Village in Mobile - 7 - Sunayana Chali Sugar Factory books and stories free download online pdf in Hindi

मोबाइल में गाँव - 7 - सुनयना चली शुगर फैक्टरी


सुनयना चली शुगर फैक्ट्ररी -7

‘ दादी, मुझे ये वाला बटर अच्छा नहीं लगता । आप जो बनाती हैं वह अच्छा लगता है ।’ परांठे के साथ रखे बटर को देखकर रोहन ने कहा ।
‘ दूसरा बटर...।’ रोहन की बात सुनकर सुनयना ने आश्चर्य से पूछा । दरअसल रोहन और चाचा को परांठे के साथ बटर पसंद है । वह भी उनकी देखादेखी बटर खाने लगी तो उसे भी पराँठे के साथ बटर अच्छा लगने लगा है ।
‘ हाँ दादी अच्छा बटर बनातीं हैं । मम्मी तो मलाई से बटर बनाकर दे देतीं हैं ।’ रोहन ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा ।
‘ ठीक है, आज इसी से खा लो...कल दूसरा बटर खा लेना । मैं आज निकाल दूँगी ।’ दादी ने कहा ।
‘ जल्दी-जल्दी नाश्ता कर लो । ठीक दस बजे हमें निकलना होगा । हमें साढ़े दस तक शुगर फैक्टरी पहँचना है ।’ चाचाजी ने कहा ।
बटर की बात मस्तिष्क से निकालकर सुनयना ने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया तथा तैयार होने चली गई । ठीक दस बजे वह तैयार होकर बैठक में आ गई । चाची और रोहन नहीं जा रहे थे । वे पहले ही फैक्टरी देख चुके थे । चाचाजी तो तैयार थे ही ममा-पापा तैयार हो रहे थे । ममा-पापा के तैयार होकर आते ही वे चल पड़े । जैसे ही फैक्टरी परिसर में प्रवेश किया चारों ओर फैली हरियाली, जगह-जगह लगे फूलों ने उसका मन मोह लिया । चाचा ने बताया कि यह फैक्टरी की कोलानी है । इसमें फैक्टरी में काम करने वाले लोग रहते हैं । एक इमारत के आहते में गाड़ी खड़ी की तथा कहा,‘ प्रकाश ने मुझसे यहाँ गेस्ट हाउस में मिलने के लिये कहा है ।‘
हमारी गाड़ी के रूकने की आवाज सुनकर एक अंकल बाहर आये ।
‘ ये प्रकाश हैं ।’ चाचाजी ने गाड़ी से उतर कर उनका हम सबसे परिचय कराया ।
नमस्ते के आदान-प्रदान के पश्चात् प्रकाश अंकल हम सबको अंदर ले गये । वहाँ उन्होंने नाश्ते का प्रबंध कर रखा था । हम लोग नाश्ता करके आये थे किन्तु उनका मन रखने के लिये हमने थोड़ा-थोड़ा खा लिया । नाश्ता करते-करते ममा पापा से बात करने के साथ उन्होंने सुनयना से भी उसके स्कूल और पढ़ाई के बारे में पूछा ।
नाश्ता करने के पश्चात् प्रकाश अंकल हमें फैक्टरी लेकर गये । वह हमें पहले फैक्टरी के उस स्थान पर ले गये जहाँ ट्रकों से गन्ना क्रेन द्वारा एक चेन कन्वेयर में डाला जा रहा था । गन्ना अपने आप ठीक वैसे ही आगे बढ़ता जा रहा था जैसे फ्लैट एक्सलेटर में खड़ा आदमी बिना चले ही आगे बढ़ता जाता है । अंकल ने बताया कि अब यह गन्ना कटर में जाएगा जहाँ गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े किए जायेंगे । गन्ने के इन टुकड़ों को क्रशर में भेजा जायेगा जहाँ इसे कुचला जायेगा जिससे कि इसका रस निकल जाये । गन्ने के रस से झिलकों एवं अतिरिक्त पानी को अलग करके इस रस को विभिन्न चैम्बरों में भेजा जाता है । अंकल आगे बढ़ते जा रहे थे तथा दूर से ही उन चैम्बरों को दिखाते जा रहे थे । एक जगह उन्होने कहा यह बॉयलर हैं । गन्ने के रस को बॉयलर में डालकर गाढ़ा किया जाता है तथा गन्ने के पानी तथा झिलकों को दूसरी जगह एकत्रित किया जा रहा है ।
