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लोक कथा लटूरी -दद्दा का भूत


राजनारायण बोहरेर- लोक कथा -लटूरी दद्दा का भूत
बहुत पुरानी बात है, एक गांव में कोटवार के रूप में तैनात एक अत्यंत सीधे-सादे और बड़े भोले व्यक्ति लटूरी दद्दा रहते थे ।लटूरी दद्दा का परिवार भी उन्ही जैसा सीधा सादा था। परिवार में दो ही प्राणी लटूरी दद्दा और दूसरी लटूरी की पत्नी लटूरन भाभी। सरकार ने कोटवार होने के नाते लटूरी को थोड़ी जमीन दे दी थी जिस पर वे खेती करते थे । उन्होंने अपने हाथोँ कभी खेती नहीं की थी एक साझीदार को वह खेती करने को दे देते थे और खुद कोटवार के रूप में अपनी ड्यूटी करके अपना पेट पालते थे । साल के साल चौत के महीने में खेत में से जो अनाज आ जाता ,वह अपने आड़े वक्त के लिए घर में रख लेते थे और घोर गर्मियों में भरी बरसात में जब कई कई दिन में घर से नहीं निकलता थे तो ऐसे में जमीन की फसल का अनाज उनके घर में भोजन बनाने के काम आता था ।
एक बरस लटूरी दद्दा ने खुद खेती करने का सोचा । किसी से बैल मांगे । अपने हाथों मेहनत से सारी खेती के काम किये ।उबड़ी मेहनत से उड़द बोया। उनको दी गयी ज़मीन भाटा जमीन थी ऐसी जमीन उड़द की फसल खूब अच्छी होती है, लटूरी दद्दा की भी फसल बहुत अच्छी हुई। काटकर खलिहान में लाए और बैल मांग कर ही लटूरी दद्दा ने फसल को बैलों के पांव के खुर के नीचे से कुचलवा कर दांव की । उड़द के पौधे बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गए और उनकी फलियों से दाने निकल कर उसी भूसे में मिल गए। एक दिन जब मंदी मंदी हवा चल रही थी तो लटूरी दद्दा ने लटूरन भाभी को बुलाया ।लकड़ी की बनी तिपाई पर डलिया लेकर उन्हीने दावन किए हुए ढेर से उड़द मिले भूसा ले कर गिराना शुरू किया । इसे उडावनी कहते हैं इसमे तिपाये को हवा के हिसाब से जमा कर डलिया में से थोड़ा-थोड़ा जमीन पर गिराया जाता है तो वजनदार होने के कारण दाने ठीक नीचे गिर जाते हैं ,भूसादूर जाकर उड़ता है ।दिन भर की मेहनत के बाद उड़द तैयार थी ।राज रास के रूप में निकला हुआ उड़द बहुत चमक रहा था, जिसे देख देख कर लटूरन भाभी और लटूरी दद्दा बहुत खुश थे !
खलिहान में दान मांगने वाले बहुत आते थे पड़ोस के गांव का एक पंडित जब उनके खेत में आया तो लटूरन भाभी ने अचानक खोवा भर के भाभी ने उसे देना चाहा तो पंडित ने पूछा दृ“क्या फसल है माई?”
लटूरन भाभी बोली “महाराज उड़द हुई थी!”
पंडित पीछे हट गया “ना ना ३३.ना हम उड़द खाते, ना उड़द दान में लेते !तुम लोगों को पता नहीं है क्या ? उड़द ना कोई पंडित खाता, न दान में दी जाती और सामान्य दिनों में भी उड़द का उपयोग नहीं किया जाता उड़द तो किसी की तेरही में दी जाती है।”
अंधविश्वासी पंडित ने लटूरी दद्दा और भौजाई को और ज्यादा अंधविश्वास में पटक दिया था।
लटूरी को लटूरन भाभी ने सलाह दी कि ना हो तो अपने पंडित नवनीत राम से पूछ लो की उड़द की फसल कोई नुक्सान न करे, क्या करें इतनी मेहनत से इतनी फसल तैयार हुई !
