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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 20 - Last Part

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 20

लेखक – मन मोहन भाटिया

अखिल ने हैरानी भरी नजरों से तांत्रिक को देखा। तांत्रिक भी समझ चुका था कि अब वक़्त आ गया है कि अखिल का ये राज उसे पता चले।

"अखिल, तुम बधाई के पात्र हो, तुमने किताब लिख दी है। किताब के समाप्त होते ही देखो शैतान देवता की मूर्ति दीप्तिमान हो रही है। लाल प्रकाश का तेज मुझ पर पड़ेगा और मैं इस दुनिया का ईश्वर बन जाऊँगा। समस्त प्राणी, पक्षी, पशु, आत्माएं मेरे नियंत्रण में होंगे। हा हा हा, मेरा सपना साकार हो गया है।"

अखिल एक टक स्तब्ध होकर तांत्रिक की तरफ देखे जा रहा था कि तभी तांत्रिक फिर बोला "हा...हा....हा....हा...क्या सोच रहे हो???? यही कि इस पन्ने पर यह मेघा का नाम कैसे आया? हा...हा....हा....हा... मूर्ख.... तू भूल रहा है, अंतिम अध्याय तू अपनी खाल पर लिख रहा था। ये वही तेरी छाती की खाल है जिस पर तूने उस मेघा का नाम गुदवाया था। अखिल.... तू मर चुका है...... तू मर चुका है.....। तेरी आत्मा किताब लिख रही थी और यही इस किताब को लिखने की शर्त है....हा.....हा....हा...हा....।"

ये कहकर तांत्रिक कुछ मंत्र पढ़ता है जिससे किताब हल्की हो जाती है। वो अखिल से किताब अपने कब्जे में करके शैतान देवता की मूर्ति के आगे खड़ा हो गया। मूर्ति के लाल प्रकाश से उसकी सभी ख्वाहिशें पूरी होने में कुछ पल का समय शेष था।

अखिल वहीं बैठा अपनी परिस्थितियों का अवलोकन करने लगा। उसे सब कुछ याद आ गया। वह कार चला रहा था। उत्कर्ष ने उसको फोन करके पूछा था, वह कब तक आ रहा है और फिर उसकी कार का एक्सीडेंट हुआ था जिसके बाद वो कार से निकलकर हवेली में आया था। पर सच तो ये था कि कार के एक्सीडेंट होने पर वो तुरंत मर गया था और तांत्रिक ने उसकी आत्मा को हवेली की ओर आकर्षित किया। तांत्रिक ने अखिल के शरीर की खाल उतार कर किताब के लिये रख ली और उसके शरीर के अवशेष कार की डिग्गी में भर दिये जो अभी भी जंगल में पडे थे।

लाल प्रकाश शैतान देवता की मूर्ति की कमर तक पहुँच गया। तांत्रिक किताब को हाथ में कस कर पकड़े शैतान देवता की स्तुति करने लगा।

अखिल अब सब कुछ समझ चुका था। वो तो कब का मर चुका था और शायद यही कारण था कि वो अपने अतीत और भविष्य में जा सकता था। उसके साथ फिर वही हुया जो पिछले जन्म में उसके यानी रुद्रांश के साथ हुया था। उसका क्रोध अब अपनी चरम सीमा पर था। उसकी आत्मा ने दृढ़ निश्चय किया, अब वह शैतान बन कर रुद्रांश और अपना बदला लेगा। उसकी आंखों से अंगार निकल रहे थे और उसमें एक अजीब सी शक्ति का संचार सा हो चला था।

उसने तांत्रिक पर हमला बोल दिया। तांत्रिक लड़खड़ाते हुए नीचे चित गिरा। अखिल ने तांत्रिक से किताब खींचीं और शैतान देवता की मूर्ति के निकट खड़ा हो गया। शैतान देवता की मूर्ति में कुछ हलचल हुई। मूर्ति का हाथ ऊपर उठना आरंभ हुआ। निसंदेह यह संकेत था, शैतान देवता किताब के लिखने पर प्रसन्न हो चुके है और कुछ ही देर में आशीर्वाद देते हुए लुप्त हो जाएंगे। जिसको आशीर्वाद मिलेगा, वही सबसे बड़ा शैतान बन कर दुनिया पर राज करेगा। आसमान पूरी तरह से लाल हो चुका था और खून की बारिश शुरू हो रही थी।

