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कहानी एक समर्पण की मां

रविवार का दिन था और सुबह के 7:00 बज रहे थे. डॉक्टर रितिका चौहान फोन पर किसी महिला से बात कर रही थी, जो अपनी बेटी की समस्या के संबंध में रितिका से मिलना चाहती थी. “ आई एम सॉरी, मैम. मैं रविवार के दिन किसी भी पेशेंट को नहीं देखती हूँ. आप सोमवार को आ जाइये ” - डॉक्टर रितिका चौहान फोन पर एक महिला को समझाने का प्रयास कर रही थी, मगर वह महिला अपनी जिद पर अड़ी हुई थी. दूसरी तरफ से बात करनेवाली महिला ने डॉक्टर रितिका से कहा - “ प्लीज डॉक्टर, मैंने सुना है कि आप एक बहुत अच्छी काउंसलर है और आपके काउंसलिंग की वजह से बहुत से मरीज ठीक होकर नॉर्मल लाइफ जी रहे हैं. मेरी बेटी के जिंदगी का सवाल है, डॉक्टर. आप भी तो एक औरत है और आपने भी कभी न कभी ऐसी परिस्थितियों का सामना किया होगा. डॉक्टर, मैं आपको आपके फीस के दुगुने पैसे दूँगी. प्लीज, मेरी बेटी मेरी जिंदगी है और मैं आपके आगे अपनी बेटी के लिए हाथ जोड़ती हूँ ” इतना कहने के साथ ही फोन पर डॉक्टर रितिका से बात करनेवाली महिला रोने लगी. ना चाहते हुए भी डॉक्टर रितिका चौहान ने उस महिला से कहा - “ प्लीज, आप रोइये मत. आप अपनी बेटी को लेकर मेरे घर पर आ जाइये. मैं आपको अपने घर का पता व्हाट्सएप करती हूँ ” अपनी बात पूरी करने के बाद रितिका चौहान उस को अपने घर का पता व्हाट्सएप कर देती है और एक लंबी सांस लेकर कुछ सोचने लगती है. डॉक्टर रितिका चौहान एक बहुत ही अच्छी मनोचिकित्सक थी, अपने पेशेंट के दिमाग को पढ़कर उसका इलाज करना रितिका चौहान को बखूबी आता था. रितिका सिर्फ पैसों के लिए अपने पेशेंट की समस्याओं का समाधान नहीं करती थी, बल्कि यह उसका शौक था. रितिका को अपने काम से बहुत प्यार था और उसे अपने मरीजों की समस्याओं को सुलझाकर बहुत ही सुकून मिलता था. रितिका की उम्र 35 साल हो गई थी और रितिका शांत, मृदु स्वभाव की होने के साथ-साथ बहुत ही खूबसूरत भी दिखती थी. इन सबके बावजूद एक चौंकाने वाली बात यह थी कि रितिका ने कभी शादी नहीं की थी. डॉक्टर रितिका चौहान के चेहरे पर मुस्कुराहट तो नजर आती थी, मगर अपनी उस मुस्कान के पीछे अपने दिल की दर्द को छुपा जाती थी. दूसरों के दिल का हाल बताने वाली खुद डॉक्टर रितिका अपने दिल का हाल किसी से भी बयां नहीं करती थी. शायद वह ऐसा करने से डरती थी, या फिर शायद वह किसी खास इंसान की तलाश में थी. खैर, बात चाहे कुछ भी हो, रितिका हमेशा अपने पास एक बच्ची की तस्वीर रखती थी और रितिका जब भी बहुत ज्यादा परेशान हो जाती थी, तो उस बच्ची की तस्वीर को एक बार जरूर देखती थी. अपनी यादों में खोई हुई-सी थी डॉक्टर रितिका, तभी दरवाजे पर कॉलबेल की घंटी बजने पर रितिका का ध्यान टूट जाता है. डॉक्टर रितिका दीवार पर टंगे घड़ी की ओर देखती है - “ ओह……., 9:00 बज गए हैं. लगता है मिसेज सहगल अपनी बेटी को लेकर आ गई है ” रितिका सोफे से उठकर दरवाजा खोलती है, तो देखती है कि सामने कामिनी सहगल अपनी बेटी के साथ खड़ी थी. “ अंदर आइये ” - रितिका कामिनी