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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 12

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 12

लेखक - जितेन्द्र शिवहरे

उधर अपने पिता को मौत के घाट उतारकर रूद्रांश ने अपना प्रतिषोध तो पूरा कर लिया पर पिता की बातों ने उसे बेचैन कर दिया और तभी उसे अपने शरीर की याद आयी। वह हवा से भी तेज गति से तांत्रिक की गुफा की ओर उड़ चला।

जब उसके पिता ने उसे नहीं मरवाया तब उसे और मोहिनी को जान से मारने की कोशिश करने वाले कौन लोग थे, जो पिताजी का नाम ले रहे थे? रुद्रांश को किसी बहुत बड़े षडयंत्र की बू आ रही थी। तब ही वह तांत्रिक की गुफा के मुहाने पर पहूंच गया। वह जल्दी से जल्दी गुफा के अंदर प्रेवश करना चाहता था ताकी वह अपने शरीर को सही सलामत देख सके।

गुफा के अंदर जाकर वहां का दृश्य देखकर उसके होश उड़ गये। तांत्रिक शैतान की मुर्ति के सामने बैठा हुआ नीचे पृथ्वी पर लेटी एक लाश की चमडी उतार रहा था। पास ही एक बड़ा कटोरा रखा था जिसमें खून भरा था। जिस शव के शरीर से वह तांत्रिक चमडी उतार रहा था, उस शव का चेहरा देखकर रूद्रांश की आत्मा सिहर उठी। यह रूद्रांश का शरीर ही था। वो घबरा गया और दौड़ते-भागते हुये तांत्रिक के पास पहूंचा।

"बाबा! बाबा! बाबा! ये आप क्या कर रहे है? मेरे ही शरीर से मेरी चमडी उतार रहे है। अब मैं पुनर्जीवित कैसे हो सकूंगा।?" रूद्रांश की आत्मा तांत्रिक से बोली।

अचानक रूद्रांश के यूं सामने आ जाने से तांत्रिक भी घबरा गया। लेकिन स्वयं को संभालते हुये उसने स्थिति को भी संभालने की कोशिश की।

"रूद्रांश! घबराओ नहीं। तुम्हारा सिर्फ शरीर खत्म हुआ है। आत्मा नहीं। आत्मा अमर है और वह भी शक्तिशाली आत्मा।" तांत्रिक एक भारी स्वर मे बोला ।

"लेकिन बाबा! ये सरासर धोखा है। आपने कहा था सात दिनों के बाद आप मेरा शरीर मुझे लौटा दोगे।" रूद्रांश बिगड़ते हुये बोला।

"हम तांत्रिक है। शैतान के पुजारी। हमारी रग-रग में छल और कपट भरा है। अच्छा होगा की तुम अब अपने शरीर को भुल जाओ।" तांत्रिक ने रूद्रांश से कहा।

"धोखेबाज! मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा। रूक जा! तुझे अभी सबक सिखाता हूं।" यह कहते हुये रूद्रांश तांत्रिक पर प्रहार करने दौड़ा।

इससे पहले की रूद्रांश तांत्रिक को कुछ हानि पहूंचा पाता, तांत्रिक ने अपने एक हाथ को हवा में घुमा दिया। उनके हाथ से निकलती ज्लाला ने रूद्रांश को जला दिया और वह दूर जा गिरा।

"बेवकुफ न बन बच्चे, तेरे पास जो शक्तियां है वह मैंने ही तुझे दी है। इनका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।" तांत्रिक गुस्से मे बोला।

रूद्रांश की आत्मा को भयानक जलन मह्सूस हो रही थी। उसे यकिन हो गया था की वह तांत्रिक का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अब वह तांत्रिक का गुलाम है। सो जैसा वह कहेगा रूद्रांश को वैसा ही करना होगा। तांत्रिक ने उसे समझाया की जो काम वह इंसानी शरीर से नहीं कर सकता था, वे सारे काम वह आत्मा बनकर बड़ी आसानी से कर सकता है और वैसे भी जिन इंसानों ने उसे और मोहिनी को जान से मारकर एक-दुसरे से जुदा किया था वो अब भी जिंदा है। तुम्हे उनसे मोहिनी की जान का बदला हर हाल में लेना होगा।

ये सब सोचकर रुद्रांश चुप हो गया और दुखी मन से धरती पर अधछिले हुये अपने शरीर को देखने लगा।

