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कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 16

कन्‍हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 16

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज कृत

(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)

हस्‍त‍लिखित पाण्‍डुलिपि सन् 1852 ई.

सर्वाधिकार सुरक्षित--

1 परमहंस मस्‍तराम गौरीशंकर सत्‍संग समिति

(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्‍हर दास जी सार्वजनिक

लोकन्‍यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्‍द्री, पिछोर।

सम्‍पादक- रामगोपाल ‘भावुक’

सह सम्‍पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’ राधेश्‍याम पटसारिया राजू

परामर्श- राजनारायण बोहरे

संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)

पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com

प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2045

श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्‍हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2054

सम्‍पादकीय--

परमहंस मस्‍तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्‍य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्‍द विभोर कर रहा है।

पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्‍दी साहित्‍य में स्‍थान दिलाने, संस्‍कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज सम्‍वत् 1831 में ग्‍वालियर जिले की भाण्‍डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्‍मे।

सन्‍त श्री कन्‍हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्‍यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्‍हर सागर’’ में पर्याप्‍त स्‍थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्‍त संत श्री कन्‍हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्‍य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्‍तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

कन्‍हर पदमाल के पदों की संख्‍या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्‍या का प्रमाण--

सवा सहस रच दई पदमाला।

कृपा करी दशरथ के लाला।।

के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्‍त हो पाये हैं। स्‍व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्‍त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्‍त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्‍द्र उत्‍सुक के सम्‍पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर

तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।

गुरू कन्‍हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्‍थ।।

विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्‍तम श्री कृष्‍ण का जीवन झांकी से साम्‍य उपस्यित करने में बाबा कन्‍हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।

डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर कन्‍हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी रविवार सम्‍वत् 1939 को पिछोर में हुआ।

नगर निगम संग्रहालय ग्‍वालियर में श्री कन्‍हर दास पदमाल की पाण्‍डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्‍वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्‍वालियर द्वारा पाण्‍डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्‍तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्‍त चन्‍दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।

पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्‍हर साहित्‍य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।

इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।

रामगोपाल भावुक

दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्‍पादक

राग – देस, ताल – जतकौ।

आनि करत बरजोरी स्‍याम ऐसी खेलौ न होरी।।

आनि अचानक सारी म्‍हारी, रंग कीनी सरबोरी।।

कहौ न मानत बहुत खिझावत, मुख पर परसत रोरी।।

कन्‍हर के प्रभु छल बल करि–करि मोतिनि की लर तोरी।।503।।

पकरि पीतांबर राम लला कह, आजु करौं सखी मन भाई।।

भूषन वसन लसत तन सुंदर, सजि – सजि कै सब आई।।

रोरी छोरी कनिक कटोरनि, मुख मीड़न कौं ल्‍याई।।

करै गान कर सौं कर पकरति, आनंद उर न समाई।।

मंद चालि वर आनन सोभित, मंद- मंद मुसिक्‍याई।।

चहूं ओर से घेरि – घेरि करि, केसरि रंग बरसाई।।

जान न पाहौ आजु सामरे, बार – बार बलि जाई।।

कन्‍हर हरषि निरखि रघुवर छवि, देह गेह बिसराई।।504।।

सखी सामरे सै न खेलौंगी होरी।।

जानत नाहीं कहा कहौं री, आनि करै बरजोरी।।

झटकत सारी अटक न मानत, मुतियनि की लर तोरी।।

कन्‍हर के प्रभु कहौ न मानत, बइंआ पकरि रंग बोरी।।505।।

भयौ रे ऐसौ होरी कौ खिलारी।।

रोकत रहत बाट नित हमरी, देत अनौखी गारी।।

बरजि रही बरजौ नहिं मानत, मारी भरि पिचकारी।।

कन्‍हर के प्रभु रीति कहा की, पाई पश्‍त मैं हारी।।506।।

राग – होरी, ताल-झंझौटी

सामरे ने तनक अनख नहिं मानी, मैं मन में सकुचानी।।

हमरी आनि अचानक सारी, पकरि झपटि गहि तानी।।

छोड़त न‍हीं विनय करि हारी, केसरि रंग सरसानी।।

कन्‍हर के प्रभु लाज काज तजि, तुम्‍हरे हाथ बिकानी।।507।।

आली सामरे नैक न मानी म्‍हारी।।

मुख पर मेलत लाल कुमकुमा, प‍करि – पकरि कर सारी।।

मैं बरजौ बरजौ नहिं मानत, केसरि रंग रंगि डारी।।

कन्‍हर धूम मचावत आवत, अरज करति करि हारी।।508।।

अवध महं आजु मची है होरी।।

पकरत स्‍याम नवल जुवतिनि कहं, केसरि रंग मैं बोरी।।

कर कमलनि कंचन पिचकारी, भरि मारत मुख ओरी।।

कन्‍हर के प्रभु धूम मचाई, करत फिरत बरजोरी।।509।।

राग – परज, ताल – त्रिताल

करि छल छलि गयौ छलिया स्‍याम।।

भरि मारी पिचकारी करकी, दीसत नहिं मोहि ठाम।।

ऐसो सुघर खिलइया आली, बिसरत नहिं वसु जाम।।

कन्‍हर पकरि – पकरि मैड़हि, ता दिन करि मन काम।।510।।

सखी री होरी खेलत राज किसोर।।

रघुवर लछिमन भरथ सत्रुहन, चितवनि मंह चितचोर।।

अबीर गुलाल लियै झोरिनि मंह, मारत तकि- तकि जोर।।

कर कमलनि कंचन पिचकारी, केसरि रंग सरबोर।।

धावत पुरजन जान न पावत, सुन्‍दर सरजू ओर।।

कन्‍हर छवि अवलोकि लाल की, मगन भयौ मन मोर।।511।।

स्‍याम कह पकरि भिजोउ रंग मैं।।

अबीर गुलाल मलौ मुख कर गहि, आजु परे म्‍हारे फग मैं।।

फगुआ मांगि लेउ मन भायौ, क‍हति परस्‍पर संग मैं।।

कन्‍हर छवि अवलोकि लाल की, लेउ लाभ सखी जग मैं।।512।।

राजकुमार वर होरी खेलैं।।

अबीर गुलाल लाल लियै झोरिनि, पकरि- पकरि मुख मेलैं।।

सरजू निकट प्रमोद विपनि मंह, झुकि रही लता नवेलैं।।

कन्‍हर सब पर रंग बरसावत, रघुवर आपु अकेलैं।।513।।

कुमर दोऊ ठाढ़े सरजू तीर।।

कर कमलनि कंचन पिचकारी, भरि मारत बे पीर।।

क्रीट मुकुट पीताम्‍बर काछै, स्‍याम गौर रनधीर।।

कन्‍हर छवि लखि मगन भयौ मन, सघन सखिन की भीर।।514।।

राग- जौनपुरी टोढ़ी, ताल – कौजिल्‍लौ।।

अरे मन समझि खेल तूं होरी।।

काम क्रोध मद लोभ पंक तजि, यहि सिखवन मोरी।।

अबीर गुलाल कुमकुमा हरि गुन, जाय परसि मुख ओरी।।

कन्‍हर राम रंग – रंग रंगि मन, होय अन्‍त हित तोरी।।515।।

राग- जौनपुरी टोढ़ी, ताल – कौजिल्‍लौ।।

सजि आईं वर पुर की नारि, रघुवर सौं खेलन होरी।।

माथै तिलक मांग मोतिनि की, चन्‍द्रवदन मुख पर रोरी।।

चोबा चंदन कनिक कटोरनि, गान कोकिला रंग बोरी।।

कन्‍हर रंग परस्‍पर डारत, पीताम्‍बर गहि- गहि छोरी।।516।।

राग – जौनपुरी टोढ़ी, ताल - कौजिल्‍लौ

बरजौं जी मानौं जी लाल, मति मीढ़ौ मुख पर रोरी।।

सासु ननद गृह रारि करैंगी, गलिअन घेर मची मोरी।।

भरि – भरि रंग गुलाल उड़ावत, मोतिनि लर मोरी तोरी।।

कन्‍हर के प्रभु जान देउ अब, स्‍याम रंग तन मन बोरी।।517।।

चलौ फागु हरि सौं खेलैं।।

चोबा चन्‍दन अबीर अरगजा, कमल वदन मुख पर मेलैं।।

हरष विवस नर – नारि अवध की, बार – बार सबकौ टेरैं।।

