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कालिदास के काव्य में सौन्दर्य विधान

कालिदास के काव्य में सौन्दर्य विधान एक शौधपूर्ण कार्य

रामगोपाल भावुक

डॉ0 ललित किशोरी शर्मा द्वारा रचित एवं डॉ0 अनिल प्रकाश शर्मा द्वारा सम्पादित कृति विमोचन के अवसर से ही हाथों में रही।

सौन्दर्य को परिभाषित करना बहुत ही कठिन कार्य है। इसमें प्रत्येक की अलग-अलग दृष्टि होती है। सम्भव है जिसे आप सुन्दर मानते है दूसरा उसको नकार दे।

आदिकाल से ही मानव मन को सुन्दरता की तलाश रही है। कभी प्रकृति में सुन्दरता की खोज करता रहा तो कभी नारी सौन्दर्य में। सौन्दर्य की कल्पना मानव के जन्म से ही शुरू होगई थी। वेदों की ऋचाओं में नारी सौन्दर्य की ऋचायें हमें भाव विभोर बना देतीं हैं।

नारी सौन्दर्य आदमी के अपने मन की अनभूति है। कभी-कभी अति सुन्दर परिधि में डूबी नारी भी मन को झंकृत नहीं कर पाती। जब मैं पत्नी के मुँह से किसी स्त्री की सुन्दरता की प्रसंसा सुनता हूँ तो भी वह मेरे मन को उतना आकर्षित नहीं कर पाती। यदि किसी नारी की सुन्दरता मन को अच्छी लगी और पत्नी से उसकी सुन्दरता की चर्चा करदी किन्तु उन्होंने उसकी सुन्दरता को नकार दिया। उसका चेहरा गोल अधिक है, थोड़ा लम्बा होता। या ऐसी ही अन्य कोई बात उसमें जोड़ दी तो मैं सोचने लगता हूँ, मैंने इसे इस दृष्टि से क्यांे नहीं देखा।

जब-जब मैं किसी नाटक में अभिनय करती बालिकाओं की सुन्दरता को देखता हूँ तो उसकी तुलना कालिदास की शकुन्तला तथा मालविका अथवा भवभूति की मालती से करने लगता हूँ, तो उन स्वरूपों में कवियो द्वारा विर्णित छवियों का आनन्द लेने लगता हूँ। महाकवि कालिदास एवं भवभूति ने जब इन्हें नायिका बनाया होगा और अपने साहित्य में इन्हें स्थान दिया होगा निश्चय ही वह समय और संयोग की बात रही होगी जो इन नायिकाओं की सुन्दरता की चर्चा आज भी जीवन्त होकर शोध का विषय है।

डॉ0 ललित किशोरी शर्मा जी की इस दिव्य दृष्टि को प्रणाम करता हूँ कि उन्होंने इस विषय पर अपनी कलम चलाने का साहस किया है। वे भी मानतीं हैं कि सौन्दर्य शब्द का प्रयोग जितना सामान्य एवं व्यापक है, उसका अर्थ उतना ही दुर्बोध एवं विवादास्पद है। साधारणतयः जिस वस्तु से मानव मन में कई सुखद अनुभूतियों का बोध होता है वह उसको सुन्दर मानता है।

ऐसे विवादास्पद विषय का विशलेषण करने के लिये लेखिका इसे सात सौपानों में विभक्त करतीं हैं।

प्रथम सोपान में-सौन्दर्य के लक्षण क्या हैं? इस पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण से नारी के शारीरिक सौन्दर्य के मापदण्ड की चर्चा की है। कुछ मानते हैं कि सौन्दर्य वस्तु में हैं दृष्टा के मन में नहीं। अतः जो वस्तु सुन्दर है वह सर्वत्र सुन्दर है। कालिदास ने भी स्वीकार किया है सौन्दर्य सर्वदा मानव.मन में होता है। उसे किसी प्रसाधन की आवश्यकता नहीं होती। इसीलिये उन्हें रुक्ष वल्कल में सिमटी कोमलांगी अच्छी लगती है। सौन्दर्य शास्त्र के आचार्यौं की सौन्दर्य के सम्बन्ध में परिभाषायें वस्तुपरक सुन्दरता की पोषक लगीं। किन्तु कुछ इस पक्ष में नहीं दिखे। इस तरह दृष्टि भिन्नता होने पर भी सुन्दरता का भाव परिलक्षित होता है।