तो मजबूरी में लटूरी दद्दा दौड़ते हुए पंडित नवनीत राम के घर पहुंचे। बताया कि इस बार उसने साझीदार को हटाकर खुद फसल बोई थी और सब ने कहा कि उड़द की फसल अच्छी होती है,सो उड़ती बो दिए थे ।अब उड़द तो बहुत अच्छी हुई है, पर अभी अभी एक पंडित ने दान में नहीं ली ।कहने लगा उड़द तो शनि का दान होती है तेरही का दान होती है, भले लोग ना उड़द दान में लेते ना देते। आप बताओ महाराज उड़द मेरे लिए कैसी रहेगी ।”
पंडित जी की आंखों में लालच उतर आया बे मीठी जुबान से बोल पड़े “लटूरा मैं मर थोड़ी गया था ।पहले क्यों नहीं आया ।पहले पूछता तो मैं कुछ बताता ।अब तो सब सत्यानाश हो गया ना ।”
लटूरी दद्दा बोल पड़े “महाराज अब गलती हो गई। अब रास्ता बताओ ।”
पंडित जी ने गिनना शुरू किया “ देख तेरा नाम लटूरी, राशि मेष होती हैं। मेष वृष मिथुन कर्क ----”
अपनी उंगली पर रख समझ में ना आने वाली राशियों के नाम लेते रहे, फिर गिन कर बताया कि ” तेरी राशि पर शनि बैठा है उड़द की फसल तेरे लिए तो दुश्मन है ।अगर तुमने एक दाना भी उड़द का खा लिया तो समझ ले कि भगवान ही मालिक है। उड़द खाते हीं मर जाएगा ।आगे तू जाने तेरा काम।”
लटूरी बोल पड़े “महाराज? अब उस उड़द के क्या करें। कछु तो बताओ ?”
पंडित नवनीत राम चिल्लाए “जो उसको खाएगा वह मर जाएगा क्योंकि राशि मेष में उड़द नुकसान करता है। ऐसा कर तू पूरी उड़द किसी को दान कर दे दे।हां देख कोई दूसरे गांव का पंडित नहीं लेगा ।क्योंकि शनि का दान होता है। “
लटूरी मजबूरी में बोले “महाराज कृपा करो आप ही मेरे पुरोहित ,आपके सिवाय किसको दूंगा ।” अनमने भाव से पंडित ने कहा “वैसे तो मैं शनि का दान लेता नहीं हूं , तेरा संकट अपने माथे लेता हूं ।नहीं मानता तो ले आ।”
लटूरी ने खेत में बैठी लटूरन को सारा किस्सा कह सुनाया। लटूरन को बड़ा दुख हुआ के सारे काम छोड़ कर निदाई गुड़ाई करते रहे और खलिहान से फसल पंडित के घर जा रही है। इधर लटूरी दद्दा किसी से बैलगाड़ी मांग कर उसमें उड़द भर रहे थे कि मन न माना, तो लटूरन भाभी ने एक डलिया उड़द भरकर भूसे में छुपा दी ।
लटूरी जब उड़द पंडित के यहां देने चल गए थे तो जल्दी-जल्दी में लटूरन भाभी ने उड़द की डलिया भूसे में से उठाई और अपने घर जाकर छुपा दी ।
बेचारे लटूरी दद्दा के भाग्य में कोटवारी की नौकरी करना लिखी थी सो उसी पर आश्रित रहे ।

एक दिन की बात है, लटूरी दद्दा की इच्छा हुई कि अपने ससुराल हो आएं । उनकी ससुराल पास के गांव में थी वे लटूरन से बोले “ मैं तेरे मायके जा रहा हूं , तू दो-तीन दिन आराम से रहना । डरना नहीं ।”
लटूरी दद्दा निकले तो लटूरन भाभी ने सोचा कि “अब मौका है। अपने हाथ की उगाई गई उड़द की दाल का स्वाद तो लिया जाए ,सुनते हैं उड़द बड़ी स्वादिष्ट दाल होती है,”
सुबह से ही लटूरन भाभी ने उड़द की दाल उबलने के लिए रख दी। हढ़िया में उड़द खदकती रही , खदकती रही । उड़द की दाल बहुत देर में पकती है, जब पता लगा , ठीक से उबल गई है उसने बढ़िया हींग डालकर छोंका लगाया ।
लटूरी दद्दा अपनी ससुराल पहुँचे तो वहां पता लगाकि ससुराल के सब लोग कोई दूसरे गांव चले गए हैं और वहां घर मे ताला लगा था ।मजबूरी में लटूरी अपने गाँव उल्टे पाँव लौट आए।
लटूरन भाभी को उड़द की स्वादिष्ट मनपसंद दाल मिली तो सटासट भरपेट खायी और आलस में आकर पॉँव पसार के सो गयी। लटूरी दद्दा घर आये तो किबाड़ लगे थे, उन्होंने आ के द्वार खटकाया।
आवाज लगाई तो लटूरन चौकी ।
किबाड़ खोले तो लटूरी दद्दा सामने थे-“ क्या हुआ?”
