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नि.र.स. - 3 - यादों का सफर

नि.र.स. - यादों का सफर
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Dedicate to my pen
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नज्मेें
१. हिचँकिया तो लेती होगी ना तेरी बाहें भी
२. तू तस्वीर है आज भी मेरे रब की...
३. तुझे भी मेरी याद तो आती ही होगी
४. मेरी चाहत कि तू कभी फिक्र ना करना
५. तुम हो क्या?
६. लिख कर मिटा दिया
७. तुम ही हो मेरा आखिरी प्यार
८. गुनेहगार कौन?
९. वजह की तलाश
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हिचँकिया तो लेती होगी ना तेरी बाहें भी
तू नहीं होती ना जब इन रातों में।
मेरी हर बातों में।।
तो लगता है मै सुनेपन में हूं।
लगता है मैं अधूरेपन में हूं।।
तुम दूर हो इस वक्त, कोई बात नहीं।
पर रोए ना हो तुम्हारी यादों में, ऐसी भी तो कोई रात नहीं।।
तुझसे गिला नहीं, शिकवे नहीं।
संजोहा है खुद को, बिखरे नहीं।।
तू एक सादगी से भरी कविता थी मेरी।
रक्त में घुली हुई प्रेरणा थी मेरी।।
दूर हो अब तुम हमसे, जैसे रूठी हुई मेरी कलम हो।
मैं पुजारी हूं तेरा, तुम ही मेरा धर्म हो।।
इबादत तेरी हो जाए,
रब से मांगता दुआ हूं।
पर तू आज नहीं है मेरे जीवन में,
बस इस बात से खफा हूं।।
तुम दूर हो तो आंखें बंद कर लेता हूं।
और अपने सपनों में भी बस तुम्हें देखता हूं।।
आते हो ख्वाबों में तुम।
खोए खोए से रहते है तेरी बातों में हम।।
याद आया तुम अक्सर पूछा करती थी।
कौन हूं मैं तुम्हारी?
हम भी पागल इस पर तुमको सताते रहे।
इस सवाल पर मन ही मन मुस्काते रहे।।
लो आज बता देते हैं कि -
चांद की चांदनी हो तुम।
रात की रागनी हो तुम।।
रब हो तुम, सब हो तुम।
मेरे जीवन की मिठी मधुर यादें हो तुम।
रात रात जागकर करने वाली बातें हो तुम।
खुदा हो तुम, दुआ हो तुम।।
अब बस याद ही सहारा है मेरा।
सनम सिर्फ मेरी सांसों में बसेरा है तेरा।।
चलो छोड़ो यह बातें बहकी बहकी।
हवा देखो बह रही है महकी महकी।।
सिसकियां भरती है अब तो मेरी आंहें भी।
हिचँकिया तो लेती होगी ना तेरी बाहें भी।।
- नि.र.स.
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तू तस्वीर है आज भी मेरे रब की...
तू तस्वीर है आज भी मेरे रब की।
तू कहानी है मेरे अधुरेपन की।।
तू सांसों में है, रूह में है।
तू दिल में है, नस-नस में बहते लहु में है।।
मैं जानता हूं कि -
मैं पापी हूं, तू देवी है आज भी।
मैं दोषी हूं, तू न्याय है आज भी।।
मैं कालिक हूं, तू अलंकार है आज भी।
मै मुफलिस हूँ, तू बुलंदियो पर है आज भी।।
तु रब है, कुरान है, गीता है मेरी।
तू नींद है, ख्वाब है, कल्पना है मेरी।।
तू सुख है, आनंद है, प्यास है मेरी।
तू कलम है, स्याही है, दवात है मेरी।।
तू गीत है, गाथा है, कविता है मेरी।।
तू मुझमें ही है, जन्मो-जन्मांतर तक, तू सांसे है मेरी।।
तू सुंदर किनारा है,
मुझ टूटी नाव का।
गर मैं भटकता राही हूं
तो तुम सहारा हो मेरा तपती धूप में छांव का ।।
पथ पर चलते-चलते,
अक्सर जिक्र आ जाता है,
पैर के छालों में।
आंखें बंद करता हूं,
तो पाता हूं खुद को,
तेरे घने बालों में।।
तुम मिली ना नसीबो में मेरे।
हाथों की लकीरों में मेरे।।
कहां खो गए तुम।
कहां छोड़ गए तुम।।
देखो ना, देखो ना
अब तो बस ये अंधेरे मेरे हो गए।
जिनकी गहरी गलियों में हम खो गए।
रोते हैं, तेरे ख्वाबो में सोते हैं।
बंद सहमी-सहमी सी सिसकियों को संजोते हैं।।
कहां चले गए तुम दिलबर,
देखो ना हम लिखते हैं।
संगमरमर की मूरत हो तुम आज भी मेरे दिल के आंगन में।
बस रूठा ना करो इस भीगे भीगे सावन में।।
सच कहूँ तो तेरे जाने से सबकुछ मानो खो गया।
मै र.स. था, तेरे नाम के जूडते ही नि.र.स. हो गया।।
-नि.र.स.
