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बर्फीली रातों के गुलदस्ते



शीला शाम को जब लंबी सैर से वापस आई, सामने ही उसे राबर्ट नजर आ गया अपने कुत्ते जीरो के साथ। राबर्ट उसे देख ठिठक गया। शीला ने उसे अनदेखा करने की कोशिश की, आज जरा भी मन नहीं है उसका राबर्ट के उलटे-सीधे सवालों के जवाब देने का।

शीला बहुत धीरे-धीरे चलने लगी। राबर्ट ने वहीं से चिल्ला कर पूछा, ‘मिसिस पाली, मैं डाउन टाउन जा रहा हूं। अपने लिए कुछ दवाइयां लेने। आपको कुछ चाहिए?’

शीला ने नहीं में सिर हिलाया। राबर्ट रुका नहीं, वह दो कदम चल कर उसके करीब आ गया, ‘मुझे पता है आप इन दिनों ठीक से खा- पी नहीं रहीं। मैं लौटते समय आपसे मिलने आऊंगा। एक कप कॉफी और सैंडविच तो खिला ही देंगी आप।’

फिर वो हंसते हुए चला गया। शीला भुनभुनाते हुए लौट आई। राबर्ट का आना उसकी बहू इंदिरा को बिलकुल पसंद नहीं था। इंदिरा का मानना था कि राबर्ट अजीब इनसान है, गले ही पड़ जाता है। वैसे तो यहां के गोरे इतनी जल्दी इंडियंस से दोस्ती नहीं करते। उनके घर आएंगे, खूब खा-पी कर जाएंगे। पर अपने घर कभी नहीं बुलाएंगे। राबर्ट और इंदिरा सालों से एक-दूसरे के पड़ोसी थे, पर कभी हाय हैलो से बात आगे नहीं बढ़ी।

इसके कुछ दिनों बाद शीला ने नींद की गोलियों का ओवर डोज ले कर आत्महत्या करने की कोशिश की, इंदिरा को आधी रात राबर्ट के घर जाना पड़ा, और अनुरोध करना पड़ा कि वो उसकी सास को अस्पताल ले जाए।

राबर्ट पता नहीं अकेला रहता था या किसी के साथ। शीला पांचेक दिन अस्पताल में रही। इस दौरान राबर्ट अकसर वहां आ जाता। इंदिरा उसे देखते ही त्योरियां चढ़ा लेती, ‘इस गोरे से एक दिन मदद क्या मांग लिया, यह तो गले ही पड़ गया।’

शीला उसकी कोई भी बात समझ नहीं पाती थी। ऐसा नहीं था कि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। पर कैनेडियन लहजा कितना अलग था। घर आने के बाद शीला ने एक दिन इंदिरा से कहा कि राबर्ट ने उन लोगों की काफी मदद की है, उसे एक दिन खाने पर बुलाना चाहिए। इंदिरा को शायद उसका प्रस्ताव नहीं रुचा। लेकिन शीला के दो-चार बार कहने पर आखिर इंदिरा तैयार हो गई। चिकन करी और जीरा राइस बनाया, साथ में पापड़ भी तल दिए और सेंवई की खीर बना दी।

राबर्ट समय से पहले आ गया रविवार को लंच पर। अपने साथ ठंडी वाइन की बोतल और जीरो को भी लाया था। भूरे रंग का बड़ा सा अल्सेशियन। इंदिरा ने किसी तरह उससे कह कर जीरो को बालकनी में बांध दिया। लेकिन जीरो था कि भौंके जा रहा था। दस मिनट बाद ही राबर्ट ने जीरो के गले की पट्टी खोल दी और धीरे से कहा, ‘यह मेरे बेटे जैसा है। इसे बंध कर रहने की आदत नहीं।’

इंदिरा भन्ना गई और अंदर कमरे में जा कर बड़बड़ाने लगी, ‘यह कोई बात हुई? उसके लिए होगा बेटे जैसा, पर हमारे लिए तो कुत्ता ही ही ना।’

शीला चुप रही। कुत्तों से तो वो भी घबराती थी। पर राबर्ट को उसने बुलाया था। इंदिरा फिर अपने कमरे से बाहर निकली ही नहीं। राबर्ट ने बड़े चाव से खाना खाया। शीला ने उससे जानना चाहा कि वह गुजारे के लिए क्या करता है? उसने तो कभी उसे काम पर जाते देखा नहीं?

राबर्ट ने हंसते हुए बताया कि उसे सरकार से अच्छा-खासा बेरोजगारी भत्ता मिलता है। उसकी जरूरतें भी उतनी नहीं। इसलिए उसका काम मजे में चल जाता है। जब कभी काम करने का मन करता है, वीक एंड हजबैंड बन कर कहीं छह घंटे काम कर लेता है और उसे दो सौ डॉलर मिल जाते हैं।

वीक एंड हजबैंड? शीला चौंकी।
राबर्ट हंस कर बोला, ‘हां, हमारे देश में जो आदमी घर के काम के लिए घंटे के हिसाब से बुलाया जाता है, उसे वीकएंड हजबैंड ही कहते है। मुझसे चाहे माली का काम लो या घर की पेंटिंग करवा लो। आपके घर की वैक्यूम क्लीनिंग कर दूंगा, कपड़े धो कर प्रेस कर दूंगा। आपका गैराज साफ कर दूंगा। चाहो तो वीक एंड पार्टी का पूरा इंतजाम कर दूंगा। मुझे मजा आता है नए लोगों से मिलना।’

