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अ़क्षय आश्रम’ उपन्यास - अनंग पाल सिंह भदौरिया‘अनंग

उपन्यास ‘अ़क्षय आश्रम’ उपन्यास कवि कथाकार अनंग पाल सिंह भदौरिया‘अनंग’ की

कृति पर एक दृष्टि।

पुस्तक : अ़क्षय आश्रम’

लेखक : अनंग पाल सिंह भदौरिया‘अनंग’

पृष्ठ :132

मूल्य : 300/-

प्रकाशक : Nikhil Publisheres Agra

पुस्तक समीक्षा : रामगोपाल भावुक

वे एक सफल कवि हैं। उनकी अनेक काव्य कृतियाँ हमारे सामने है। जीवन ज्वाला, सूखी साँस, सफलता के सोपान, गीता सौरभ, श्री राम संक्षेपिका के अतिरिक्त अनंग कुण्डलिया के अनेक भाग पाठक के सामने हैं। इनके अलावा उनकी कलम गद्य विधा पर भी चली है। समाज के धुन,बुढ़ापा समस्या समाधान जैसे विषयों पर भी उनकी सफलता पूर्वक कलम चली है। यहाँ उनकी कलम बृद्धावस्था के समाधान खोजने के लिये अक्षय आश्रय उपन्यास पर है।

उपन्यास लेखन मेरी रुचि का विषय रहा है। इसमें दिनरात एक ही विषय पर केन्द्रित होकर चिन्तन को एक योगी की तरह स्थिर बनाये रखना पड़ता है। उस समय जिन पात्रों का सृजन होता है वे आपसे बोलने बतियाने लगते हैं। उनके सूक्ष्म से सूक्ष्म हाव- भाव उभरकर मानस आने लगते हैं। पात्रों के अन्दर झाँक कर देखने का आनन्द आने लगता है। उस समय उसे त्रिकालज्ञ की दृष्टि प्राप्त हो जाती है। उस समय लेखक और पात्र एक रूप हो जाते हैं ,द्वैत मिट जाता है। केवल मैं ही शेष रह जाता हूँ। उस स्थिति में जो लिखा जाता है वह समग्र होता है। ऐसी बातें दृष्टि में रखकर आप सब अपनी रचनाओं का पुर्नपाठ करें। आप समझ जायेंगे के आप इसमें कितने सफल हुए हैं।

लेखन के प्रारम्भ से ही मैंने अपनी रचनाओं में जातिबाद की शल्यक्रिया करने का प्रयास किया है। इसके लिये मैंने अपने परिवार के साथ जुड़े तिवारी शब्द को देशहित में शहीद कर दिया और उसके स्थान पर जातिवाद से प्रथक भावुक जोड़ लिया। मेरे काम पर डॉ भगवान स्वरूप चैतन्य एवं डॉ सुरेश सम्राट जैसे मनीषियों की दृष्टि रह़ी है, मैं उनका हृदय से आभार मानता हूँ।

कथा साहित्य पर अनंग जी की यह पहली कृति है। पहली पहली कृति में कुछ भूलें होना स्वाभाविक है। मेरी कलम उपन्यास-कहानी पर चलती रहती है। मेरी पहली- पहली कृति में इसी तरह की भूले हुईं थीं। धीरे-धीरे सभी के लेखन में निखार आता है। देखना आपकी आगे आने वाली कृतियों में निखार आता चला जायेगा। इस सबके बाबजूद विषय बस्तु को लेकर यह बहुत सार्थक कृति बन गई है।

यह जीवन से जुड़ी कहानी है। मरघट के प्रसंग सें इसका प्रारम्भ किया गया है। इसलिये पाठक इससे प्रारम्भ से ही जुड़ जाता है। वे बृद्धजनों की पीड़ा से अधिक पीड़ित दिखाई देते हैं। उनमें किसी की पीड़ा को आत्मसात करने की क्षमता भी है। इसी लिये ऐसे विषय पर वे कलम चलाने में सफल रहे हैं। यह आदर्शवादी लेखन होते हुये भी जीवन से जुड़ा विषय है इसीलिये पाठक इससे बंधा रहता है।

अध्याय तीन में पृष्ठ 21 पर जो बोंर्ड लगा है उस पर सात बिन्दु अंकित है। यह सपाट बयानी खलती है। इसे और किसी तरह कह दिया जाता जिससे यह रोचक हो जाता तो पाठक इसे छोड़कर नहीं पढ़ता।

इसी तरह की बात पृष्ठ 40 पर वैक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक एव धार्मिक जो उपदेश दिये हैं ये बृद्ध जीवन के कथानक में गिनाया जाते तो पाठक की स्मृति में सहज ही बने रहते।

वाक्य रचना नई तकनीकी से देते तो कुछ पृष्ठ और बढ़ जाते और वे पाठक पर अधिक प्रभाव डालते।

पृष्ठ 45 पर बृद्धजनों की समस्यायें गिनाने लगते हैं। इस बात को कथात्मक ढ़ंग से देते तो बात अघिक प्रभावी होती। ऐसे प्रसंगों को छोड़कर पाठक कथा की तलाश में आगे बढ़ जाता है।

कैसे क्या करें? पुनः उपदेश दिया है। इस तरह उपन्यास का प्रारम्भिक हिस्सा बोझिल सा हो जाता है किन्तु इससे आगे का हिस्सा सहज सा होता चला जाता है। उसमें कथा की बुनावट पाठक को बांधे रहने में सफल रहती है।

उपन्यास उदेश्यपूर्ण अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है। इसमें कसाब आता चला जाता है। जिस उदेश्य से यह लिखा गया है उस मन्जिल को छू लेता है।

उपन्यास में अनेक स्थान पर काव्य पक्तियाँ दी है। आपकी कविता के प्रति रुचि देखकर पढ़ते समय लगता रहा, इस कथानक को कवि ने इसे महाकाव्य का रूप दिया होता तो यह अधिक श्रेष्ठ होता।

कलमकार को उनके इस प्रयास के लिये बहुत- बहुत बधाई। लेखन की सतत साधना के लिये मंगलकामना।

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सम्पर्क- कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

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