Corona - A Love Story - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

कोरोना - एक प्रेम कहानी - 7

भाग - 7

पिता शेखर कुमार की तबीयत को लेकर लिली का मन अनेक आशंकाओं से घिरा हुआ था। आने वाली कोरोना रिपोर्ट में आखिर क्या लिखा आने वाला था, अगर पापा की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उन्हें कितनी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लिली के मस्तिष्क में इस तरह के अनेकों विचारों की आंधी चल रही थी। लेकिन तभी नीचे से आई एंबुलेंस की आवाज सुनकर लिली खिड़की से झांकती हैं, तो उसे एंबुलेंस घर के सामने रुकती हुई नजर आती है। कुछ पुलिस प्रशासक के लोग उसे नीचे खड़े हुए दिखाई देते है । यह देख कर लिली अपने कमरे से नीचे लिविंग रूम की तरफ बड़े- बड़े कदम भरते हुए जाती है। दरवाजे पर ही डॉक्टरों की एक टीम खड़ी हुई थी। माँ कंचन के हाथ में कुछ पेपर्स देखकर लिली थोड़ा आगे की तरफ जाती है और माँ के हाथ से पेपर अपने हाथ में ले लेती है। पेपर हाथ में लेते ही लिली के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। वह बहकी हुई- सी माँ कंचन और दादी की तरफ देखने लगती है।

"मम्मा देखिए ना पापा की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है "- कहते हुए लिली के आँखो से आंसू छलक पड़ते है।

 

"शेखर कुमार की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इसीलिये हम शेखर कुमार को लेने आए है। कहां है वो।" - उनमें से एक व्यक्ति बोलता है।

 

"जब से पापा का कोरोना टेस्ट हुआ है, उन्होनें अपने आपको अलग से एक कमरे में क्वारंटाइन कर लिया है। वह वहां उस कमरे में है।"

लिली अंगुली से इशारा करते हुए उन लोगों से कहती है।

 

"हमें आप सभी का भी कोरोना टेस्ट करना है। क्योंकि आप सभी लोग संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए है। हमें आपके सैंपल लेने है।" - एक डॉक्टर उनमें से बोलता है।

एक व्यक्ति अंदर शेखर कुमार की कमरे तक जाता है और उन्हें अपने साथ कमरे से बाहर लेकर आता है। डॉक्टर उन तीनों के सैंपल एकत्रित कर लेता है और उन सभी को हिदायत देता है कि जब तक उन सभी की कोरोनावायरस की रिपोर्ट नहीं आ जाती है,वे सामाजिक दूरी बनाए रखेंगे और बाहर जाने से बचेंगे। यह कहते हुए सभी शेखर कुमार को एंबुलेंस में बिठा कर अस्पताल लेकर जाते है।

"मेरे बेटे पर यह कैसी आफत आई है भगवान। कल तक कितना हँसता- खेलता था और आज अचानक उसे इस तरह अस्पताल ले जाया गया है।उसे तो अकेले रहने की बिल्कुल भी आदत नहीं है वह वहाँ अस्पताल के एक कमरे में कैसे बंद रहेगा। हे ईश्वर मेरे बच्चे को जल्दी से स्वस्थ कर दो।"

दादी अपने नम आंखों से भगवान से विनती करती है।

"लिली बेटे इस तरह आंसू मत बहाओ। तुम्हारे पापा जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे और माजी प्लीज आप भी इस तरह से मन भारी मत कीजिए, वरना आपकी तबीयत खराब हो जाएगी। एक काम करिए आप दोनों अपने -अपने कमरे में जाकर आराम कर लीजिए, तब तक मैं रात का डिनर तैयार करती हूँ। चलो उठो बेटा लिली माजी आप भी चलिए मैं आपको आपके कमरे तक छोड़ देती हूँ।"

"कंचन माजी को सहारा देते हुए अंदर कमरे तक लेकर जाती है। लिली भी अपने कमरे की तरफ बढ़ चलती है।

 

लिली और माजी को तो मैंने किसी भी तरह शांत कर लिया। लेकिन शेखर बाबू की चिंता तो मुझे भी बहुत हो रही है। उन्हें कोरोना की वजह से कितनी तकलीफ हो रही होगी। हम तो उनसे मिलकर उनका ख्याल भी नहीं रख सकते है।" तभी कुकर में आई सीटी की आवाज सुनकर कंचन का ध्यान मन में चल रही उठा-पटक से एक क्षण के लिए हट जाता है। और वह मुरझाई- सी पुनः किचन के कार्यों में व्यस्त हो जाती है।