तांत्रिक को अपने ऊपर अचानक हमले की उम्मीद कतई नहीं थी। औंधे मुँह गिरे तांत्रिक ने अखिल को देखा, वह शैतान देवता की मूर्ति के आगे किताब लेकर खड़ा था। वह तुरंत उठा और अखिल को पीछे से पकड़ा। अखिल मील के पत्थर की भांति अडिग था। तांत्रिक उसे उसके स्थान से हिला नहीं सका, किताब पूर्ण करने के कारण अब अखिल की आत्मा शक्तिशाली हो चुकी थी। शैतान देवता की मूर्ति पर लाल प्रकाश गले तक आ गया था। मूर्ति के हाथों में हरकत आने लगी।

तांत्रिक ने आगे आकर अखिल से किताब खींचने की कोशिश की। अखिल ने किताब को अपने दाएं हाथ में पकड़ा और बाएं हाथ से एक जबरदस्त प्रहार तांत्रिक की नाक पर किया। प्रहार होते ही तांत्रिक के चेहरे से खाल उतर गयी और वो अपने वही असली और कुरूप अवस्था मे आ गया। उसकी नाक से खून निकला और वह नीचे गिर पड़ा। तांत्रिक के नीचे गिरते ही अखिल ने अपना बायां पैर उसकी खोपड़ी पर रख दिया। तांत्रिक को ये एक पैर का भार नहीं लग रहा था, उसे ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे कोई पहाड़ उसके सिर के ऊपर गिरा है। वह हर कीमत पर किताब को अपने कब्जे में करके शैतान देवता की मूर्ति से आशीर्वाद लेना चाहता था।

मूर्ति में हलचल और अधिक होने लगी। मूर्ति का हाथ आशीर्वाद की मुद्रा के लिए ऊपर उठ रहा था। लाल प्रकाश मूर्ति के नाक तक आ गया था।

तांत्रिक ने एक जबरदस्त जोर लगाया और अखिल के पैर को हिला कर उसके नीचे से बाहर आने में सफल रहा। फुर्ती के साथ तांत्रिक उठा और किताब को अपने कब्जे में करने के लिए अखिल पर झपटा पर तांत्रिक का हर प्रयास असफल रहा। तांत्रिक एक बात भूल गया था, वह अखिल के शरीर से जीत सकता था, उसकी आत्मा से नहीं। तांत्रिक ने एक बार फिर अपनी सम्पूर्ण ताकत किताब को अपने कब्जे में लेने के लिए झौंक दी।

लाल प्रकाश मूर्ति के माथे पर आ गया। तांत्रिक और अखिल का मल्ययुद्ध चरमसीमा पर था। तभी शैतान देवता की आँखें खुलने लगी। तांत्रिक छटपटाने लगा। वह किताब को खींचने का हर संभव प्रयास कर रहा था।

लाल प्रकाश पूरी मूर्ति पर छा गया। मूर्ति के नेत्र खुलने लगे। मूर्ति धीरे-धीरे इधर-उधर देखने लगी।

किताब पर पकड़ थोड़ी कमजोर होती देख अखिल ने किताब को पूजा की ओर उछाला। किताब पूजा के हाथों में आ गई।

शैतान देवता की मूर्ति की आँखों से एक नीला प्रकाश निकला, जो पूजा की ओर जा रहा था। मूर्ति का हाथ आशीर्वाद मुद्रा में उठ गया।

नीले प्रकाश को पूजा की ओर जाता देख तांत्रिक और अखिल तुरंत झट से पूजा के हाथ से किताब छीन कर प्रकाश के सामने आ कर शैतान देवता का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे। अखिल तांत्रिक के ऊपर था, उसने एक छलांग लगा कर पूजा के हाथ से किताब खींच कर अपने सीने से लगा ली और शैतान देवता की मूर्ति के सामने खड़ा हो गया। नीला प्रकाश अखिल में समा गया। शैतान देवता की आँखें बंद हो गई और हाथ अपने आप सीधे हो गए। मूर्ति धीरे-धीरे जमीन के अंदर धंसने लगी। अखिल अब शैतान देवता का आशीर्वाद प्राप्त कर चुका था, उसकी आत्मा शैतानी शक्तियों के प्रभाव से अब कुछ ही पलों में शैतानी आत्मा में बदलने वाली थी। तांत्रिक को यह बर्दास्त नहीं हुआ।

