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चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर - 22

चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 22

Chanderi-Jhansi-Orchha-gwalior ki sair 22

सुबह आठ बजे हम लोग दतिया से सेंवड़ा की और रवाना हुए। सेवडा यहॉं से 65 किलोमीटर है । सेवडा दतिया जिले की एक तहसील है । बताते है कि इस जगह पर फिल्म यतीम, डकैत और तीसरा पत्थर की शूटिंग भी हो चुकी है ।

साडे दस बजे हम लोग सेवड़ा पॅहुचें। बस स्टैंड से सीधा रास्ता बाजार होता हुआ सिंध नदी के लिए जाता था। हम उसी रास्ते पर आगे बढे। बाजार में प्रवेष करने के लिए भी एक ख्ूाब बड़ा दरवाजा था। भीतर दोनो और सजी दुकाने थी। सेंवड़ा भी एक छोटा सा कस्बा है।

लग भग एक किलोमीटर चलने क बाद सामने हमे सेंवड़ा का किला दिखाई दिया । यह किला राजा पृथ्वीसिह नं सन् 1769 मे बनवाया था। इसके एक हिस्से में अभी शासकीय खजाना है और बाकी हिस्सा वीरान पडा है । किला देखने की किसी भी बच्चें इच्छा न देखकर हम आगे बढ गये सामने सिंध नदी बह रही थी।यहॉं बडी गहरी घाटी है । नदी खुब गहरी ळैहै बहती है ं और उसके दोनो किनारों के बाद जमीन उॅची उठती चली गई है । उस पार तो एक पहाड़ी ही दिखती है।

नदी पार करने के लिए एक विशालकाय और उंचा पुल था। यह पुल हमने पैदल ही पार किया क्योंकि बच्चें सुंदरता देखना चाहते थे। पुल के नीचे तेजी से बहती नदी पास मे ही जल प्रपात बनाती थी।

पुल के उस पार जाकर दांयी ओर को एक पगडंडी का रास्ता मंदिर के लिए चला गया था। यह मंदिर सप्तऋषियों का है। हम लोग मंदिर की सीड़ियां उतार के नीचे खुले चबूतरे पर पहंुचें । चबूतरे से पचास फिट दूर एक कुण्ड था। इसे ही सनकुंआ कहा जाता है। सिंध नदी तेज गति से इसी कुंड मे गिरती है । यहॉं भारी शोर रहता है। तेज गिरते पानी की छोटी छोटी बूंदे भी वातावरण मे उड़ रही थी और वातावरण को ठंडक प्रदान कर रही थी। कुछ लोग झरने के नीचे कुण्ड से कुछ दूर पर नहा भी रहे थे।

हमने देखा कि सिंध नदी पर एक छोटा पुल भी है जो शायद काफी पहले बना होगा। अब यह पुल पुराना और कमजोर होने के कारण बंद कर दिया गया है। पुल पार करने के बाद यही रोड भिण्ड ,मुरैना और ग्वालियर के लिए सीधा जाता है।

सनकुंआं से उठकर हम लोग जीप में बैठे और उसी रास्ते पर बढ़ गये। लगभग चारपांच किलोमीटर बाद ही हमे बेहड मिलना शुरू होगये । जीप से उतरकर मैंने बच्चों को बताया कि मिट्टी के उंचे नीचे टीलो के बीच ही डाकू लोग छिपें रहते हैं। हमने देखा कि पीली मिट्टी के हजारों टीले यहॉ से वहॉ तक फैले हुए थे। जिन पर केवल घास ही उगी है। हरबार बरसात में टीलो की मिट्टी बह जाने से यहॉ का दृश्य ही बदल जाता हैं , पर डाकू लोग इस रास्ते परिचित होंते हैं। अतः वे रास्ते नही भूलते हैं ं।

हम लोग शाम चार बजे सेंवड़ा से वापस चले। शाम सात बजे हम लोग दतिया आ गये। क्योंकि लौेटते मे पंचम कवि की टोरियां ओ उडनू की टोरिंया कुछ देर हमने खडे होकर देखी।

ये दोनो पहाडिया रेलवे लाईन के पास है। उपर जाने के लिए शानदार सीडिंया बनी है। पहाडी के शिखर पर मंदिंर बनाये गये हैं । पंचम कवि की टोरियां का भेैरव मंदिर बड़ा प्राचीन मंदिर बताया गया है। कहा जाता है यहॉ पहाडी पर हुनमान जी की जो मूर्ति बनाई गयी है उसकी बनावट कुछ अलग अलग प्रकार की है। सामान्यतः हनुमान जी के हाथ में गदा देखी जाती है,लेकिन इस मूर्ति के हाथ में दोनो ओर तलवार बनाई गई है। उडनू की टोरियां पर भी हुनामान जी का मंदिर है । यहॅ की सीड़ियां एकदम खडे़ ढंग की है। इसलिए उपर चढने पर एक भय सा लगता है।

लॉज मे पॅहुच कर हम लोग विश्राम करने लगे । अब हमारा विचार ग्वालियर जाने का था। इसलिए हम रात को जल्दी ही सो गये।

दतिया- दतिया मध्यप्रदेश का सबसे छोटा जिला कहा जाता है। इसकी केवल देा तहसील थीं दतिया और सेंवड़ा । जिला पुनर्गठन के समय ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसील के दतिया में मिल जाने से अब इसमें 3 तहसील हो गयी हैं।

क्या देखने योग्य- दतिया में पंद्रहवीं से अठारवीं सदी तक के बीच बनायी गयी इमारतों में दतिया का सतखण्डा महल, दतिया का किला, करण सागर, चंदेवा की बावड़ी, राजगड़ महल, दतिया संग्रहालय, पीताम्बरा पीठ और दतिया जिले का सोनागिरि नामक पहाड़ी क्षेत्रों में बने सैकड़ो साल पुराने मंदिर व भौगोलिक क्षेत्र का विंहंगम दृश्य तथा दतिया जिले की सेंवड़ा नामक तहसील का मुख्यालय है जहां सिंध नदी का सनकुंआ कुण्ड और पानी की बरसात से पहाड़ी व निर्जन स्थानों पर हर साल बनते विगड़ते भू दृश्य है जिनहे बीहड़ कहा जाता है और डाकू लोग जिनमें छिपे रहते थे।

साधन- दतिया पहुंचने के लिए दिल्ली से मुम्बई रेलवे लाइन पर ग्वालियर व झांसी के बीच दतिया स्टेशन हैं अतएव रेलवे से भी यहां पहुंचा जा सकता है। झांसी से 30 ग्वालियर से 75 किलोमीटर और शिवपुरी से 98 किलोमीटर के सड़क मार्ग से बस से भी दतिया पहुंचा जा सकता है।