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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 18

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग- 18

लेखक:- देवेन्द्र प्रसाद

पूजा के अनगिनत सवालों से अखिल घबरा गया था। वह इस बात को मानने लगा था कि तांत्रिक कहीं ना कहीं सही बात कह रहा था। वह जानता था कि यदि उसने मेघा के कटे सिर वाली बात उसे बात दी तो वह बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। आखिर वह जन्म के लगभग एक साल तक ही तो अपनी माँ के साथ रही थी जिसकी वजह से उसे आज भी मां का इंत्जार था। ऐसे में उस पर इस बात का गहरा असर पड़ सकता था।

अखिल पूजा कि तरफ देखते हुए बोला, “पूजा मैंने देखा कि अनुज वहाँ हवेली में बिल्कुल सुरक्षित था और वह मेघा के साथ काफी हँसकर बात कर रहा था, मानो जैसे उसे वह वर्षों से जानता हो?”

यह सुनते इस बार पूजा गुस्से से बोली, “डैड मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप कुछ मुझसे छिपाने कि कोशिश कर रहे हो? देखो मैं कहती हूँ कि जो कुछ है वो सच सच बात दो।”

अखिल बोला, “न... नहीं तो मैं सच ही तो बोल रहा हूँ। मैं भला तुमसे क्यों छिपाऊँगा।”

पूजा इस बार अपनी आवाज मोटी करती हुई बोली, “आप किसी प्राचीनकालीन अलमारी का जिक्र कर रहे थे? क्या था उस अलमारी में?”

अखिल बोला, “अनुज ने जैसे ही वह अलमारी खोली इस तांत्रिक ने अपने हाथ मेरे सिर से हट लिए जिसकी वजह से मैं यह नहीं देख पाया कि उस अलमारी में क्या था?”

“तुम बाप बेटी की बकवास पूरी हो गई हो तो हम आगे का काम करें?” इस बार यह बात बीच में ही टोकते हुए तांत्रिक ने कहा। उसने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “देखो जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ और एक बार आखिरी बार कह रहा हूँ कि अब तुम्हें इस शैतानी किताब का आखिरी अध्याय लिखना है और अब तुमने किसी तरह कि चालाकी की तो यकीन मानो मेरा तुमसे यह वादा है कि तुम अपनी बेटी से हाथ धो बैठोगे वो भी हमेशा हमेशा के लिए।”

अखिल पूरी तरह से टूट चुका था और वो समझ चुका था कि मेघा मर चुकी थी वो कटा हांथ, सिर और कई अंग मेघा के ही थे पर....। उसी का साया उसे हवेली मे एक बार दिखा था पर वो समझ नही पाया यही सब सोचते हुये अखिल किताब लिखने बैठ गया पर उसे अब भी पूरी तरह यकीन नही था कि मेघा मर चुकी है पर फिर भी उसके अन्दर बदले की आग धधक रही थी।

इधर अनुज ने उस कमरे में सब जगह देखा पर मेघा और वो खोपडी कहीं नजर नही आ रही थी। उसकी साँसों की रफ्तार बता रही थी कि वह अब बहुत घबराया हुआ था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह अचानक कहाँ अदृश्य हो गईं थी।

इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता तभी उसकी दृष्टि वहाँ बिस्तर के नीचे पड़े लेडिज पर्स पर पड़ी। वह बिजली कि फुर्ती से उस पर लपका।

“हो ना हो मुझे इसके अंदर कुछ ऐसा सुराग जरूर मिलेगा जिसकी मदद से मुझे इस गुत्थी को सुलझाने में मदद मिलेगी।” यह कहने के साथ अनुज ने उस पर्स को खंगालना शुरू कर दिया। लेकिन अफसोस उसे उसके अंदर मोबाईल के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं हुआ। उसने उस मोबाईल को अपने हाथ में लिया तो देखा कि वह अभी भी सुचारु रूप से काम कर रहा था। उसने देखा कि मोबाईल में अब बस पांच प्रतिशत बैटरी ही शेष थी।

उसने झट से फोन की गैलेरी खोली तो उसे कुछ तस्वीरें दिखाई दीं। उसकी नजरें एक तस्वीर पर जा कर जम गईं। वह खुद से बड़बड़ाता हुआ बोला, “अरे यह तो मेघा आंटी की तस्वीर है लेकिन इस इस तस्वीर में तो कोई अन्य व्यक्ति उनके साथ है। यह तो पूजा के डैडी भी नहीं है तो यह व्यक्ति कौन हो सकता है?”