लेखिका ने शारीरिक सौन्दर्य के मापदण्ड जो नाटयशास्त्र व अन्य ग्रंथों के आधार पर निर्धारित किये हैं जो सच्चे प्रेम की वास्तविक रसानुभूति कराने हेतु वियोग की अग्नि में तपाकर उन्हें यह पाठ पढ़ाना ही कवि का ध्येय है कि एकान्त मिलन भली-भाँति नहीं पहचाना। उसके प्रेम का अन्त बैर में ही होता है।(अभि0शा05.27) जैसी सूक्ष्म बातों को कृति में स्थान देकर युवाओं को कालिदास की ओर से दिशाबोध करने का प्रयास किया है।

सौन्दर्य के उपादान में दो प्रकार का सौन्दर्य रखा है। (अ) विषयगत सौन्दर्य (आ) विषयीगत सौन्दर्य।

वास्वविक सौन्दर्य तो प्रतिक्षण नया ही लगता है। इसमें नित्य नवीन तथा विषयगत स्वीकार करते है। किन्तु विषयीगत सौन्दर्य विपुल विचार विमर्श के पश्चात भी सौन्दर्य लक्षण के वारे में एक निर्णय पर नहीं पहुँच सके है। कुछ विद्वानों की दृष्टि में सौन्दर्य विषयगत न होकर विषयीगत है। उसका लक्षण निश्चित करना असम्भव है। सृष्टि के प्रत्येक प्राणी की रुचि के अनुसार सौन्दर्य का एक दृष्टिकोण भिन्न प्रकार का हो सकता है।

लेखिका ने सौन्दर्य की इन बातों की परख करते हुये कालिदास के सौन्दर्य सम्बन्धी तत्व भी परखे है। विशेष बात यह है कि कालिदास का साहित्य सौन्दर्य कभी पुरातन नहीं बन सका। इसमें मानव मनोभावों का जिस सूक्ष्मता और मार्मिकता से वर्णन हुआ है और प्रकृति के साथ जो तादात्म किया है वह अन्य किसी के काव्य में दुर्लभ है।

कालिदास के काव्य में अलंकार सौन्दर्य के साथ प्रकृति वर्णन में भी सौन्दर्य की छटा के दर्शन किये जा सकते है। प्रकुति का मानवीकरण कर मानवीय भावनाओं को प्रधानता दी है। प्रकृति में जो तत्व हैं वही मानव में भी हैं।

डॉ0 ललित किशोरी शर्मा जी ने कालिदास के काव्य में मानवीय सौन्दर्य का भी निरूपण किया है। नारी के कोमल रूप का सौन्दर्य मन को आकर्षित करता है तो पुरुष का कठोर रूप भी सौन्दर्य के भाव को प्रदर्शित करने वाला होता है।

लेखिका स्वीकार करती है- उत्तम गुणों से मानव के सौन्दर्य में निखार आता है। कृति में ऐसे सूक्ष्म तत्वों का भी निरूपण किया है।

अन्तिम सौपान में आन्तरिक सौन्दर्य के साथ वाह्य सौन्दर्य की भी चर्चा की है। इसमें प्रसाधन भी सौन्दर्य की वृद्धि में सहायक होते हैं। जैसे आभूषण, अगंवस्त्र आदि।

इस प्रकार समग्र कृति के अध्ययन के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं जो लेखिका स्वयम् स्वीकार करती हैं कि कालिदास के काव्य में सौन्दर्य विधान एक शोधपूर्ण कार्य है। नारी सौन्दर्य का वर्णन उन्होंने जिस प्रकार प्रकृति रूप में किया है वह आश्चर्य चकित ही नहीं वल्कि हृदयों में उत्तंग हिलोरें भर देता है। महाकवि कालिदास के सौन्दर्यवोध का प्रस्तुतिकरण बहुत ही मन मोहक एवं सरल भाषा में किया गया है जिससे पाठक आदि से अन्त तक बँधा रहता है।

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पुस्तक : कालिदास के काव्य में सौन्दर्य विधान

लेखक : डॉ0 ललित किशोरी शर्मा

सम्पादित कृति : डॉ0 अनिल प्रकाश शर्मा

पृष्ठ : 240

मूल्य : 750 /-

प्रकाशक : साक्षी प्रकाशन Delhi

पुस्तक समीक्षा : रामगोपाल भावुक

पता- कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0 -09425715707

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