उनन्होंने कहा “तेरे भैया भाभी सब कहीं मेहमानी में चले गए हैं। तो मुझे लौटना पड़ा। रोटी तक नहीं मिली। बहुत भूख लग रही है चल जल्दी से खाना दे।”
पति को भूखा देखकर बिना सोचे विचारे लटूरन भाभी ने जल्दी से आठ-दस रोटी और थाली भर उड़द की दाल लटूरी दद्दा के सामने रख दी ।लटूरी भूखेथे ना रंग देखा , ना दाल की जाति पूछी और सटासट भरपेट खाना लगा । डकार लेते हुए वह बार-बार कहने लगे कि “आज की दाल बहुत अच्छी है। ऐसी दाल कब होनी है।
अब लटूरन भूल गई थी कि पंडित नवनीतराम ने कहा था “यह दाल तुम बिल्कुल मत खाना, एक दाना भी खाओगे तो तुम्हारी मौत निश्चित है ।”
उनसे रहा नहीं गया पति की खुशहाली के लिए वह उसने झपट कर थाली खींची।
लटूरी देखता ही रह गया फिर चिल्ला कर बोला” थाली क्यों खींच ली ?बता कैसे बनाई थी ?कौन सी दाल थी?
लटूरन कहने लगी “मुझसे गलती हो गई मैंने अपनी खेती की उड़द की फसल से कुछ दाल बचा ली थी वहीं आज बनाई थी ।वही आपको खिला दी।”
लटूरी दद्दा के मस्तिष्क में बार-बार नवनीत राम की कही बात नहीं ढूंढ रही थी कि “ए लटूरा तू एक दाना भी खाया तो मर जाएगा।”
भोला लटूरा इसी विचार में बहुत परेशान हो गया। सच को तस्दीक करने के लिए वह वहीं लेट गये। सोच रहै थे मेरे पेट में उड़द गई है अब वह बम की तरह विस्फ़ोट करेगी औऱ धीरे-धीरे मेरे पास मृत्यु का आना शुरू हो जाएगा। उन्होने अपने पैर फैला लिए और लेट गये फिर सांस रोकने की कोशिश करने लगे।
लटूरन बोली कैसे लेट गए ?

लटूरी ने कहा” देख मैं तड़प के मरूं उससे अच्छा है मौत का स्वागत करता हूं। नवनीत राम ने कहा है तो मौत तो आ ही जाएगी उड़द खाने से। अब मैं आराम से उसी का इंतजार करता हूं ।
उसे ऐसा लेटा देखकर वह रोने लगी। रोने की आवाज से पड़ोसी आकर बोले “क्या हुआ?”
लटूरन रोते-रोते बोली “क्या करूं? मेरी मत मारी गई थी ।पुरोहित ने मना किया था कि तुम अपनी फसल की उड़द मत खाना ।लेकिन मैंने कुछ उड़द छुपा लिए थे। आज गलती से खिला दिए। तो यह तो खा कर ऐसे लेट गए । लग रहा है कहीं हाय राम हाय दैया मैं क्या करूं ?
लोग कहने लगे “भौजी तुमसे गलती तो हो गई। अब कुछ करो।
लोग कानाफूसी करने लगे कि” लटूरी दद्दा तो अच्छे थे लेकिन यह भौजी उड़द की स्वादिष्ट मनपसंद दाल खिला के स्वाद कर चक्कर मे अपने खसम को खत्म कर गई!
बाहर से भी कुछ लोगों की आवाज आई कि हम अपने अपने घरों से लकड़ी मरघट को भेज रहे हैं। तुम लोग लाश निकालो। शमशान की तैयारी करो ।
लटूरी को लगा कि उड़द खाने के बाद मौत आएगी इस पर विश्वास करके लेट तो गया, आंख और सांस तो बंद ही नहीं है , क्या करें? यह लोग तो शमशान जाने की तैयारी करने लगे हैं। उसे लगा कि अब जब तक मौत नहीं आए, इनको ले जाने में खूब देर कर लेना चाहिए । लेकिन वह इस संकोच में आंख नहीं खोल पा रहै थे कि अगर खुद ने ही तो मरने का नाटक किया था खुद कैसेजिंदा हो जाये?