अखिल अट्हास करने लगा।

"अब मैं शैतान देवता हूँ। मैं सब पर राज करूँगा। आज से सब मेरे गुलाम होंगे। यह दुनिया मेरे इशारे पर चलेगी।"

अपने पिता को शैतान बनता देख पूजा घबरा गई।

"नहीं डैड, नहीं। आप शैतान नही बन सकते।"

"चुप पूजा, तू मेरी बेटी है इसलिये मैं तुझे भागने का मौका देता हूं, जा...भाग जा......वर्ना मै भी कुछ नहीं कर पाऊंगा। बाकी सबको मैं खत्म कर दूंगा। चुन-चुन कर बदला लूंगा, हा.. हा.. हा....।" अखिल अट्हास कर रहा था।

पूजा बार-बार अखिल से विनती कर रही थी पर उसका कोई लाभ नही था।

अखिल की आत्मा के शैतान बनने की प्रक्रिया आरंभ हो गई थी। धीरे-धीरे शैतानी प्रवृत्ति अखिल में समा रही थी।

दोनों की ये भयानक लडाई देख कर पूजा ने फिर कहा "डैड...यहां से चलिये प्लीज मुझे बहुत डर लग रहा है।”

"पूजा, मैं इसे नहीं छोडूंगा। इस नीच पापी को जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।" अखिल की शक्तियां बढ़ रही थीं। अखिल ने तांत्रिक की छाती पर और दबाव डाला। तांत्रिक की छाती फट गई। उसका धड़कता दिल बाहर आ गया। उसके फेफड़े फड़फड़ा रहे थे। पूजा इस विभस्त दृश्य को देखकर चीख उठी।

"डैड, शैतान मत बनो। रुक जाओ डैड, आप सिर्फ मेरे डैड हो शैतान नही, चलो यहां से।" खून की बारिश और तेज हो रही थी और लाल आसमान में कई बवंडर उठ रहे थे।

अखिल ने हाथ डाल कर तांत्रिक का दिल और फेफड़े उसके शरीर से अलग कर दिये। तांत्रिक तड़प कर मर गया।

"हा हा हा।" अखिल ने अट्हास किया।

अब पूजा को अखिल से डर लग रहा था। उसने पूजा और शैतानी किताब को उठाया और वहां से गायब हो गया।

उधर हवेली में अनुज बाहर होने वाली खूनी बारिश देखकर और घबरा गया, उसे एक बहुत बडे अनिष्ट की आशंका हो रही थी कि तभी अखिल की आत्मा पूजा के साथ हवेली में पहुँच गयी। बुरी ताकतें, आत्माएं भेड़िया नुमा काले लिबास में साये, सब अखिल के गुलाम बन गए और उसकी आज्ञा का पालन करते हुये उसके पीछे चुपचाप खड़े हो गये जिन्हे देख अनुज और भयभीत हो गया।

"पूजा तुम आ गई, मैं तुम्हारे लिए कितना परेशान था।" अनुज पूजा को देखते ही बोला।

"पूजा, अनुज! तुम दोनों यहाँ से चले जाओ। मैं तुम्हें अंतिम चेतावनी देता हूँ, वरना मेरी शैतानी शक्तियों तुम्हें बर्बाद कर देंगी।" अखिल ने शैतानी आवाज मे कहा।

पूजा अखिल के आगे गिड़गिड़ाते हुए विनती कर रही थी। "डैड, आप भी हमारे साथ चलो, शैतान मत बनो।"

अखिल में धीरे-धीरे शैतानी शक्तियां बढ़ती जा रही थी जिन्हे संभालना अखिल की आत्मा के वश मे नही था। आसमान में उठने वाला बवंडर हवेली के दरवाजे तक आ चुका था।

"पूजा, तुम जाओ यहाँ से।" अखिल ने अंतिम चेतावनी दी।

इसी के साथ अखिल की भयानक चीख हवेली में गूंज उठी और बवंडर हवेली का दरवाजा तोड़कर अन्दर आ गया। अखिल ने हवेली को उजाड़ना आरंभ कर दिया। "इस हवेली में अनेकों निर्दोषों को मौत के घाट उतारा गया है। मैं इस हवेली को खत्म कर दूंगा। इस हवेली का नामोनिशान मिटा दूंगा, पूरी दुनिया को तबाह कर दूंगा।"

