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चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर - 19

चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 19

Chanderi-Jhansi-Orchha-gwalior ki sair 19

आध घंटे मे हम दतिया पहॅुच गये। बस स्टेंड से एक रास्ता दतिया नगर के लिए तथा दुसरा रास्ता करणसागर तालाब के लिए जाता था। मैंने जीप को करण सागर की ओर मुड़वा दिया। यहॉं से आधा किलोमीटर दूर ही यह तालाब है । राजा शुभकरण बदेला ने सन 1737 ई. मे यह तालाब बनवाया था। तालाब किनारे से होकर यह रोड निकलती थी जिस पर हम बढ रह थे। यही रोड दतिया जिले की तहसील सेंवडा और भंाडेर को जाती थी। तालाब देखकर हम प्रसन्न हो उठे।

करण सागर तालाब एक चौकोर तालाब है जिसके दो तरफ एकदम पक्के घाट है जो लंबी पक्की दीवारो से बने है । दीवार तालाब का पानी रोकने के लिए बांध का काम भी करती है । इसी पूरी दीवार के उपर से नीचे तक सीड़ियां ही सीड़ियां बनी है। ज्यों ज्यों पानी उतरता होगा, नहाने वाले एकएक सीड़ी नीेचे उतरते जाते होंगे। दीवार के उपर चौड़ा रास्ता बना था यहीं। तालाब के किराने के इस रास्ते पर आगे बढ़ ही रहे थे कि हमको बांयी तरफ छत्तीस कोट देवताओं का मंदिर दिखा । हमने अंदर जाकर देखा तो हमे पत्थर पर बनाई गई बडी सुंदर एवं कलात्मक मूर्तियां देखने को मिली । मूर्तियों के कपडे जेवर और उनकी मुद्राएंे बडी सुंदर बडी आकर्षक थी। यह मंदिर किसने बनवाया इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी मंदिर मे ंनही मिली

यघपी इस मंदिर की सुरक्षा बडे़ ही ज्यादा अच्छी व्यवस्था नही है। पर ज्यादा सुरक्षित कर देने से शायद ये मूर्तियां हरेक को देखने को नहीं मिली ।

इस मंदिर मे आगे जाकर तपस्वी घाट है। जहॉं कुछ बडे़ पुराने और विषाल वृक्षों के नीचे मदिर तथा एक समाधि बनी हुई है। यहॉं बैठकर बडा अच्छा लगाा।

यहॉं हमने सामने देख तो चित्त प्रसन्न हो गया। तालाब के उस पार छोटी बड़ी कई समाधियंा दिखाई दे रही थी। ठीक वैसी ही सुंदर और कलात्मक समाधियां जैसी कि हमको ओरछा में देखने को मिली थी। ओरछा की समाधियां एक जैसे आकार की हेै लेकिन दतिया की ये समाधियां संख्या मे ज्यादा है और अलग अलग आकार की है । हर समाधि के उपर शिखर और गुंबद बनी हुई्र है।

हम लोग उठे और समाधियों के पास आगये। समाधियों को एक बांउडी वाल से घेर कर सुरक्षा प्रदान की गयी है। हम अंदर पहुंचे तो देखा कि हर समाधि के बीच में एक बरामदा नुमा चारों ओर से खुला कमरा हे और उसके चारेा और खुला हुआ छोटा बरामदा जैसा है। पत्थर की बनी हुई हाथी, घोडा और पक्षियों की मूर्तियां इन समाधियांे की छत ,खिडकी और दरवाजेें मे लगी हुई हेै। कुछ समाधियां चारो ओर तो बाउन्ड्री दीवार बनी हुई है। हमने एक बडी समाधि के भीतर जाकर देखा तो उपर छत पर लाल, नीले व हरे रंग से बने दीवार के चित्रों में श्रीकृष्ण, बलि राजा, वामन अवतार, राम अवतार, दशहरे का जुलूस, शिकार करते हुएऔर सिंहास पर बैठा राजा, मंत्री , सामंत, सेनापति, हाथी-घोूड़ा, दुल्हा दुल्हन और सामुदायिक काम करते मजूरों आदि के कई चित्र बने दिखें जिनमें कुछ पोस्ट कार्ड साइज के थे तो कुछ तीन फिटतक के। इन समाधियों क पास मे एक समाधि िबल्कुल सामान्य थी। इस समाधि का सीधा शिखर और सादा चिकनी दीवारे है । सजावट देखकर लगता है कि ये तो ठीक वैसी ही लगती है इग्लेंड मे चर्च की मीनारे या सूने स्थानों पर बनी शिकारगाह।

साडे तीन बज चुके थे हम लोग तालाब के इसी पार बने परशुराम के हुनमान मंदिर पर बने घाट की ओर बढ गये। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर उछलते कूदते बन्दरों की मूर्तियां बनी थी, जिन्हे देखकर बच्चे बडे़ ख्ुाश हुए। हरियाली के बीच पत्थर से बने सुन्दर रास्ते से चलते मदिर की इमारत ओर उसके पार बने तालाब के घाट तक जा पहुंचे।

इसे करणसागर का परशुराम घाट कहते है । यहॉं का पानी साफ स्वच्छ है । तालब मे छोटी छोटी मछलिया तैर रही थी। जिन्हे देखकर बच्चे ताली बजाते हुए खुशी से कूदने लगे।

