Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 7

अध्याय-7

कुछ दिनों बाद लगभग डेढ़ वर्ष की मेहनत का परिणाम आ ही गया। उसकी 23वीं रैंक थी और ये निश्चित हो गया था कि उसे कोई बड़ा पद मिलेगा। उनके परिवार के लिए ये बहुत बड़ी घटना थी। उस दिन सुबोध देर से घर पहुँचा उसे परिणाम के विषय में कुछ पता नहीं था वह घर पर आया तो मीता बोली।
सुबोध आज पी.एस.सी. का रिजल्ट आ गया।
सही में आ गया ? तो क्या हुआ तुम्हारा ? वह उत्साहित हो गया।
कुछ नहीं सब निरर्थक हो गया। मीता दुखी होने का दिखावा करते हुए बोली।
अच्छा पर रैंक कितना आया ?
सिर्फ 23 वाँ।
क्या ? क्या बोली तुम ? ओ गॉड । ओ मीता। कहकर वो उसे जोर जोर से चूमने लगा। हे भगवान तुमने आज मेरी सारी मनोकामनाएँ पूरी कर दी। उसने मीता को सीने से लगा लिया। वो बार-बार उसे चूम रहा था फिर अचानक जोर जोर से रोने लगा। मैं जानती हूँ तुम्हारा रोना स्वाभाविक है सुबोध।
मैं तुम्हें चुप नहीं कराऊँगी। जितना मन करे रो लो। क्योंकि मैं जानती हूँ ये मेरी सफलता नहीं है। ये पूरी तरीके से तुम्हारी सफलता है।
वो अपनी ऊँगलियों से उसे आँसू पोछने लगी। सुबोध बहुत देर तक रोता रहा और मीता उसे चुप भी नहीं करा रही थी। वो जानती थी कि ये सुबोध के लिए कितना अनमोल पल था। वो वहीं उसके पास बैठ गई। सुबोध फिर रोता और वो फिर से उसके आँसू पोछती। वो प्रतीक्षा करती रही कि सुबोध कब चुप होगा। काफी देर तक रोने के बाद सुबोध चुप हो गया।
तुम्हें इतना मारूँगा मीता, तुमने मुझे डराया क्यों ?
डर के बाद तुम्हारी खुशी देखने के लिए। ये आँसू देखने के लिए।
तुम्हें बड़ा मजा आ रहा है मुझे रोता देखकर।
नहीं मुझे ये देखकर मजा आ रहा है कि तुम्हारे आँख और नाक दोनो बह रहे हैं और तुम्हें पोछने का होश नहीं है।
मार दूँगा तुमको बता रहा हूँ। सुबोध बोला
क्या सचमुच ?
नहीं।। बोलकर उसने उसे चूम लिया। उसने आगे कहा 23 वाँ रैंक है मतलब कोई अच्छा बड़ा पोस्ट तुमको निश्चित रूप से मिल जाएगा। डिप्टी कलेक्टर मिलने की तो कोई संभावना नहीं है।
परंतु उसके बाद का कोई भी पोस्ट मिल सकता है। कल तक तो शायद पद आबंटन की सूची आ जाएगी। अब तो तुम साहब हो जाओगी। हम लोगों को भूल तो नहीं जाओगी।
अब मैं तुमको मारूँगी बता रही हूँ। दिमाग खराब मत करो मेरा।
अच्छा नहीं करूँगा भाई। घर में माँ-पिताजी को बताई कि नहीं। सुबोध पूछा।
तुमको छोड़कर सबको पता है।
अच्छा और अपने घर में मतलब तुम्हारे मम्मी-पापा को बताया कि नहीं।
नहीं थोड़ा डर लग रहा है। कल आबंटन आ जाने दो फिर बताऊँगी।
इसी तरह तुम हमेशा टालते जाती हो मीता ? आखिर वो तुम्हारे माता-पिता हैं। चाहें जितना भी नाराजगी व्यक्त करें। तुमको तो हमेशा उनसे बात करने की कोशिश करनी चाहिए। जानबूझकर अब तक तुमने मुझे दोषी बना रखा है। उनको पक्का लगता होगा कि मैं तुमको उनसे बात करने के लिए मना करता होऊँगा। उनको यकीन दिलाओ कि ऐसा कुछ भी नहीं है। जितनी जिम्मेदारी तुम्हारी इस परिवार के लिए है उतनी ही जिम्मेदारी तुम्हारी अपने माता-पिता के लिए भी है।
शायद तुम ठीक कहते हो सुबोध मैं उनको फोन नहीं करूँगी। सीधे घर जाऊँगी। ज्यादा से ज्यादा क्या करेंगे। भगा देंगे ना, घर में घुसने नहीं देंगे ना ? फिर भी मैं वही घर के बाहर बैठी रहूँगी। देखती हूँ कब तक नहीं मानते हैं।
हाँ तुम अभी घर अंदर मत आना। तुम बस मुझे घर के बाहर तक छोड़ आना। अगर मेरे से नाराजगी दूर हो जाती है तब मैं तुम्हें ले चलूँगी।
