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अतीत के चलचित्र -(4)





अतीत के चलचित्र (4)

दोपहर के भोजन से निवृत्त होकर मैं कमरे में बैठकर स्वेटर बुन रही थी तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी ।दरवाज़े पर जाकर मैंने देखा कि ममता सामने खड़ी थी।

मैंने कहा-आओ ममता कैसे आना हुआ..
ममता ने कोई जबाब नहीं दिया,आँखों में आँसू लिए वह मुझसे लिपट गई और रोने लगी ।

मैंने शान्त कराया और बिठा कर पानी पीने को दिया,पानी को उसने मेज़ पर रख दिया और ऑंखों पर रुमाल रखकर बहुत देर तक सुबकती रही ।


मैंने रसोईघर में जाकर देखा,भोजन हम सब कर चुके थे। मैंने चाय के साथ मठरियाँ और कुछ बिस्कुट लाकर रखे।ममता इतनी दुखी थी कि वह कुछ भी खाने को तैयार नहीं थी,उसके ऑंसू नहीं रुके और वह बार-बार पोंछने की कोशिश कर रही थी।

ममता एक पढ़ी लिखी लड़की थी मेरी एक सहेली का स्कूल था वह उसमें नौकरी करती थी वहीं मेरी मुलाक़ात उससे हुई ।वह कभी-कभी मेरे घर आ ज़ाया करती थी।

एक दिन ममता ने कहा—दीदी मुझे कोई ट्यूशन के बच्चे हो तो बताना।

हमारे पड़ौस में रहने वाले अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार हो गए और वह प्रतिदिन आने लगी ।
मेरे घर वह कभी-कभी आ जाती तो अपनी कुछ परेशानियाँ मुझे बता देती थी ।

उसने बताया—कि पढ़ाई ख़त्म होते ही उसकी शादी एक अच्छे घराने में हो गई थी,पति बिजली विभाग में अच्छे ओहदे पर थे ।घर के अकेले बेटे थे ,उनके पिताजी का स्वर्गवास हो चुका था ।सब कुछ अच्छा था एक साल बाद ही एक बिटिया हो गई ।

बिटिया होने के बाद घर में आये दिन किसी न किसी बात पर झगड़ा हो जाता था ।पति और सासू मॉं ख़ुश नहीं थे।खाने पीने को भी परेशान करने लगे ।पति तो प्रतिदिन किसी न किसी बात पर झगड़ा करने के बाद शारीरिक प्रताड़नाएं भी देते ।बहुत सालों तक स्वयं झेलती रही ।

जब एक बार रक्षाबंधन पर भाई ससुराल आये तो उन्होंने देखा कि शायद कुछ ममता के साथ कुछ परेशानी है।उन्होंने ससुराल में सासू मॉं और पति की आज्ञानुसार घर ले जाने का निर्णय लिया और वह मॉं के घर आ गई ।


कुछ दिनों बाद ममता जाने का विचार बना रही थी तो एक दिन एक डाक आई जो कि तलाक़ के काग़ज़ात थे।
ममता बहुत परेशान हुई और ससुराल चली गई लेकिन इस बार किसी ने ठीक से बात नहीं की और प्रताड़ित किया ।


इस बार पति ने लड़की अपने पास ही रख ली और उसे मॉं के यहाँ भेज दिया ।तलाक़ की प्रक्रिया में ससुराल वाले ही जीत गये ।वकील के कहे अनुसार ममता का चरित्र ठीक नहीं था ।बेटी ससुराल में और ममता मॉं के घर ,तलाक़ हो गया और वह छोटे बच्चों के स्कूल में थोड़े वेतनमान पर ही काम करने लगी ।

शुरू में तो तीनों भाई अच्छे से रखते लेकिन अब हालात बदल गए और उसका जीना मुश्किल हो गया ।
आज हालत यह हो गई कि कोई भी उसे रखना नहीं चाहता।

आज उसने तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया,किसी को कोई फ़र्क़ नहीं था ।


सुबह जब पूरा घर का काम करके स्कूल जाती, फिर ट्यूशन देने चली जाती ।

आकर शाम का भोजन बनाने में लग जाती यही दिनचर्या थी उसकी ।घर में भाभियों के ताने,बाहर लोगों की बातें सुनकर ही उसका दिन ख़त्म होता,अगले दिन फिर वही प्रक्रिया ।

आज भाई भाभी ने कह दिया अपना कहीं भी इंतज़ाम कर लो ।वह भूखी रहकर ही मेरे पास आ गई ।

मेरे पास उसने तीन दिन बिताए लेकिन किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा ।उसके ताऊजी के बेटे उसी शहर में रहते थे मैंने संपर्क किया और उनके घर अनेक नौकर चाकर के साथ उसका भी भरण-पोषण होने लगा ।बाद में उन्होंने उसकी शादी करदी ।


मैं आज भी सोचती हूँ कि उसकी ऐसी कौन सी बड़ी गलती थी जो यह सब झेलना पड़ा ।लड़की का कौन सा घर अपना है जहॉं वह स्वेच्छा से अपने अनुसार जीवन व्यतीत कर सकें ।


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आशा सारस्वत