उसके अन्दर फिर प्रतिषोध की ज्वाला भड़क उठी।

तांत्रिक सब कुछ जानता था लेकिन वो सिर्फ रुद्रांश का फायदा उठाना चाहता था इसीलिये उसने उसे कुछ नही बताया और कहा “ अब तुम जहां चाहो वहां जा सकते हो पर ध्यान रखो तुम्हे मेरी बहुत जरूरत पडेगी इसलिये तुम लौट कर यहीं आना, अभी तो तुम्हे शैतान का असली काम करना है।”

रुद्रांश तांत्रिक की बातों को नजर अन्दाज करते हुये वहां से चला आया और आकर उसी नदी किनारे बैठ गया, जहां अखिरी बार वो और मोहिनी मिले थे।

रुद्रांश की आत्मा वहीं एक चांदनी के पेड़ के नीचे बैठ कर अपने अतीत मे खो गई, कुछ देर बाद उसके कानों मे आवाज पडी।

“ सरदार ये देखो .....ये क्या है”? कबीले के एक आदमी ने बहादुर से कहा। बहादुर ने नदी किनारे रेतीली मिट्टी मे देखा तो कोई चीज चमक रही थी, उसने उसे निकाला तो एक सोने का कडा मिला, जिसे देखते ही वो बोला “ ये तो उसी हरामजादे रुद्रांश का है, जिसकी वजह से मेरी बेटी..... ।”

बहादुर के इतना कहते ही उस आदमी ने कहा “ अरे सरदार आपके इशारे पर हमने उस नामुराद को भगवान के पास भेज तो दिया है, और तो और सुना है कल वो दुष्ट जमींदार अपनी बैठक हवेली मे मरा मिला वो भी अजीब हालत में, आपका तो सारा काम आराम से हो गया, बाप बेटे दोनों हमारे रास्ते से हट गये और उस बेचारे रुद्रांश की आत्मा यही सोच रही होगी कि उसे उसके बाप ने मरवाया है...हा...हा...हा...हा...हा....अब तो आपको गुस्सा थूक ही देना चाहिये क्यूं क़ि अब ये हवेली दौलत, जमीन सब आपकी ...हा...हा...हा...हा.... ।”

रूद्रांश की आत्मा ने जब ये बात सुनी तो उसको विश्वास ही नही हो रहा था कि ये दुनिया इतनी कुटिल और निर्दय है, अब उसको एक नया लक्ष्य मिल गया था।

“ नही .....अभी भी एक आखिरी काम बाकी है मेरा.....” ये कहकर बहादुर अपने आदमी के साथ वहां से चला गया।

नई जगह पर कबीले में कुछ झोपड़ीयां बनी हुयी थी। सायंकाल का समय हो चला था। कबीले के बीचों बीच आग सुलग रही थी जिसका प्रकाश समूचे टेंट नुमा झोपड़ीयों को प्रकाश उपलब्ध करा रहा था। ये आग जंगली जानवरों को कबीले के पास आने रोकने का काम भी करती थी।

मोहिनी रात का खाना बना रही थी। सुमित्रा और बहादुर एक-दुसरे से बात करने में व्यस्त थे।

"भाभी! क्या ये सच है की मोहिनी रूद्रांश के बच्चें की मां बनने वाली है?"

"देवर जी! वो...वो....आपको कैसे.... पता चला?" सुमित्रा ने पुछा।

"मैंने तुम्हारी और मोहिनी की कल रात की सभी बातें सुन ली थी।" बहादुर ने बताया।

"हां देवर जी! ये सच है। मोहिनी गर्भ से है।" सुमित्रा ने बताया।

"ओहहह! ये नहीं होना चाहिए था। ये कैसे हो गया? क्यों हो गया?" बहादुर अफसोस प्रकट कर रहा था।

"देवर जी! इतने व्याकुल क्यों हो?" सुमित्रा ने पुछा।

"उस हवशी रूद्रांश को मैंने अपने आदमियों से मरवा दिया, अच्छा होता अगर ये मोहिनी भी मर जाती।" बहादुर गुस्से में बोला।

"क्या! रूद्रांश और मोहिनी को मरवाने की कोशिश आपकी थी लोग तो जमींदार को......।" सुमित्रा हैरान होकर बोली।

"हां! लेकिन वह सांप तो मर गया लेकिन उसका सपोला मोहिनी के गर्भ में पल रहा है। उसे भी मारना आवश्यक है।" बहादुर गुस्से में बोला।

