Love or Arranged books and stories free download online pdf in Hindi

लव या अरेंज्ड

"सिएस्ता की बीच", यहीं तो आना चाहता था वो हमेशा से। कितना ख़ूबसूरत नज़ारा, साफ़ पानी, सफ़ेद रेत, अपनी मस्ती में मगन लोग। चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ, और वो, एकदम अकेला। इस जगह वो आना चाहता था लेकिन दिशा के साथ। कितने सपने देखे थे दोनों ने अपनी शादी को लेकर। दोनों को बीच पसंद थे और फ्लोरिडा जाना, दोनों का ख़्वाब। यहाँ इस तरह कभी अकेले भी आना होगा, ये उसने कभी सोचा नहीं था। लेकिन आज यहाँ आकर उसे दिशा का ख़याल नहीं आया। दिशा को हमेशा दिल में बसाये रखने वाले अमन के मन पर आज बस पल्लवी का ख़याल छाया हुआ था। हर पल लग रहा था कि काश वो साथ होती।

समुद्र और लहरों से प्यार था उसे। उड़ीसा में बचपन बीता जहाँ समुद्र की लहरों का शोर अक्सर सुनाई देता था। आध्यात्मिकता के रंग में रंगे पुरी तट ने उसे जीवन में सहजता सिखायी और फिर सपनों का पीछा करते-करते जब वो मुंबई पहुँच गया, तब, वहाँ के कोलाहल से उसे समुद्र की लहरों के संगीत ने जैसे निजात दिलायी। अक्सर उसकी शामें समुद्र के अलग-अलग किनारों पर ही बीतती थीं। समुद्र के पास उसे हमेशा शांति का अहसास होता था। जैसे किसी माँ ने अपने लाडले को दुनिया की नज़र से बचाने के लिए आँचल में छुपा कर, सीने से लगा लिया हो।

यूँ ही एक रोज़ बीच पर टहलते हुए उसे पहली बार दिशा दिखाई दी थी, बच्चों के साथ वॉलीबॉल खेलते हुए। खेलते वक़्त वो बार बार बेईमानी कर रही थी और पकड़े जाने पर खिलखिलाकर हँस देती। बच्चों जैसी मासूम और निश्छल हँसी ! कमाल की बात थी कि उससे आधी उम्र के बच्चे उस लड़की की चीटिंग पर कुछ न कह कर बस मुस्कुरा देते और खेल चलता रहता।

अब उसका नियम बन गया था हर शाम उसी बीच पर जाना और दिशा को निहारते रहना। दिन हफ़्तों में और हफ़्ते महीनों में बदलते गए और उसका दिशा को अनवरत निहारना चलता रहा। रात में घर आ कर उसके बारे में सोचना, नींद में उसी के सपने देखना और सुबह उठते ही शाम का इंतज़ार शुरू कर देना ताकि फिर से उसे देख सके।

लगने लगा था जैसे उसका दीदार साँसों का चौबीस घंटे के लिए रिचार्ज है, जिस दिन नहीं हुआ शायद साँसें थम सी जाएँगी।

एक रोज़ हिम्मत जुटाकर उसने एक बच्चे से दिशा का नाम पूछा था। उसने जाकर चुगली कर दी और पूरी पल्टन को पावभाजी खिलानी पड़ी थी उसे। दिशा आई तो थी बच्चों के साथ पर दूर खड़ी मुस्कुराती रही थी। उसे बच्चों के साथ हँसता-बोलता देख जैसे दिशा को बहुत अच्छा लगा था।

उस दिन कई बार नज़रें मिलीं और होठों ने मुस्कुराकर एक दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था।

कुछ ही दिनों में दोनों की ज़िन्दगी में बदलाव आया। अब भी दिशा बीच पर होती थी पर अब अमन के साथ रेत पर बैठी आने वाले कल के हसीन ख़्वाब बुनने में खोयी रहती थी। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से पढाई के लिए मुंबई आई दिशा को अमन अपने जैसा लगा।