ठीक है मीता जैसा तुम कहो।
दूसरे दिन जब पद आबंटन की सूची आई तो मीता को आयकर अधिकारी का पद मिला था। मीता तो खुशी से पागल हो गई थी। वो जल्द से जल्द अपने माता-पिता को इसके बारे में बताना चाहती थी। तीन सालों बाद अपने माता-पिता को सिर्फ देख लेने के नाम से ही वो रोमांचित थी हालांकि बीच-बीच में भाई से उसकी बात होते रहती थी। परंतु आज वो माँ के सीने से लगकर रोना चाहती थी।
दोनो जब नहा धोकर तैयार हो गए तो सुबोध ने उसे उसके घर के बाहर छोड़ दिया और बोला-
मीता कोई कितना भी नाराज हो तुम अपना धैर्य बनाए रखना। अगर वो तुम्हें घर से बाहर जाने को कहें तो भी वहीं बैठे रहना और जब घर आने का मन करे तो मुझे फोन कर देना।
मीता डरते घबराते हुए घर में घुसी। उसने देखा कि हॉल में कोई नहीं बैठा है लेकिन किचन से आवाज आ रही है तो उसे थोड़ा सा सुकुन हुआ कि शायद पापा बेडरूम में हो और वैसे भी वो पहले मम्मी से मिलना चाहती थी। वो धीरे से किचन की ओर बढ़ी और गेट से अंदर झांका तो मम्मी नौकरानी के साथ बातें कर रही थी।
मम्मी। उसने आवाज दिया।
मीता। श्यामा देवी एकदम से चौंक गई। उसने पलटकर देखा। वाकई मीता खड़ी थी। वो तेजी से नजदीक आई, तड़ाक से झापड़ लगाई और खींचकर उसको सीने से लगा ली। मीता भी अपनी माँ के सीने से लगकर टूट गई, वो भी फफक कर रो पड़ी। माँ मुझे माफ कर दो माँ, मुझे माफ कर दो माँ कहकर वो लगातार रोती रही।
बहुत देर तक वो अपने बेटी को सीने से लगाए रोती रही।
तुझे अब याद आई हमारी मीता।
नहीं, माँ ऐसी बात नहीं है।
फिर तूने इतने साल अपने माँ-बाप कि चिंता क्यों नहीं की ? क्या तुझे हम लोग याद नहीं आते थे ?
ऐसा मत बोलो माँ। मैंने हर दिन हर पल आप लोगों के प्यार के बगैर कैसे जिया है मैं ही जानती हूँ। मैंने बहुत कोशिश की माँ की आपसे बात कर सकूँ पर जब भी फोन करती थी। फोन पापा ही उठाते थे। मेरी उनसे आँख मिलाने की भी हिम्मत नहीं थी माँ। तुम ही बताओ मैं क्या करती ?
वो तेरे पापा हैं बेटा मार थोड़ी डालेंगे। तू उनसे घबराती क्यों है। ये जितना उनका घर है उतना ही तेरा भी घर है। घर से तुझे निकाल देंगे तो क्या तू वापस नही आयेगी।
वापस ही तो आई हूँ माँ। पहले क्या बोलकर आती तब तो मैं सब्जी बेचने वाले परिवार की बहू थी। मैं सुपरवाईजर की पत्नि हूँ बोलती तो और तकलीफ होता उनको। पर आज परिस्थितियाँ अलग है माँ।
आज नई क्या बात हो गई बेटा ?
आज मैंने उनके सपने को पूरा किया है माँ।
आज ही मैं आयकर अधिकारी बनी हूँ माँ।
क्या ?
हाँ माँ पापा का सपना था ना कि उनकी बेटी एक दिन लोक सेवा आयोग में चयनित होकर अधिकारी बने। इसीलिए उन्होंने मेरा एडमिशन भी तो बी.ए. में करवाया था।
हाँ तुम सही बोल रही हो। उनको तुमसे बहुत उम्मीदें थी बेटा। तुमने अपनी मर्जी से शादी करके उनका पहला सपना तोड़ दिया था। परंतु इस बात से कि तुमने जी जान लगाकर उनका सपना पूरा किया वो शायद पिघल जाए। बेटी जब माता-पिता के अरमान तोड़ती है तो कितनी तकलीफ होती है उसका तुम्हें अहसास नहीं है बेटा। जाओ अपने पापा से मिलो, वो डाँटे तो चुप रहो उनसे माफी माँगो।
नहीं माँ मेरी हिम्मत नहीं हो रही है। प्लीज आप बात करो ना, आप बोलोगी तब मैं करूँगी।
तभी हॉल से आवाज आई।
श्यामा, मेरी चाय ले आओ।
जी लाई। मीता तू चल ना। माँ बोली।
नहीं माँ पहले आप जाकर बात करो प्लीज।
श्यामा देवी चाय लेकर हॉल में चली गई और मीता वही किचन में रूक गई।
सुनिए जी, आपको एक बात बतानी थी।
हाँ बोलो।
आप नाराज तो नहीं होंगे ?