"तब क्या तुम मोहिनी का गर्भ गिराना चाहते है?" सुमित्रा ने कहा।

"हां! और ये काम तुम्हें ही करना होगा। यह लो... ये औषधी मोहिनी के खाने में मिला देना। कल शाम तक सब ठीक हो जायेगा?" बहादुर ने कहा।

"लेकिन देवर जी!" सुमित्रा ने संकोच किया।

"अगर-मगर कुछ नहीं। जैसा कहता हूं वैसा करो, अगर मोहिनी मर भी गई तो मुझे कोई खेद नही होगा.... समझी।" ऐसा कहता हुआ बहादुर बाहर निकल गया।

मोहिनी ये सारी बातें सुन रही थी जिसे सुनकर उसके पैरों तले जमींन खिसक गई।

'कोई पिता इतना निर्दयी कैसे हो सकता है जो अपनी बेटी को ही मार दे। और अब ये पापी मेरे अजन्मे बच्चे को भी मारना चाहता है। नहीं! मैं ये नहीं होने दुंगी। जिसने मेरे रूद्रांश को मुझसे दूर किया है मैं उसे इसका दण्ड अवश्य दूंगी। लेकिन सबसे पहले मुझे अपने होने वाले बच्चें को बचाना है। रूद्रांश की एक यही आखिरी तो निशानी है मेरे पास।'

मोहिनी ने निश्चय किया की वह घर से भागकर कहीं दूर चली जायेगी। जिससे की उसके बच्चे को कोई हानि ना पहंचा सके। उसी रात उसने अपना कुछ जरूरी सामान बांधा और आधी रात में कबीले से चुपचाप किसी को बिना बताये ही वह जंगल की ओर चल पड़ी। चलते-चलते वह वन में बहुत अंदर तक जा पहूंची थी तब ही उसके कान में नदी के बहते हुये पानी का कलरव सुनाई दिया। अंधेरी रात में नदी पार करना खतरनाक था। अतः उसने रात वहीं नदी किनारे बिताने का निश्चय किया।

सुबह होते ही वह नदी और पर्वत पार कर अपने पिता की पहूंच से बहुत दूर चली जायेगी। जिससे की उसे और उसके बच्चे की जान को कोई खतरा नहीं रहे।

इधर जब सुमित्रा ने देखा की मोहिनी घर के अंदर नहीं है तब उसने इस बात की सूचना तुरंत बहादुर को दी। उसने बहादुर को बताया भोजन की थाली वैसे ही रखी है। मोहिनी ने भोजन खाया ही नही। बहादुर को अनुमान लगाते देर न लगी कि हो न हो मोहिनी को खाने में जहर मिलाने वाली बात का पता चल गया था। इसीलिए वह घर से भाग गयी है।

"जायेगी कहाँ? उसे तो मैं ढुंढ़ ही लुंगा। आज अगर मुझे मोहिनी को भी जान से मारना पड़ा तो मैं अपने इरादों से पीछे नहीं हटूंगा।" बहादुर ने कहा।

हाथों में भाला उठाकर वह कबीले के बीचों बीच आ गया। उसने अपने साथियों को जगाया।

"कबीलें वालों! सब लोग यहां आओ।" बहादुर ने दहाड़ मारते हुये कहा।

"क्या बात है सरदार! इतनी रात में हमें क्यों जगाया?" उसके एक आदमी रतन ने पूछा।

चार-पांच पुरूष और महिलाएं भी वहां आ पहूंची।

"कबीले वालो! मोहिनी अपने कक्ष में नहीं है। मुझे लगता है उसका किसी ने अपहरण कर लिया है। हमें तुरंत उसे ढूंढ़ने जाना होगा।" बहादुर दहाड़ा।

"ठीक है सरदार! हम जंगल का चप्पा-चप्पा छान मारेंगे और मोहिनी को हर हाल में ढूंढ़ निकालेंगे।" रतन ने जोश में कहा।

"और जिस किसी भी ने मोहिनी का अपहरण किया है उसे परलोक पहूंचाकर ही दम लेंगे।" धीरू बीच में बोल उठा।

"हां हां हां हम मोहिनी के अपरहणकर्ता को जान से मार देंगे।" शेष कबीले वाले एक साथ बोले। उन सभी के हाथों में जलती हुयी मशालें लहरा रही थीं।