शीला दिलचस्पी से उसकी बात सुनने लगी। राबर्ट ने जीरो को अपनी प्लेट से चिकन खिलाते हुए कहा, ‘पिछले सप्ताह मैं एक चाइनीज परिवार में काम करने गया। उनका गार्डन साफ करना था। जीसस, मेरे जाते ही पति-पत्नी में जबरदस्त लड़ाई छिड़ गई। मुझे थोड़ी-बहुत मंडारीन बोलनी आती है। पत्नी ऐसी-ऐसी गाली दे रही थी पति को.. . पर मुझे तो अपने काम के पूरे पैसे दिए। पति बेचारा, मेरे पास आ कर दुखड़ा रोने लगा। कहने लगा कि मैंं तो इसका परमानेंट हजबैंड हो कर पछता रहा हूं, मुझसे अच्छी स्थिति तो तुम्हारी है वीकएंड हजबैंड।’

शीला हंसने लगी। बहुत दिनों बाद इस तरह किसी अजनबी से बात कर हंस रही थी। वरना तो जिंदगी से विश्वास ही उठ चला था। तभी तो अपनी जिंदगी खत्म करने को तत्पर हो उठी थी।

अचानक शीला से राबर्ट ने पूछा, ‘आपके पति क्या करते हैं?’

शीला रुक कर बोली, ‘वो नहीं रहे।’

राबर्ट ने बिना प्रतिक्रिया दिए कहा,‘ओह, तो आप और आपकी बहू दोनों विधवा हो। ’


शीला चिहुंक उठी। राबर्ट ने तुरंत बात संभाली, ‘आपको बुरा तो नहीं लगा? मैम, साहिल मेरा अच्छा दोस्त था, वो और मैं अकसर गोल्फ खेलने साथ जाते थे। मुझे बहुत अफसोस हुआ था उसके जाने का। कम से कम इस तरह से तो नहीं।’



शीला को कुछ ना बोलते देख राबर्ट खाना छोड़ उसका हाथ पकड़ कर बोला, ‘मुझे माफ कर दीजिए। पर मुझे लगता है कि आपको अपने बेटे के बारे में बात करनी चाहिए। शायद यही वजह है कि आपने खुदकुशी करने की कोशिश की। आप बहुत भरी हैं, अपने आपको खाली कीजिए।’

शीला को गुस्सा आ गया। वह कुछ उखड़ी आवाज में बोली, ‘मैंने तो सुना था कि आपके देश में लोगों की प्राइवेसी का बहुत ख्याल रखा जाता है। आप मेरे निजी मामले में बोल रहे हैं, जो मुझे पसंद नहीं।’


रॉबर्ट का चेहरा इतना सा निकल आया। उसने कुछ कहा नहीं, पर शांति से अपना खाना खत्म किया और उठ खड़ा हुआ। जाते-जाते उसने बस शीला से हाथ मिला कर थैंक्यू कहा।

रात जब शीला अकेली रसोई से सटे खुले लकड़ी की छत पर झूले पर बैठ हरी घासों पर ओस की बूंद को कतरा-कतरा बिछते देखने लगी, लगा कि राबर्ट के साथ बेवजह वह इतनी क्रूर हो गई। तो क्या हुआ जो उसने साहिल का जिक्र छेड़ दिया। वो जानता था साहिल को। शायद वह कोई नई बात बता देता उसके बारे में।



पिछले कुछ दिनों से इंदिरा का व्यवहार उसे अजीब लग रहा था। कभी बहुत चिढ़चिढ़ी हो जाती, तो कभी पूरे दिन अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती। सुबह-सुबह इंदिरा ने घोषणा कर दी, ‘आप चाहें तो आज कहीं घूम आइए, पिक्चर देख आइए। घर में कोई आ रहा है।’

शीला अचकचा गई। अबकि इंदिरा कुछ संयत हो कर बोली, ‘मम्मी, मैं कल सोशल सर्विस डिपार्टमेंट गई थी। मुझे महीने भर तक साइक्याट्रिक ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ेगी। आज पहली बार आ रहे हैं वो इंस्पेक्शन करने। इसलिए...’

शीला की आवाज में हताशा थी, ‘इंदू, तुझे क्या हो गया? ट्रीटमेंट?’

इंदिरा मिनट भर बाद बोली, ‘मैं थक गई हूं। मुझसे अब सहा नहीं जा रहा। मैं जीना चाहती हूं, खुश रहना चाहती हूं, पर कहीं कोई कोना ऐसा नहीं, जिसमें जीने की इच्छा हो। रह-रह कर दिमाग में यही बात आती है कि साहिल को मरना था तो मर जाता, पर मुझे इतना शॉक तो ना देता। मैं अपने आपको समझना चाहती हूं। ’

शीला की आंखें भर आईं। साहिल उसका बेटा था, एकलौता बेटा। बेटे से भी ज्यादा उसकी लंबी जिंदगी का साथी। वो भी कहां समझ पाई अपने बेटे को।

इंदिरा ने रुक कर कहा, ‘मुझे मुफ्त में साइक्याट्री सलाह मिल रही है। हो सकता है, इसके बाद मैं ठीक हो जाऊं।’

शीला ने सिर हिलाया। फिर कुछ सोच कर बोली, ‘मैं भी तो हूं तेरा साथ देने के लिए। हम दोनों मिल कर कोई ना कोई राह निकाल लेंगे।’

इंदू ने पता नहीं कैसे कह दिया, ‘अब आपके साथ रहने में मेरा मन नहीं लगता। आपका नजरिया अलग है, जीने का।’

