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ताश का आशियाना - भाग 2

मन एक दूसरे से मिल चुकी थे, मन की गंदगी एक आलिगंन के साथ ही धुल गई थी।इस पल का सिद्धार्थ को कब से इंतजार था। चित्रा ने भी बिना हिचकिचाते हुए सिद्धार्थ को गले लगा लिया।
दोनों जब आलिंगन के पाश से दूर हुए तो सिद्धार्थ के आंखों में खुशी के आंसू थे और चित्रा के आंखों में अजीब सी बेचैनी।
"आंखें बंद करो।"
"क्यों?" चित्रा ने पूछा
"मुझे लगा ही था, तुम आंखें बंद नहीं करोगी। अभी भी विश्वास नहीं ना मुझ पर।"
सिद्धार्थ ने मजाक उड़ाते हुए चित्र की आंखों पर रेशमी फिता बांध दिया और उसका हाथ पकड़ उसको अपने कमरे में ले गया।
चित्रा के पाव हर एक चाल के साथ भारी हो रहे थे। पर, कुछ तो था जो चित्र को सिद्धार्थ पर यकीन करने पर मजबूर कर देता था।
परंतु विश्वास थोड़ा डगमगाया जब दरवाजे का नोब घुमा दिया गया, सिद्धार्थ आज सातवें आसमान पर उड़ रहा था।
उसने चित्रा के आंखों से पट्टी हटाई।
जो चित्रा के सामने था उस पर विश्वास कर पाना मुश्किल था।
अंधेरे में कुछ देख पाना मुश्किल था पर जो ऊपर झरोखे से धूप रूम में पढ़ रही थी। उसमें सिद्धार्थ का चेहरा जगमगा रहा था जबकि, चित्रा थोड़ी आगे बढ़े तब उसने देखा ताश का महल।
वो आशियाना खिड़की के पास छत से जाके लग रहा था, थोड़ी ही दूरी थी दोनो में।
चित्रा की 12 साल पहले गुस्से में की गई बात आज हकीकत थी।
सिद्धार्थ पे निर्मोही हंसी छाई थी। वह जिस घड़ी का कितने दिनों से, सालों से इंतजार कर रहा था, वह दिन आज था,
3 सप्टेंबर 2000 से लेकर 3 सप्टेंबर 2012.
चित्रा बस एक टक सिद्धार्थ को देखे जा रहे थी।
उसे कितनी शिकायतें थी,कितना कुछ कहना था, जी भर के रोना था सीने से लगाकर पर प्यार अपने अलग ही पैमाने पर था।
शब्द मुंह तक आकर अटक गए जैसे बोलने से सब कुछ बिखर जाएगा।
सिद्धार्थ भी चित्रा को देखे जा रहा था मेहजन चित्रा के हाल पर आज से हंसी आ रही थी।
हमेशा प्रैक्टिकल रहने वाली चित्रा के आंखों में आंसू जो भर आये थे।
वह अपनी हंसी को होंठों के अंदर दबाते हुए उसने एक सेकंड चित्रा को ठहरने का इशारा दिया।
"तुम्हें पता है जब से तुमने ताश का आशियाना बोला है, तब से आज तक, हर एक दिन बिना एक भी दिन छूटे मैंने इसे बनाया हैं। हर एक पत्ते का हिसाब है मेरे पास।"
सिद्धार्थ आखिरी बचे पत्ते को ड्रावर में खोजने की कोशिश करते हुए बोला।
ड्रावर में बहुत खोजने के बावजूद भी, उसे वह पत्ता नहीं मिला। 'चित्रा अ प्रैक्टिकल गर्ल'के पैर अब लड़खड़ाने लगे थे।
अचानक ठंडे- मदहोश मौसम में पसीना छूट लगा था हाथों में, मुट्ठी जो कितनी देर से बंद थी।
"अरे! मिल गया। इडियट! अपने तकिए के नीचे रख कर भूल गया। तुम सच कहती हो मेरा कभी कुछ नहीं हो सकता।
एक मिनट आज का एक पत्ता और ताश का आशियाना पूरा हो जाएगा।"
सिद्धार्थ के चेहरे की मुस्कान, हंसी, खुशी तो शायद ही कोई फोटोग्राफर अपनी फोटो में कैप्चर कर सकता और एक चित्रकार अपने पेंटिंग में उतार सकता था।
बस 1 मिनट बोल सिद्धार्थ ने अलमारी के बाजू में रखा हुआ स्टूल खिड़की के पास लेकर आया। एक मिनट ही तो काफी है, जिंदगी बनने के लिए।
जिंदगी का वो पल, एक घड़ी कभी लौट कर नहीं आते। बहुत जरूरी है "मिनिट बाय मिनट।"
सिद्धार्थ स्टूल पर चढ़कर आखिर पत्ता सजाकर आशियाना पूरा करता, उससे पहले एक आवाज आई।
एक बुझी सी पतली सी आवाज जो अपने अंदर के तूफानों को आंसू ओ से दबाने की कोशिश कर रही थी।
उससे पहले एक आवाज आई।
"मेरी सगाई हो चुकी है सिद्धार्थ, इस महीने के 15 तारीख को शादी है।"
हल्की हवा, हल्की धूप, बहती गंगा लोगों का शोरगुल सब कानों में सुर्र..आवाज के साथ शांत हो गया।
जैसे बहुत देर से बवंडर ने तूफान मचा दिया हो और एकाएक शांति।
हल्का तो सिद्धांत का हाथ भी था अब तक हवा से कंपटीशन करता था।
हवा से कंपटीशन करता कि धीरे से बिना एक पत्ता हिलाएं आशियाना बनाता रहा।
आज हवा से कई हार गया हाथ जड़ हो गया।
एक धक्का और बस ताश का आशियाना ढेर हो गया।
चित्रा की आँखे बड़ी हो चुकी थी, दोनों हाथों ने मुंह को बंद कर दिया था, आश्चर्य या घुटन कुछ ना बोल पाने की एक वजह अंदर का ना दिखने वाला मन रोने की आवाज कर रहा था।