Wars of the Palace - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

उस महल की सरगोशियाँ - 5

एपीसोड - 5

इस महल में इन्हीं कक्षों में माँ व दासियों को खिजाते दौड़ते होंगे नन्ही राजकुमारी व नन्हे राजकुमार के कदम। अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने व उनके व्यक्तित्व को सम्मान देने के लिये उन्होंने नए महल, लक्ष्मी विलास पैलेस को बनाने की योजना बनाई थी

कितना ख़ौफ़नाक होगा सं १८८५ जब रानी चिमणाबाई शादी के छः वर्ष बाद ही चल बसी होंगी। राजवंश के समाधि स्थल कीर्ति मंदिर में उनकी समाधि बनवा दी होगी। तब तक ये लक्ष्मी विलास महल पूरा बन भी नहीं पाया था।

उसने पानी का गिलास सामने की विशाल कांच के टॉप वाली नक्काशीदार मेज़ पर रक्खा था व बाहर दिखाई देते गलियारे पर नज़र डाली --- लक्ष्मी विलास पैलेस जब बन गया होगा तब महाराजा इस महल में रहने आये होंगे। ये गलियारा गवाह होगा दुःख से पागल हुये इधर से उधर घूमते महाराजा का। जिन्होंने राजकाज में रूचि लेना कम कर दिया था। अक्सर अपने कक्ष में बंद रहते होंगे। वो कक्ष कौन सा होगा ?उनका स्नायु तंत्र इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था इसलिए उन्हें इन्सोमनिया हो गया था। इस अवसाद का उपचार था उनकी दूसरी शादी -राजमाता, मंत्रियों व चिकित्सकों ने सलाह मशविरा करके यही उपाय खोजा। महाराजा को इसके लिए बमुश्किल तैयार किया गया था।

जब देवास राज्य की गजराबाई उनकी पत्नी बनकर एक बड़े जश्न के बाद इस महल में आईं तो तीन चार दिन तक तो उन्होंने उनकी तरफ़ नज़र भी नहीं उठाई। इस स्थिति के लिए गजराबाई मानसिक रूप से तैयार होकर आईं थीं. अपने रेशम से सरसराते वस्त्रों में वही महाराजा के निकट होतीं चलीं गईं। वे कब तक किसी भीने सेंट, गुलाबों व मोंगरे के गजरे व गोरी बाहों के मनुहार से बच सकते थे ?इन्हें नया नाम दिया गया चिमणाबाई द्वितीय। महाराजा इन्हें लेकर जहाज से विदेश यात्राओं पर निकल जाते थे। एक बार वे किसी विदेश यात्रा से लौटे थे। दूसरे दिन ही उन्होंने राजमाता व मंत्रियों को मंत्रणा कक्ष में बुलावाया था।

सभी उनकी मंत्रणा कक्ष में प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसे ही महाराजा आये सब खड़े हो गए सिर्फ़ राजमाता के। महाराजा ने अपनी सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठते हुये कहा, "मैंने बहुत से देश देखें हैं। मैं समझ नहीं पाता कि सिर्फ़ हमारा देश उस पर भी राजपरिवार ही अपने घर की स्त्रियों से घूंघट करवाते हैं। वे भी तो इंसान हैं क्या उन्हें बाहर की दुनियाँ ठीक से देखने का हक़ नहीं है ?"

प्रधान मंत्री ने मुलायम आवाज़ में कहा, " पर्दा प्रथा तो हमारे देश की शान है, हमारी सुंदर परम्परा है। "

"इसमें सुंदर क्या है किसी को पर्दे में रखकर उसे कैद करके रखना ?"

राजमाता उनके इस प्रश्न से हैरान थीं, "आपके मन में ये विचार क्यों जन्मा ?ये परम्परा तो सदियों से चली आ रही है ."

"राजे माँ ! हम विदेशों में जाते हैं। कितना अच्छा लगता है कि वहां की मैम बिना घूघंट के रहतीं हैं। हम निर्णय कर चुके हैं कि हमारी पत्नी चिमणाबाई अब किसी का भी घूँघट नहीं करेंगी । "

"क्या ?" सारे दरबारियों का मुंह खुला का खुला रह गया।

प्रधान मंत्री ने राजमाता की तरफ़ देखा जिनके माथे पर भी बल पड़े हुए थे, "राजे माँ !ये क्या कह रहे हैं ?ऐसा कहीं भारत के किसी भी राजपरिवार के बारे में सुना है कि रानियां घूँघट ही नहीं करें ?अपनी मर्यादा से बाहर चलीं जाँयें?"