और उसकी बेटी को अपने घर के अंदर बुलाती है. “ आप दोनों बैठिये, मैं आपलोगों के लिए चाय बनाकर लाती हूँ ” - यह कहते हुए डॉक्टर रितिका रसोईघर में चली जाती है. कुछ ही समय के बाद रितिका दोनों के लिए चाय लेकर आती है, फिर चाय का एक कप कामिनी की ओर बढ़ाती है और चाय का दूसरा कप कामिनी की बेटी की तरफ बढ़ाती है. लेकिन कामिनी की बेटी चुपचाप अपनी जगह पर ही बैठी रही, ना तो वो अपनी जगह से उठी और न ही उसने कुछ कहा. यह देखकर रितिका ने चुपचाप चाय का कप उसके सामने ही टेबल पर रख दिया और जाकर कामिनी के सामने सोफे पर बैठ गई. कामिनी सहगल डॉक्टर रितिका चौहान को अपने बारे में बताने लगी - “ डॉक्टर, मेरा नाम कामिनी सहगल है और मैं एक एनजीओ में काम करती हूँ. ये मेरी बेटी आकांक्षा सहगल है और जैसा कि मैंने आपको अपनी बेटी के बारे में बताया था, कि पिछले एक महीने से सारा दिन अपने कमरे में ही खुद को बंद रखती है. ना तो ये कुछ खाती है और न ही कुछ पीती है. ना तो यह हमसें कुछ कहती है और न ही हमारी बात का कोई जवाब देती है. यहां तक की इसने किसी से मिलना-जुलना भी छोड़ दिया है ” मिसेज कामिनी सहगल से बात करने दौरान भी डॉक्टर रितिका चौहान की नजरें आकांक्षा सहगल पर टिकी हुई थी. कुछ मिनट बीतने के पश्चात डॉक्टर रितिका अपनी जगह से उठकर आकांक्षा के नजदीक जाती है और उसके कंधे पर हाथ रखकर उससे कहती है - “ आपकी चाय ठंडी हो रही है. खासतौर पर मैंने आपके लिए यह चाय बहुत ही प्यार से बनाया है और अगर आप इसे पीयेंगे नहीं, तो मुझे पता कैसे चलेगा कि मैंने चाय कितना बुरा बनाया है ” डॉक्टर रितिका की विनम्रतापूर्वक अनुरोध करने पर आकांक्षा टेबल पर रखे चाय का कप उठाती है और एक हल्की-सी चाय की चुस्की लेने के बाद बहुत ही धीमी आवाज में रितिका से कहती है - “ चाय अच्छी बनी है ” फिर डॉक्टर रितिका आकांक्षा से कहती है - “ थैंक्स, अब आप एक काम कीजिये. उस तरफ बायीं ओर एक केबिन है, आप वहां जाकर मेरा इंतजार कीजिये. मैं थोड़ा आपके मम्मी से बात कर लेती हूँ ” आकांक्षा के जाने के बाद रितिका कामिनी सहगल की ओर मुखातिब होते उनसे पूछती है - “ क्या आप मुझे अपनी बेटी के बारे में कुछ ज्यादा जानकारी दे सकते हैं, जिससे मुझे उसके प्रॉब्लम को समझने में मदद मिल सके और इससे मैं उसका बेहतर तरीके से काउंसलिंग कर पाऊँगी ” कामिनी सहगल - “ जी डॉक्टर, पहली बात तो यह है कि आकांक्षा मेरी अपनी बेटी नहीं है. दरअसल, आज से 18 साल पहले मैं और मेरे पति नीलेश कलकत्ता में रहते थे, उस वक्त मैं प्रेग्नेंट थी. मैं और मेरे पति इस बात को लेकर बहुत ही खुश थे, कि हमदोनों माँ-बाप बनने वाले थे. वह समय भी बहुत जल्दी ही आ चुका था, जब मैं अपने बच्चे को जन्म देनेवाली थी. वह कलकत्ता का एक छोटा-सा अस्पताल था, जहां पर मैं अपने बच्चे को जन्म देनेवाली थी. अब आप इसे मेरी फूटी किस्मत कहिये या फिर अस्पताल वालों की लापरवाही, मैंने अपने बच्चे को जन्म दिया और जन्म के कुछ ही समय के बाद मेरा बच्चा मर गया. उस वक्त मैं और नीलेश पूरी तरह से टूट गए थे, ऐसा