Choirs of that palace - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

उस महल की सरगोशियाँ - 10

एपीसोड - 10

वह रहस्यमय मुस्कान से मुस्कराईं थीं, "यही कहानी तो मैं आपको बताना चाह रही थी। राजा साहब ने इस दुर्घटना के बाद मिलट्री से रिटायरमेंट ले लिया था व वापिस इसी अपने महल में रहने लौट आये थे। तब उनकी पहली पत्नी ज़िंदा थीं, वही इनकी देखभाल करतीं थीं लेकिन तीन साल बाद वे भी चल बसीं। राजा साहब का मन उचाट हो गया था। यू नो --कहाँ मिलट्री की पार्टीज़, मस्ती, शेम्पेन के दौर व डांस ---कहाँ ये सूना महल। और इस महल के विशाल कक्षों में घूमते नेत्रहीन राजा साहब। राजा साहब अपने कुछ सेवकों के साथ घूमते हुए हमारे हिमाचल प्रदेश आये थे। कुछ इत्तेफाक ये हुआ कि हिमाचल प्रदेश के राज्यों के राजघरानों के भूतपूर्व राजाओं की एक मीट थी। वहीं के किसी भूतपूर्व शासक राजा, जो इनके मित्र रहे होंगे ने इन्हें भी आमंत्रित कर लिया था। मैं भी अपनी स्टेट से अपने पति के साथ वहां गई हुई थी। "

उसके प्याले में चाय अब छलकने के लिए बची ही कहाँ थी ? वह सकते की हालत में चुप रानी विभावरी देवी की बात सुने जा रही थी, "फिर क्या हुआ ?"

" इसी पार्टी में हमारा परिचय हुआ था। यू नो --आर्मी पीपल के एटीकेट्स बहुत अलग होतें हैं। इन्हें चलते फिरते देखो तो थकान उतर जाती है। लेडीज़ से तो ये बहुत तमीज से पेश आ रहे थे। ऊपर से इनकी शानदार पर्सनेलिटी व दुनिया भर का ज्ञान। बस आँखें ही तो नहीं थीं। "

"तो इसलिए आपने अपने पति को छोड़ कर इनसे शादी कर ली थी? "उसे हल्का क्रोध आ गया था।

"अरे !मैं ऐसे कैसे कर सकती थी ?वह तो संयोग ------."

जब तक सेवक बर्तन उठाने आ गया था। वे उससे बोलीं, "मुखवास ले आना। "

वह जब वापिस लौटा तो उसके हाथ में मोर के आकार का एक सुन्दर डिब्बा था। उसने उस मोर के पंख हटाए तो अंदर अलग अलग डिब्बे में सौंफ, इलायची, लौंग, सूखे आंवले और भी पता नहीं क्या क्या रक्खा हुआ था। उसके एक लोंग उठा ली और रानी सेवक के जाने का इंतज़ार करती रहीं।

" पार्टी के बाद मेरे पति ने इनको अपनी स्टेट में हमारे साथ चलने को आमंत्रित किया। उन्हीं दिनों हमारी स्टेट में दिल्ली के एक गुरु महाराज पधारे हुए थे, जो हमारे परिवार के गुरु भी थे। ये राजा साहब उन गुरु से बात करके, उनके वेदों के ज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि मेरे पति के प्रोत्साहन पर हमारी स्टेट में ही उन्होंने इनसे गुरु दीक्षा ले ली थी।हवनकुंड के पास बैठे सदाशिवलाल जी का गोरा शरीर भगवा वस्त्रों में इतना चमक रहा था की मैं एक्सप्लेन नहीं कर सकती। मेरे पति भी इतने उदार थे कि उन्होंने इनसे पूजा समारोह का एक भी रुपया नहीं लिया।इस तरह से मेरे पति व इनकी दोस्ती हो गई थी। "

"जी, फिर क्या हुआ ?"