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तुझे भी मेरी याद तो आती ही होगी
जब-जब तुम्हें सोचता हूं,
तो तुम मेरी कलम की स्याही बन जाते हो।
मेरे दिल के जज्बातों की,
मेरे हर गुनाह की गवाही बन जाते हो।।
सिखाया नहीं किसी ने,
मुझे इश्क करके उसे निभाना।
मगर तुम मुझे मेरी हर मंजिलों तक,
पहुंचाने का जरिया बन जाती हो।।
गवाही देती है मेरे होठों की लाली,
तेरे होने के एहसास का।
गवाही देती है तेरी जुल्फों की छाया,
बुने हुए हर सुनहरे ख्वाब का।।
ओर काजल लगाकर जब तुम,
पलके उठाकर गिरा देती हो।
मानो गवाही देती हो यह झुकी हुई नजरें,
ढलते सूरज की तन्हाई का।।
लिखने को तुम मुझे मदहोश करती हो,
गवाही देती है मेरी कविता इस बात का।
लिखता हूं मैं वही बातें और किस्सा छेड़ता हूँ मैं,
तुम से की गई हर मुलाकात का।।
पागल सा हो जाता हूं ना होने पर तेरे,
तेरे मे ही मै खो सा जाता हूं।
पता नहीं मुझे क्या हो जाता है,
कुछ भी हाल-ए-दिल किसी को बता नहीं पाता हूं।।
खो सा जाता हूं सोच- सोचकर तुझको।
बस आज भी एक ही सवाल मन में है कि -
तू प्यार तो करती है ना मुझको?
मैं क्यों इतना पागल हूं तेरे लिए,
इसका कोई जवाब नहीं है मेरे पास।
बस इतना जानता हूं कि
मेरी नींद, मेरा दिल, मेरे हर राज है तेरे पास।।
मुझे पता है मेरी कलम की हर बात पढ़कर तुम मुस्कुराती होगी।
बिछड़ना तो हो गया तेरा मेरा किसी बात पर चाहे,
पर तुझे भी मुझ नि.र.स. की याद तो आती ही होगी।।
- नि.र.स.
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मेरी चाहत कि तू कभी फिक्र ना करना
तू है खफा मुझसे क्यों।
एक गुजारिश है तुझसे यूं।
मेरे प्यार की कभी,
कहीं कदर ना करना।।
कि मेरे जज्बातों के,
भाव का जिक्र ना करना।
मेरी चाहत कि तू,
कभी फिक्र ना करना।।
मिले जो तुमसे दिल के जख्म,
मानो इन्हे जैसे दवा मिली हो।
मिले जो तुमसे मेरे भटके वजूद,
मानो इन्हे जैसे पनाह मिली हो।।
मगर मुझ मुसाफिर के,
ठहराव का जिक्र ना करना।
मेरी चाहत कि तू,
कभी फिक्र ना करना।।
वादा है, वादा है कि-
मेरे बीते हुए सुनहरे नग्मे बन,
हमेशा मेरे तरानो में तुम जगह पाओगी।
सपनों में आकर मैं तुझे सताऊंगा,
और सुबह आंखों मे मेरी निशानी पाओगी।।
किसी से गुनाह के,
गुनेहगार का जिक्र ना करना।
मेरी चाहत कि तू,
कभी फिक्र ना करना।।
-नि.र.स.
