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चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर - 14

चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 14

Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 14

राज महल मे हम लोग बारह निकले तो नीचे जहॉंगीर महल में घुस गये। यह महल बराबर लंबाई चौड़ाई में है। इसकी दो मंजिलें दिख रही थी,महल के चारो कोनों में कमरे है और बीच में आंगन के बीचोबीच एक हवादार कमरा भी है। जिसके उपर शानदार गुंबद हे। चार कोने पर बने कमरों के उपर भी गुम्बदें बनी है। सभी गुंबदे एक ही आकार की थी। महल के पीछे के कमरों मे से एक में पानी की नाली बनी हुई थी। गाइड ने बताया कि यह रानियों के नहाने का कमरा है । ठीक इसी से लगी थी पतली पत्थर की जाली, जहॉं से ठडी हवा आ रही थी। बच्चें यहॉं थक गये और बैठने लगे, तो उन्हें बातों मे लगाये हुए मै बाहर आ गया ।

हम अब महल से बाहर निकल रहे थे, गोरे बदन और कत्थई भूरे बालो वाले बीस-पच्चीस विदेशी पर्यटक स्त्री पुरूश उसी समय जहॉगीर महल मे प्रवेश कर रहे थे। बच्चों ने कैमरा सभ्ंलने बनियान और निकर पहने हुए उन पर्यटको को देख तो मुझसे उनके बारे में पूछने लगे। मैंने बताया कि हमारे देश में लोग तो अपने ही देश में घूमने नही निकलते , पंरतु ब्रिटेन,जमर्नी ,फ्रास और अमेरिका जैसे युरोपीय देशों के लोग बडे़ घुम्मकड होते है ।पर्यटन प्रेमी इन देश के लोग देश वि देश में घूमने के लिए हमेशा तत्पर रहते है। यह झुंड ऐसे ही किसी देश के पर्यटकों का झुण्ड है ।

अब हम लोग फिर से उस लाल रंग के विशाल आंगन में खडे़ थे, जिनको तीनों महलों ने घेर रखा था। हमारा लक्ष्य था शीश महल । शीश महल सफेद रंग का पुता हुआ पुराने रंग का बना हुआ छोटा सा सुदंर महल है । महल की दीवारों और खिडकियों मे प्राचीन काल से ही सुंदर रंग भरे गये होंगे, जिनमें से कुछ अब भी दिखाई देते हैं। सभी खिडकियों और रोशनदानों मे नीले रंग-हरे रंग के शीश (कांच) जडें होने के कारण शायद इसे शीशमहल कहा जाता होगा। म0प्र0 के पर्यटन विभाग ने इस महल को अपने कब्जे में लेकर यहॉं होटल शुुरू किया है। भीतर प्रवेश किया तो हमकों एक विशाल हॉल मिला । पूरे हाल को ख्बसुरत तरीके से सजाया गया था। यह होटल का भोजन कक्ष था। हॉल में सामने ही मैंनाजर की टेबुल कुर्सी लगीथी और पूरे हॉल में एक एक टेबल के साथ पर चार -चार कुर्सियां लगी थी, छत से लटके पंखे, ट्युब लाईट लैम्प और झाड़ फानुस के कारण हॉल बड़ा भव्य दिखाई दे रहा था। कुछ विदेशी पर्यटक यहॉं बैठे हुए भोजन कर रहे थे।

हम सब ने कोल्डडिंक्स की बोतल मंगवाई और चुस्की ले लेकर पीने लगे। होटल के बेयरे बदी पहने बडे़ धीमे धीमे चलते फिरते नजर आ रहे थे। हॉल मे एक चुप्पी सी छाई थी। भूरे और लाल से मुंह वाले विदेशी पर्यटकों को देखकर बच्चों को बड़ी उत्सुकता थीं और वे पर्यटकेा के ढीले-ढीले उंचे उचे कपड़े तथा मुह भोंह उचकाकर जल्दी जल्दी बातं करने का ढंग देख रहे थे।