लग रहा था कि जैसे हमनें अपना सबकुछ खो दिया हो. मैं अपने मरे हुए बच्चे का चेहरा बार-बार देख रही थी, यह सोचकर कि शायद वह अचानक से रोना शुरू कर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका, मगर तभी एक नर्स अपने हाथों में एक छोटी-सी नवजात बच्ची को लेकर हमारे पास आयी और उसने मेरे पति से कहा कि अगर हमें बच्चा चाहिए, तो हम उस बच्चे को गोद ले सकते हैं. लेकिन साथ ही उस नर्स ने यह भी बताया था कि उस बच्ची को जन्म देनेवाली माँ की एक शर्त थी और वह शर्त यह थी कि हम उस बच्ची को एक अच्छी परवरिश देंगे. पहले तो मेरे पति को लगा कि शायद उस बच्ची की माँ को कुछ पैसों की जरूरत हो और इसीलिये जब हमनें उस औरत की तलाश की, तो तब तक वो अस्पताल से जा चुकी थी. फिर हमनें उस बच्ची को बड़े ही प्यार से पाला, बिल्कुल अपने बच्चे की तरह. हमनें कभी भी उसे किसी प्रकार के परायेपन का एहसास होने नहीं दिया. वह थोड़ी जिद्दी थी, हर बार कुछ न कुछ नई वस्तुओं की मांग करती रहती थी. कभी नये कपड़ों की, कभी नये खिलौनों की, कभी अलग-अलग फ्लेवर के ढेर सारे चोकलेट की और इसीलिये मैंने उसका नाम रखा था - आकांक्षा. हम करीब 7 साल तक कलकत्ता में ही रहे और उसके बाद नीलेश ने अपना बिजनेस दिल्ली में शिफ्ट कर लिया, तब तक मुझे भी यहां दिल्ली में एक एनजीओ में जॉब मिल गया था. आकांक्षा भी 10 दस साल की हो चुकी थी और इसीलिये हमनें आकांक्षा की देखभाल करने के लिए एक नौकरानी को रखा, जो आकांक्षा के खाने-पीने का पूरा ख्याल रखे. इस दौरान मैं और नीलेश अपने - अपने कामों में इतना ज्यादा व्यस्त हो गए थे, कि हमारे पास अपनी बेटी से बात करने के लिए समय भी नहीं होता था. शायद इस दौरान वह खुद को काफी अकेला महसूस किया करती थी और वह हमेशा खामोश-सी रहने लगी थी. उसकी कॉलेज जाने की उम्र हो गई थी, मुझे लगा कि शायद अब उसके कई नये दोस्त बनेंगे और वह अपने दोस्तों से बातें करेगी, तो सबकुछ ठीक हो जायेगा……....” इतना कहकर मिसेज कामिनी एक गहरी सांस लेती है, तो डॉक्टर रितिका चौहान उनसे पूछती है - “ जब कोई इंसान खुद को अकेला महसूस करता है, तो वह अपने लिये किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करता, जो उसकी तन्हाइयों को दूर करें. शायद, आपकी बेटी ने भी ऐसे ही किसी इंसान की तलाश की होगी ? ” कामिनी ने रितिका के सवाल का जवाब देते हुए कहा - “ हां, कॉलेज में आकांक्षा का एक बॉयफ्रेंड था और आकांक्षा भी उसे बहुत पसंद करती थी. आर्यन नाम था, आकांक्षा ने बताया मुझे. जब से वह लड़का आर्यन मेरी बेटी की जिंदगी में आया था, आकांक्षा बहुत ही खुश रहने लगी थी. आर्यन बहुत ही अच्छे घर का लड़का था, मुझे इस बात की बेहद खुशी थी कि कम से कम आर्यन की वजह से मैं अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कुराहट देख पाती थी. लेकिन पिछले महीने आर्यन अपने परिवार के साथ किसी दूसरे शहर में चला गया, जाने से पहले आकांक्षा से कहकर गया था कि वह आकांक्षा से मिलने आया करेगा. लेकिन इतने दिन बीत गए, मगर वह दुबारा नहीं