चार बजे हम लोग वहॉ से निकल पडे़। सुना था कि दतिया मे पीताबंरा देवी का प्रसिद्व मंदिर है, जो कि विश्व में सिर्फ चार पांच जगह है। यहॉ पर बडे़ -बडे़ मंत्री अधिकारी आकर माथा नवाते हैं । हम लोग सीध्ेा पीतांबंरा मदिर जा पहुुचे । देखा कि मंदिर के सामने खूब सारी जगह थी जहॅा गाड़ी वगैरह पार्क की जा सकती थी । जीप वहीं खड़ी करके हमने सबसे पहले पास में बने एक भोजनालय में भोजन किया और तृप्ति की डकारें लेते हुए मंदिर में प्रवेश किया। मंदिर के भीतरी दरवाजे के पास में बांयी और पीताबंरा देवी का मंदिर है, इन्हे बगलामुखी भी कहा जाता है। बगल में मुंह करने के कारण इन्हे ऐसा कहा जाता है। पीले कपडे़ वाली पींतांबरा की साधना लेाग अपने शत्रु को परास्त करने के लिए करते है।

अब पीताबंरा कई मंदिरों को मिलाकर बनायागया पूजा स्थल बन गया है । कहा जाता हेै कि आरंभ मे इस जगह केवल शिव मदिर स्थित था। यह शिवमंदिर महाभारत के समय जंगलो मे धूम रहे पांचों पांडवों ने बनाय था, बताते हैं कि बाद पांडवो के गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा यहॉं आकर पूजा करते थे।

आंगन में पीताबंरा मदिर के ठीक सामने एक बड़ा सुदर हॉल बनाया गया है । इसे स्वामी ध्यान मंदिरम नाम दिया गया है। इस हॉल में स्वामी जी नाम के महात्मा जी की एक प्रतिमा स्थापित है । ये स्वामी जी पता नही कहॉं के रहने वाले थे और घूमते घूमते अचानक दतिया आ पहॅुचे थे । दतिया में स्वामी जी को पांडव कालीन शिव मंदिर अच्छा लगा और वे यहीं झोपडी बनाकर रहने लगे। धीरे -धीरे यही पर बडे़ सुंदर मंदिरों का निर्माण होता चला गया। स्वामी जी ने कुछ नन्ही उम्र के छात्रों को संस्कृत पढाना शुरू किया जिनमें से ललिता प्रसाद शास्त्री, ओमनारायण शास्त्री जी का नाम अग्रगणय है ।

ध्यान मंदिर के ठीक पीके सफेद संगमरमर का बना हुआ हरिद्रा कुड अभी अभी बनाय गया है। यह कुंड एक चौकोर कुड है , जिसमें बाहर से पानी डाला जाता है। और कुछ दिन बाद निकाल दिया जाता है। कुंड के किनारों पर टहलने के लिए संगमरमर के बना बढियंा रास्ता है । बच्चे इस सुन्दर कुंड के किनारे की दीवार पर टहलते हुए बडे़ खुश हुए।

हरिद्रा कुंड के पस मे व्यायाम शाला बनी थी। यहॉं कुछ लोग शाम केा आकर व्यायाम करते थे। व्यायाम शाला के पास मे यज्ञशाला तथा धूमावती देवी का मंदिर, पुस्तकालय और परशुराम जी का छोटा सा मदिर है । इसके पीछे गेस्ट हाउस है । इस गेस्ट हॉउस मे वे लोग ठहरते है जो बाहर से आकर मंदिर पर पूजा अर्चना करते है । यज्ञशाला मे लगा हुआ पांडवों के जमाने का शिव मंदिर है , इसमे शिवलिंग के साथ चार और र्मूिर्तंया रखी हुई है। इसी के पास भैरव जी की मूर्ति स्थापित है।

शाम के पंाच बजकर पन्द्रह मिनट हो गये थे। दिन भर घूमने के कारण हम लोग थक गये थे, इस कारण पीताबंरा पीठ के केपंस से बाहर आकर हम लोग ठहरने का स्थान खोजने लगे । पता लगा कि दतिया में केवल एक लॉज है । हम उसी लॉज की तलाश में निकल पडे लॉज मे तीन कमरे बुक कराके हम सब आराम करने लगे। शाम को झांसी रोड पर बने एक ढाबा में हमने खाना खाया और सो गये ।

दतिया- दतिया मध्यप्रदेश का सबसे छोटा जिला कहा जाता है। इसकी केवल देा तहसील थीं दतिया और सेंवड़ा । जिला पुनर्गठन के समय ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसील के दतिया में मिल जाने से अब इसमें 3 तहसील हो गयी हैं।

क्या देखने योग्य- दतिया में पंद्रहवीं से अठारवीं सदी तक के बीच बनायी गयी इमारतों में दतिया का सतखण्डा महल, दतिया का किला, करण सागर, चंदेवा की बावड़ी, राजगड़ महल, दतिया संग्रहालय, पीताम्बरा पीठ और दतिया जिले का सोनागिरि नामक पहाड़ी क्षेत्रों में बने सैकड़ो साल पुराने मंदिर व भौगोलिक क्षेत्र का विंहंगम दृश्य तथा दतिया जिले की सेंवड़ा नामक तहसील का मुख्यालय है जहां सिंध नदी का सनकुंआ कुण्ड और पानी की बरसात से पहाड़ी व निर्जन स्थानों पर हर साल बनते विगड़ते भू दृश्य है जिनहे बीहड़ कहा जाता है और डाकू लोग जिनमें छिपे रहते थे।

साधन- दतिया पहुंचने के लिए दिल्ली से मुम्बई रेलवे लाइन पर ग्वालियर व झांसी के बीच दतिया स्टेशन हैं अतएव रेलवे से भी यहां पहुंचा जा सकता है। झांसी से 30 ग्वालियर से 75 किलोमीटर और शिवपुरी से 98 किलोमीटर के सड़क मार्ग से बस से भी दतिया पहुंचा जा सकता है।