शीला सन्न रह गई। इंदू ने यह क्या कह दिया? इंदू चुपचाप वहां से निकल गई। शीला ने अपनी छड़ी उठाई। घर के बाहर कदम रखा तो सर्द हवाओं ने उसे घेर लिया। इस बार लगता है समय से पहले सर्दियां आ जाएंगी। वापस अंदर जा कर उसने जंप सूट पहना, मोजे, जूते पहने, टोपी लगाई और छाता ले कर बाहर निकल आई। आज चाल में सुस्ती थी। मन कर रहा था कि बिस्तर में दुबक कर अदरकवाली चाय सुड़क-सुड़क कर पिए। पर घर लौटने के नाम से ही दहशत सी होने लगी।

कुछ दूर चली, तो ताजी हवा से मन बहलने लगा। सालों तक इस रास्ते पर साहिल के साथ लंबी-लंबी सैर की है उसने। बात करते, गप लड़ाते घंटों चलते रहते थे दोनों। जिन दिनों मुंबई से कनाडा माइग्रेट किया था, साहिल का मन नहीं लगता था। कनाडा में उसे आते ही पसंद की नौकरी नहीं मिली। वह निराश था। शीला उसे समझाया करती कि सब ठीक हो जाएगा। फिर कोई वजह थी तभी तो हम मुंबई छोड़ कर यहां आ बसे हैं।

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शीला ने अपनी जिंदगी में अधिकांश निर्णय खुद ही लिए थे। अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी का निर्णय, पति की मृत्यु के बाद नौकरी करने का निर्णय और जब ससुराल वालों ने उसे और साहिल को घर से निकाल दिया तो कोर्ट में उनके खिलाफ लड़ने का निर्णय। शीला ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी इस केस में। साहिल तो अपने आप ही बड़ा हो गया। जब कोर्ट में शीला केस हार गई, तब उसे लगा कि उसे यह शहर छोड़ कर दूर कहीं चले जाना चाहिए। बुरी तरह टूट गई थी शीला।

साहिल ने तब तक नौकरी करना शुरू कर दिया था। शीला ने ही कहा था उसे कि कनाडा माइग्रेट कर ले। ऐसा देश है कनाडा, जहां कोई उन्हें नहीं जानता। और दस साल पहले दोनों मां और बेटा कनाडा आ गए। कनाडा के दक्षिणी इलाके में एक छोटे से कस्बे बांफ में जा कर बस गए। लेकिन जब वहां मन मुताबिक काम नहीं मिला, तो कैलगिरी आ गए।

कैलगिरी में साल में पांच महीने बर्फ पड़ती थी। जनवरी में तो तापमान घट कर माइनस सैंतीस तक पहुंच जाता। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ। धीरे-धीरे इस मौसम की आदत पड़ गई। जब बहार का मौसम आता, तो चारों तरफ इतने रंगबिरंगे फूल खिल जाते कि पूरा शहर फूलों की डलिया लगने लगता। शांतिप्रिय शहर, भारतीयों की संख्या भी ज्यादा नहीं थी। दोनों मां-बेटे की जिंदगी पटरी पर आ गई। हर शनिंवार को वे मॉल जा कर सप्ताह भर की सब्जियां, दूध और राशन ले आते। शीला को लोगों से मिलना-मिलाना कम पसंद था। साहिल अपने दोस्तों के साथ कभी मछली पकड़ने निकल जाता, तो कभी गोल्फ खेलने।

साहिल तीस का हो चला था। शीला को डर लगता था उसकी शादी से। अगर बहू के साथ उसकी नहीं निभी तो? और एक दिन साहिल ने उससे कहा कि वह अपने साथ काम करने वाली कनेडियन केरोल के साथ शादी करना चाहता है। साहिल से दो इंच लंबी केरोल तलाक शुदा थी। एक बच्ची भी थी उसकी। केरोल की मां नहीं थी। पिता दूसरी शादी कर अमेरिका में बस गए थे।


शीला का दिल बैठने लगा। जिस बात का उसे डर था, कहीं वही तो नहीं होने जा रहा? केरोल के साथ कैसे निभा पाएगी वह? केरोल को उसके घर छोड़ने के बाद साहिल जब उसके सामने आया, शीला अपने को रोक नहीं पाई, आंख से आंसू बह निकले। साहिल का हाथ पकड़ बहुत देर बाद बोल पाई, ‘बेटा, तुमने ऐसा क्यों किया?’

साहिल मां का हाथ पकड़ कर बैठा रहा, फिर धीरे से बोला, ‘मां, यह कनाडा है। हमें यहीं रहना है। किसी दूसरे के लिए नहीं , अपने लिए जीते हैं लोग यहां। केरोल बहुत अच्छी लड़की है मां। तुम्हारे साथ रहेगी, तो हिंदी भी सीख लेगी और अपना रहनसहन भी अपना लेगी। तुम उसके गोरे रंग और कद को देख कर घबरा गई हो ना? ऐसा मत सोचो, सब ठीक हो जाएगा।’

शीला बुत बनी बैठी रही। हार कर साहिल ने पूछा, ‘मां, आप चाहती क्या हैं?’

शीला ने अपने को संभालते हुए कहा, ‘तुझे शादी करनी है, तो किसी इंडियन लड़की से कर। हम यहीं रह रही लड़की ढूंढे़गे। वह हमारे कायदे से भी परिचित होगी और इस देश के भी।’

साहिल बिना कुछ बोले वहां से उठ गया। शीला उसका इंतजार करती रही।

अगले दिन नाश्ते की टेबल पर साहिल ने कहा, ‘मां, मुझे नहीं लगता कि मैं केरोल के अलावा किसी दूसरी लड़की से शादी कर पाऊंगा। मुझे अपनी तरह से जीने दो। मैंने हमेशा आपकी बात मानी है, इस बार आप मेरी बात मान लें।’ शीला के कुछ कहने से पहले वह उठ कर चला गया।

साहिल ने इससे पहले कभी किसी बात पर जिद नहीं की थी। पहली बार उसने किसी चीज की मांग की थी। शीला जितना सोचती, उतना डर जाती। साहिल की जिंदगी में केरोल आने के बाद उसकी क्या भूमिका रह जाएगी? वैसे भी इस देश में माता-पिता को साथ नहीं रखा जाता। बच्चे अलग रहते हैं। वह कहां रहेगी? ओल्ड एज होम में?