हवेली की दीवारें गिरनी आरंभ हो गई। सब तहस नहस होने लगा। पूजा और अनुज की आंखों के सामने अब बस एक गुबार था। तभी हवेली की छत धडाम से गिरी जिसके गिरते ही जमीन फट कर दो हिस्सों मे बंट गयी। और अखिल की एक चीख गूंज उठी जिसके साथ हवेली की धुंध भी छंट गयी।

पूजा और अनुज ने दौड़कर देखा कि उस फटी जमीन के अन्दर एक कंकाल पडा था जिसने हांथों में सोने की चूडियां पहन रखीं थीं। अखिल उदास आंखों से उसे देखे जा रहा था। अनुज और पूजा कुछ समझ पाते इससे पहले अखिल की आत्मा ने रोते हुये कहा।

"माँ!!!!! यह क्या??? मैं आज तक यही सोच रहा था कि तुम नदी में डूब कर मरी थी। तुम्हारी इन चूडियों की खनक अब भी मेरे कानों में गूंज रही है, मैने तुम्हे कितना पुकारा मां, कितना ढूंढा....पर तुम कहीं नही मिली, जब मेरे पिता ने मेरी माँ को नहीं छोड़ा, तब मैं इस दुनिया में किसी को नहीं छोडूंगा, ये दुनिया जीने के लायक नहीं।" अखिल के ये कहते ही हवेली के ध्वस्त होने की प्रक्रिया तेज हो गई। अब उसके चेहरे पर रुद्रांश की छवी दिखाई दे रही थी क्युं कि ये अखिल के पिछले जन्म यानी रुद्रांश की मां का कंकाल था जिसे उसके पिता ने ही हवेली में दफ्न कर उसके नदी मे डूबने की झूठी बात गांव मे फैला दी थी।

"डैड, आप क्या कह रहे हो? दादी तो घर पर हैं। ये आपकी माँ नहीं है।" पूजा ने चिल्लाकर कहा।

"यही मेरी माँ है.....।" अखिल ने चिल्लाकर कहा जिसके चेहरे मे रुद्रांश का चेहरा देख कर पूजा सहम गयी, उसे कुछ समझ नही आ रहा था उसे नही पता था कि अखिल ही पिछले जन्म का रुद्रान्श है और ये कंकाल उसकी मां का है।

कुछ देर के लिये ही अखिल व्याकुल हो गया पर उसकी आत्मा फिर शैतानी रूप में बदलने लगी और वो जोर जोर से चिल्लाने लगा कि तभी एक सफेद रोशनी हुई जिसकी चमक से सबकी आंखें चौंधिय़ां गईं।

"बेटा.......मेरे लाल....” हवेली में एक स्त्री स्वर गूंज उठा।

रोशनी कम हुई तो सबने देखा सामने एक औरत की आत्मा हाथों को फैलाये हुये खडी थी।

“बस करो बेटा, सब कुछ भूल जाओ और चलो, मेरे साथ चलो, मै तुम्हे हर पीडा से मुक्त करने आयी हूं, मेरे रुद्रांश.....इन शैतानी शक्तियों को हासिल करके भी तुम्हे इस जग की पीडा भोगनी पडेगी, मैं तुमको शैतान नहीं बनने दूंगी रुद्रांश, बस करो बेटा।" रुद्रांश की मां की आत्मा ने कहा।

"माँ.... अब यह मेरे बस में नहीं है। शैतान देवता का आशीर्वाद मुझे मिल चुका है। मुझे शैतान बनना ही है। मैं सबको बर्बाद कर दूंगा, तुमने बहुत देर कर दी माँ...।" अखिल ने उच्च स्वर मे कहा पर उसके स्वर के साथ रुद्रांश का स्वर भी सुनाई दिया।

"मैं तुझे लेने आई हूँ... आ रुद्रांश, मेरे आँचल में आ जा। जब तू छोटा बच्चा था, मेरी गोद में खेलता था। मैं तुझे अपने आँचल में छुपा लेती थी, तुझे लोरी सुनाती थी, अभी देर नही हुई बेटा....।"