"सभी को हमारे साथ आने की जरूरत नहीं है। आधे लोग यहां रूककर औरतों और बच्चों की सुरक्षा करेंगे। आधे लोग मेरे साथ चलेंगे।" बहादुर बोला।

"ठीक है सरदार जैसा आप कहोगे हम वैसा ही करेंगे।" रतन बोला।

"ठीक है। मेरे साथ चलने वाले सब लोग अपने-अपने हथियार संभाल लो। रतन और धीरू तुम अपने साथ कुछ मशालें और हथियार रख लो।"

बहादुर बोला।

"ठीक सरदार।" रतन और धीरू एक स्वर में बोले।

वे दोनों सरदार बहादुर के कहे अनुसार सामान जुटाने में लग गये।

"देवर जी! मोहिनी तुम्हारी बेटी है और उसके गर्भ में एक नन्हीं सी जान पल रही है। उसे न मारना।" सुमित्रा ने बहादुर के पास आकर कहा।

"भाभी! मर्दों के कामकाज में औरतों को दखल देने की मनाही है। मोहिनी ने जो किया है उसका दण्ड तो उसे मिलकर रहेगा। अच्छा होगा तुम उसकी मां बनने की कोशिश न करो तो.... हूंअं!" कहता हुआ बहादुर अपने साथियों को लेकर जंगल की ओर कूच कर गया।

जलती मशालें रास्ता दिखा रही थी जिसके प्रकाश में बहादुर, रतन, धीरू, भीमा और रामपाल घने जंगल को चीरते हुये आगे बढ़े चले रहे थे। जगंल झींगूर की आवाजों से गुंजायमान था। जंगली जानवर भी शिकार को निकले थे। किन्तु जलती मशाल की आग को देखकर वे कबीले के लोगों से दुर हो गये।

जंगल के बहुत अंदर आ जाने के बाद भी मोहिनी का कोई सुराग हाथ नहीं लगा था। बहादुर ने सभी से कहा-

"देखो! हमने पूरा जंगल छान मारा लेकिन मोहिनी कहीं नही मिली पर रात के इस अंधेरे मे वो अभी ज्यादा दूर नही जा सकती, हो ना हो वो उस मनहूस रुद्रांश की हवेली में गई होगी, हो सकता है वहां कोई उसे बहला फुसला कर ले गया हो, इसलिये सब लोग वहीं चलो आज हम उस पापी जमींदार की दोनो हवेली जला कर खाक कर देंगे जैसे उसने हमारे घर जलाये और उसकी सारी जायदाद लूट लेंगे......चलो ..... ।”

"सही कहा सरदार! हम ऐसा ही करते है।" रतन बोला।

"जय भवानी!" शेष सभी ने एक साथ उच्चारित किया।

बहादुर और उसके आदमी सुजान सिंह की हवेली पहुंच कर लूट पाट करने लगे जहां मौजूद रामदास ने उनसे बहुत विनती की कि वो ऐसा ना करें पर उन लोगों के सिर पर खून सवार था और उन्होने रामदास की बग्घी मे आग लगा दी, घोडा चिल्लाता हुआ ना जाने कहां भाग गया और उसके पीछे रामदास अपनी जान बचाकर भाग गया।

“ सरदार यहां भी मोहिनी कहीं नही है, और हवेली का सारा माल हमने अपने कब्जे मे कर लिया है।” भीमा ने बहादुर को बताया।

बहादुर मुस्कुराते हुये बोला “ आग लगा दो हवेली में।”

“ पर ...सरदार” भीमा ने डरते हुये कहा।

“ जो कहा है वो करो समझे” बहादुर चिल्लाते हुये बोला और देखते ही देखते हवेली राख का ढेर बन गई।

“ साथियों अब बस एक जगह बची है जहां मोहिनी को जरूर होना चाहिये और वो है जमींदार की बैठक हवेली.... आओ और आज उस अय्याशी की जगह को भी राख कर डालो.....चलो साथियों।”

ये कहकर सारे बैठक हवेली की ओर चल दिये जो जंगल के बीचो बीच थी, और वहीं रुद्रांश की आत्मा बहादुर से प्रतिशोध लेने की आग मे जल रही थी।

सारे आदमी बैठक हवेली मे घुस गये और मोहिनी को ढूंढ़ने लगे, शोर सुनकर रुद्रांश की आत्मा ने बहादुर को देखा तो मन ही मन मुस्कुराया।