यह कहता हुआ उसने बाकी की तस्वीरों को देखना शुरू किया। अब इस बात की पुष्टी हो चुकी थी कि ये पर्स मेघा का ही था। जैसे जैसे वह तस्वीरें देखता जा रहा था उसकी आँखें आश्चर्य से और भी फैलती जा रहीं थी। वह इस बार बोला, “अरे इन सभी तस्वीरों में यह व्यक्ति मेघा आंटी के साथ इस तरह है जैसे वह उनका कोई खास आदमी हो लेकिन मेघा आंटी के चेहरे के भाव अलग से क्युं लग रहे हैं और ये आदमी तो वही कपडे पहने है जो अखिल अंकल ने पहने हुये थे पर ये .....?”

तभी अगली तस्वीर देख के उसके होश फाख्ता हो जाते हैं और वो कंपकंपाते होंठ से बोला, “ये... ये... ये तस्वीर तो इसी जगह की लग रही है। इसका मतलब मेघा आंटी यहाँ आई थी तो क्या अभी अभी मैने जो उनका कटा हुआ सिर देखा वो सच था? क्या अब वो जीवित नहीं? कहीं वो मुझे अपनी मौत के बारे में कुछ जानकारी तो नहीं देना चाहती थीं? मुझे लगता है कि ऐसा ही है क्योंकि उन्होंने अभी तक मुझे कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाया, जिसका मतलब साफ है कि वो मुझसे कोई मदद चाहती थीं। मुझे उनकी मदद करनी ही चाहिए?”

यह कहते हुए वो अपनी जगह से उठा और जोर जोर से आवाज लगाने लगा।

“मेघा आंटी.... मेघा आंटी, आप कहाँ हो? मैं समझ गया कि आप कुछ बताना चाहती हो, मैं आपकी मदद के लिए तैयार हूँ लेकिन एक बार आप सामने तो आओ।”

उसके ऐसा कहने के बाद भी उसे कोई जवाब नहीं मिलता। कुछ क्षण रुककर वो फिर दुबारा से चारों तरफ घूमते हुए आवाज लगाता है-

“मैं जानता हूँ कि आप अब जिन्दा नहीं हो। मैं आपकी कहानी जानना चाहता हूँ कि आपको किसने और क्यों मारा? एक बार आप सामने आ जाओ मैं वादा करता हूँ कि आपके कातिलों को सजा दिलवा कर ही रहूँगा।” ये कहते हुये उसने उस कमरे मे बने षटकोण मे वो कटा हाँथ और पैर रख दिये और मन से मेघा को पुकारने लगा कि तभी बाहर जोर से बिजली कड़की जिसकी रोशनी में अनुज ने देखा कि उसके सामने मेघा खडी थी जिसे देखकर अनुज के होश उड़ गये थे और इसी के साथ पूरी हवेली मे अन्धेरा छा गया।

अचानक गाडी के ब्रेकों की चीख से सारा जंगल गूंज उठा। किसी ने अपनी कार को एक झटके से रोक दिया था। एक आदमी तेजी से अपनी कार से उतरा और सड़क से नीचे कि तरफ भागा। उसने देखा कि एक लाल रंग की कार किसी पेड़ से टकराई हुई थी और उसका दरवाजा खुला हुआ था। उसने झाँककर देखा तो उस कार के अंदर कोई भी मौजूद नहीं था। वह घबराते हुए उस कार के आगे जाता है। उसकी नजर जैसे ही नंबर प्लेट पर पड़ती है वो चीखते हुए बोलता है,

“अरे यह नंबर तो अखिल की कार का ही है। इसका मतलब ये कार उसी की है।”