शीला ने तय कर लिया कि वह किसी भी हाल में साहिल की शादी केरोल से नहीं होने देगी। उसने साहिल से बोलना बंद कर दिया, खाना छोड़ दिया। साहिल ने हार कर कह ही दिया, ‘मां, आप जैसा चाहती हैं, वैसा ही होगा।’ शीला ने खुशी-खुशी अपना काम शुरू कर दिया। आसपास जो भी भारतीय परिवार था, उन तक बात पहुंचाई।

कैलगिरी के पंजाब स्टोर की मालिकिन सतविंदर से उसकी पुरानी जान-पहचान थी। उसके रिश्तेदार वैनकुवर में पंजाबी स्टोर चलाते थे। उन्होंने ही इंदिरा का बायोडाटा भेजा। इंदिरा का परिवार भी कई साल पहले चंडीगढ़ से कनाडा आ बसा था। इंदिरा के माता-पिता कई साल पहले एक्सीडेंट का शिकार हो गए थे। वैनकुवर में इंदिरा अपने भाई के साथ रहती थी। एक बैंक में काम करती थी।

इंदिरा के भाई को उसकी शादी की चिंता नहीं थी। खुद भाई ने एक चीनी युवती से शादी की थी। इंदिरा दिखने में ठीक थी, सांवला रंग, घुंघराले बाल, सपाट सा चेहरा। शीला साहिल के साथ वैनकुवर गई उससे और उसके परिवार से मिलने। भाई ने तो साफ-साफ कह दिया कि वह बहुत तड़क-भड़क वाली शादी में यकीं नहीं करता। शीला को तो यह भी लगा कि भाई चाहता है कि बस, किसी तरह बहन की शादी हो जाए। शीला ने तुरंत ही सब पक्का कर दिया। वैनकुवर में कोर्ट मैरिज और कैलगिरी में दोस्तों के लिए एक पार्टी। साहिल अनमना सा था। वैनकुवर से लौटते समय शीला बहुत खुश थी। शादी की तैयारियों की बात कर रही थी, पर साहिल ने किसी भी चीज में भाग नहीं लिया। शीला ने ही भाग-भाग कर सब इंतजाम किया। कैलगिरी से ही इंदिरा के लिए सोने का सेट लिया। एक इंडियन बुटिक से लहंगा खरीदा।

शीला चाहती थी कि शादी के बाद साहिल और इंदिरा आसपास कहीं घूम आए। इंदिरा अपनी दादा-दादी से मिलने लखनऊ जाना चाहती थी। साहिल को भी लगा कि हनीमून के नाम पर किसी अनजान जगह पर जाने से अच्छा है अपने वतन लौटना।

पंद्रह दिन की छुट्टी ले कर साहिल और इंदिरा चले गए और शीला घर पर अकेली रह गई। कनाडा में ठंड पड़नी शुरू हो चुकी थी। शीला अपने बेटे की शादी को ले कर इतनी उत्साहित थी कि उसने पूरे घर का कायापलट कर दिया। नए फर्नीचर ले आई। कार्पेट, परदे सब बदल डाले। साहिल और इंदिरा के कमरे के लिए नया पलंग ले आई। अपनी साज-सज्जा देख कर वह खुद पर मुग्ध हो गई।

इंदिरा शुरू से उससे कम बोलती थी। उसके जीने का अपना तरीका था। भारत से लौटने के बाद भी उन दोनों के बीच शीला ने किसी किस्म की गर्माहट नहीं देखी। साहिल ने घर की नई साज-सज्जा के बारे में कुछ नहीं कहा। इंदिरा ने जरूर उसके लाए पलंग को ले कर कहा कि उसे बैक पैन की दिक्कत है, इसलिए वह इतने नर्म गद्दे पर नहीं सो पाएगी। पलंग की ऊंचाई को ले कर भी उसे दिक्कत थी। घर के परदों के रंग चटक थे, इंदिरा ने धीरे से उन्हें भी बदल कर हलका कर लिया।

साहिल जब शाम को दफ्तर से लौटता, इंदिरा घर के बाहर ही उसका इंतजार करती मिलती। वहीं से कभी वह साहिल को क्लब ले जाती, तो कभी लंबे वॉक पर। इंदिरा को आइस स्केटिंग का जबरदस्त शौक था। पूरी सर्दियों में वह लगभग रोज आइस स्केटिंग करने निकल जाती। शनिवार और इतवार का पूरा दिन इंदिरा घर के बाहर बिताना पसंद करती थी। कभी लांग ड्राइव पर तो कभी पोलो खेलने। शीला के लिए वह जरा भी नहीं बदली। शीला अगर कभी कहती भी कि आज घर में मेहमान आ रहे हैं, साड़ी पहन ले, इंदिरा ठंडी आवाज में कहती, ‘मम्मी, प्लीज मेरी जिंदगी में आप दखल ना दें। मैं तो कभी आपको किसी बात के लिए नहीं टोकती। लीव एंड लेट लीव, इस देश में सब ऐसा ही करते हैं।’

