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एक व्याख्यान भारतीय नारी और दहेज प्रथा

संबोधन-
"मानस भवन में आर्यजन जिनकी उतारे आरती, भगवान भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती।
हे भद् भावद भवानी हे भगवती हे भारती।
सीता पते सीता पते, गीता मते गीता मते।।"

पद्माद्राणीय प्रियबन्धु क्षेत्र से आये हुवें सम्मानित जनों तथा सभी प्यारे भाई-बहन आप सभी को नमन करते हुवें मैं आज भारतीय नारी पे व्याख्यान देने के लिए उपस्थित हूं।

आप सभी से निवेदन है कि मेरी टूटी-फूटी भाषाओं पर विचार न करते हुवें मुझे शिक्षा विध तथा मेरे मंगलमय भविष्य की शुभकामनाएं देते हुवे शुभ आशीष प्रदान करे!


आज के इस विशेष दिन पर बोलने के लिए अनेक विषय दिए गए है। किंतु उनमे नारी जीवन के मंगलमय भविष्य को ध्यान में रखते हुवे दहेज प्रथा के विरुद्ध कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ।
दहेज प्रथा पर अबतक जो मैने अपने पूर्वजो से सुना है। तथा नारियों के सुख- शांति पे विचार किया है।
उससे इस निष्कर्ष पर पहुचता हु की यह परम्परा आने वाले भविष्य में सम्पूर्ण कुमारियों के पिता धनाभाव में काल-कौलित होने के लिये विवश होंगे। जैसा कि अतीत काल के इतिहास (इतिवृत) में सुना है।
कुवारी सत्यावती, देवहूति, सती अनुसुइया, माता पार्वती, कुमारियां अपने शरीर को साधना के तप में तपाकर आजतक अमरत्व प्राप्त कर चुकी है। तथा भारतीय नारियों के लिए आज बजी आदर्श बनी हुई हैं।

ऐसी समाज और राष्ट्र की नारियां भारतीय नारियों के लिए आज भी आदर्श बनी हुई है।
ऐसी समाज और राष्ट्र की नारियां भारतीय नारियों के लिए प्रेणा देने वाली है।
तथा ऐसे उत्तम चरित्र वाले नारियों से त्रेता तथा द्वापर भी अछूता नही हैं।
विवाह के भारतीय परम्पराओ में कन्या दान एक ऐसा महत्वपूर्ण दान हैं। जिसके बिना माता-पिता अपने आपको भाग्यहीन समझते हैं।
इस कलयुग के इतिहास को मैं ध्यान में रखते हुवे इस नतीजे पे पहुचता हु की आजतक के जीवन मे पद्मिनी, झांसी की रानी अपने पतिव्रत का पतिपरायणा राष्ट्र की रक्षा में समाज की रक्षा में अपने कुल परम्परा के पालन में निरन्तर लगी हुई थी। परन्तु इन सभी के व्यवहारिक जीवन में दहेज का नाम मैन नही सुना।
जब विदेशों से धन संचित कर आने वाले लोगों ने दशा और विचार न करते हुवें इस दूषित परम्परा को जन्म दिया।
जो आज के युग में सामान्य पिता के लिए ये पुत्रियां गले की हार बनी हुई थी अब वह काल बनकर सामने दिखाई देती हैं।
हम कैसे कहे? कि देहज प्रथा राष्ट्र एवं समाजिक हित के लिए उपयुक्त हैं।
पत्रों को पढ़ते हुए नारिया शर्मसार हो जाती हैं। आये दिन दो-चार लेख(उदाहरण) ऐसे भी मिलते हैं कि ये कुमारिया इतनी जल्दी श्यानी हो जाती है कि जो कुल परम्परा को ध्यान में न रखते हुवें पतिव्रत को ताख पर रखकर गणिकामय जीवन व्यतीत करती हैं।
अतः देशकाल समाज के लिए इस प्रथा का न होना ही अपने अतीत गौरव को सुरक्षित रख सकती है।
भारतीय नारियों और भारतीय समाज को सुरक्षित रखने के लिए हमे अपने घृणित सोच को बदलना चाहिए । हमे ये कभी ये नही भूलना की औरत ही हमारी जननी है, हमारी बहन है, हमारी पत्नी हैं।
और इस दहेज नामक समाज मे पनपे भ्र्ष्टाचार को खत्म करना चाइये।।
"जय हिन्दू संस्कृत, जय हिन्दू दर्शन, जय हिंदुस्तान ,भारत देश महान।।
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Regards,
Durgesh Tiwari