उन्होंने अचानक ही अपने हाथ और पांव दांये बांये चौड़े फैला लिए उन्हें लगा कि जब तक हाथ पांव नहीं सिकुड़ते तब तक ये लोग ले नहीं जाएंगे और तब तक मौत तो आ ही जाएगी।
घर के आंगन में से कुछ लोगों की आवाज आई “अब क्या देर? लाश ले आंओ दो जने,”
उनको उठाने को दो जन भीतर आए तो देखा कि लाश के हाथ पांव फैल गए हैं और ऐसे में उसे छोटे से दरवाजे से बाहर ले जाना बड़ा कठिन होगा ।
लोगों ने भीतर से ही आवाज लगाकर कहा कि बहुत देर हो गई , लाश के हाथ पांव चौड़े होके फैलगए हैं तो बाहर से किसी बुजुर्ग ने कहा” एक धारदार कुल्हाड़ी उठाओ लाश से क्या मोह करना ,हाथ और पांव काट दो ,रास्ते पर ला कर दो।
यह सुना लटूरी दद्दा का ऊपर का दम ऊपर और नीचे का नीचे रह गया ,उन्होंने थोड़ी सी आंख खोलकर देखा कुल्हाड़ी लेने दोनों जन बाहर निकल गए थे।
वे दोनों अपनी धारदार कुल्हाड़ी लेकर दोनों जन आए तो उन्होंने संतोष की सांस ले “लो काटना पीटना नहीं पड़ा लाश सिकुड़ गई”
उन्होंने फिर आवाज लगाई “काटने की जरूरत नहीं है इतनी देर हो गई लाश आब ठीक हो गई है “
लटूरी को उठाकर बाहर लाया गया तो उठाने वाले कहने लगे मुर्दा हल्का नहीं हुआ, अभी भी वजनदार है” तो पंडित बोला मजदूर आदमी था भर पेट खाता था और खूब नौकरी करता था ,शरीर तो मोटा ताजा होगा ही ।
लटूरी को अर्थी पर लिटाया गया उनके सारे कपड़े निकाल दिए गए। नया कफन उड़ा कर सुतलियो से बांधकर मरघट की ओर ले कर चल दिए- रामनाम सत्य हैं।
अर्थी पर लेटे लटूरी कभी आंख खोल कर देख लेते थे कि यह गलियां , यह दरवाजे, खिड़की, यह पड़ोसी अब नहीं दिखेंगे।
श्मशान में ले जाकर अथीं को एक तरफ रखा गया तो पंडित बोला कि सुनो गांव वालों , इसे अधजला न छोड़ना। मोटी मोटी लकड़ी से इसको ठीक से जिलाना कौन है अनजला रह गया तो जिंदा भूत बन जाएगा ।
कुछ लोग दौड़कर लकड़ी लेने गांव तरफ चले गए, जिससे मोटी लकड़ी -ला सकें ।
अर्थी में जकड़े हुए लटूरी की मौत तो नहीं आ रही थी उन्हें लगा कि उठ के बता देना चाहिए । उनके पास में कुछ बुड्ढे लोग बैठे थे उनने सोचा इन बूढ़ों को वास्तविक बात समझा लूंगा तो यह लोग गांव वालों को और बाकी के लोगों को हाल बता देंगे कि यह मरा नहीं , वह तो जिंदा था ।
लटूरी ने अपने हाथ उठाए तो उठे ही नहीं उन्होंने मुंह के पास बंधी आंटी ,सुतली को दातों से कांटा ,तो वह नहीं कटी गाँव वालों ने कस के बांध रखा था। अब लटूरी ने किसी तरह हाथ बाहर निकाल कर पूरी ताकत लगाई और कफ़न लिए हुए ही अर्थी में से उठने लगे। टूटती हुई आंटी सुतली की आवाज सुनकर बूढ़े लोगों ने देखा -कि मुर्दा उठ बैठा और उसने बैठ कर कहा -पंचों राम राम! काका दादा जय राम जी की !नमस्कार हो !मैं मरा नहीं हूं मैं तो जिंदा हूं।
