Love is pain, sweet sweet cute cute books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार का दर्द है, मीठा मीठा प्यारा प्यारा

शादी के बाद प्रिया पहली बार मायके रुकने आई थी। एक महीने पहले ही उसकी शादी राज से हुई थी।


ससुराल में एक महीना सबको देखने समझने में ही बीत गया। एक महीना कल परसों के बराबर ही तो लग रहा था उसे। जब राज ने उसे बताया अगले हफ्ते तुम्हारे भैया तुम्हें लेने आ रही है सुनकर कितना खुश हुई थी वो।


लेकिन हमेशा चहकने कूदने वाली प्रिया जब से अपने मायके आई है, गुमसुम सी हो गई थी। घर में सब उससे कितनी ही बातें करना चाहता थे लेकिन वह सबका जवाब बस हां हूं में मुस्कुराते हुए देती और मौका पाते ही खुद को कमरे में बंद कर लेती ।


मां को उसे यूं देख फिक्र होने लगी थी। उन्होंने बातों बातों में कई बार पूछना भी चाहा " बेटा ससुराल में कोई तकलीफ तो नहीं है!"


"नहीं मां सब बहुत अच्छे हैं! मेरा बहुत ध्यान रखते हैं।"


" फिर बेटा तू अकेली गुमसुम सी क्यों रहती हो। हमेशा चहकने वाली मेरी लाडो, हंसना बोलना ही भूल गई।"


"कुछ नहीं मां! पहले शादी की भागदौड़ फिर उसके बाद एक महीने ससुराल में हर रोज कहीं ना कहीं खाने पर जाना पड़ रहा था। थकावट है और कुछ नहीं।" सुनकर मां को तसल्ली हुई।


प्रिया मां को भी क्या कहती कि उसे तो राज के प्यार का रोग लग गया है। जिसका मीठा दर्द उसे चैन नहीं लेने देता।"


आज भी याद है उसे जब पापा ने कहा था लड़के वाले देखने आ रहे हैं। तैयार रहना ‌। कितना नाराज हुई थी वो!


लेकिन उसकी किसी ने ना सुनी।


राज व उसके घर वालों को पहली ही नजर में वह पसंद आ गई थी। आती भी क्यों ना सुंदर, सुशील, पढ़ी लिखी हर काम में तो निपुण थी वह।


वैसे राज मे भी कोई कमी ना थी। वह भी पढ़ा लिखा व सरकारी नौकरी में था। हां देखने में भी आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था।


एक लड़की के माता-पिता को इससे ज्यादा और क्या चाहिए। सबकी हामी सुनकर उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा।


पापा ने बड़े प्यार से अपनी लाडली से पूछा "बेटा लडका तुझे पसंद है ना, बता रजामंदी दे दे हम भी!"


अपने माता-पिता के संस्कार व सबके चेहरे की खुशी देखकर प्रिया ने ना चाहते हुए भी सहमति में सिर हिला दिया।


उनके जाने के बाद उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आया था। क्यों उसने हां कर दी। वह जानती ही कितना है, उसके बारे में! कैसे पूरी जिंदगी में एक अनजान के साथ निभाएंगी!


अपनी मां से जब इस बारे में बात की तो वह हंसते हुए बोली


अरे पगली, इतनी छोटी सी बात को सोच कर उदास हो रही है। मैंने और तेरे पापा ने तो एक दूसरे को देखा भी नहीं था।। "


"अच्छा मम्मी ! लेकिन मैंने तो शुरू से ही देखा है ,आपकी और पापा की तो बहुत अच्छी बॉन्डिंग है। बिना कहे, कैसे कई बार आप पापा के दिल की बात समझ जाते हो!"