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तुम हो क्या?
मेरी कहानी में तुम हो।
मेरी जवानी में तुम हो।।
तुम्हारे प्यार के रंग है।
तुम्हारे संग कटे हर एक हसीन पल है।।
वह सब है या सिर्फ तुम हो।
क्या मेरी हर कहानी में तुम हो?
असल में ये सवाल ही गलत है।
क्योंकि मेरी हर कहानी ही तुम हो।।
- नि.र.स.
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लिख कर मिटा दिया
मैं तुमसे प्यार करता हूं।
रेत पर लिख कर मिटा दिया।।
मैं तुम्हारी फिक्र करता हूं।
रेत पर लिख कर मिटा दिया।।
तेरी खुशियों को मांगता हूं।
रेत पर लिख कर मिटा दिया।।
और अब जब तू मुझसे कोसो दूर है,
तुझे याद करता हूं।
लिखा था तेरी यादों का पैगाम दिल पर,
उसे मिटा ना सके।
पर सच कहे आज भी तुमसे प्यार है,
रेत पर लिख कर मिटा दिया।।
रेत पर लिखी मेरी-तेरी आशिकों को।
लहरो के बहाव ने मिटा दिया।।
हमें गम नही इस बात का।
रेत पर लिख कर मिटा दिया।।
- नि.र.स.
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तुम ही हो मेरा आखिरी प्यार
तुम रब मेरा,
तुम मेरी जिंदगी हो।
तुम मेरी रूह,
तुम मेरी बंदगी हो।।
तुम मेरी सांसों में हो,
तुम मेरी बातों में हो।
तुम रग रग में हो,
तुम मेरे हर पल में हो।।
तेरे इन्ही हर पल की यादो को,
आंखों में संजोए बैठे है।।
इन गमगीन रातो में,
तेरी यादों में खोए रहते हैं।
अब तेरी यादों को कोई,
मुझसे जुदा नहीं कर पाएगा।
मेरी रूह को जो पढेगा,
वह मुझे तेरा ही बताएगा।।
क्योकिं तुम ही मेरा पहला प्यार,
तुम ही आखिरी हो।।
- नि.र.स.
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गुनेहगार कौन?
अगर तुम ना रही,
तो मेरी जिंदगी का वजूद क्या होगा।
जो शिकायते दिल तेरे होने पर करता है,
उन शिकायतो का गुरूर क्या होगा।।
एक दफा बस हमें इतना कह देते,
कि तुम परेशान ना करो गुनेहगार बताकर।
अब गर तुझसे दूर कर देगा रब,
तो फिर इस मोहब्बत का गुनेहगार वो होगा।।
कबूल है गर उसे ये गुनाह,
तो सजा-ए-फरमान में उसके जुदाई लिख दूँगा।
ओर गर तू गई थी, मुझे बेवजह छोडकर,
तो मै कालिख तेरी हर जगह रूसवाई लिख दूँगा।।
- नि.र.स.
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वजह की तलाश
मैंने तुमसे प्यार किया,
इसकी कोई तो वजह होगी।
तुमने मुझसे बखुबी नफरत निभाई,
इसकी भी तो कोई वजह होगी।।
मैंने तेरा इंतजार किया,
इसकी कोई तो वजह होगी।
तुमने इंतजार को टूटने ना दिया,
इसकी भी तो कोई वजह होगी।।
मैंने किसी ओर से दिल्लगी नहीं कि,
इसकी कोई तो वजह होगी।
तुम भी तो किसी और की हो गई,
इसकी भी तो कोई वजह होगी।।
बस ताउम्र वजह तलाशता रहा,
कि कोई तो वजह होगी।
र.स. से मै नि.र.स. हो गया,
इसकी भी तो कोई वजह होगी।।
नि.र.स.
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