शीला की हिम्मत नहीं होती कि इंदिरा को ले कर कभी साहिल से कुछ कहे।



साहिल खुद भी उससे कटता जा रहा था। जब वह इंदिरा के साथ नहीं होता, अपने दोस्तों के साथ बाहर निकल जाता। मां के लिए उसके पास वक्त नहीं था। शीला का मन होता, साहिल की पसंद का कुछ बनाने का। इंदिरा तला-भुना और मिर्च वाला खाना कम खाती थी, साहिल को तो जैसे खाने से ही अरुचि हो गई थी।

फिर एक दिन साहिल ने कहा कि उसे एक नया प्रोजेक्ट मिल गया है और उसे तीन महीने के लिए कैलिफोर्निया जाना पड़ेगा। इंदिरा उसके साथ जाने के लिए तैयार थी, पर साहिल ने मना कर दिया। यह कह कर कि प्रोजेक्ट के सिलसिले में उसे दूसरे शहरों में भी जाना पड़ सकता है। फिर तीन महीने की ही तो बात है।

साहिल के जाते ही इंदिरा भी अपने भाई के घर वैनकुवर चली गई। रह गई शीला अकेली। साहिल से बहुत कम बात होती थी। सप्ताह में एकाध बार शीला फोन करती, तो वह जवाब दे देता। तीन महीने बीत गए, वह लौटा नहीं। कहा कि प्रोजेक्ट पूरा करने में कुछ वक्त और लगेगा। शीला के लिए समय काटना मुश्किल हो गया। घर काटने को दौड़ने लगा। किताबें बहुत थी पढ़ने के लिए, पर पढ़ने में मन नहीं लगता। टीवी भी बहुत कम देख पाती। ले दे के उसकी एक ही दोस्त थी इंडियन स्टोर वाली सतिंदर। दो-तीन में वह उससे मिलने चली जाती। उसने गाड़ी चलाना सीखा नहीं था, इसलिए बस और ट्रेन में सफर करना पड़ता। सतिंदर नहीं मिलती, तो वह नदी किनारे सैर पर निकल पड़ती। तीन-चार घंटे चलती रहती। थक कर घर लौटती। कभी सूप पीकर सो जाती, तो कभी एकाध फल खा लेती। अपने अकेलेपन से इतना पक चुकी थी वो कि उसने कैलिफोर्निया के लिए टिकट बुक करवा लिया। शनिवार को साहिल का फोन आया, तो शीला ने कुछ उत्साहित हो कर कहा कि अगले वीकएंड वह उससे मिलने कैलिफोर्निया आ रही है। साहिल ने तुरंत कहा--मां, तुम अभी मत आओ। मैं कैलिफोर्निया में नहीं हूं। मैं न्यू यॉर्क में हूं।

शीला चुप हो गई, फिर धीरे से बोली, ‘बेटा, बहुत अकेलापन महसूस कर रही हूं। लंबा समय हो गया तुझे देखे। ऐसा क्या कर रहा है वहां? मुझे नहीं बुला सकता, तो तू ही आजा। इंदिरा भी यही कह कर अपने घर गई है कि तेरे लौटने के बाद ही लौटेगी।’

मां की आवाज सुन कर साहिल पिघल गया, ‘इंदिरा अभी तक लौटी नहीं? उसने तो मुझे नहीं बताया। अच्छा मां, कोशिश करूंगा कि हफ्ते-दस दिन बाद आ जाऊं। अपना ख्याल रखना मां.. ’

साहिल की आवाज लग रहा था पता नहीं किसी गुफा के कोने से आ रही हो। शीला ने सोचा कि शाम को वह इंदिरा से भी बात करेगी और उससे लौटने को कहेगी। उसके रहने से कम से कम घर में थोड़ी रौनक तो रहेगी। काश कि दोनों उसकी बात मान जाते और एक बच्चा गोद ले लेते। इंदिरा से उसने शुरू में इस बारे में बात करने की कोशिश की थी, पर वह इसे अपना व्यक्तिगत मसला कह कर चुप लगा जाती। साहिल जरूर कहता था कि जब कभी वे इंडिया वापस जाएंगे, वहां के किसी अनाथालय से बच्चा गोद ले लेंगे।

शीला कितना कम समझ पाई थी अपने बेटे को। आज पीछे मुड़ कर देखती है तो लगता है कि साहिल की वह दोस्त बनना चाहती थी, पर दोस्त बनना तो दूर वह उसकी अच्छी मां भी नहीं बन पाई।

जिस दिन साहिल ने उससे कहा था वह घर लौटेगा, उस रात को उसके पास खबर आ गई कि टोरंटो में साहिल का एक्सीडेंट हो गया है और उसकी हालत गंभीर है। टोरंटो में? शीला को गहरा सदमा लगा। टोरंटो तो कनाडा में ही है। पर साहिल ने तो कहा था कि वह अमेरिका में है, न्यू यार्क में। तो वो उससे झूठ बोल रहा था? किसी तरह रात की फ्लाइट ले कर वह टोरंटो पहुंची। साहिल आइसीयू में था। उसे अब तक होश नहीं आया था। शीला को अभी शॉक से उबरने का मौका ही नहीं मिला था कि सिटी हॉस्पिटिल की हैड नर्स ने उससे आ कर कहा—आपके बेटे के साथ जो महिला गाड़ी में थीं, वो आपकी बहू है ना?