कार के पिछले हिस्से का दरवाजा बंद था जिसकी वजह से उसके अंदर बारिश का पानी भर आया था। उसने जैसे ही कार का पिछला दरवाजा खोला बारिश का रुक हुआ पानी किसी धारा कि तरह बह पड़ा। तभी उसके पाँव से कुछ सामान टकराया उसने झुक के उसको उठाया तो देखा वह एक मोबाईल फोन था।

“अरे यह तो अखिल का मोबाईल है इसका मतलब उसका मोबाईल गाड़ी में ही रह गया जिसकी वजह से वो ........ और फिर बारिश के पानी में डूबे होने कि वजह से मोबाईल स्विच ऑफ हो गया था। ले... लेकिन यह अखिल किधर है? वो कहीं भी नजर क्यों नहीं आ रहा? मुझे उसे जल्दी ही तलाशना होगा?”

यह कहते हुये उस आदमी ने वो मोबाइल गाडी की डिग्गी के उपर रख दिया जो हल्की खुली थी और वो जंगल के अंदर की तरफ जाने लगा। उसने अपनी हथेली को वक्राकार आकृति बनाते हुए मुंह के पास ले गया और चिल्लाना शुरू कर दिया, “अखिल... अखिल... तुम किधर हो? मेरी आवाज सुन रहे हो क्या?”

यह कहता हुआ वो अपनी नजर चारों तरफ दौड़ा रहा था लेकिन जवाब में उसे अपनी ही प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही थी। वह उस जंगल के अंदर बेधड़क चलता चला जा रहा था। उसे उम्मीद थी कि अखिल यहीं कहीं उसे मिल जाएगा।

तभी अचानक उसे पत्तों की सरसराहट की आवाज आई, ऐसा लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है। वह जैसे जैसे आगे बढ़ता वह आवाज उसके साथ साथ सुनाई देती और जैसे ही वह रुकता तो वह आवाज भी आनी एकदम से बंद हो जा रही थी। अब उसे कुछ ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसने कोई आवाज सुनी थी, जिसकी वजह से उसके कान खड़े हो गए। लेकिन अब कुछ भी कुछ स्पष्ट सुनाई नहीं दे रहा था, सिवाय पेड़ों के पत्तों के बीच से गुजरती हुई हवा की सरसराहट के।

वह अपनी आँखों कि पुतलियों को फैलाए धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। उसका मन एक अजीब सी उत्सुकता होने के साथ अंजान खौफ से भर गया था। अजीब किस्म की बेचैनी और आशंका-सी घुमड़ने लगी थी। उसे अब ऐसा महसूस हो रहा था कि आसपास में निश्चित रूप से कहीं कोई गड़बड़ है।

अचानक उसका पैर फिसला और वह धरती पर गिर पड़ा। उसके गिरते ही वहाँ किसी कि हँसी की गूंज सुनाई दी जिसे सुनते ही वह एकदम उछल कर बैठ गया। उसका दिल अब तेजी के साथ धड़कने लगा था। तभी उसे ऐसा लगा जैसे अभी-अभी उसने किसी के दांत किटकिटाने की आवाज सुनी थी।

उसने और ज्यादा आंखें फाड़ कर अंधेरे में देखने की कोशिश की। हवा के हल्के झोंकों से हिलती झाड़ियां और पेड़ों की टहनियां तो उसे अवश्य दिखाई दीं, मगर ऐसी कोई चीज दिखाई नहीं दी जिसकी उसकी आँखों को तलाश थी। फिर भी वह महसूस कर रहा था कि खतरा उसके आसपास ही बाहर कहीं मंडरा रहा है। वह धड़कते दिल के साथ अपनी नजरों को सावधानी से इधर-उधर दौड़ाता रहा कि शायद कोई नजर आ जाए। लेकिन कहीं कोई नजर नहीं आया।

वह उस सबको अपना वहम समझ कर वहां से हटने ही जा रहा था कि तभी अचानक उसे अंधेरे में एक सफेद सी रौशनी दिखाई दी। उसने उन झाड़ियों को हटाते हुए देखा तो आश्चर्य से उसकी आँखों कि पुतलियाँ फैलती चली गईं। वहाँ एक आलीशान घर था जो किसी पुरानी हवेली की तरह दिख रहा था। जिसके रौशनदान से रौशनी छन के बाहर आ रही थी। वह दौड़कर उस हवेली के दरवाजे के पास आया जिस पर लोहे का गोल कुंडा बना था।