लौटा. उसके बाद से आकांक्षा भी काफी गुमसुम-सी रहने लगी है ” रितिका - “ देखिये कामिनी जी, मैं इस बारे में आपसे कोई वादा नहीं कर सकती. हां, लेकिन मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगी कि आपकी बेटी ठीक होकर पहले की तरह एक नॉर्मल लाइफ जीने लगे. अभी आप अपनी बेटी को मेरे पास ही छोड़कर जाइये और आप शाम 5:00 बजे आकर अपनी बेटी ले जाइयेगा, लेकिन शाम को आप नीलेश जी को भी अपने साथ लेकर आइयेगा ” “ जी, डॉक्टर रितिका. मैं अब चलती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि आप मेरी बेटी को फिर से नॉर्मल लाइफ जीने में मदद कर पायें ” रितिका - “ मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगी ” कामिनी के जाने के बाद डॉक्टर रितिका किचन में जाती है और अपने नाश्ते के लिए नूडल्स बनाती है. नूडल्स बना लेने के बाद रितिका दो प्लेट में नूडल्स निकालती है और फिर अपने घर में बने ऑफिस में जाती है. उस वक्त आकांक्षा नवजात शिशु के लालन-पालन से संबंधित एक मैगजीन पढ़ रही थी, डॉक्टर रितिका को देखते ही आकांक्षा ने झट से मैगजीन रख दिया. रितिका ने नूडल्स का एक प्लेट आकांक्षा की ओर बढ़ाते हुए कहा - “ लो, सुबह का गरमा - गरम नाश्ता ” आकांक्षा ने इंकार करते हुए कहा - “ मुझे भूख नहीं है ” रितिका - “ पहली बात तो यह है कि मैं कभी भी अपने घर पर आनेवाले मेहमानों को भूखा नहीं रखती और दूसरी बात यह है कि अगर मेरी खुद की बेटी होती, तो उसे तो बिल्कुल भी भूखा नहीं रहने देती. अपनी बेटी समझकर तुमसे कह रही हूँ, थोड़ा-सा खा लो ” आकांक्षा - “ प्लीज, मुझे अपनी बेटी मत कहिये. मेरी खुद की माँ है ” रितिका - “ ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. लेकिन कम से कम अपने पेट में पलने वाले बच्चे के लिए खाना खालो ” आकांक्षा डॉक्टर रितिका की ओर विस्मय भरी निगाहों से देखते हुए बोल पड़ी - “ आपको यह सब कैसे पता चला ? ” रितिका - “ डॉक्टर हूँ ना, अपनी पेशेंट को देखते ही उसकी बीमारी पकड़ लेती हूँ. खैर, आप अपनी समस्या बताओ ? ” आकांक्षा - “ क्या फायदा, वैसे भी आप एक डॉक्टर हो. कोई भगवान नहीं, जो आप मेरी समस्या को दूर कर पाओ ” रितिका - “ भगवान की जगह तो कोई भी नहीं ले सकता है, शायद मैं भी नहीं. लेकिन सुना है कि आजकल भगवान भी काफी व्यस्त रहने लगें है, तभी तो उन्होंने मेरे जैसे काउंसलर को आपके जैसी पेशेंट्स का इलाज करने के लिए इस धरती पर भेजा है ” डॉक्टर रितिका की बात सुनकर आकांक्षा के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट आ जाती है, तो रितिका आगे बोलना शुरू कर देती है - “ आपने जिन परिस्थितियों का सामना किया है और खुद को काफी अकेला महसूस किया है, यह मैं समझ सकती हूँ. आपके इसी अकेलेपन का फायदा उठाकर आर्यन ने अपने प्यार का झूठा नाटक किया और फिर………..! लेकिन उसके बाद से जो आप खुद को हारी हुई-सी मानने लगी हो ना, यह बिल्कुल गलत तरीका है. क्या आपको कहानी सुनना अच्छा लगता है ? ” आकांक्षा - “ हां, बहुत ज्यादा. पर मेरी माँ को कोई भी स्टोरी नहीं