मुंबई के जैज़ म्यूजिक के शोर में दो मधुवंती के आलाप जैसे दिल अपनी खुशियाँ और भविष्य एक दूसरे में पा चुके थे।

अमन की अच्छी नौकरी थी, परिवार था इसलिए वो आश्वस्त था कि सब कुछ ठीक होगा। मई में दिशा के एग्जाम के बाद, दोनों अपने-अपने घर जाकर सब कुछ बताने का सोच चुके थे लेकिन नियति की क़लम कब किसी से पूछ कर चली है? मार्च में ही एक फुट ओवर ब्रिज ढहा। उस हादसे में कई लोग घायल हो गए और कुछ नहीं रहे। उन कुछ में एक नाम दिशा का भी था।

"दिशा नहीं रही!" अमन काफ़ी वक़्त तक बदहवास सा रहा। धीरे-धीरे सम्भला पर अब बीच पर जाना छोड़ दिया था। लहरों के नटखट शोर में अब उसे दिशा की घुटी-घुटी चीखें सुनाई देती थीं। सपने बिखर गए और वो क्या से क्या हो गया। चार बरस तक घरवालों को शादी के लिए टालता रहा। आखिर में मां की हालत देख कर उसने हाँ कह दिया। बिना लड़की को देखे या मिले! आज के ज़माने के लिए वाकई अजूबा है पर जिसका मन मर चुका हो उसे किसी चीज़ से कोई ख़ुशी महसूस नहीं होती।

वो पुरी गया और पल्लवी से मिला। परी जैसी लड़की जो उसके परिवार के दिल में घर कर गयी। पर उसका मन दिशा के बिना दिशाहीन था। पंद्रह दिन की छुट्टियां थीं और उसी में शादी भी। अमन का अंतर्द्वंद अपने चरम पर था। आखिर उस से रहा नहीं गया। वो किसी लड़की की ज़िन्दगी कैसे ख़राब कर सकता है! अगर वो पल्लवी को एक पत्नी का सम्मान और प्यार नहीं दे सकता तो कोई हक़ नहीं बनता उसका कि वो उसे सिन्दूर और मंगलसूत्र पहनाकर एक लक्ष्मणरेखा में बाँध दे। हो सकता है अब मना करने से थोड़ी बेइज़्ज़ती और आर्थिक नुक्सान हो, पर एक लड़की की ज़िन्दगी ख़राब हो जाये, उस से तो यही बेहतर होगा कि वो अभी पीछे हट जाये।

काफ़ी कश्मकश के बाद अमन ने पल्लवी को एक रेस्त्रां में मिलने के लिए बुलाया। शादी से एक हफ़्ता पहले, मंगेतर के बुलावे पर आँखों में अरमान लिए, लजाती, झिझकती पल्लवी ठीक वक़्त पर कैफ़े में पहुँच गयी। कॉफ़ी का आर्डर देते वक़्त जो मुस्कराहट उसके चेहरे पर थी, आधा कप कॉफ़ी ख़त्म होने तक उसकी जगह गंभीरता ले चुकी थी। अमन ने उस से कुछ नहीं छुपाया। सब साफ़-साफ़ बता डाला। पल्लवी ने शांति से सारी बातें सुनीं और फिर अमन का फैसला जान कर, बिना कुछ कहे चली गयी।

अमन की उम्मीद के उलट पल्लवी बहुत समझदार और मज़बूत लड़की निकली। अमन कुछ कहता, उसके पहले उसने अपने घरवालों को सब कुछ बता दिया और शादी रुक गयी। इसके साथ साथ दो परिवारों का पुराना दोस्ती का रिश्ता भी टूट गया। बातचीत तक बंद हो गयी।

अमन को बुरा लगा पर पल्लवी की समझदारी और गंभीरता दोनों उसे पल्लवी की और ज़्यादा इज़्ज़त करने को मजबूर कर रहे थे। उसने माफ़ी मांगने के लिए पल्लवी को फ़ोन किया।

"हेलो!"