इससे पहले वो उस गोल कुंडे से दरवाजा खटखटाता कि तभी वो कुछ सोचकर कुछ क्षण के लिए रुक गया। मानो जैसे उसे कुछ बहुत जरूरी बात याद आ गई हो। उसके चेहरे का रंग अनवरत बदलता चल गया था इस बार वह लड़खड़ाती हुई जुबान से बोला, “यहाँ आस पास में कोई भी मकान मौजूद नहीं है। इस रौशनदान से निकलती हुई रौशनी इस बात पर मेरा यकीन पुख्ता करती है कि हो ना हो यहाँ जरूर कोई इंसान मौजूद है। इसका मतलब हो ना हो अखिल मदद कि तलाश में इस घर के पास जरूर आया होगा। मुझे यहाँ से जरूर कुछ अहम जानकारी मिल जाएगी जिससे मुझे अखिल को तलाशने में आसानी हो जाएगी।”

वो यह कहता हुआ उस कुंडे को हाथ लगाने ही वाला था कि उसे अपने दांई ओर कुछ हलचल सी होती दिखाई दी। उसने टार्च की रोशनी से झाडियों के पास जाकर देखा तो उसे कुएं की तरह कुछ दिखा। वह अब टार्च के साथ उस दिशा की ओर बढ़ने लगा। वह खामोशी के साथ कुएं कि दिशा में जाने लगा। उसने टॉर्च के प्रकाश को सामने की तरफ कर के देखने की कोशिश की तो उसने देखा कि वहाँ ईंट से गोलाकार आकर में एक दीवार थी। पास आने पर उसने देखा कि उस ईंट पर गंदी सी काई जमी हुई थी। उस गोलाकार दीवार से उसने टॉर्च के प्रकाश को जला कर देखा तो उसे यह समझते देर नहीं लगी कि वह एक गहरा कुआँ ही था।

तभी उसे तीक्ष्ण बदबू का एहसास हुआ। ऐसी बदबू कि जैसे वह तुरन्त उल्टी कर दे। वह झटके से दो कदम पीछे हट गया।

कुवें के अंदर का दृश्य उतना स्पष्ट नहीं था। जगह जगह पर झाड़ियाँ और पीपल के पेड़ होने की वजह से उसका अधिकांशतः भाग नहीं दिख रहा था। जिनके भीतर जंगली कीड़े किर्र किर कर रहे थे। वह कुवाँ काफी विशाल और मजबूत दिख रहा था। कुवे के अंदरूनी हिस्से में गोलाकार सीढ़ी बनी हुई थी जो शायद कुयें की गहराई तक जाती थी। परंतु कुयें की दीवार की बाहरी परत को देखकर आसानी से यह कहा जा सकता था कि यह कुवाँ सदियों से उस हवेली की पहरेदारी कर रहा था।

पत्तों की खड़खड़ाहट के अलावा और हवा की सनसनाहट के अतिरिक्त चारों तरफ गहन निस्तब्धता थी। उस आदमी ने इस बार झल्लाते हुए कहा, “ओहह! मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं यहाँ इस पुराने कुयें तक कैसे पहुंचा? मैं तो हवेलीनुमा घर की तरफ जा रहा था।”

अब वह गहरी सोच में डूब गया। वह अब यह सोचने लगा कि अब क्या किया जाये? उसने एक बार घूम कर पीछे देखा और फिर खुद से बुदबुदाता हुआ बोला, “अरे मैं तो इस जंगल के बीच में आ गया हूँ। मैं अखिल को ढूंढ़ते हुए भटक कर जिस स्थान पर पहुँच गया हूँ, वहाँ से वापस लौटने का मतलब था रात के स्याह अंधकार में जंगली जानवरों के भूख के सामने अपने आपको समर्पित कर देना। क्योंकि रात अब ज्यादा घनी हो गई है। यहाँ से अकेले वापिस जाने का मतलब बिना किसी से पूछे यमलोक पहुँच जाना।”