 

ऊपर अपने कमरे में बैठी लिली के फोन की घंटी अचानक से बजती है।लिली मोबाइल देखती है, तो उसके चेहरे पर हल्की- सी मुस्कान छा जाती है। वह फोन उठाते हुए बोल पढ़ती है-

"हेलो पापा अब कैसे हैं आप।फीवर थोड़ा कम हुआ या नहीं। मुझे पता है पापा आपको वहाँ बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा होगा ना। आपको मालूम है पापा मैंने माँ दुर्गा से कहा है कि अगर वह आप को जल्दी से ठीक कर देंगी ना, तो मैं नंगे पैर चलकर उनके मंदिर तक जाऊंगी।" - लिली अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहती है।

 

"हाँ मेरे बच्चे मुझे पता है तू अपने पापा से बहुत स्नेह करती है।तेरी माँ दुर्गा तेरी प्रार्थना अवश्य सुनेगी। बेटे तुम मेरी फिक्र मत करना और अपनी मम्मी और दादी का ख्याल रखना। अच्छा अब मैं फोन रखता हूँ ।"

कहते हुए शेखर कुमार फोन काट देते है।

इतने में ही माँ कंचन ऊपर आती है और लिली से कहती है- "बेटा लिली चलो डिनर बन गया है।"

"नहीं मम्मा मुझे भूख नहीं है, आप और दादी खाना खा लीजिए। वैसे अभी मेरे पापा से बात हुई उन्होंने कहा कि फिक्र ना करो सब ठीक हो जाएगा।"

"हाँ बेटा लिली भगवान सब अच्छा ही करेंगे। तुम कहो तो तुम्हारा डिनर कमरे में ही ला दूँ।बेटा इस तरह बिना खाए रहना ठीक नहीं है।" - माँ कंचन बेटी लिली के माथे को दुलारते हुए कहती है।

लेकिन तभी माँ कंचन अचानक से चौंक पड़ती है- "बेटा लिली तुम्हारा सिर तो बहुत गर्म है। मुझे पता है तुम्हारी तबीयत बिल्कुल ठीक नहीं है और तुमने मुझे बताया भी नहीं। कोई ऐसा करता है भला।"

कहते हुए माँ टेबल की ड्रॉ से थर्मामीटर निकालती है और लिली को बुखार मापने के लिए कहती है। लिली जब थर्मामीटर मुंह से बाहर निकालती है, तो टेंपरेचर 100 डिग्री आता है।

"बेटा तुम्हें तो 100 बुखार है। मैं तुम्हारे लिए खाना लेकर आती हूँ। खाना खाकर तुम बुखार वाली दवाई ले लेना। हम सभी का कोरोना टेस्ट तो हुआ ही है, उसमें पता चल जाएगा कि यह मौसमी बुखार है या कोरोना वायरस के लक्षणों में से एक है।" - कहते हुए माँ कंचन लिली के लिए खाना लेने जाती है।

खाना खाने के बाद लिली दवाई लेती है और आराम करने लगती है।

सुबह के तकरीबन साढ़े तीन बजे थे। चांद की दूधवा रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी। इसके कारण अंधेरे का इतना आभास नहीं हो पा रहा था। तभी दरवाजे की डोर बेल बजती है, तो आवाज सुनकर लिली की आंखें खुल जाती है। लिली नीचे जाकर देखने का प्रयास करती है, लेकिन पैरों में तो इतनी भी शक्ति नहीं थी कि वह दरवाजे तक भी चल पाए। इसीलिए लिली उठकर वहीं बेड पर बैठी रहती है।

अचानक से कमरे का दरवाजा खुलता है, तो दो आदमी जिन्होंने हैजमेट सूट, गोग्लस , सर्जिकल मास्क और रबड़ गलव्ज पहने हुए थे, दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते हैं। उन लोगों को देखकर लिली का संदेश विश्वास में बदल जाता है। यकीनन कोरोना ने उसे भी अपनी चपेट में ले लिया था। वह बिना कुछ कहे ही उठने का प्रयास करती है, लेकिन उसका शरीर उसका साथ नहीं दे पा रहा था।

तभी उनमें से एक व्यक्ति नीचे जाता है और स्ट्रेचर ऊपर ले कर आता है। लिली को स्ट्रेचर पर लिटाया जाता है और एंबुलेंस तक ले जाया जाता है।घर के आगे वाले रास्ते को बैरिकेडिंग लगाकर रोक दिया जाता है। दादी और माँ कंचन दूर खड़े अपने लिली को देख रहे थी।

●●●