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चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर - 18

चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 18

Chanderi-Jhansi-Orchha-gwalior ki sair 18

दोपहर के साडे ग्यारह बज चुके थें। ग्वालियर रोड पर पांचवा किलोमीटर पार करते हमने देखा कि ग्वालियर की झांसी से दूरी 102 किलोमीटर है । झांसी से रेल द्वारा भी ग्वालियर पहॅुचा जा सकता है। दतिया स्टेशन भी गवालियर जाते समय रास्ते में मिलता है। दतिया यहॉ से 27 कि.मी. है ।

पंाचवे और छठवे किलोमीटर के बीच में हमने रोड पर एक बोर्ड लगा देखा जिसमें उनाव बालाजी के लिए जा रहे मार्ग का संकेत था। मुझे पता था कि भारतवर्श मे सुर्य के गिने चुने मंदिर है जिनमें से उनाव बालाजी भी एक एतिहासिक शैली का खास मंदिर है । हमारी जीप मेरे इशारे परर उनाव गांवं के लिए चल पड़ी। उनाव यहॉ से 12 किलोमटर दूर है ।

उन्नाव गांव में झांसी दरवाजे से प्रवेश किया । यह दरवाजा एक विशाल उंचा दरवाजा है। जो ईंट से बना हुआ प्राचीन इमारत जैसा दिखता है। ऐसा ही एक दरवाजादतिया रोड पर उनाव में बना है इसे दतिया दरवाजा कहा जाता है।

पता लगा कि सूर्य को यहॅं बालाजी कहा जाता है, मंदिर को कहते हैं बालाजी मंदिर। झांसी दरवाजे से प्रवेश करते ही दांयी ओर मुडकर हम बालाजी मंदिर में पॅहुचे । मंदिर की इमारत बडी प्राचीन है और यह बाहर से मंदिर जैसा न लग कर कोई महल या किला जैसा दिखता है, बाकायदा इसका भी खूब बड़ा सिंह द्वार है यानि कि दरवाजा भी एक बड़ी इमारत की तरह है । इसमें दो आंगन है । कच्चा पहला आंगन हमकों एक बड़ा दरवाजा पार करने पर मिला। इस आंगनमे जीप वगैरह रखने की जगह है । इस आंगनके चारो ओर पुरानी हवेलियों व महलो की तरह अंसख्य कमरे है , जिसमें यात्री ठहर सकते है।यह सब कमरे कई मंजिल में बने हुए है। जीप वहीं रोककर हमने दूसरे आंगन मे जाने वाले दरवाजे की तरफ कदम बढाये। यह दरवाजा थोडा उंचा भी है। और यहॉ सीडी चढकर ही जाया जा सकता है। भीतर एक विशाल पक्का आंगन है। यहॉ। यहां खूब भीड इकट्ठा दिखी हैं। बहुत सारे पुजारी धोती कुर्ता पहन कर घूम रहे थे। तमाम दर्षनार्थी भी यहॉ इंकट्ठा थे । आंगन के बीचो बीच एक प्राचीन सी छोटी इमारत दिखी।यहीं सूर्य मंदिर है । सूर्य मंदिर के ठीक सामने नीचे जाती हुई सीड़ियां दिखी। सामने एक विशाल नदी दिखाई दे रही थी।

हमकेा खडे देखकर एक पढा लिखा नौजवान हमारे सामने आया और बोला कि आप लोग शायद घूमने आये हैं तो मैंने सहमति प्रकट की । वह बोला कि आईये में आपलोगो को घुमाता हॅू मेरा नाम सुनील बांगड़ है ।

सुनिल ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण आज से तेरह सौ साल पहले किया गया था। यह मंदिर पंहुच नदी के किनारे बनाया गया है। पॅहुज नदी के पानी में यह चमत्कार है कि जो इसमें नहा लेता है उसके चर्म रोग यानि कि खाज, खुजली, दाद और केाड़ तक ठीक हो जाती है । इसीलिए यहॉं कोड़ रोग से ग्रस्त लोग प्रायः आते रहते हैं ।

हम लोग सीडियां उतरके नदी के पास पॅहुचे तो यह नदी हमको ज्यादा भरी हुई नही लगी । पता लगाकि जिधर से नदी आतीहै उधर के कुछ किसान गैर कानूनीरूप से बांध बनाके पानी रोक लेते हैं। इसलिए मंदिर के पास कम पानी आ जाता है ।