पता, इसीलिये मुझे उपन्यास पढ़कर ही काम चलाना पड़ता है ” रितिका - “ लेकिन मैं जो आपको कहानी सुनाने वाली हूँ, वो बिल्कुल सच्ची कहानी है. आपकी तरह की एक लड़की की कहानी है, एक छोटे से शहर के गरीब परिवार की लड़की की कहानी. जिसने अपनी जिंदगी में न जाने कितने समस्याओं का सामना किया, लेकिन उसने कभी भी समस्याओं के आगे घुटने नहीं टेके. बल्कि, उसने डटकर हर परिस्थितियों का सामना किया ” फिर एक गहरी सांस लेने के बाद डॉक्टर रितिका चौहान आकांक्षा को कहानी सुनाना शुरू कर देती है - “ एक रितू नाम की लड़की थी, वह बहुत ही समझदार, बहुत ही जिम्मेदार और बहुत ही हिम्मतवाली लड़की थी. उसके पिता एक शराबी थे और माँ एक अनपढ़ घरेलू औरत थी. बचपन से ही रितू सिर्फ एक चीज के लिए तरसती रहती थी, और वह था - प्यार. आप जानती हो, एक इंसान भूखा कुछ समय तक जी सकता है और अकेलेपन में भी अपनी जिंदगी गुजार सकता है, लेकिन प्यार के बिना इंसान एक सेकेंड भी नहीं जी सकता है. हर इंसान को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है, जो उसे सबसे ज्यादा प्यार दे और उसकी सबसे ज्यादा परवाह करें. लेकिन साधारण - सी दिखनेवाली रितू से कोई भी लड़की या लड़का दोस्ती करने से कतराता था. एक तो अपने पिता के रोज-रोज शराब पीकर घर आना, ऊपर से अपनी माँ का दिनभर चिक-चिक करना. इन सब बातों से परेशान होकर रितू किसी न किसी बहाने से घर से दिनभर गायब रहती थी. सुबह जल्दी से तैयार होकर स्कूल जाना और स्कूल से आने के बाद खेलने के बहाने गांव से दूर एक नदी के किनारे बैठकर समय बीताना, गलती से भी रितू के कदम अपने घर में ठहरते नहीं थे. एक तो अपने गांव के लोगों की रुढ़िवादी विचार, दूसरे अपने माता-पिता की बंदिशें. लेकिन इसके बावजूद रितू ने अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए गांव के बाहर शहर के एक कॉलेज में एडमिशन ले लिया. नये लोग और उनके नये तौर-तरीके, रितू के लिए यह सबकुछ बिल्कुल एक सपने जैसा था. अपनी कॉलेज की पढ़ाई के दौरान रितू की दोस्ती रोहन नाम के लड़के से हुई. कुछ महीनों तक दोस्ती चलने के बाद रितू और रोहन एक-दूसरे से प्यार करने लगे थे. इस दौरान रोहन ने रितू के साथ वह सबकुछ किया, जो एक लड़की को किसी भी लड़के के साथ नहीं करना चाहिए था. रोहन के प्यार में अंधी रितू प्यार और धोखे में अंतर नहीं कर पा रही थी. कुछ दिनों के बाद रोहन ने अचानक से उस कॉलेज को छोड़कर किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले लिया और उस वक्त रितू को यह जानकर बहुत ही दुख पहुँचा था कि उसे सबसे ज्यादा प्यार देनेवाला रोहन भी उसे छोड़कर जा चुका था. खैर, इन सब घटनाओं को भूलकर रितू फिर से अपनी पढ़ाई में ध्यान देने लगी. एक दिन रितू को अपनी सबसे बड़ी गलती का एहसास हुआ, जब उसे उल्टियाँ होने लगी और जब रितू इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास गई, तो उसे यह जानकर गहरा सदमा लगा कि वह गर्भवती हो गई है और उसके पेट में रोहन का बच्चा पलने लगा है. उस वक्त रितू के ऊपर पहाड़-सा टूट