एक मुर्दे के मुंह से ऐसी बातें सुनकर उन बूढ़े ने जिन्होंने यह सुना बे उठ खड़े हुए और जब तक अर्थी के सुतली तोड़ता हुआ नंग धड़ंग लटूरी खड़ा होता बूढ़े लोगों ने गांव की तरफ दौड़ लगा दी ।
अब तो आलम यह था जो भी लटूरी को देखता था वह पलट जाता और जिधर रास्ता मिलता था उधर भाग जाता था।
गांव के लोग गांव की तरफ भाग रहे थे और पीछे पीछे नंग धड़ंग लटूरी दौड़ता चला रहा था। हाथ जोड़ता हुआ लटूरी लोगों से कहता “बात सुनो , बात सुनो! मैं मरा नहीं था , मरने का इंतजार कर रहा था।ष्
लेकिन लोग कहां सुन रहे थे , एक उसके पड़ोसी थे, वे अपने घर में घुसे लेकिन उन्होंने उसके पहले लटूरन भाभीजी को यह बताना जरूरी समझा के लटूरी तो जिंदा भूत हो गया है ,अब वह घर तरफ आएगा ,तुम भीतर से ताला जड़ के अंदर छुप जाओ ।
लटूरन ने फटाक से किबाड़ लगाए और कुंडी चढ़ाकर दुबक गई थी। लटूरी दरवाजे तक आये औऱ किबाड़ खटकाये फिर खूब चिल्लाये बोला कि तू तो मेरी सगी जनीहै तू तो सच समझ।
लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं सुनी और आखिर में रोता रोता वही बैठ गया तब मोहल्ले से हर घर से कुछ लोग तलवार लेकर कुछ लोग डण्डा लेकर निकले और बोले “भूत मरघट में जा । यहां बैठेगा तो हम लोग मार डालेंगे ।
डरा हुआ लटूरी दद्दा वापस मरघट की ओर चला गया । अपने ही कफन को उठाकर उन्होने बदन पर लपेट लिया । मरघट के पास एक नदी थी। पहले कुछ ना समझ में आया तो स्नान किया और अपनी ही लाश पर डाले हुए मखाने और दूसरी चीजें उठा खाएं फिर वही झोपड़ी के पास में एक पेड़ के नीचे बैठ गये। फिर यही हुआ कि वह नदी के किनारे रहने लगे । ऊपर से वह पेड़ से फल खा लेते थे कोई मुरदा जलाने लाते तो वह छिप जाते और मुर्दे के साथ मखाने वगैरहजो मिलता या तीसरे के दिन उड़द के बड़े वगैरह चढ़तेतो सब बीन के खा जाते। कुछ नहीं मिलता तो घास की जड़ खा लेते थे। नदी का पानी पीते थे और एक आदम आदमी की तरह रहने लगे।
गंव वालों के खेत मरघट के पास थे तो गांव वालों ने खेतों तरफ जाना बंद कर दिया।
कुछ दिन बाद गांव में एक अंग्रेज दरोगा दौरे पर आया उसने गांव के लोगों को जमा किया और बड़ी कठिनाई से लोग हुए। लोगों ने कहा कि इस गांव में तो ना तो लगान दे पाएंगे और ना हम कोई कर कर दे पाएंगे, क्योंकि हमारे गांव में एक जिंदा भूत हो गया है ,वह कभी मुख्य सड़क तरफ आ जाता है तो कभी गांव में चक्कर लगाता है। हम लोग डरे डरे से घर में बंद रहते हैं। हमारे सारे खेत मरघट के पास है,ना कोई खेती कर पा रहा है और ना कोई व्यापार बंज कर पा रहा है।
यह सुनकर अंग्रेज दरोगा बहुत हंसा ।अंग्रेज दरोगा कहने लगा कि “तुम लोग डरपोक हो ।जिंदा भूत क्या होता है मैं देखता हूं चलो ।आज वही नदी पर नहा लूंगा वहीं खाना खाउंगा और देख लूंगा कौन सा जिंदा भूत है ?