यह कहते हुए उसकी नजर फिर सामने हवेली पर पड़ी। जिससे आती रोशनी देख कर वह बोला, “अवश्य वहाँ कोई रहता होगा। मुझे अब बिना देरी किये इस हवेली में जाना चाहिए।”

यह कहते हुए वह उस हवेली की तरफ बढ़ पड़ा। वह कुछ ही पल में अब उस हवेली के सामने था। वातावरण में एक अजीब-सी मित्रता व्याप्त थी। जैसे उस हवेली ने उस पर नजर बना कर रखी हो। उस आदमी ने विशाल दरवाजे पर लगे गोल कुंडे को जोर-जोर से खटखटाया, मगर दरवाजा खोलने कोई नहीं आया। इस क्रम को मैंने कई दफे दोहराया लेकिन कोई असर नहीं हुआ।

इस बार उसने चिल्ला कर कहा, “अरे भाई कोई है, इस हवेली में?”

इस तरह कई बार खटखटाने और आवाजें लगाने पर भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला। उसे अब बडा अजीब लगता है। वह उस हवेली के अंदर जाने के लिए उस हवेली के पीछे पहुँच जाता है।

लेकिन वहाँ भी पहुँचने पर उसे निराशा ही हाथ लगती है। वह टॉर्च का प्रकाश जैसे ही सामने कि तरफ करता है तो उसकी नजर एक बड़ी सी खिड़की पर पड़ती है जो कि आम कल्पनाओं से एकदम परे थी। एक दीवार में एक चार फुट चौड़े और छह फुट लम्बे चौखट में एक समूचा शीशा फिट था। उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे किसी दूसरी दुनिया में जाने का प्रवेश द्वार था। इस तरह घबराते हुए उसने उस खिड़की पर एक नजर फेर कर ही हड़बड़ाहट के साथ रास्ता टटोलता हुआ उस हवेली के सामने दरवाजे पर फिर से पहुँच गया।

वह इस बार फिर से उस दरवाजे को खटखटाता है। इस बार भी जवाब नहीं आने पर उसने चिढ़कर कहा- “अरे भाई कोई इन्सान हैं इस हवेली के अन्दर या केवल कोई भूत ही रहता है।"

यह कहते हुये उसने जोर से धक्का देना चाहा पर दरवाजा इससे पहले ही खुल गया। दरवाजे के इस तरह से खुलने की वजह से वह चौंक गया। वह धीरे धीरे अंदर बढ़ने लगा।

दरवाजे से भीतर घुसते ही काले चमगादडों का एक झुण्ड शोर मचाता हुआ उसके कान के बगल से सांय सांय करता हुआ निकल गया। कुछ देर तक उन चमगादड़ों कि प्रतिध्वनि उसके कानों में गूँजती ही रही। वो अन्दर घुसा तो उसने देखा कि वहाँ फर्श पर धूल की मोटी परते जमीं हुई थीं। कमरे में गहरा अंधेरा था और चारों ओर नीरवता व्याप्त थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे वर्षों से हवेली के अंदर कोई आया ही न हो तभी उसके पैर के नीचे कुछ पडा जिसे उसने उठा कर देखा तो वो किसी पुरुष की शर्ट पैंट थी जिसे देखकर ऐसा लग रहा था कि किसी ने गीले कपडों को यूं ही फर्श पर डाल दिया और भूल गया जिस पर धूल की परत जम चुकी थी। अंदर का तापमान अचानक बदलने लगा था। उसे अब ठंड और अधिक महसूस होने लगी थी। तभी उसने खिड़की से बाहर देखा तो उसके होश उड़ गये क्युंकि बाहर बडी जोर की बारिश हो रही थी और बिजली रह रह कर कौंध रही थी जिसकी गड़गडाहट से उसके कान फटे जा रहे थे।

“अरे यहाँ तो कोई मौजूद ही नहीं है? यहाँ के रहने वाले सभी लोग कहाँ गए हैं और ये बारिश अचानक.....?"

उसने यह बात कही ही थी कि तभी हवेली के कमरे में एक दर्दनाखचीख गूंज उठी।

निश्चय ही यह किसी की दर्द-भरी चीख थी। वो आदमी हड़बड़ाकर उस आवाज की दिशा में दौड़ पड़ा।