" हाय पल्लवी! कैसी हो?"

"हाथों में मेहंदी लगने के वक़्त जिस लड़की की शादी टूट जाए, वो कैसी हो सकती है?"

"माफ़ी के लायक नहीं हूँ पर फिर भी हो सके तो माफ़ कर सकोगी?"

"वो तो कर दिया। नहीं करती तो फ़ोन क्यों उठाती? हर चीज़ के लिए खुद को दोषी मानना बंद कर दो। शायद हमारी किस्मत में नहीं था कि हम पति पत्नी बनें।"

"सच कह रही हो। पर दोस्त तो बन सकते हैं! शायद इसी से हमारे परिवारों की आपसी कलह ख़त्म हो जाए और सब पहले जैसा हो जाए।"

कुछ देर की ख़ामोशी के बाद पल्लवी ने कहा,"पहले जैसा हो पाएगा या नहीं, ये नहीं कह सकती। पर एक कोशिश की जा सकती है।"

कुछ देर सामान्य बातचीत के बाद अमन ने फोन रखा और सो गया। आत्मा का बोझ जो कुछ कम हो गया था। पर एक अच्छी बात हुई। एक अच्छे दोस्त की कमी ज़िन्दगी में थी, जो पल्लवी ने पूरी कर दी थी।

अमन अपनी पूरी छुट्टी बिताए बिना वापस मुंबई चला गया पर सोशल मीडिया और फ़ोन कॉल्स के ज़रिए पल्लवी से जुड़ा रहा।

अकेलापन इंसान को तोड़ कर रख देता है। अमन तो दिशा की याद में साढ़े चार सालों से जल रहा था। पल्लवी का साथ जैसे उस अगन पर ठंडी फुहारों की तरह गिरता था। जद्दोजहद का घना धुंआ कई बार उठा। पर धीरे-धीरे दिशा की यादों की राख से चिंगारियां उठनी बंद हो गयीं।

अमन अक्सर पुरी जाने लगा और पल्लवी के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त बिताने लगा। एक दिन पल्लवी के साथ जगन्नाथ मंदिर से बाहर आते हुए वो बोल पड़ा, "पल्लवी, हम लोगों का कुछ हो सकता है क्या?"

"क्या मतलब?" पल्लवी ने अचरज से पूछा।

"मतलब शादी.........!"

पल्लवी कुछ देर अमन को देखती रही और फिर बोली, "जब सब कुछ ठीक था तब तुम्हें पल्लवी नहीं चाहिए थी। अब पल्लवी चाहिए! क्या प्रॉब्लम है तुम्हारा?"

अमन ने ख़ामोशी से पल्लवी को कुछ पल देखा और कहा,"तब परेशान था। तुम जानती हो। आज तुम्हें जान गया हूँ, समझ गया हूँ। दिल से तुम्हारी इज़्ज़त करता हूँ और......"

"रुक क्यों गए? बोलो! और क्या?"

"और..... तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मुझे लगा था शायद प्यार एक ही बार होता है पर मैं ग़लत था पल्लवी। दिशा के जाने से मैं टूट गया था। नादान था और उम्र के उस दौर में था कि समझ नहीं पाया कि जीवन में किसी के साथ की क्या अहमियत है।"

"तो तुम्हें सिर्फ़ साथ चाहिए, फिर वो चाहे किसी का भी हो!"

"तुम ग़लत समझ रही हो पल्लवी। मैं वाकई तुमसे प्यार करने लगा हूँ। शर्मिंदा था अपने किये पर इसलिए हिम्मत नहीं जुटा पाया वरना कहना तो कई महीनों से चाहता था। क्या तुम मेरे लिए कुछ महसूस नहीं करतीं?"