पड़ा था. रितू अपने पेट में पलने वाले बच्चे को गिराने के लिए किसी भी सूरत में तैयार नहीं थी, क्योंकि वह अपनी गलती की सजा अपने गर्भ में पलने वाले बच्चे को नहीं देना चाहती थी. रितू के लिए इस बात का किसी से भी खुलासा करना आसान नहीं था, क्योंकि अगर रितू के माँ-बाप को यह सब पता चलता, तो वह रितू को जान से मार देते. आखिरकार, रितू ने अपने गर्भवती होने की बात को लोगों से छुपाना ही बेहतर समझा और वह उसी हालत में अपनी पढ़ाई करने लगी. कॉलेज की परीक्षा का समय नजदीक आया, तो रितू ने पूरे मन से परीक्षा दिया. उस दिन रितू का आखिरी परीक्षा था और किस्मत से परीक्षा देकर लौटने के क्रम में रितू को अपने पेट में जोरों का दर्द महसूस हुआ. जल्दबाजी में रितू तुरंत एक टैक्सी पकड़कर अस्पताल पहुँची. आखिरकार, डॉक्टरों की मदद से रितू ने सफलतापूर्वक अपने बच्चे को जन्म दिया ” फिर कुछ देर रुकने के बाद डॉक्टर रितिका ने पानी पीया. तब पूरी उत्सुकता से रितिका की कहानी सुनने वाली आकांक्षा ने रितिका से सवाल किया - “ फिर क्या हुआ, मैम ? ” रितिका - “ आपको पता है, कि जब एक माँ अपने बच्चे को जन्म देने के बाद पहली बार अपनी हाथों में लेती है, तब उस माँ को ऐसा लगता है कि मानो उसने दुनिया की हर खुशियाँ प्राप्त कर ली हो. रितू के लिए उसकी कोख से जन्मी बच्ची पाप नहीं थी, जानती हो क्यों ? क्योंकि उसने रोहन के प्यार में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया था. बल्कि, पाप तो वह था, जो रोहन ने रितू को धोखा देकर किया था. लेकिन रितू के लिये मुश्किलें कम नहीं हुई थी, क्योंकि वह अपने बच्चे को लेकर अपने घर नहीं लौट सकती थी. तभी रितू को किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई पड़ी. रितू ने जब वहां मौजूद एक नर्स से इस बारे में पूछा, तो उस नर्स ने रितू को बताया कि वह औरत इसीलिये रो रही है, क्योंकि डिलीवरी के वक्त उसका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था. रितू ने दूर से ही उस रोनेवाली औरत को देखा, उस औरत का पति अपनी पत्नी को सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था. तभी रितू ने एक नर्स को अपनी बच्ची सौंपते हुए कहा कि वह इस बच्ची को उनदोनों पति-पत्नी को सौंप दे और अगर वे किसी प्रकार से पैसे की पेशकश करें, तो वह नर्स रितू की तरफ से इंकार कर दे. इसके अलावा अगर वह दंपति बच्ची की माँ के बारे में नर्स से कुछ पूछे, तो वह नर्स उन्हें कुछ नहीं बतायेगी और साथ ही रितू ने उस नर्स को अपनी शर्त से उनदोनों पति-पत्नी को अवगत कराने के लिए भी कह दिया कि वे दोनों रितू की बच्ची का पूरा ख्याल रखेंगे और उसे अपनी संतान मानकर उसकी परवरिश करेंगे. रितू के बताये अनुसार नर्स ने वैसा ही किया और उसने रितू की बच्ची को उन दंपति के हवाले कर दिया, साथ ही उनदोनों को रितू के बारे में कुछ भी नहीं बताया. अपनी बच्ची को आखिरी बार देखने के बाद रितू वहां से चली गई, अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत करने के लिए ” आकांक्षा - “ तो क्या