नदी मे सेकडों लोग स्नान कर रहे थे। हमने देखा कि मंदिर की दीवारंे दूर तक दिखाई दे रही थी । मदिंर की दीवार से सटी हुई नदी बहती हुई आयी है । नदी में खडे़ होकर उपर देखा तो हमे इमारत का उपरी हिस्सा बहुत उंचा लगा। यहॅं शायद तीन मजिंल उंची इमारत है । सुनील ने बताया कि यह स्थान झांसी के पास है लेकिन बाजीराव पेशवा ने यह स्थान महेश्वर के मराठा सेनापति होल्कर को प्रदान किया था इसलिए होल्कर ने इस जगह ने उस इमारत का पुनर्निर्माण कराया जो कि वीरसिंह देव द्वारा पंद्रहवी सदी में बनवाई गई थीं बाहर के गांवो से आये लोग इस इमारत के अलग-अलग हिस्सो में ठहरते और यही खाना बनाते है । इस जगह को तीर्थ जैसा महत्व दिया जाता है। बहुत से लोग नदी में खडे होकर अपने सिर को घुटाते हुए भी मिले तो सुनील ने बताया कि ये लोग सूर्य को अपने सिर के बाल दान कर रहे है ।

सीड़ीयों से चढ़कर हम उपर आये तो सामने ही सूर्य मंदिर था। मंदिर पक्का बना था। मंदिर के आगे तीस फिट केखुल हिस्से के उपर ं टीन शेड था। मंदिर के दरवाजे कम चौड़े थे। एक से लोग आते थे दुसरे से बाहर निकल जाते थे।

मंदिर के अंदर कम चौड़ा स्थान था यह एक छोटे कमरे जैसा था। मूर्ति एक उंचे चबुतरे पर बनी हुई थीं। हमने पास जाकर देखा वो काली चट्टान पर गोल थाली जैसी मूर्ति दिखी। जिसमे कि आंख नाक और चेहरा मात्र बने थे। लोग लोटा मे जल भरके लाते थे और मूर्ति पर चढ़ा देते थे। मंदिर के फर्ष पर पानी की कीच ही की मची थी । खूब सारे फूल भी चढाये जा रहे थे। वहीं पास में एक खूब मोटी ज्योति का एक दिया जल रहा था, सुनील ने बताया कि यहा देशी घी से जलता हुआ दीपक है जो सैकड़ों साल से यूंह ी जल रहा है, लोग इसे दिये के लिए घी दान करते हैं, ऐसा दान का घी एक कुंये जैसे स्टोर में डाल दिया जाता है, जिसमें कि सैकड़ों साल से घी डाला जा रहा हे। यह घी आयुर्वेदिक दवाओं के बनाने के काम आता है तो मंदिर का इंचार्ज तहसीलदार इस घी को दवा कम्पनी को बेच कर मंदिर के खाते में उसकी कीमतजमा कर देते है।

हम लोग बाहर निकल आये और एक तरफ बेठके भीड का आंनद लेने लगे। लोग सीधे नदी तरफ जाते और नहाके गीले कपडों में ही उपर आत और सूर्य की मूर्ति पर जल चढा देते। पंडा पूजारी यहॉं अपने वाले हर आदमी से पूछ रहे थे बोलो माई छाजन, छजनियां ,दाद, खाजखुजली किस चीज की पूजा करानी है।

कुछ लोग पूजा भी करा रहे थे। हने चारो और देखा । मदिर के आस पास बड़ा सा आंगन था। आंगन के बाद खूब बडे़ बडे़ छातो वाली इमारत यहॉ तक फेली दिखरही थी। इस वक्त छतो पर भी कुछ लोग बैठे थें और आंगन भी भरा पडा था।

दोपहर का एक बज गया था। इस बीच सुनील खुद ही मंदिर से बाहर गया और पोलिथन की बडी सी थैेली मे ंमावा की बनी मिठाई और कुछ नमकीन ले आया। बच्चों को भूख लग आई थी। हम छत पर पहुंचे और नाश्ते को बीच मे रख कर दावत उडाने लगे ।

दो बजते- बजते हमनेसुनील से विदा ली और उनाव छोड़ा। दतिया गेट से होकर हम दतिया रोड़ पर बढ़ चले। दतिया यहॉ से 17 किलोमीटर दूर था।

उनाव- उनाव मध्यप्रदेश के दतिया जिले का एक बड़ा और सीमावर्ती गांव है जो कि झांसी से 12 किलोमीटर और दतिया से 17 किलोमीटर दूर है।

क्या देखने योग्य- उनाव में सूर्य मंदिर यानि बालाजी मंदिर देखने योगय है जो कि सत्रहवी सदी में मराठा सरदार इंदौर महेश्वर क्षत्रप होलकर द्वारा बनवाया गया था।

साधन’ उनाव के लिए झांसी और दतिया से बस उलबध है और निजी साधन भी मिलते हैं। तांगा और ऑटो भी दोनों जगह से मिल जाते हैं।