"करती हूँ तो क्या? इस सब से अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अब घर वाले नहीं मानेंगे। बहुत दूरियां आ चुकी हैं हमारे परिवारों के बीच।"

"जब दो लोग मिलकर एक शादी रोक सकते हैं तो क्या एक शादी करवा नहीं सकते?"

पल्लवी ने कोई जवाब नहीं दिया। चुपचाप पलट कर एक रिक्शा को रोका और घर के लिए निकल गयी। ठगा सा अमन उसे जाते हुए देखता रहा। जब वो नज़रों से ओझल हो गयी तो वो भी बुझे मन से अपने घर की ओर चल दिया। पल्लवी की ना से ज़्यादा परेशान उसकी ख़ामोशी कर रही थी। अमन को बहुत खीझ हो रही थी अपने-आप पर। एक अच्छी दोस्त को खो देने का डर उसे बदहवास कर रहा था।

रात में पल्लवी का फ़ोन आया। अमन ने बेसब्री से फोन उठाया।

"क्या तुम फ्लोरिडा बीच पर जाकर मुझे वही कह सकते हो जो आज तुमने कहा?"

अमन को समझ नहीं आया कि प्यार और शादी के बीच में फ्लोरिडा कहाँ से आ गया। फिर उसे याद आया कि उसी ने पल्लवी को बताया था कि वो और दिशा हमेशा से एक साथ फ्लोरिडा जाना चाहते थे और उसके चले जाने के बाद से वो कभी किसी बीच पर नहीं गया। अमन को लगा जैसे प्यार का इम्तिहान देना पड़ रहा हो पर उसने हाँ कह दिया। ये ऊटपटांग सी डिमांड उसे अटपटी लगी पर दिल के मसलों में दिमाग़ भला कब लगाया जाता है।

अमन ने जल्द ही फ्लोरिडा जाने के लिए वीज़ा अप्लाई किया और नतीजतन आज वो यहाँ था। कुछ देर बीच की ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करने के बाद अमन होटल के रूम में गया और वायफाय कनेक्ट कर के पल्लवी को वीडियो कॉल लगायी। फ्लोरिडा में ग्यारह बज रहे थे यानि भारत में रात के लगभग साढ़े नौ बजे होंगे। हर घंटी के साथ अमन की धड़कनों की रफ़्तार और तेज़ हुए जा रही थी। पल्लवी ने जैसे ही फोन उठाया, अमन की जान में जान आयी।

"कैसे हो?"

"बहुत बुरा हूँ। समझ गया हूँ। इसीलिए तो तुमने इतना दूर भेज दिया।"

"अच्छा! बीच कैसा है वहाँ का?"

"बहुत सुन्दर! सफ़ेद रेत है यहाँ। सुनो!"

"हाँ बोलो।"

"दिशा की सारी यादें कल शाम बहा दीं समंदर में। बीच पर उसका ख्याल नहीं आया। न रोना आया, न किसी पुरानी याद ने छेड़ा!"

"अच्छा?"

"हाँ पल्लवी। मैं समझ गया कि तुमने मुझे अकेले यहाँ क्यों भेजा था। सच मानो, मेरे ख़यालों में, मेरे दिल में सिर्फ़ तुम हो। बहुत मिस कर रहा हूँ तुम्हें!"

जवाब में ख़ामोशी सुनकर अमन ने घबराकर पल्लवी को पुकारा।

"अमन! मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में किसी की कमी पूरी नहीं करना चाहती थी। दिशा की यादों से मुझे कोई परेशानी न थी न होगी। पर मैं तुम्हारे बीते कल के स्याह साये अपने आने वाले रंगीन भविष्य पर नहीं चाहती थी। एक प्रेमिका शायद अपना प्यार बाँट ले पर पत्नी अपना पति कभी नहीं बाँट सकती। मुझे तुम्हारे दिल में दिशा की नहीं, अपनी जगह चाहिए थी और आज वो मिल गयी है।"

अमन के आँसुओं के बीच उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी।

"तो फिर मैं ये रिश्ता पक्का समझूँ?"