रितू फिर कभी भी अपनी बेटी से नहीं मिली ? ” रितिका - “ नहीं, मैंने आपको यह कहानी सिर्फ इसलिये सुनाई है, ताकि आप इससे कुछ प्रेरणा ले सको ” आकांक्षा - “ अब मुझे क्या करना चाहिए ? ” रितिका - “ आपको अपने माता-पिता को सच बता देना चाहिए. अगर वो आपको इसके लिए सजा भी देते हैं, तो यह उनका अधिकार है और जहां तक सजा देने की बात है, तो सजा का असली हकदार आर्यन है ” रितिका ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा - “ समय हो चुका है, और आपकी मम्मी और पापा आते ही होंगे ” कुछ समय के बाद आकांक्षा के मम्मी-पापा डॉक्टर रितिका के घर पहुँचे, रितिका ने उन्हें पूरी सच्चाई से अवगत कराने के बाद उनसे कहा - “ मिस्टर नीलेश, आपकी बेटी से गलती जरूर हुई है, मगर इस वक्त आप दोनों को उसका साथ देना चाहिए. मेरे ख्याल से आप इस बात की जानकारी आर्यन के माता-पिता को दे, अगर वो समझदार होंगे तो वह आपकी बेटी की तकलीफ को जरूर समझेंगे. अगर ऐसा नहीं भी हुआ, तब भी आप अपनी बेटी का साथ दीजिये और उसके हौसले को कमजोर मत पड़ने दीजिये ” फिर आकांक्षा के माता-पिता डॉक्टर रितिका से विदा लेकर अपनी बेटी के साथ वहां से चले जाते हैं.

दूसरे दिन डॉक्टर रितिका अपने अस्पताल के ऑफिस में व्यस्त थी, तभी किसी ने दरवाजे पर खड़े होकर उनसें कहा - “ May I coming, Mam ? ” डॉक्टर रितिका ने बिना दरवाजे की तरफ देखे कहा - “ Yes ” दरवाजा खोलकर ऑफिस के अंदर प्रवेश करते ही रितिका ने अपनी नजरें ऊपर करते हुए आनेवाले की ओर देखा - “ अरे आकांक्षा, कैसी हो और बताओ कैसे आना हुआ ? ” आकांक्षा ने डॉक्टर रितिका को बताया - “ मैम, मैं आपको यह बताने आई थी कि मेरे पापा ने आर्यन के पापा से बात की और उन्होंने मेरी शादी अपने बेटे से करने के लिए हामी भर दी है और आर्यन भी मेरे बच्चे को अपनाने के लिए तैयार हो गया है. यह सबकुछ आपके वजह से ही संभव हो पाया है डॉक्टर रितिका उर्फ रितू जी ” आकांक्षा के मुँह से अपना असली नाम सुनकर डॉक्टर रितिका भावुक हो गई थी और उनकी आँखों में आँसू देख आकांक्षा ने कहा - “ आपकी कहानी सुनने के बाद मैं समझ गई थी, कि आप ही “ रितू ” है. पर क्या आपने कभी भी अपनी बेटी को ढूंढने का प्रयास नहीं किया ” रितिका - “ मैंने अपनी अतीत के पन्ने को काफी पहले ही फाड़कर फेंक दिया था और उन पन्नों के टुकड़े हवा के झोंके से कोसों दूर तक बिखर गए हैं, उन पन्नों को मैं दुबारा इकट्ठा करना नहीं चाहती. मेरी बेटी जहां भी है, वो खुश है. उसे एक अच्छी माँ मिली है, जो शायद मैं कभी न बन पाती. उसे वह सबकुछ मिला, जो शायद मैं उसे कभी न दे पाती. उसकी खुशी अपने वर्तमान को जीने में है, अपने लिए एक नये भविष्य बनाने में है और उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है ” आकांक्षा कुछ कहना चाहती थी, पर कह नहीं सकी. डॉक्टर रितिका ने आकांक्षा को गले लगाकर उससे कहा - “ खुश रहो मेरी बच्ची, जाओ और जाकर अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत करो ” आकांक्षा डॉक्टर रितिका से विदा लेकर वापस लौट गई ●