शीला चौंकी। नर्स केरल से थी। उसने अपनी टूटी-फूटी हिंदी में कहा,‘वह होश में आ गई है। आप चाहें तो उससे बात कर लीजिए।’

शीला लड़खड़ाते कदमों से नर्स के पीछे हो ली। बिस्तर पर केरोल लेटी थी। उसे पैरों में गंभीर चोट आई थी, सिर पर भी पट्टी बंधी थी। शीला को देखते ही उसकी आंखें भर आईं। वह रोने लगी, ‘मेरा बेटी बहुत छोटी है। अब उसका क्या होगा?’

शीना उसे ढाढस नहीं बंधा पाई। बेटा तो उसका खो रहा था। साहिल को अंतत: केरोल के ही पास जा कर शांति मिली थी शायद। आधे घंटे बाद वहां इंदिरा भी पहुंच गई। शीला को देखते ही वह कुछ शुष्क स्वर में बोली, ‘आपको तो सब पता था ना मम्मी। फिर आपने साहिल की शादी मुझसे क्यों करवाई? आज सबके सामने मैं तमाशा बन गई हूं। साहिल पिछले चार महीने से कनाडा में है, वो भी दूसरी औरत के साथ। आपने बताया क्यों नहीं कि साहिल उससे शादी करना चाहता था और आपने अपने स्वार्थ के लिए हम दोनों की जिंदगी खराब कर दी।’

ये वक्त नहीं था कहने-सुनने का। शीला बस रोती रही। सुबह होने तक साहिल बिना किसी से कुछ कहे-सुने चल बसा। केरोल की हालत गंभीर थी। साहिल का क्रिया कर्म करने के बाद जब शीला घर लौटी, तो पूरी तरह टूट चुकी थी। इंदिरा उससे बहुत कम बोलती थी। वह उसके सामने ही कम पड़ती थी। चौथे दिन दोपहर को शीला के सामने पड़ी, तो धीरे से बोली, केरोल आज सुबह चली गई। पता नहीं कौन करेगा उसका दाह संस्कार। उसकी बेटी को चाइल्ड केअर सेंटर भेज रहे हैं।’

शीला को चेहरा पत्थर का हो गया। कुछ देर रुक कर इंदिरा ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘अगर साहिल ने केरोल से शादी कर ली होती, क्या तब भी आपकी यही प्रतिक्रिया होती?’

शीला की तरफ बिना देखे वह कमरे से निकल गई। शीला बाहर जा कर बेंच पर बैठ गई। साहिल के इस तरह जाने से ज्यादा कचोट रहा था उसे कि उसके बेटे ने उसे अपने दिल की बात नहीं बताई। एक बार बताया था, तो उसने क्या किया? जबरदस्ती कहीं और उसकी शादी कर दी। इसके बाद वह भला कैसे उस पर यकीं करता? कितने दर्द और मानसिक तनाव से गुजरा होगा उसका बेटा? और इंदिरा, वह भी तो बेवजह ठगी गई। जो व्यक्ति उसका कभी था ही नहीं, उसे वह पाती भी तो कैसे?

उस रात वह सो नहीं पाई। कभी मुंबई के दिन आंखों के सामने आ जाता, तो कभी साहिल का मायूस सा चेहरा। जैसे कह रहा हो कि मां तुमने अपनी जिंदगी तो जी ली, पर मुझे जीने नहीं दी। शीला धिक्कार उठी अपने आप पर। ना जाने किस झोंक में उसने दवाई की अलमारी से नींद की गोलियों की पूरी शीशी हलक में उतार ली। बस, यही धुन थी कि जल्द से जल्द अपने बेटे के पास पहुंचना है।

अगले दिन आंख खुली, तो अपने आपको सफेद कफ्तान में पाया। एक सेंकड को लगा कि वह मरने के बाद किसी दूसरी दुनिया में आ गई है। पर सामने इंदिरा का चेहरा देखा, तो अहसास हुआ कि वह अस्पताल में है। उसके पीछे राबर्ट खड़ा था, उनका पड़ोसी।

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इस बात को लगभग चार माह बीत गए। शीला धीरे-धीरे अपने आपको संभालने लगी। लेकिन इंदिरा ने जैसे उससे बोलना ही छोड़ दिया था। वह यह घर छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी। घर साहिल और उसके नाम पर था। साहिल का इश्योरेंस भी उसे मिल गया। मनोचिकित्सक से मिलने के बाद इंदिरा में जीने की थोड़ी बहुत ललक जगी। वो एक अनाथ बच्चों के सेंटर में पढ़ाने लगी। कभी-कभी रात को खाने पर शीला को भी उन बच्चों के बारे में बताती।

एक दिन उसने जोश से कहा, ‘मम्मी, हमारे पड़ोसी राबर्ट ने भी अब चाइल्ड सेंटर आना शुरू कर दिया है। वह बच्चों को आर्ट और कारपेंटरी सिखाता है। पता है, वो उतना बेवकूफ और झिलाऊ नहीं है, जितना हम समझते थे। बस अलग है सबसे। बच्चों से बहुत हिलमिल जाता है।’

सप्ताह भर बाद शीला ने पाया कि शाम को इंदिरा और राबर्ट नदी किनारे घूमने निकले थे और उनके पीछे राबर्ट का कुत्ता जीरो भी था। कभी वो भागते-भागते उनसे आगे निकल जाता, तो कभी इंदिरा का शॉल पकड़ कर शैतानी करने लगता। इंदिरा भी अब जीरो से डर नहीं रही थी। वहीं एक बेंच पर किताबों के पन्ने उलटते-पलटते शीला ने लंबी सांस ली--चलो, इंदिरा अपने गम से तो बाहर निकल रही है।