स्क्रीन पर मुस्कुराती पल्लवी ने अचानक फ़ोन का बैक कैमरा ऑन किया और अमन ने देखा कि पल्लवी और उसके पेरेंट्स एक साथ हैं।

पल्लवी के पापा मुस्कुराकर बोले, "बेटे रिश्ता तो पक्का समझ लेंगे बस वादा करो कि अब पल्लवी का साथ निभाओगे। बीच रास्ते में उसे अकेला छोड़कर नहीं जाओगे।"

अमन ने झेंपते हुए सब बड़ों को नमस्ते कहा पर उसके चेहरे से आश्चर्य के भाव छुपाए नहीं छुप रहे थे। तभी उसकी माँ ने राज़ खोला, "उस दिन जब तू और पल्लवी जगन्नाथ मंदिर से निकले तो मैंने और तेरे पापा ने देख लिया था। हम गाड़ी से पल्लवी के पीछे गए। रास्ते में उसे रिक्शा से उतरवाया और गाड़ी में तुम दोनों की पूरी प्रेम कहानी सुनी और साथ ही पल्लवी की कशमकश भी।

आगे की बात अमन के पापा ने पूरी की,"वहाँ से पल्लवी को लेकर हम सीधे इसके घर आये और हम बड़ों ने बच्चों की मर्ज़ी को रज़ामंदी देने का मन बनाते हुए अपने सारे गिले-शिक़वे भुला दिये। लेकिन तुम्हारे मन की टोह लेना ज़रूरी था बरख़ुरदार। इस कहानी की स्क्रिप्ट लिखी पल्लवी के पापा और मैंने। हमने ही पल्लवी को कहा कि हाँ कहने से पहले ये देखना ज़रूरी है कि तुम्हारा अकेलापन तुम्हें पल्लवी की ओर धकेल रहा है या पल्लवी का प्यार तुम्हें खींच रहा है! और आज सबको जवाब पता चल गया है। तो अब जल्दी आ जाओ वापस।"

अमन को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। तभी पल्लवी भी स्क्रीन पर दिखाई दी। उसके चेहरे पर एक भरोसे भरी मुस्कान थी और आँखों में साफ़ लिखा था कि इस मुस्कान की वजह अमन है।

"कल रात की फ्लाइट है पापा। परसों रात तक घर पहुँच जाऊंगा।" अमन ने पल्लवी के चेहरे से नज़र हटाए बिना कहा।

"हाँ। आ जाओ बेटा। आकर तैयारियां शुरू करनी हैं।" माँ ने कहा।

"किस चीज़ की तैयारी माँ?"

जवाब में मुस्कुराती माँ ने पल्लवी को अपने नज़दीक खींचते हुए कहा, "इस प्यारी सी गुड़िआ को बैंडबाजे के साथ विदा करवा के अपने घर लाने की तैयारी। हम सब चाहते हैं कि अगर तुम दोनों राज़ी हो तो जल्द से जल्द हो जाए तुम्हारी मैरिज।"

पापा ने तुरंत टोकते हुए कहा,"सिर्फ़ मैरिज? अरे नहीं-नहीं। इनकी तो अरेंज्ड लव मैरिज है!"

बड़ों के ख़ुशी भरे ठहाके के बीच दो जोड़ी आँखें एक दूसरे में खोयी थीं। पल्लवी मौका देख कर अपने कमरे में फोन ले गयी। प्यार के खामोश इज़हार के बाद दोनों एक साथ बोल उठे, "मुबारक हो! अरेंज्ड लव मैरिज।"

और दिलों की धड़कन से ताल मिलाकर खुशियाँ नाच उठीं।

- अदिति