कन्‍हर पकरि – पकरि प्रभु कौ कर, फगुआ मांगैं हंसि हेरैं।।518।।

रघुनन्‍दन प्‍यारे खेलैं अवध में होरी।।

सुन्‍दर लखन भरथ रिपुसूदन, डारत रंग बरजोरी।।

अवध वधू मिलि कै सब आईं, राम रंग रंग बोरी।।

कन्‍हर लखि आनंद मनोहर, देह गेह बिसरौ री।।519।।

आजु मची बृज में होरी।।

गृह – गृह ते निकसीं बृज वनिता, केसरि माट लिये रोरी।।

उड़त गुलाल लाल भये बादर, पकरि स्‍याम रंग में बोरी।।

कन्‍हर चरन सरन सब मांगति, फुगुआ के मिस बरनो री।।520।।

राग – सारंग, ताल – होरी चालू वृन्‍दावनी।।

होरी खेलत राम अवधपर में।।

उड़त गुलाल लाल भये बादर, आनंद छायौ घर- घर में।।

सुंदर भरथ लखन रिपुसूदन, लिये कुमकुमा कर – कर में।।

कन्‍हर रंग कनिक पिचकारी, छोड़त हंसि सखिअनि लर में।।521।।

संग जाउंगी स्‍याम के आली।।

कहै कोऊ लाख जतन नहिं मानौं, नयन बान उर साली।।

बिलग होत पल जुग सम बीतत, जाउं अवधपुर काली।।

कन्‍हर नित नव नेह लाल सौं, बिछरै न रहैगी लाली।।522।।

मिथिलापुर अब न रहौंगी।।

सिया संग जैसौं आनंद पाहौं, फिरि- फिरि चरन गहौंगी।।

जुगल रूप अवलोकि सखी री, लोचन लाभ लहौंगी।।

कन्‍हर ठान ठनी इत सुन्‍दर, काके बोल सहौंगी।।523।।

बरजौ सखी स्‍याम न मानै।।

रोकत है नित डगरि हमारी – जान न देइ बरसानै।।

आवत मुख पर चोट चलावत, पकरि – पकरि पट तानै।।

कन्‍हर हारि परी नहिं मानत, ऐसी ठाननि ठानै।।524।।

हरि भजि मन मानि निहोरा।।

फिरि पीछै पछिताय अभागे, ना कीजै बरजोरा।।

धन तन गेह संग नहिं जैहैं, तोरि लैइ कटि डोरा।।

कन्‍हर बिना कृपा सिया वर की, होइ नहीं हित तोरा।।525।।

सुधि लीजौ रघुवीर हमारी।।

करमनि प्रेरित फिरत रैनि – दिन, तुअ पद नाथ बिसारी।।

परौ भौंर भव बहौ जातु हौं, अबकी लेउ उबारी।।

कन्‍हर बार – बार करूनानिधि, तुम्‍हरे द्वार पुकारी।।526।।

गोकुल होरी खेलत नन्‍दलाला।।

सुंदर कटि पीतांबर काछै, मुक्‍तनि उरझि रही माला।।

बाजत वीन मृदंग झांझ डफ, संग लियै सब वृजबाला।।

कन्‍हर देखि आनंद कंद छवि, उरझि रहौ मन मनु जाला।।527।।

बरसाने आजु मची होरी।।

सखिनि सहित वृषभान किसोरी, केसरि माट लियै रोरी।।

इतै स्‍याम घन वर तन राजत, उत दामिनि दुति छवि जोरी।।

कन्‍हर पूरि रहौ सुख पूरन, हास विलास दुहूं ओरी।।528।।

आजु नंद कौ लाल अनंद भरौ।।

मोर मुकट पीतांबर काछै, सुन्‍दर नटवर भेष करौ।।

भिजवत पकरि नवल जुवतिनि कहं, काहू हौं मन में न डरौ।।

कन्‍हर मृदु बोलनि हंसि हेरनि, वृजवासिनि कौ मनहि हरौ।।529।।

राग – देस, ताल – जतकौ

सुनि आजु की बात कहौं हेली।।

अनि अचानक स्‍याम सुघर ने, पिचकारी मुख पर मेली।।

संग सखी सब भाजि गईं तहं, मोइ जानि अकेली अलबेली।।

कन्‍हर छवि अवलोकि लाल की, बंधौ मोह मन मनु सेली।।530।।

नंदलाल सखी बरौरी कान्‍हा, आंगन धूम मचावै।।

चोबा चन्‍दन अबिर अरगजा, केसर अंग लगावै।।

मैं बरजौ बरजौ नहिं मानत, हंसि करि चोट चलावै।।

कन्‍हर के प्रभु पकरि लेउ मैं, प्रिय वचननि बौरावै।।531।।

नंदलाल ने रंग बोरी चुनरिआ।।

सासु ननद गृह रारि करैंगी, चलत पांउ नहिं परत डगरिआ।।

भई सोच बस खबरि न तन की, मन मेरौ हो गयौ बवरिआ।।

कन्‍हर के प्रभु अरज न मानी, हारी नहक बांह पकरिआ।।532।।

राग – भैरौं, ताल – त्रिताल

बहिआं पकरि रंग बोरी स्‍याम, ऐसी खेलौ न होरी।।

चोबा चन्‍दन अबिरि अरगजा, डारि दयौ हम पर बरजोरी।।

नंदकुमार छोडि़ अब सारी, बार – बार पइआं परौं तोरी।।

कन्‍हर के प्रभु जान देउ घर, सासु ननदि आल देंगी मोरी।।533।।

राग – राग श्री, ताल – चौतारौ।।

श्री हरि भक्ति देव वर वानी।।

मन कह मोह द्रोह द्रुम हरियै, देउ सुमति वरदानी।।

मंगल करन अमंगल हारी, सरद निगम बखानी।।

कन्‍हर विनय करत कर जोरै, करहु कृपा जन जानी।।534।।

राग – आसावरी, ताल – चौतारौ।।

राम रूप निरखि भूप अद्भुत, सोभा अनूप सुंदर सुख पाई।।

सोभित उर मनिनि माल बांकी भृकुटी विसाल,

केसरि कै तिलक भाल कुंडल झलकाई।।

पहुंची कर वर ललाम क्रीट मुकुट धनुष बान,

देखि – देखि लजति मारू मन मैं सकुचाई।।

कन्‍हर घनस्‍याम अंग मनहु पीत तडि़त रंग,

चन्‍द्र सौं मुखारविंद निरखै बलि जाई।।535।।