Azad Parinda - Kagji Patni ... .... aaiiiisha books and stories free download online pdf in Hindi

आजाद परिंदा : कागजी पत्नी … आईईईशा

दत्त साहब की शादी को अभी 1 वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था कि पति पत्नी में खटपट होने लग गयी । कभी एक मुद्दे पर और कभी दूसरे मुद्दे पर । लगभग हर रोज ही खटपट होती। किसी दिन यदि पति पत्नी में नहीं हुई तो सास बहू में हो गयी ।

आखिर दत्त साहब के सामने वो दिन आ ही गया जब उनको माँ या पत्नी में से एक का चुनाव करने की मजबूरी आ खड़ी हुई । दत्त साहब ने बहुत सोच विचार किया ।

कभी वो सोचते कि उसके और माँ के बीच में तो खटपट है नहीं बल्कि उनके और पत्नी के बीच में खटपट है ऐसे में यदि वो पत्नी को चुनते है तो खटपट तो बनी ही रहेगी । और कभी सोचते कि उनका और पत्नी का रिश्ता तो अप्राकृतिक है जबकि उनका और माँ का रिश्ता प्राकृतिक ।

मतलब यह कि दत्त साहब का झुकाव मा की तरफ हो रहा था । शायद इसीलिए वह निर्णय लेने में देर किए जा रहे थे आखिर थे तो वो भी आदमी ही जिनका बचपन से ही ब्रेन वाश करते करते ... ... खेर छोड़ो इस बात को ।

तो दत्त साहब लगातार टालते जा रहे थे और उनकी पत्नी को देरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी । दबाव बनाने की नीति के तहत पत्नी अपने मायके चली गयी ।

दत्त साहब ने अब भी कोई निर्णय नहीं लिया तो थोड़ा और दबाव बनाने के लिए पत्नी ने पुलिस में दहेज़ मांगने और घर से निकलने और मार पीट करने का आरोप लगा कर पुलिस में कंप्लेन भी डाल दी । और पुलिस ने दत्त साहब को जेल यात्रा भी करवा दी ।

क्या कहा साहब दहेज़ मांगा होगा तभी केस किया होगा । तो साहब ऐसा है कि हर साल तकरीबन एक लाख से अधिक झूठे केस किये जाते है आप बहस कर सकते है कि ज्यादातर केस में समझौता होकर तलाक हो जाता है इसीलिए उनको झूठा नहीं मानेंगे तो कोई बात नहीं साहब इन सारे केसेस में यह भी साबित कहाँ हुआ कि दहेज़ मांगा गया था ? सिर्फ इतना ही साबित हुआ कि लड़की ने पैसा का लालच किया और केस वापिस ले लिए । परंतु छोड़ो इस मुद्दे पर फिर कभी अभी दत्त साहब पर आते हैं ।

दत्त साहब लगातार टालते रहे और पत्नी लगातार प्रेशर बढ़ाने के लिए नए नए केस करती चली गयी तकरीबन 8 केस हो गए दत्त साहब पर। अब दत्त साहब का ज्यादातर टाइम कोर्ट में गुजरने लगा और उन पर फैसला लेने का प्रेशर बढ़ गया और आखिर उन्होंने फैसला कर ही लिया ।

दत्त साहब ने अपनी ज़िंदगी से पत्नी का आखिरी से आखिरी अंश भी मिटा डाला और अपनी पूरी ताकत खुद को निर्दोष साबित करने पर लगा दी । अब अगर कुछ बचा तो सिर्फ इतना कि कहीं किसी पेपर पर अभी भी दत्त साहब की एक पत्नी थी परंतु इसका कोई महत्व नहीं क्योंकि दत्त साहब की ज़िंदगी में अब पत्नी नहीं थी । दत्त साहब आज़ाद हो चुके थे उनके सामने अनंत आकाश खुला पड़ा था । परंतु दूसरी तरफ उनकी पत्नी वो अभी भी अपने रास्ते पर कायम थी उसे इंतज़ार था कि 2 या 4 केस और करने से परिंदा पिंजरे में आ जायेगा ।

अब दत्त साहब की कागज़ी पत्नी ने प्रेशर और बढ़ाने का निर्णय किया और करते करते मसला यहां तक पहुंच गया कि दत्त साहब ने अपने केस स्वयं लड़ने के लिए कानून की किताबें पढ़ने की तरफ कदम बढ़ा दिए । दत्त साहब की मेहनत और उनकी आज़ादी अपना रंग दिखाने लगी नतीजा दत्त साहब लगातार कोर्ट में पत्नी को पटकनी पर पटकनी देने लगे । कभी कागज़ी पत्नी पर झूठा बयान और साक्ष्य देने के लिए कटघरे में खड़ा किया गया और कभी कागजी पत्नी को केस में हराया जाने लगा ।

जल्द ही दत्त साहब को मज़ा आने लगा और उनकी कागजी पत्नी की मुश्किलें बढ़ने लगी । हर रोज नई नई संभावनाएं बनने लगी और लगने लगा कि कागजी पत्नी जल्द ही सजायाफ्ता भी बन जाएगी ।

प्रेशर लगातार बढ़ता गया और आखिर कागजी पत्नी का सब्र टूट गया और उसने साबरमती में कूद कर आत्महत्या कर ली । । संभव है कि कागजी पत्नी का अपने माँ बाप या बहन भाई या किसी पड़ोसी दोस्त रिस्तेदार आदि से भी कुछ खटपट हो गयी हो जिसने कागजी पत्नी को सुसाइड की तरफ धकेल दिया । सुसाइड से पहले कागजी पत्नी ने बहुत ही भावुक सा सुसाइड नोट भी छोड़ा लिहाज़ा शहर पूरा का पूरा उमड़ पड़ा दत्त साहब के खिलाफत में ।

और दत्त साहब उनकी ज़िंदगी में से पत्नी नाम की चीज़ को वो बहुत पहले ही मिटा चुके थे अब कागज़ी कारवाही भी पूर्ण हो गयी लिहाज़ा कहीं किसी पेपर में भी अब वो उनकी पत्नी नहीं रही । यदि कुछ बचा तो सिर्फ कुछ मुकदमे जिनको लड़ने में दत्त साहब को पहले ही मज़ा आ रहा था । जहां पूरा शहर बिना तथ्य जाने सिर्फ भावुकता में बह रहा था वही आज़ाद परिंदा अपनी पूरी क्षमता से उड़ान भर रहा था ।

नोट : कहानी काल्पनिक है तथ्य एक कोर्ट मुकदमे से वास्तविक लिए गए है और किसी भी किस्म की समानता संयोगिक है