अब बोलो भी ?
आपकी बेटी के बारे में बात करनी है।
क्यों बात करनी है तुमको, जब उसको हमारे लिए कोई फर्क नहीं पड़ता।
फर्क पड़ता है जी उसको फर्क पड़ता है तभी तो उसने आपके सपने को पूरा किया है।
अच्छा। मेरा तो एक ही सपना था श्यामा कि मैं बड़े धूमधाम से उसकी शादी किसी अच्छे घर में करूँ। परंतु वो तो हमको धोखा देकर भाग गई। वो सपना तो उसने मेरा चकनाचूर कर दिया।
उसने आपका दूसरा सपना पूरा किया है जी।
मेरा कोई और सपना नहीं था श्यामा।
था। आप नहीं चाहते थे कि वो पढ़-लिखकर बड़ी अधिकारी बने।
हाँ चाहता था परंतु उसने तो अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली शादी करके। सब्जी बेचकर बनेगी वो अधिकारी ?
हाँ बन गई है जी। आज सुबह ही पी.एस.सी. का रिजल्ट आया है और आपकी बेटी आयकर अधिकारी बन गई है। चाहे तो आप पेपर उठाकर देख लिजिए। उसमें सबका नाम दिया है।
मिस्टर शर्मा ने पेपर उठाया और अपनी बेटी का नाम ढूंढने लगे।
मीता शर्मा - रैंक 23 - पद आबंटित - आयकर अधिकारी।
उनकी आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने कई बार पेपर पर मीता शर्मा नाम को अपनी ऊँगलियों से सहलाया। वो उसको बेहद प्यार करते थे।
अचानक उन्होंने पेपर को पटक दिया।
मैं देख रही हूँ आप रो रहे हैं। श्यामा देवी ने कहा।
क्या फर्क पड़ता है इससे। उसने हमारी कभी सुध ली, उसके माँ-बाप जिंदा है कि मर गए। उसने कभी तुमसे बात की या मुझसे बात की। इतनी बड़ी खबर है वो खुद बताने नहीं आ सकती थी।
बताने आई है जी।
क्या कहा तुमने ?
इधर आओ बेटा।
मत बुलाओ उसे, मुझे नहीं मिलना।
मीता आकर पापा के पैरों पर गिर गई और जोर-जोर से रोने लगी।
मुझे माफ कर दो पापा। प्लीज मुझे माफ कर दो।
श्यामा इससे कहो कि ये यहाँ से चली जाए।
उसके पापा की आँखो में आँसू थे।
ऐसा मत बोलिए पापा प्लीज। मुझे अपने सीने से लगा लिजिए।
श्यामा तुमने सुना नहीं इसको बोलो यहाँ से चली जाए। ऐसा कहकर वो उठकर बाहर निकल गए।
मीता वहीं बैठकर रोती रही।
इतने दिनों की नाराजगी इतनी आसनी से नहीं जाएगी मीता। तुम्हें उनको बार-बार मनाना पड़ेगा। वो तुमको बहुत चाहते हैं बेटा। तुम बस थोड़ा समय दो। वो मान जाऐंगे। तुम बस थोड़ा सा धैर्य रखो और चिंता मत करो। तुम उनको बताओ ना माँ कि मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूँ। मैं आप लोगो के बगैर नहीं रह सकती। क्या करूँ मैं बताओ जिससे उनका प्यार फिर से हांसिल कर सकूँ।
मैं बोल रही हूँ ना बेटा उनको थोड़ा टाईम दो वो मान जाऐंगे।
अब तुम जाओ नहीं तो घर में तनाव बना ही रहेगा। उनको थोड़ा शांत होने दो फिर आना। मैं उनको मनाने की कोशिश करती हूँ।
ठीक है माँ। कहकर उसने सुबोध को फोन कर दिया। थोड़ी देर में सुबोध आया और उसे ले गया।
दो तीन घंटे बाद जब मिस्टर शर्मा घर आए तो पूछा।
वो चली गई ?
वो रूकती तो आप उसे रूकने देते ?
तुम मुझसे बहस कर रही हो। मैं कौन होता हूँ उसे रोकने वाला। उसका मन करे तो रूके, मन करे तो जाए।
आप उसके पिता हैं आप रोकोगे तो क्यों नहीं रूकेगी।
इस रिश्ते की समझ है उसको ? मि. शर्मा बोले।
समझ नहीं होती तो क्या वो आपके सपनो को पूरा करने के लिए इतना मेहनत करती ?
आप समझते क्यों नही हो। वो मुझसे ज्यादा आपको प्यार करती है।
अब मुझे नहीं सुनना श्यामा। तुम बहस मत करो।
क्यों ना करूँ बहस। वो इस घर की बेटी है। मेरी बेटी है, वो आयेगी और जरूर आयेगी। देखती हूँ मैं आप कैसे रोकते हो।
मैं कहाँ रोक रहा हूँ। बस मैं उससे बात नहीं करूँगा।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें- भूपेंद्र कुलदीप।