कुछ देर बाद रतन बोला “ सरदार पूरी बैठक हवेली छान मारी पर मोहिनी यहां भी नही है, और तो और हमारे आदमी भी कहीं दिखाई नही दे रहे।”

“ क्या बकवास कर रहे हो? जाओ देखो सीढियों से नीचे जाकर देखो, यहीं होंगें और कहां जायेंगे” ।

ये कहकर बहादुर जमीदार के गुप्त कक्ष मे घुस गया और उस राजसी बिस्तर पे लेट कर कामुक बातें सोचने लगा, वो मन ही मन सोच रहा था कि अब वो भी जमींदार की तरह इस हवेली को अपना अय्याशी का अड्डा बनायेगा, इसे आग नही लगायेगा, यही सब सोचते सोचते उसने ऊपर देखा तो तो चिल्ला पडा और एक सडी बदबूदार लाश उसके ऊपर से आ गिरी। वो हड़बडा कर उठा और दरवाजे की ओर भागा पर दरवाजा अपने आप बन्द हो गया।

तभी एक भयानक आवाज उसके कानों में पडी “ बहादुर.....कहां जायेगा भागकर.....अभी तो तुझे बहुत कुछ देखना है .....हा....हा....हा....हा.... ।”

ये सुनकर बहादुर पीछे मुडा तो वो सडी बदबूदार लाश जोर जोर से हंस रही थी, जब बहादुर ने गौर किया तो पाया कि वो लाश जमींदार सुजान सिंह की थी। वो बहुत डर गया और अपने कुल देवता को याद करने लगा। उसके पसीने छूट गये थे।

वह धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहता था लेकिन उसके पैर उसकी बात नहीं मान रहे थे। बहादुर वहीं जड़ हो चुका था, वह जी-जान से कोशिशें कर रहा था अपने दोनों पैर जमींन से उठाने की मगर वह हिल भी नहीं पा रहा था तभी उस लाश को चीरता हुआ एक तेज प्रकाश निकला जिससे बहादुर की आंखें बन्द हो गयीं और जब बहादुर ने कुछ देर बाद अपनी आखें खोलीं तो वहां कोई शख्स खड़ा था, बहादुर उसे पहचाने की कोशिश करने लगा।

"अरे! ये... तो... ये.... ये..!" बहादुर बोलते-बोलते अटक गया।

"हां! तुने सही समझा! मैं रूद्रांश ही हूं, जिसे तुने मार दिया था।" रूद्रांश गुस्से में बहुत भारी आवाज में बोला।

"मुझे माफ कर दो रूद्रांश। मेरी भुल हो गयी जो मैंने तुम्हारे और मोहिनी के पवित्र प्रेम को नहीं समझा। मुझे प्रायश्चित करने का मौका दो।" बहादुर याचना कर बोला।

"अब तुझे प्रायश्चित करने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकी तेरी मौत ही मेरे बदले का सही प्रायश्चित होगी।" रूद्रांश ने कहा।

"नहीं! नहीं! मुझे छोड़ दो। हे कुलदेवता मेरी रक्षा करो। कोई तो मुझे बचाओ।" बहादुर रोने-चीखने लगा और अपने आदमियों को पुकारने लगा।

“ आज कोई तेरी आवाज नहीं सुनेगा ......हा...हा...हा....हा.....तूने मुझे और मोहिनी को ही नही हमारे विश्वास को भी मार डाला, इंसानियत और खून के रिश्तों की भी बली चढा दी।”

ये सुनकर बहादुर हांथ जोड़कर गिड़गिडाते हुये बोला “ नही....नही बेटा....तु...तुम जैसा सोच रहे हो वैसा नही है....मो..... ।”

बहादुर आगे कुछ और कहता इससे पहले ही रुद्रांश की आत्मा ने चिल्लाते हुये बहादुर के सीने मे हांथ डाल दिया और बहादुर का धड़कता हुया कलेजा निकाल लिया, जिसे देखकर रुद्रांश को एक नया सुख मिल रहा था, वो जोर जोर से हंस रहा था और बहादुर का कलेजा खा रहा था, उसे अपने अन्दर एक शैतानी शक्ति की अनुभूति हो रही थी, बहादुर जमीन पर मरा हुया पडा था और उसके सारे आदमियों को रुद्रांश ने सीढिओं के पास वाले कमरे मे मरने के लिये बन्द कर दिया था।

रात का सन्नाटा और गहरा हो रहा था और रुद्रांश की आत्मा अब धीरे धीरे शैतान बनती जा रही थी।