उसने गांव के नाई को बुलाया, धोबी को बुलाया और खाना बनाने वाले कुछ लोगों को लिया । अपने घोड़े को लेकर नदी किनारे पहुंचे ,जहां कि पता लगा था कि लटूरी झोपड़ी में रहते हैं।
नाई और धोबी ने पहले कह दिया था हजूर अगर लटूरी का जिंदा भूत दिखा तो भाग खड़े होंगे।
अंग्रेज दरोगा बोला मेरे होते कोई लटूरी पटोरी नहीं आएगा
नदी के किनारे अंग्रेज बहादुर के कद्दावर काबुली घोड़े के आगे के पांव में रस्सी बांध कर बड़े-बड़े रस्सी में अगाड़ी के खंूटे और पीछे के पांव में भी लम्बी रस्सी बांधकर पिछाड़ी के खूंटे ठोंक कर मैदान में छोड़ दिया गया ।
नाई ने साबुन लगाया और दरोगा जी की दाढ़ी बनाने लगा ।लेकिन वह कनखियों से नदी की तरफ देख रहा था।
दरोगाखुद झोपड़ी में देख कर आया था जो कि खाली पड़ी हुई थी।
उधर धोबी दादा ने कपड़े लिए और नदी के पानी से धोने लगा
लटूरी दद्दा उस दिन नदी के उस पार के जंगल में अपने लिए भोजन की तलाश में थे।
उन्होंने वहां से देखा कि आज तो कुछ लोग झोपड़ी में हैं, अरे वर्दी पहने दरोगा जी भी हैं। अब उसे लगा कि अब सही मौका है मेरी बात और मेरी सच्चाई गांव वाले तो नहीं समझे यह दरोगा जरूर समझ जाएंगे ।
उन्होंने सोचा अंग्रेज बहादुर समझ दार होता है यह लोग भूत नहीं समझते हैं । मैं इनको ही जाकर बताता हूं , यह समझ लेंगे तो ठीक रहेगा ,क्योंकि अब सर्दी का मौसम आने वाला है मैं ऐसी हालत में रह कर यहां कब समय काटूंगाघ् यह सोचकर लटूरी ने नदी पार के जंगल से सीधे नदी में छलांग लगाई और नदी के पानी को करते हुए इस तरफ बढ़ने लगे ।
नदी में कूदने की आवाज आई तो धोबी कक्का खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि सामने नदी के लंबे चौड़े पाट काटते हुए जटा जूट वाला नंग धड़ंग लटूरी दद्दा चला रहा है तो उसे पसीना आ गया । धोबी एक दम चीखा “ हुजूर लटूरी”
उधर नाई देखा कि सच में लटूरी है।
दोनों ने अपने काम छोड़े और दरोगा से कहा “हमने कहा था कि अगर जिदा भूत लटूरी दद्दा हमको दिखे तो तुरंत ही हम भाग जाएंगे , वो देखो वे आ गये हम तो जाएंगे”
देखते ही देखते धोबी, नाई और भोजन बनाने वाला महाराज भी भाग खड़ा हुआ।
दरोगा आधे कपड़े पहने यानि कि अंडरवियर बनियान पहने खड़ा हुआ था, उसने अपनी बंदूक उठाई और बंदूका की नाल खींच फायर करने की कोशिश की तो उसकी बन्दूक धोखा दे गयी। लटूरी दद्दा नदी में का पानी काटते हुए इस तरफ बढ़ने लगे ।
दरोगा कहने लगा गांव के सब लोग सही कहते थे ये तो जिंदा भूत बन गया है और वह बिना कपड़े पहने घोड़ा के पास गया और घोड़े पर उछल कर बैठ गया । घबराहट में उसने न तो घोड़ा के आगे के अगले पांव के बड़ी-बड़ी रस्सी खोली न ही अगाड़ी के खूूटे निकाले, न ही उसके पीछे के पांव में बंधी रस्सी के पिछाड़ी वाले खंूटे निकाले ।
घोड़ा को एड़ लगाते हुए उसने आगे बड़ने का इशारा किया, तो घोड़ा हिनहिनाया और नीचे सिर करके इशारा किया कि अगाड़ी पिछाड़ी के खूंटे तो खोलो लेकिन दरोगा ने समझा कि भूत के डर सेघोड़ा भी परेशान है उसने घोड़ा को एक चाबुक फटकार दिया।
अंग्रेज बहादुर का घोड़ा कद्दावर काबुली नस्ल का था, अपने सवार की इच्छा जानकर उसने पूरी ताकत लगाई और आगे पीछे की रस्सी खींच कर अगाड़ी पिछाड़ी के खूंटे ही उखाड़ डाले और चारों पांव हवा मे ंउछालता हुआ दौड़ पड़ा।