"

बेटा, शादी के पवित्र बंधन मे जब दो अनजान आत्माएं आपस में मिलती है तो वह अनजान अपना सा लगने लगता है। दोनों के सुख-दुख साझा हो जाते हैं । साथ रहते रहते आपसी समझ इतनी बढ़ जाती है कि बिना कहे ही एक दूसरे की आंखों से एक दूसरे के दिल का हाल जान लेते हैं।वह अनजान सब रिश्तो से बढ़कर हो जाता है। जरूरी नहीं कि प्यार कहकर ही जताया जाए। जीवनसाथी की आपके प्रतीक चिंता भी तो प्यार का एक रूप है। तू बेफिक्र रह। देखना राज एक बहुत ही अच्छा जीवनसाथी साबित होगा मेरी लाडो के लिए। और जिसे तू अनजान अनजान कह रही है। देखना उसके बिना फिर तू कहीं एक पल भी नहीं रह पाएगी। "


"ऐसा तो कभी नहीं होगा मम्मी ।आप से बढ़कर कोई हो ही नहीं सकता मेरे लिए।" अपनी मम्मी की गले में बांहें डालते हुए वह बोली।


और आज! वही तो हाल हो रहा है उसका।


1 दिन ही तो हुआ है उसे आए और राज से मिलने की इतनी बेचैनी!"


तभी फोन की घंटी बज उठी। उसने फोन उठाया देखा तो राज का ही फोन था। फोन उठाते ही वह एकदम से बोली "आज याद आई है आपको मेरी। लगता है भूल ही गई थे आप मुझे। जाओ मैं आपसे बात नहीं करती ।" कहकर वह अपनी बातों पर खुद ही शर्मा गई।


"

अच्छा जी, आपको मेरी इतनी याद आ रही थी और यहां यहां तो हम आपकी आवाज सुनने के लिए तरस रहे थे। मैंने तो बस इसलिए फोन नहीं किया कि शायद तुम इतने दिनों बाद मम्मी पापा से मिली हो तो उनसे ही बातों में बिजी होगी । हमें क्या पता था आप वहां पर हमारी यादों में खोई हो। चलो इतना तो पता चला कि आप भी हमें पसंद करती हो। वरना हम तो समझते थे कि हम आपके काबिल ही नहीं!"


" नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है वो वो....! अच्छा मम्मी आ गई फोन रखती हूं!" कह प्रिया ने फोन रख दिया।

"

कैसी बुद्धू हूं मैं! उनसे बात करने के लिए तड़प रही थी। अब जब फोन आया तो फोन ही काट दिया। क्यों मैं उनसे बात नहीं कर पाती।" प्रिया गुस्से में अपने आप से बड़बड़ाते हुए बोली।


याद है उसे शादी के बाद जब वह ससुराल गई थी। घर में रिश्तेदारों की भीड़ के बीच भी राज की शरारती आंखें उसका पीछा कर रही थी। जब भी नजरें आपस में टकराती कैसे वह शर्म से लाल हो जाती थी।


शादी के बाद जब हनीमून पर जाने की बात हुई तो कैसे सहम गई थी वह।
1 सप्ताह इनके साथ कैसे गुजारेगी। जानती ही कितना है एक दूसरे को अभी! क्या बातें करेंगे। मुझसे कुछ पूछा भी नहीं और खुद ही प्रोग्राम बना लिया।


लेकिन हनीमून का वह एक सप्ताह, उसके जीवन का सबसे यादगार हिस्सा बन गया।


यही आकर तो दोनों ने एक दूसरे को अच्छे से जाना था। दोनों की भावनाएं इन दिनों एक दूसरे से ऐसे जुड़ गई थी मानो जन्मों से दोनों का नाता रहा हो। राज का अपने लिए प्यार देखकर, उसे अपनी किस्मत पर नाज हो रहा था। सब कुछ स्वप्नलोक जैसा लग रहा था। उसकी राज के प्रति दीवानगी बढ़ती ही जा रही थी। आज उसे अपने माता-पिता के फैसले पर गर्व हो रहा था। शादी के दिन तो वह सिर्फ पवित्र बंधन में बंधी थी लेकिन अब वह उसके प्रेम
के बंधन में भी बंध गई थी और अब उसे पता चला प्यार का दर्द कितना मीठा व प्यारा होता है!
सरोज ✍️