इतवार के दिन पहले तो इंदिरा देर से सो कर उठती थी, जब से बच्चों के सेंटर में जाने लगी, जल्दी उठ जाती थी। इतवार का दिन विशेष होता था। वह बच्चों के साथ सेंटर में नाश्ता बनाती थी और सबके साथ खाती थी। शनिवार की रात को इंदिरा ने उसे खाना देते हुए पूछ लिया, ‘मम्मी, मैं जब शादी के बाद यहां आई थी, आपने पाव-भाजी बना कर खिलाई थी। आप मुझे बनाना सिखाएंगी? सोच रही हूं कल बच्चों को नाश्ते में यही बना कर खिला दूं।’

पता नहीं कैसे शीला के मुंह से निकल गया, ‘मैं बना दूंगी ना पाव भाजी।’

इंदिरा चहक कर बोली, ‘ओह, तो आप भी चलिए ना सेंटर। वहीं बना लेंगे। सब्जी वगैरह तो मैंने खरीद लिया है। सुबह बेकरी से फ्रेश ब्रेड खरीद लेंगे।’

शीला तैयार हो गई। वैसे भी काफी समय हो गया था घर से बाहर निकले। ठंड की परवाह ना करते हुए दोनों सुबह जल्दी उठ गए। सब्जियां लाद कर गाड़ी में बैठे ही थे कि राबर्ट भी जीरो के साथ आ गया।

इंदिरा ने बताया कि सेंटर के बच्चों को जीरो के साथ खेलना बहुत पसंद है। सेंटर पहुंचते ही उनका स्वागत अस्सी उत्साही बच्चों ने किया। चहचहाते, खिलखिलाते फूलों की तरह मुस्कराते बच्चे। हर रंग के, हर देश के। कोई भेदभाव नहीं। कनाडा में शीला को यही बात अच्छी लगती थी कि यहां गोरों और कालों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता था। इंदिरा झटपट ओपन रसोईघर में जा कर सब्जियां उबालने लगी। शीला ने उसकी मदद की। कम मसालों वाली भाजी और ऊपर से ढेर सारा चीज। बच्चों को मोटे-मोटे ब्रेड और बन के साथ खाने को दिया, तो वे शोर मचाते हुए खाने लगे। शीला को तो बस उन्हें खाते देख ही तृप्ति मिल गई।



इस बीच एक छोटी सी बच्ची दौड़ती हुई इंदिरा के पास आई और लिपटती हुई बोली, ‘मैडम, आपने लास्ट वीक मुझसे प्रॉमिस किया था ना कि मुझे अपने घर ले चलेंगी? फिर? आपने अपना इरादा बदल दिया?’



इंदिरा ने उसे गोद में उठा लिया, ‘नहीं कैथरीन, मैं तुम्हें जरूर अपने घर ले जाऊंगी। मैंने इंचार्ज से बात कर ली है। क्रिसमस वीकएंड में तुम हमारे साथ रहोगी।’ बच्ची ने इंदिरा के गालों पर एक प्यार भरा चुंबन जड़ा और थैंक्यू कहती हुई वहां से भाग गई।

कितनी प्यारी बच्ची थी। हलका गोरा रंग, काले बाल, हरी आंखें। शीला बच्चों को खेलते-कूदते देखती रही। इंदिरा की तरह कई समाज सेवक वहां आए हुए थे अपने बच्चों के साथ। दोपहर को वहां से निकले तो राबर्ट ने सुझाव दिया कि लंच के लिए सब उसके घर चलें। वह पास्ता बना रहा है। शीला का मन नहीं था, पर इंदिरा के इसरार करने पर वह चल पड़ी। राबर्ट के घर आज तक वो नहीं गई थी। उसने बहुत सुंदर बगीचा बनाया था। घर को भी करीने से रखा था। फोटोग्राफी का शौक था इसलिए बरामदे को घेर कर उसने स्टुडियो बनाया था। दीवार पर ना जाने उसके खींचे कितने सारे फोटो लगे थे।

अचानक शीला की नजर एक फोटो पर पड़ी। साहिल हंसते हुए गिटार बजा रहा था। उसे तो पता ही नहीं कि उसका बेटा हंसता भी था और गिटार भी बजाता था। साहिल की कई तसवीरें थीं। गोल्फ खेलते हुए, गाड़ी चलाते हुए, राफ्टिंग करते हुए। शीला ठिठक गई। राबर्ट ने उसे टहोका, ‘मिसेज पाली, अगर आपको अच्छा लगे तो मैं आपको इन तसवीरों का प्रिंट निकाल कर दूंगा।’

शीला ने हां में सिर हिलाया। राबर्ट ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘आप बहुत इमोशनल हैं। मैं आपको दुखी नहीं करना चाहता। पर साहिल की कुछ चीजें मेरे पास हैं। आप चाहें तो ले सकती हैं। उसका गिटार, उसकी स्वेट शर्ट, माउथ आर्गेन और सच कहूं तो मेरा कुत्ता जीरो भी उसका ही है। उसे किसीने गिफ्ट किया था पिल्ला। पर साहिल ने कहा कि आप घर में कुत्ता रखना पसंद नहीं करतीं, इसलिए उसने मुझे दे दिया। नाम भी उसने ही रखा जीरो। शायद बचपन में आप उसे इस नाम से बुलाती थीं।’

शीला ने अपनी भर आई आंखों को घुमा लिया। किसी भी व्यक्ति के भीतर कितनी परतें होती हैं, पता ही नहीं चलता। उसके बेटे की कितनी सारी बातें उसे खुद पता नहीं थी। पर कहीं अच्छा लगा, साहिल के करीब होने का सा अहसास।



राबर्ट ने पास्ता ठीकठाक बनाया था। मिर्च मसाला कम था, पर खूब सारा चिली सॉस मिला कर शीला ने उसकी कमी पूरी कर ली। घर लौटते-लौटते शाम हो गई। रात कुछ खाने का मन नहीं हुआ। इंदिरा सूप बना लाई। पता नहीं क्यों शीला ने उससे पूछा, ‘इंदू, कुछ समय पहले तुमने मुझसे कहा था कि मेरे साथ नहीं रहना चाहती। क्या अब भी तुम्हारे मन में वही फीलिंग हैं?’