घोड़े ने दौड़ना शुरू किया। उसके आगे के पांव उठते तो अगाड़ी के खूंटे आकर दरोगा के माथे में लगते, और पिछले पांव उठाता तो पिछाड़ी के खूंटे उठ के आते और दरोगा के सिर में झड़ाका लगता। थोड़ी ही देर में दरोगा लुहूलुहान था। दरोगा समझ रहा था कि कि यह लटूरी का घोस्ट है जो उसकी पिटाई कर रहा है इसलिए बार-बार दरोगा कहता जा रहा था “लटूरी मैं तेरे घर से जा रहा हूं। लटूरी तेरे घर गलत आ गया था, माफ़ कर दे।“
अंग्रेज दरोगा रो-रोकर दया की भीख मांगता हुआ चिल्लाता रहा ! घोड़े के पांव घोड़े के पिछले दोनों पैरों में बंधी पिछाड़ी के रस्सों और लोहे के खूंटे टकरा टकरा कर दरोगा को लुहलुहान करते रहे।
लेकिन लटूरी के भय से ना उसने घोड़ा रोका न किसी से सहयोग लिया । इस तरह वह अपने थाने तक उसी दशा में पहुंचा ।
रोता चिल्लाता दरोगा व घोड़ा अपने थाने में पहुंचा व खड़ा हुआ तो सिपाहियों ने बंदूक तान दी कौन परेशान कर रहा है?
घोड़े के रुकते ही दरोगा उतरा और पीछे मुड़कर देखा तो पीछे कोई नहीं था । दरोगा समझा कि थाने में आने से भूत डर गया और वह बच गया लटूरी का भूत वापस चला गया ।
पुलिस के सिपाहियों के पूछने पर दरोगा ने सारा किस्सा कह सुनाया तो थाने के उस अंग्रेजत दारोगा की बात पर भारतीय सिपाहियों को विश्वास हो गया कि उस गांव में लटूरी नाम का जिन्दा भूत रहता है और यहां तक दरोगा जी को मारता पीटता लटूरी ही आया था ।
सिपाहियों को लगा कि रात को भूत हमला न करे सो वे रात भर आग जलाए हुए हाथों में बन्दूकें लिए तने हुए बैठे रहे लेकिन रात को नहीं आया ।
लटूरी को लग रहा था कि अब अंग्रेज साहब नहीं आया तो अब मेरा क्या होगा। हालांकि उस दिन साहब के साथ में आया नाई भागते समय हजामत बनाने का पूरा सामान नदी किनारे छोड़ गया था। धोबी भी बहुत सारे कपड़े छोड़ गया था। लटूरी को बैठे बिठाए ढेर सारे कपड़े मिल गए और खाने-पीने का सामान भी।
उन्होंने एक कैंची और उसे अपने बाल नाखून काट लिए । नहा धोकर कपड़े पहन लिए ।
अब वे जंगली की जगह भले आदमी की तरह दिख रहे थे। बगीचे में ताजे फल और सब्जियां तोड़कर उसने वहां बन रहे खाने को खुद पकाया और भोजन किया फिर कई दिनों तक भोजन कपड़े बनाते रहे ।
एक बार की बात है , पंडित नवनीत राम पास के गांव में पूजा कराने के लिए गये थे जहां खूब सारी पूरी कचोरी खा ली और तुरन्त ही वापस चल दिये। खा के तुरन्त चल देने के कारण पण्डित का हाजमा खराब हो गया।
उसका पेट दर्द करने लगा ,तेज गति से गांव के लिए चल पड़ा था ।
नदी तक आते-आते उसकी हालत खराब हो गई , उसे ज़ोर का पाया उसने ना तो यह देखा कि मरघट का किनारा है न यह देखा कि यह जिंदा भूत लटूरी का इलाका है।
पण्डित ने सारे कपड़े उतारे और नदी किनारे निवृत्त होने के लिए बैठ गया फिर उसी अवस्था मे नहाने के लिए निर्वस्त्र ही कूद पड़ा। लटूरी एक पेड़ पर बैठा हुआ यह नजारा देख रहे थे।
इस वक्त अच्छा मौका है इस पण्डित ने बहुंत सताया आज यह पकड़ में आया है यह सोच कर वे पेड़ से उतरें और लपक कर नदी किनारे पहुंचे फिर नदी किनारे पड़े हुए पंडित के कपड़े हाथ में लेकर जोर से दहाड़े-‘‘पण्डित नौनीत राम अब तू मेरे अंटे में आया है।’
नदी में नहाते पंडित ने लटूरी को देखा तो उसे काटो तो खून नहीं ।
पंडित जी की जान सूख गयी,रोते हुए बोला “लटूरा भाई तू तो मेरा जजमान था ?मैंने तेरा क्या बिगाड़ा ?”