माँ ने हवेली में भटकती सभी आत्मायों का आव्हान किया। खूनी बारिश के साथ अब बिजली चमकने लगी। अच्छी आत्माओं ने अखिल के शैतान बनने की प्रक्रिया को रोकना शुरू कर दिया। उसके भीतर भयंकर युद्ध होने लगा। शैतान की शक्तियां बढ़ रही थी पर अच्छी आत्माएं शैतान की शक्तियों को दबा रही थी। तभी वहां उपस्थित सारी आत्मायें एक में मिल गयीं और बिजली बनकर अखिल पर टूट पडीं जिसकी आग से अखिल की आत्मा तड़प उठी और वो शैतानी किताब जलने लगी। खूनी बारिश अचानक बन्द हो गयी।

देखते देखते चारों ओर आग फैल गयी। पूजा और अनुज यहां वहां भागने लगे कि तभी उन्होने देखा, माँ की आत्मा हाथ फैलाये खड़ी थी, रुद्रांश और अखिल की आत्मा माँ के आँचल में छुप गईं और तेज रोशनी के साथ गायब हो गयीं। पूजा फूटफूटकर रोने लगी।

हवेली के बचे कुचे हिस्से भी टूटने लगे। हवेली के गिरते ही ये खौफनाख रात ढलने लगी जो अखिल के हवेली में आने के बाद हवेली के अन्दर का समय रोके हुये थी। पूजा और अनुज हवेली से बाहर भागे। हवेली ध्वस्त होकर धरती में समा गयी और धरती का पाट समतल हो गया। हवेली का नामोनिशान मिट गया। हवेली अब समतल मैदान बन चुका था।

पूजा और अनुज कुछ समझते कि तभी एक बवंडर आया और उन दोनों को उडा ले गया।

अब वो दोनों भविष्य काल में पहुंच चुके थे और सभी शैतानी शक्तियों का विनाश हो चुका था। सदियों से भटकती रुद्रांश की आत्मा के साथ साथ अखिल और कई सारी आत्माओं को मुक्ति मिल चुकी थी।

बीस वर्ष बाद........

पूजा और अनुज छुट्टियों में एक लंबे ट्रिप पर जा रहे थे लेकिन तेज हवा और बिगड़ते मौसम के मिजाज को देखते हुए वे किसी सुरक्षित स्थान की तलाश में थे। तेज बरसात होने लगी थी और कार के विंडस्क्रीन पर लगभग धुंध छा गई। वाईपर भी अपना काम करने में नाकाम थे। सुनसान सड़क पर अनुज ने कार की गति एकदम धीमी की और अंदाजे से कार चलाते हुए उसे सड़क किनारे एक ढाबे पर रोकी। दोनों कार से उतरे और बारिश रुकने का इंतजार करने लगे। पूजा ढाबे के दूसरी ओर समतल मैदान को देखने लगी।

"क्या देख रही हो?" अनुज ने कहा।

"अनुज, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं यहाँ पहले भी आई हुई हूँ।" पूजा भावुक होकर बोली।

"पर कब?"

"यही तो नहीं मालूम, लेकिन इस जगह में कुछ तो ऐसा है, जो मुझे आकर्षित कर रहा है।" अनुज पूजा की इस बात का जवाब देता कि तभी ढाबे वाला जो पकोड़े तल रहा था बोला।

"साहब .....बरसात में पकोड़े हो जाएं?"

पूजा ने चाय की भी फरमाइश कर दी। पकोड़े खाते हुए पूजा एक टक उस समतल भूमि को देखती जा रही थी।

"मेमसाब! कभी यहाँ एक जमींदार की महल जैसी बड़ी हवेली होती थी। कई साल पहले ना जाने एक रात क्या हुआ कि हवेली यहां से गायब हो गयी, समय बहुत बलवान है। उसके आगे कोई नहीं टिक सकता है।" ढाबे वाले ने चाय पूजा को पकड़ाते हुए कहा। ढाबे वाले की बात सुनकर ना जाने पूजा को क्या हुआ कि वो उठ खडी हुई और अनुज से चलने को कहने लगी। अनुज भी पूजा की जिद पर जाकर कार में बैठ गया। पूजा उदास नम आंखों से अभी भी उस मैदान को देख रही थी और देखते देखते कार वहां से ओझल हो गयी।

समाप्त