मैंने मैंनेजर से अनुमति ली और बच्चों को शीशमहल के वे कमरे दिखाने लगा, जिनमें ठहरने की व्यवस्था थी। दो कमरो मे (बाथरूम -लेट्रिन अटैच) की व्यवस्था थी। वेड वाले चार स्युट यह ठहरने के लिए उपलब्ध तथा एक कमरे सिंगल बेडवाले चार स्युट यहॉं ठहरने के लिए उपलब्ध है । भारतीय और विदेशी तरीके का सादा खाना भी यहॉ भोजन के लिए मिल जाता है ।

शीश महल से निकलकर हम लोग सिंह द्वार के पास से प्रवीनराय की हवेली देखने लगे। दो मंजिल की यह इमारत ओरछा की कवियत्री नर्तकी राव प्रवीन की हवेली है। जिसका किस्सा सुनाते हुए पण्डित जी ने बताया कि राजकवि केशवदास की शिश्या राय प्रवीण बहुत अच्छी कविता लिखती थी। राजा अकबर ने जब तारीफ सुनी कि प्रवीण राय नाम की ओरछा की नर्तकी बहुंत सुंदर है और वह बहुंत अच्छी कविता लिखती है व बहुत शानदार नृत्य करती है तो उसने हुकम दिया कि उसे मुगल दरबार में प्रस्तुत किया जाये। यह हुकुम सुन कर इंद्रजीत जो यहां के राजकुमार से अड़ गए कि हम नही भेजेंगे। यह खबर आगरा पहुंची तो गुस्से में अकबर ने ओरछा सेना भेज कर ओरछा घिरवा दिया। सारा ओरछा परेशान था कि अब फलता फूलता साम्राज्य बरबाद हो जायेगा तो रायप्रवीन ने खुद ही आगरा जाने का निश्चय किया। राजा इंद्रजत को समझा कर राय प्रवीण एक डोले में बैठ कर आगरा पहुंची। राजा अकबर के दरवार में उसने एक दोहा सुनाया-बिनती राय प्रवीन की सुनिये शाह सुजान, जूठी पातर भखत हैं बारी वायस स्वान।

उसका इतना सुनाना था कि कविता का अरथ समझने वाला अकबर हक्का बक्का रह गया और उसने राय प्रवीण को बहुत से इनाम देकर ओरछा के लिए विदा कर दिया।

पुनः हम लोग सिंह द्वार से होते हुए चौराहे पर आये और बेतवा नदी की तरफ जाने वाली सड़क पर आगे बढ गये।

बांयी तरफ बस स्टैण्ड था, जहॉं एक छोटा सा प्रतीक्षालय तथा चौड़ा सा मैदान था। पीछे की तरफ गहरी नदी और घाटी थीं।

ओरछा- लगभग पांच सौ साल पहले मध्य भारत के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की राजधानी रहा यह स्थान पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र है। यह दिल्ली-मुम्बई रेल लाइन के जंकशन झांसी से पंद्रह किलोमीटरदूर है।

साधन- झांसी से ओरछा के लिए सबसे सरल साधन बस और टैम्पा हैं। झांसी से ओरछा के लिए ऑटो टूसीटर भी चलते हैंऔर निजी कार टैक्सी भी चलती है। ओरछा नाम का रेल्वे स्टेशन झांसी से मउरानीपुर होते हुए मानिक पुर जाने वाली लाइन पर बस्ती से पंाच किलोमीटर दूर बनाया गया है।

ठहरने के साधन-ओरछा में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई विभाग मध्यप्रदेश सरकार के रेस्ट हाउस, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम की तरफ से संचालित बेतवा कॉटेज की वातानुकलित कॉटेज और होटल शीश महल तथा बहुत सारे थ्री स्टार और सुविधायुक्त निजी होटेल हैं। आजकल तो ओरछा में बहुत से लोग अपने घर में एक कमरा वातानुकूलित बनवा कर सैलानियों को देने लगे हैं जिनमें रहकर विदेशी यात्री भारतीय ग्रामीणों का रहन सहन , खाना पीना, रसोई वगैरह निकट से देखते हैं।