लटूरी ने कहा “सब कुछ तू नहीं बिगाड़ा। मुझे क्या पता था कि उड़द के खाने से कोई नहीं मरता। तूने लालच में कहा कि मैं उड़द खाऊंगा भूत बन जाऊंगा । मेरे जैसे सीधे आदमी की जिंदगी खराब कर दी तूने । अब देख तू भूत बनेगा, यहीं पानी में ही डूबके मर जाएगा मैं तुझे ऊपर नहीं चढ़ने दूंगा या फिर आजा हम दोनों यहीं जिंदा भूत बन के रहेंगे।”
पण्डित रोने लगा “मुझे छोड़ दे बेटा। चल मैं तुझे गांव ले चलता हूं ।मैं गाँव में बताता हूं कि लटूरी जिंदा बहुत नहीं है पर तू सच में जिंदा है ।’’
लटूरी दद्दा बोले ‘‘पण्डित तुम डर से बोल रहे हो लेकिन सच्ची बात है कि मैं जिन्दा हूं। तुम्हें शंका हो तो तुम भी जांच कर लो, देख लो झड़ियों में छिलने की वजह मेरे हाथ पांव से भी से खून निकल रहा है ।भूत प्रेत के कोई खून नही निकलता । देखो मेरी दाढ़ी मूँछ बढ़ गई हैं ।देखो अंग्रेज दरोगा के छोटे हुए कपड़े में पहने खड़ा हूं ।’’
पंडित को विश्वास हो गया उसने वही हाथ जोड़कर कहा कि ‘‘ मैं तेरा गुंनहगार हूं। आज से तू मेरा धर्म का बेटा हुआ। मैं तेरा धर्म का बाप हुआ। अब सौगंध लेता हूं कि जब तक तुझे गांव में नहीं बसा दूंगा चैन से नही रहूँगा । तेरी जिंदगी दोबारा ठीक नहीं करूंगा मैं नहीं छोडूंगा।
लटूरी ने पंडित को बाहर निकलने दिया। कपड़े पहनने दिए और फिर पंडित नोनीत राम का हाथ पकड़कर गांव की तरफ चला ।
पहले तो लोगों ने देखा विश्वास नहीं हुआ। चिल्लाते भागने लगे पर पंडित ने सब को रोका ।नवनीत राम पंडित का गांव में बड़ा सम्मान था ।
उन्होंने सबको बुलाया कि ।यह पूरा भूत नहीं था ।जिंदा था। मैंने इसे मंत्र पूजा से ठीक कर दिया है ।अब से अपने घर में पहले जैसा रहेगा, सब लोग से पहले जैसा ही मानो ।
सबसे पहले लटूरन भाभी के द्वार खुल गए।
लटूरी को आराम से घर भेजा गया । तब धीरे-धीरे करके गांव में लटूरी दद्दा अपनी पुरानी जिंदगी जीने लगे ।
लेकिन फिर भी कभी-कभी लोग उन्हें चिढ़ाते थे - लटूरी दद्दा तुम जिंदा भूत से जिंदा आदमी बन गए।
नवनीत राम का एहसान तो मानो और मुस्कुराते हुए लटूरी दद्दाबोलते थे कि मैं उनका एहसान क्यु मानू उन्हें मेरा एहसान मानना चाहिए कि मैंने उन्हें जिंदा भूत नहीं बनाया। मेरी दया से वे जिंदा आदमी बन गए।
फिर सारा गांव भी सुखी हुआ और लटूरी दद्दा भी खुशी हुये, किस्सा गो कहते हैं कि जैसे वे सुखी रहे ऐसे ही सारी दुनिया सुखी रहे।