बताए कि उसकी माँ उससे मिलना चाहती है। वह जल्द से जल्द सुबोध से मिलकर उसे ये सब बताना चाहती थी।
उसी गार्डन में वो दोनो दूसरे दिन मिले।
सुबोध, सुबोध। मैं बहुत खुश हूँ मैंने माँ को तुम्हारे बारे में बताया तो वो झट से तुमसे मिलने के लिए तैयार हो गई।
उसे सुबोध से उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली।
तुमने मेरे बारे में क्या बताया मीता ?
यही कि तुम मेरे साथ पढ़ते हो और पूरे कॉलेज में तुमने प्रथम स्थान हांसिल किया है। ये सुनकर वो खुश हो गई और मैंने उन्हें ये भी बताया कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ। वो तो खुश थी और तुमसे मिलना चाहती हैं।
क्या तुमने उन्हें मेरी पारिवारिक स्थिति के बारे में बताया मीता ?
नहीं सुबोध।
तो पहले जाकर उन्हें मेरी पारिवारिक स्थिति के बारे में बताओ मीता। अगर उसके बाद भी वो मुझको मिलने के लिए बुलाते हैं तो मैं अवश्य आऊँगा।
तुम समझते क्यों नहीं सुबोध। अगर वो तैयार नहीं हुए तो भी मैं तुमसे शादी करूँगी।
मैं समझता हूँ मीता। परंतु परिवार को बताना भी आवश्यक है। आज तुम अपने घर जाकर अपने माता-पिता से मेरी पारिवारिक स्थिति पर चर्चा करो और मैं भी आज घर जाकर सबको तुम्हारे बारे में बताता हूँ। कल हम फिर यहीं पर मिलेंगे।
अच्छा ठीक है सुबोध। मैं आज जाकर पहले मम्मी से बात करती हूँ।
सुबोध को तो लगभग पता ही था कि उसके घरवाले इस रिश्ते के लिए मना नहीं करेंगे। क्योंकि मीता उनसे अच्छे घर की थी फिर भी उसने माता-पिता और भाई को बिठाकर पूछा -
पिताजी मैं आप लोगों से एक बात करना चाह रहा था।
हाँ बेटा बताओ क्या बात है ?
मैं जिस कक्षा में पढ़ता था उसी कक्षा में एक लड़की भी पढ़ती थी मीता, मीता शर्मा। उसके माता-पिता बड़े पदों पर काम करते हैं और उसका भाई भी इंजीनियर है।
अच्छा फिर ?
बात ये है पिताजी कि मैं उस लड़की से प्यार करता हूँ और उसको इस घर की बहु बनाना चाहता हूँ।
पर क्या वो लोग मानेंगे बेटा। देखो हमको तो कोई आपत्ति नहीं है। परंतु हमारा ये छोटा सा घर देखो। हमारी आर्थिक स्थिति देखो, क्या वो लोग ये सब स्वीकार कर पायेंगे ?
आपका सवाल सही है पिताजी। अगर उसका परिवार मान जाए तो बहुत अच्छी बात है नहीं तो वो उनकी मर्जी के बगैर भी मुझसे शादी करने के लिए तैयार है।
पर ये अच्छी बात नहीं है बेटा। माता-पिता की सहमति तो होनी ही चाहिए।
हाँ आप सही कह रहे हैं पिताजी। आज वो घर जाकर बात करूँगी बोली है। देखते हैं क्या होता है। परंतु मुझे इस बात की खुशी है कि आप लोग मान गए।
हम तो तुमसे है बेटा, तुमसे ही हमारी सारी उम्मीदे है। तुम कोई नौकरी वगैरह क्यों नहीं ढूँढते।
मैंने एक प्राइवेट कंपनी मे अप्लाई तो किया है पिताजी। देखिए क्या होता है ? सोचा हूँ नौकरी के साथ-साथ आगे लॉ की पढ़ाई भी जारी रखूँगा। विधि महाविद्यालय में सुबह या शाम को पढ़ाई होती है तो मुझे नौकरी करने में भी असुविधा नहीं होगी।
ठीक है बेटा जैसा तुम्हे उचित लगे।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान तथा नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें- भूपेंद्र कुलदीप।