तुरन्त ही राजमाता के चेहरे के भाव बदल गये। उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है भारत के किसी राजपुरुष ने पहली बार हम औरतों के विषय में सोचा तो कि हमें अपने घूंघट के पीछे कितनी घुटन महसूस होती है। कभी कभी गर्मियों में कोई स्त्री बेहोश तक हो जाती है। "

"लेकिन भारत के दूसरे राजवंश कितनी निंदा करेंगे। "

"करते रहें अगर किसी अच्छी पहल के लिये निंदा करें भी तो क्या हुआ ?आप देख लेना धीरे धीरे क्रांति आ जाएगी सभी राज्यों की रानियां इस पर्दे से मुक्त हो जाएंगी। "

तो ये है घूंघट से स्त्री मुक्ति का बिगुल बजाने वाला बड़ौदा का राजमहल ?

वर्तमान की राजमाता को भी दुल्हिन बनाने का किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है बिलकुल सिंड्रेला की कहानी जैसा, वह सोचती है। । महाराजा सयाजीराव जी को और भी दुःख सहने लिखे थे। उनके पुत्र व पुत्रवधु की मृत्यु हो गई थी इसलिए उन्होंने प्रपौत्र प्रताप सिंह गायकवाड़ की शादी के लिए हज़ारों लड़कियां देख डालीं थीं। एक बार कोल्हापुर के एक गाँव हसूर के जागीरदार मानसिंहराव घोरपड़े अपनी तेरह वर्ष की बेटी को खूब सुंदर चनिया चोली पहनाकर लक्ष्मी विलास पैलेस लाये थे। वह नन्ही तो ये वैभव देखकर हैरान थी। हज़ार लड़कियों के व्यक्तित्व व बुद्धिमता को परखने के बाद शांता देवी उनकी दुल्हिन चुनीं गईं थीं। शादी के बाद ही उनकी शिक्षा आरम्भ हो गई थी। ---वह महल में कुछ सूंघने की कोशिश करती है ---इसी फ़िज़ा में फैलती होगी नवाब रामपुर द्वारा महाराज को भेंट किये गए अपने बेहतरीन ख़ानसामा के बनाये पकवानों की सुगंध --- .

महाराजा ने कुछ वर्ष बाद उन्हें प्रेरित किया कि वे राज्य की स्त्रियों से मिलें, उनकी समस्याएं समझें व उनकी प्रगति के लिए कुछ करें। जैसे ही दोनों कुछ और वयस्क हुये उनके लिये अपनी दूसरी पत्नी के नाम बने एक अलग महल महारानी चिमणाबाई पैलेस में रहने की व्यवस्था कर दी गई। अरे --उस महल में तो वह कितनी बार जा चुकी है क्योंकि अब तो उस विशाल पैलेस को रेलवे ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग कॉलेज बना दिया गया है . अभी वह सामने की दीवार पर लगी किसी भव्य पेंटिंग को देखकर सोच ही रही थी कि एक सेविका ने कक्ष के अंदर आकर कहा, "राजमाता आपसे दूसरे कमरे में मिलेंगी। "

लक्ष्मी विलास पैलेस में राजमाता से मिलने वह बाहर रक्खी अपनी चप्पल पहनकर चल दी थी। फिर उससे चप्पल उतरवाई गईं व अंदर लकड़ी के विशाल सोफे पर बैठाया गया . दूसरी नौकरानी उसके लिये एक ट्रे में चाय का कप लेकर आ गई . उसने चाय का कप उठाया था और सोचने लगी थी क्या ये घूँघट का हटना ही था कि महारानी चिमणाबाई पति के साथ घूम घूमकर अपनी खुली आँखों से दुनियां देखी . इतना ही नहीं उन्होंने स्त्रियों के दर्द को अभिव्यक्त करने के लिए एक पुस्तक लिखी ` द पोज़ीशन ऑफ़ वीमन इन इंडियन सोसायटी `.

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नीलम कुलश्रेष्ठ

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