इंदिरा चुप रही, पता नहीं कहां देखती रही। फिर धीरे से बोली, ‘हम सबमें कमियां होती हैं। मुझे शादी के बाद से ही लगा था कि मैं आपके साथ एडजस्ट नहीं कर पाऊंगी। आप साहिल को ले कर बहुत पजेसिव थीं और मेरे मन में सास को ले कर एक दोस्त की तरह की कल्पना थी। फिर जो कुछ भी हुआ, लगा कि आपकी वजह से हुआ है। साहिल का जाना, केरोल का जाना। मैं अंदर तक हिल गई थी। मेरी भी दिक्कत आपकी तरह की है कि इस घर को छोड़ कर कहां जाऊं? भाई के पास जाने का सवाल नहीं उठता। फिर लगा कि यह घर बेच कर दो छोटे घर ले लेते हैं। एक आपके लिए, एक मेरे लिए। यह सही भी था। आपको गुजारे के लिए ओल्ड ऐज पेंशन मिल जाती और मैं अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने के लिए आजाद होती। पर.. ’

शीला का चेहरा पीला पड़ने लगा। इंदिरा यह क्या कह रही है? अलग घर, अलग जिंदगी?.. इंदिरा ने शीला का चेहरा भांप लिया, ‘मुझे कुछ फैसले लेने हैं मम्मी, पता नहीं आप मेरा साथ देंगी या नहीं। आप की मर्जी है।’

शीला ने धीरे से सिर हिलाया। इंदिरा उनके हाथ पर अपना रखती हुई बोली, ‘सूप पी कर सो जाइए। कल बात करेंगे।’

रात लंबी थी। किस्तों में नींद आई शीला को। जब भी आंख खुली, अपने को पछताते पाया। देश बदला, शहर बदले, लेकिन अपनी सोच भी बदल लेती तो शायद आज बेटा साथ होता। नींद के झोंकों के बीच ख्याल आया कि आज हाथ में जो है, जिंदगी में जिसका साथ है, वह उनके साथ भी क्यों नहीं चलना चाहती? हमेशा वो जो चाहती है, वैसा तो नहीं होगा। कनाडा में ऐसे कई बुजुर्ग देखे हैं, जो अकेले रहते हैं। जिद्दी हैं, काम करते हैं, शुक्रवार शाम अपने उम्रदराज दोस्तों के साथ पब जाते हैं। उनके बच्चे थैंक्स गिविंग डे और क्रिसमस में उनसे मिलने आते हैं। उन्हें उपहार दे कर और माथे को चूम कर चले जाते हैं। क्या ऐसी जिंदगी जी पाएगी वो? शायद नहीं। इंदिरा ने अपने गम भुलाने के लिए एक राह चुनी है। और वो खुश है। उसे अपनी तरह से जीने का पूरा हक है।

नींद के झकोरों के बीच उसने पाया कि वो सफेद चादर में लिपटी हवा में उड़ रही है। जैसे प्राण उसे छोड़ कर जा रहे हों और कहीं से एक कोमल हाथों ने उसे छू कर पूछा है कि मेरे बाद मेरी बेटी का क्या होगा?

शीला चिहुंक कर उठी। ठंड में भी पसीना-पसीना। सुबह होने का इंतजार करना मुश्किल था। छह बजे उठ कर वह किचन पहुंच गई। चाय बना कर कमरे में आई तो इंदिरा जाग चुकी थी। उसने धीरे से दरवाजा खटखटा कर पूछा, ‘चाय पियोगी?’

इंदिरा चौंकी, पर हां में सिर हिलाते हुए उठ खड़ी हुई। किचन में वह भी आ खड़ी हुई। शीला अपने को रोक नहीं पाई, रात का ज्वार सिर पर सवार था, ‘इंदू, एक बात बता। वो केरोल की बेटी किस चाइल्ड केअर सेंटर में है? कैसी है? क्या मैं उससे मिल सकती हूं?’

इंदिरा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आए, ‘आप उससे मिली तो थीं कल! कैथरीन है केरोल की बेटी।’
शीला का मुंह खुला रह गया, ‘तुम उसे घर ला रही हो ना इंदिरा?’

इंदिरा ने धीरे से कहा, ‘मैंने सोचा है कि उसे गोद ले लूं। आपको बताया नहीं। मैं केरोल से मिली थी उसकी मौत से पहले। उसने कहा था कि वह मेरी कुसूरवार है। पर उसकी क्या गलती थी मम्मी? वह जब अपनी बेटी के बारे में बोल रही थी, मुझे लगा कि कितना अपना मानती है वह हम सबको। मैंने उसी दिन सोच लिया था कि उसकी बेटी को अनाथ नहीं रहने दूंगी।’



शीला की आंखें झरने लगीं। दीवार से टेक लगा कर बोली, ‘इंदू, मुझे नानी बनने का मौका दोगी ना?’

इंदिरा पहले कुछ समझी नहीं, फिर शीला के गले लग गई, ‘आप मेरी मां बनेंगी ना? हम दोनों मिल कर कैथी को प्यार से पालेंगे।’





जयंती रंगनाथन