रानी विभावरी आगे बताने लगीं, "जब कभी दिल्ली में हमारे गुरु महाराज के यहाँ भंडारा होता या कोई बड़ी पूजा हम लोग इनसे वहां मिलते थे। मेरे पति ने हिदायत दी हुई थी कि मैं इनका विशेष ध्यान रक्खूँ क्योंकि ये आँखों से लाचार तो थे ही। एक बार मुझे अचानक गुरु जी का तार मिला -` तुम दिल्ली अकेले पहुंचो। स्टेशन पर ही तुम्हें कोई विशेष व्यक्ति मिलेगा जिसका तुम्हारे आगामी जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। "

गुरु घंटालों पर उसकी कभी आस्था नहीं रही, इस प्रदेश में उसने देखा है कि अधिकतर परिवारों के कोई ना कोई गुरु महाराज होते ही हैं। कोई डॉक्टर हो, इंजीनियर या व्यवसायी अपने गुरु की तस्वीर वह अपने ऑफ़िस में रखता ही है। अक्सर उससे भी पूछा जाता रहा है कि आप कौन से सम्प्रदाय को मानती हो ?

वह किंचित क्रोध से घड़ी देखती विभावरी देवी से बोली थी, "तो आप तार पाकर देल्ही चल दीं ?"

"ओ ---सॉरी, आपको देर हो रही है ?बस थोड़ी देर और सही। हाँ, तो मैं गुरु आज्ञा कैसे टाल सकती थी ?अब सोचिये जैसे ही मैं स्टेशन पहुँची तो देखा प्लेटफ़ॉर्म पर हिज़ हाइनेस खड़े हैं। मेरे उनके पास जाकर `हेलो `कहने से पहले उन्होंने शायद मेरे सेंट की खुशबू से मुझे पहचान कर भावुक हो मेरा हाथ पकड़ लिया, "विभावरी !सो यू आर इम्पोर्टेन्ट पर्सन इन माई लाइफ़। "

" मैं सकते की हालते में थी, क्या कहूँ ?बड़ी मुश्किल से मेरी जुबान खुली, मैंने उनसे पूछा वे देल्ही में क्या कर रहे हैं ?और जो उन्होंने बताया मेरे तो होश उड़ गए। "

"क्या बताया ?"उसकी स्थिति ये हो रही थी कि इनकी कहानी ख़त्म हो और वह भाग ले --मन डाइनिंग टेबल पर भटक रहा था कि ज़रूर बच्चे दही या दाल लेना भूल जाएंगे। पक्का दाल तो लेंगे ही नहीं क्योंकि मूंग दाल से चिढ़ते हैं।

रानी विभावरी देवी ने बताया था " उन्होंने बताया था कि गुरु महाराज ने उन्हें भी तार देकर बुलाया था व कहा था कि कोई स्पेशल पर्सनेलिटी इस ट्रेन से उतरेगी और उनका जीवन बदल देगी। सच मानिये हम लोग हल्के हल्के काँप रहे थे। मैं मन ही मन ख़ुश थी क्योंकि अनजाने ही उन्हें धार्मिक समारोह में सहारा देते मेरे हाथों को उनका स्पर्श अच्छा लगने लगा था। मैं अपनी स्टेट में होती तब भी उनके सेंट की खुशबू में जैसे सराबोर रहती थी। "

" फिर आगे क्या हुआ ?"

" गुरु महाराज ने एक तरह से हम दोनों को आज्ञा दी कि विधि का विधान कह रहा है कि हम दोनों शादी कर लें।सोचिये मैं कैसे गुरु आज्ञा मानने से इंकार कर सकती थी ? "

"आपके पति तो ये बात सुनकर आप दोनों को बन्दूक से मारने निकल पड़े होंगे ?"

"नहीं, वे बहुत सज्जन व्यक्ति थे व गुरु जी को व उनके आदेश को बहुत मानते थे इसलिए उन्होंने भी शादी करने की अनुमति दे दी। "

" और आप अपने पति व बच्चों को छोड़कर यहां आ बसीं ?"

"उनको छोड़ा कहाँ ?, मैं दोनों परिवारों को सम्भालती रही। इनका महल देखती रही। वे लोग भी हिमाचल प्रदेश से यहां आकर रहते थे। बहुत स्नेह भरे सबंध थे हम सबके। अब तो वे नहीं रहे तो स्टड फ़ॉर्म व इतना बड़ा कारोबार मेरे बच्चे ही सम्भालते हैं। "

"ओ --आपने तो बहुत रोचक व फ़िल्मी कहानी सुना डाली। अच्छा तो अब चलती हूँ। "उसने उठते हुए कहा.

वे भी सोफ़े से खड़ी हो गईं, "आप तो पास ही रहतीं हैं, जब भी समय मिले आया करिये। "

उस जड़बुद्धि ने कभी रानी विभावरी की इस कहानी पर गहराई से विचार नहीं किया .

नीलम कुलश्रेष्ठ

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