‘ अंकल बॉयलर में रस को गाढ़ा कैसे किया जाता है ?‘ सुनयना ने संकुचित स्वर में पूछा ।
‘बेटा, कोयले या गैस को जलाकर, बाहर से गर्मी देकर इन बॉयलरस को गर्म किया जाता है जिससे गन्ने का रस उबलने लगता है । उबलने से गन्ने के रस का बचा पानी वाष्पीकृत हो जाता है जिससे रस गाढ़ा हो जाता है ।‘
‘ थैंक यू अंकल । ‘
‘ वैल्कम बेटा । तुम्हारा प्रश्न सुनकर मुझे खुशी हुई । आगे भी तुम्हें कुछ पूछना हो तो पूछ लेना। ‘
‘ ठीक है अंकल ।‘
अंकल ने आगे बढ़ते हुए कहा कि गन्ने के रस यानि शीरे को साफ करने के लिये इन्हीं बायलरों में लाइम वाटर तथा सल्फर का घोल डालकर साफ किया जाता है । अब इस साफ किये शीरे को अन्य बड़े-बड़े चैम्बरों में बनी बाइब्रेट करती बड़ी-बड़ी छलनियों से पास किया जाता है जिससे कि यह दानों का आकर ले ले । इन चीनी के दानों को एक अन्य बड़े चैम्बर में एकत्रित करते हैं । यहाँ गर्म हवा से इनकी नमी को सुखाकर एक पाइप के जरिये स्टोरेज एरिया में पहुँचाते हैं । इस स्टोरेज एरिया में पाइप के मुँह पर बोरा लगा देते हैं । लगभग एक मिनट से भी कम समय में बोरा भरकर नीचे लगी कन्वेयर बेल्ट पर गिर जाता है । अब तक हम फैक्टरी के इस भाग में पहुँच गये थे । हमने देखा कि जैसे ही बोरे में चीनी भर गई वह कन्वेयर बेल्ट पर गिर गया तथा आगे बढ्ने लगा । थोड़ा आगे बढ़ने पर ही बोरा सिलने की मशीन लगी हुई थी । एक आदमी ने बोरे के मुँह के किनारे को उस मशीन में लगा दिया । इसके पश्चात बोरा कन्वेयर बेल्ट पर स्वयं आगे बढता जा रहा था तथा सिलने वाली मशीन बोरे के मुँह को सिलती जा रही थी । अंकल ने बताया कि यही कन्वेयर बेल्ट बोरे को गोदाम में पहुँचा देती है । अंकल ने यह भी बताया कि यह सारी क्रियायें आटोमैटिक मशीनों द्वारा ही होती हैं । फैक्टरी में इतने लोगों के काम करने के बावजूद कहीं गंदगी का नामोनिशान नहीं था । सभी काम करने वाले मुस्तैदी से अपने-अपने कामों में लगे थे ।
प्रकाश अंकल ने फैक्टरी से बाहर निकलते हुये बताया कि शीरे को गाढ़ा करते हुये जो पानी निकलता है उसे वॉटर ट्रीटमेंट में ले जाते हैं जहाँ इसे शुद्ध करने के पश्चात सिंचाई के काम में लेते हैं । गन्ने के झिलके से बिजली बनाई जाती है । इस बिजली से शुगर फैक्टरी तथा फैक्टरी के आवासीय परिसर की आवश्यकतायें तो पूरी होती ही हैं, बची बिजली को यू.पी. पावर कारपोरेशन को भी दे देते हैं । अगर शीरा आवश्यकता से अधिक होता है तो उससे शराब बनाई जाती है । चिमनी से जो धुआँ निकलता है उससे प्रदूषण न हो इसके लिये इस धुयें पर पानी के छिड़काव की भी व्यवस्था है । इस प्लांट द्वारा नित्य 53 हजार बोरे का निर्माण होता हैं ।
सुनयना को फैक्टरी में शुगर बनते देखकर बहुत अच्छा लगा । विशेषकर प्रकाश अंकल जैसे बता रहे थे उससे सब समझ में आ रहा था । वह हमें गाड़ी तक बैठाकर ही गये । पापा-ममा भी उनकी बहुत तारीफ कर रहे थे । लौटते हुये चाचा ने कहा, ‘कल हम अपनी गुड़िया को ट्रैक्टर की सैर करायेंगे ।‘
‘ सच चाचा !! मैं ट्रैक्टर में कभी नहीं बैठी हूँ ।’
सुनयना घर पहुँचकर दादीजी और चाचीजी को शुगर फैक्टरी के बारे में बताने गई तो पता चला कि वे किचन में हैं । वह किचन में गई तो देखा चाची खाना बना रही हैं तथा दादी एक स्टूल पर बैठकर रस्सी को आगे पीछे कर रहीं हैं ।
‘ दादी, आप यह क्या कर रही हो ?’
‘ बेटा रोहन के लिये मक्खन निकाल रही हूँ ।’
‘ अच्छा, जैसे यशोदा माँ कृष्ण भगवान के लिये निकालतीं थीं ।’
‘ हाँ बेटा ।’
‘ और भगवान कृष्ण उस माखन को चुराकर खा भी जाते थे, है न दादी ।’ सुनयना ने कहा ।
‘ हाँ बेटा, इसीलिये उन्हें माखनचोर भी कहा जाता था ।’ दादी ने कहा ।
‘ दादी, इसको क्या कहते हैं तथा इससे मक्खन कैसे निकलता है ?’ सुनयना ने पूछा ।
‘ बेटा इसे रई कहते हैं । इस रई से जब मटके में रखे दही को बिलोया जाता है तब दही से माखन निकल आता है ।’ दादी ने उसका आशय समझकर कहा ।
‘ बिलोया...मैं समझी नहीं दादी ।’
‘ देखो बेटा, जब मैं इस रर्ह को इस रस्सी के सहारे घुमाऊँगी तो यह मटकी के अंदर घूमने लगेगा जिससे मटकी के अंदर का दही भी घूमने लगेगा ।’ दादी ने रस्सी के सहारे रई को घुमाते हुये उसे दिखाते हुये कहा ।
सुनयना ने देखा कि दादी के रई को चलाते ही मटकी का दही बहुत तेजी से कभी क्लोकवाइज तथा कभी एंटी क्लोक वाइज घूम रहा है जिससे दही के ऊपर झाग बन रहे हैं । थोड़ी देर में ही झाग मक्खन में बदलने लगे । दादी ने मटकी में ठंडा पानी डाल दिया तथा फिर रई घुमाने लगीं । थोड़ी ही देर में दादी ने हाथ से मक्खन निकाला तथा बाहर रखे ठंडे पानी में डाल दिया ।
‘ दादी आपने मक्खन को ठंडे पानी में क्यों डाला ?’
‘ बेटा, ठंडे पानी में डालने से मक्खन जम जायेगा फिर उसे मैं ऐसे निकाल लूँगी ।’ दादी ने ठंडे पानी से मक्खन निकालकर उसका गोला बनाते हुये कहा ।
‘ अरे वाह ! यह तो बिल्कुल बाजार के मक्खन जैसा लग रहा है । दादीजी अब आप मटके के दही का क्या करेंगी ?’
‘ बेटा यह मट्ठा बन गया, इसे हम सभी पीयेंगे ।’
‘ मट्ठा...।’
‘ बटरमिल्क...।’ वहीं काम करती ममा ने उत्तर दिया ।
‘ बटर मिल्क... बटर मिल्क तो मुझे बहुत अच्छा लगता है । मैं अवश्य पीऊँगी ।’
‘ ठीक है बेटा । अभी देती हूँ ।’
दादी ने गिलास में बटर मिल्क निकाल कर उसमें थोड़ा काला नमक और जीरा डालकर सुनयना को देते हुये कहा ।
‘ दादीजी, बटर मिल्क बहुत अच्छा बना है लेकिन इसमें तो बड़ी मेहनत लगती होगी । दही को मिक्सी में चलाकर भी तो मक्खन निकाल सकते हैं ।’ सुनयना ने बटरमिल्क पीते हुये कहा ।
‘ हाँ बेटा, मक्खन मिक्सी में भी निकाल सकते हैं पर उसमें इतना सारा दही कई बार चलाना पड़ेगा जबकि इसमें एक बार में ही हो गया । इसके साथ ही मेरी हाथों की एक्सरसाइज भी हो जाती है ।’ दादी ने मुस्कराते हुये कहा ।
‘ एक्सरसाइज...।’
‘ गाँव के लोगों की पहले यही तो एक्सरसाइज थी । हाथ की चक्की चलाना, दही बिलोना, कुएं से पानी निकालना इत्यादि ।’ दादी ने कहा ।
‘ दादी प्लीज आप फिर से रस्सी पकड़िये, मुझे आपकी फोटो खींचनी है ।’ सुनयना ने मोबाइल निकालते हुये कहा ।
‘ दादीजी, देखिये कितनी अच्छी फोटो आई है । ’ सुनयना ने फोटो खींचकर दादी को दिखाते हुये कहा ।
‘ सच, बहुत ही अच्छी आई है ।’ दादी ने कहा ।
‘ दीदी, चलो न आज आप सुबह से घूम रही हो । चलो अब मेरे साथ खेलो...।’ रोहन ने उसका हाथ पकड़कर केवल कहा ही नहीं अपने साथ ले भी गया ।
सुधा आदेश

क्रमशः