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विश्वास की जीत़

हेलो दोस्तों नमस्कार , आदाब , अभिनंदन , आभार आपने कहानियां तो बहुत सी सुनी होंगी और पढ़ी होंगी लेकिन आज जो मैं आपको कहानी बताने जा रहा हूं वह बिल्कुल सत्य घटना पर आधारित है और इसमें हर एक शब्द सत्य हैं।

**विशुद्ध प्रेम का धागा और विश्वास की सत्य कथा**

पति पत्नी के बीच प्रेम क्या होता है कोई विजेंद्र सिंह राठौड़ से सीखे!!

2013 में लीला ने विजेंद्र से आग्रह किया के वह चार धाम की यात्रा करना चाहती हैं। विजेंद्र एक ट्रेवल एजेंसी में कार्यरत थे। इसी दरमियां ट्रैवेल एजेंसी का एक टूर केदारनाथ यात्रा जाने के लिये निश्चित हुआ। पतिपत्नी ने अपना बोरिया बिस्तर बांधा और केदारनाथ जा पहुंचे।

लीला ने जो सपना देखा था वह आज पूरा हो रहा था आज उसे केदारनाथ के दर्शन हो रहे थे आज दोनों पति पत्नी बहुत खुश थे और उसे इस बात का गर्व भी था कि मेरे पति ने मेरे एक बार कहने से ही मुझे केदारनाथ के दर्शन कराने ले आए ।

मेरे लिए उन्होंने कुछ बचत की हालांकि हमारी घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी भी नहीं थी कि मैं तुरंत ही केदारनाथ पहुंच जाऊं इसके लिए मुझे कुछ इंतजार करना पड़ा लेकिन फिर भी मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे पति ने मेरी यह इच्छा पूरी की।

लीला ने अब अपनी आंख खोली और भगवान से कहा कि हे भगवान हम पति पत्नी का प्यार ऐसे ही बनाए रखना।

विजेंद्र और लीला एक लॉज में रुके थे। विजेंद्र के साथ जो कुछ लोग आए थे वह वापस जा रहे थे जबकि लीला की इच्छा थी कि वह इस पवित्र भूमि केदारनाथ पर अपने जीवन के कुछ दिन और गुजारे और इस पवित्र भूमि को महसूस करें इसलिए लीला ने विजेंद्र से कहा कि जाओ और अपने जो दोस्त हैं साथी हैं उन सभी को आप छोड़ आओ ।

लीला को लॉज में छोड़ विजेंद्र कुछ दूर ही गये थे के चारों ओर हाहाकार मच गई। उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ का उफनता पानी केदारनाथ आ पहुंचा था। विजेंद्र ने बामुश्किल अपनी जान बचाई।

मौत का तांडव और उफनते हुये पानी का वेग शांत हुआ तो विजेंद्र बदहवास होकर उस लॉज की ओर दौड़े जहाँ वह लीला को छोड़ कर आये थे। परन्तु वहाँ पहुंच कर जो नज़ारा दिखा वह दिल दहला देने वाला था। सब कुछ बह चुका था। प्रकृति के इस तांडव के आगे वहां मौजूद हर इंसान बेबस दिख रहा था।

तो क्या लीला भी .....😢😢😢
नहीं नहीं। ऐसा नहीं हो सकता।विजेंद्र ने अपने मन को समझाया।
"वह जीवित है" विजेंद्र का मन कह रहा था। इतने वर्षों का साथ पल भर में तो नहीं छूट सकता।
परन्तु आस पास कहीं जीवन दिखाई नहीं दे रहा था। हर ओर मौत तांडव कर रही थी। लाशें बिखरी हुई थी। किसी का बेटा किसी का भाई तो किसी का पति बाढ़ के पानी मे बह गया था।

विजेंद्र के पास लीला की एक तस्वीर थी तो हर समय उसके पर्स में रहती थी। अगले कुछ दिन वह घटनास्थल पर हाथ मे तस्वीर लिये घूमता रहा। हर किसी से पूछता "भाई इसे कहीं देखा है"।
और जवाब मिलता .........
"ना"
एक विश्वास था जिसने विजेंद्र को यह स्वीकारने से रोक रखा था के लीला अब इस दुनिया में नहीं है।
दो हफ्ते बीत चुके थे। राहत कार्य जोरों पर थे। इसी दरमियां उसे फौज के कुछ अफसर भी मिले जिन्होंने उससे बात की। लगभग सबका यही निष्कर्ष था के लीला बाढ़ में बह चुकी है।
विजेंद्र ने मानने से इनकार कर दिया।
घर मे फोन मिला कर बच्चों को इस हादसे के बारे में सूचित किया। बच्चे अनहोनी के डर से घबराये हुये थे। रोती बिलखती बिटिया ने पूछा के "क्या अब माँ नहीं रही" तो विजेंद्र ने उसे ज़ोर से फटकार दिया और कहा "वह ज़िंदा है "।

एक महीना बीत चुका था। अपनी पत्नी की तालाश में विजेंद्र दर दर भटक रहा था। हाथ मे एक तस्वीर थी और मन मे एक आशा।
"वह जीवित है"
इसी बीच विजेंद्र के घर सरकारी विभाग से एक फोन आया। एक कर्मचारी ने कहा के लीला मृत घोषित कर दी गयी है और हादसे में जान गवां चुके लोगों को सरकार मुआवजा दे रही है। मृत लीला के परिजन भी सरकारी ऑफिस में आकर मुआवजा ले सकते हैं।
विजेंद्र ने मुआवज़ा लेने से भी इंकार कर दिया।
परिजनों ने कहा के अब तो सरकार भी लीला को मृत मान चुकी है।

अब तलाशने से कोई फ़ायदा नहीं है। परन्तु विजेंद्र ने मानने से इनकार कर दिया। जिस सरकारी कर्मचारी ने लीला की मौत की पुष्टि की थी उसे भी विजेंद्र ने कहा ....
"वह जीवित है"
विजेंद्र फिर से लीला की तालाश में निकल पड़े। उत्तराखंड का एक एक शहर नापने लगे। हाथ मे एक तस्वीर और ज़ुबाँ पर एक सवाल " भाई इसे कहीं देखा है?" और सवाल का एक ही जवाब
"ना"
लीला से विजेंद्र को बिछड़े अब 19 महीने बीत चुके थे। इस दरमियां वह लगभग 1000 से अधिक गाँव मे लीला को तालाश चुके थे।

27 जनवरी 2015, उत्तराखंड के गंगोली गाँव मे एक राहीगर को विजेंद्र सिंह राठौर ने एक तस्वीर दिखाई और पूछा "भाई इसे कहीं देखा है"
राहीगर ने तस्वीर ध्यान से देखी और बोला ........
"हां"
"देखा है। इसे देखा है"। " यह औरत तो बौराई सी हमारे गाँव मे ही घूमती रहती है"।
विजेंद्र राहीगर के पांव में गिर पड़े। 😢😢😢
राहीगर के साथ भागते भागते वह गाँव पहुंचे। वही एक चैराहा था और सड़क के दूसरे कोने पर एक महिला बैठी थी।
"लीला"
वह "नज़र" जिससे "नज़र" मिलाने को "नज़र" तरस गयी थी।
वह लीला ही थी। विजेंद्र लीला का हाथ पकड़ कर अबोध बच्चे की तरह रोते रहे। इस तलाश ने उन्हें तोड़ दिया था। भावनायें और संवेदनायें आखों से अविरल बह रही थी। 😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢आँखें पत्थर हो चुकी थी फिर भी भावनाओं का वेग उन्हें चीरता हुआ बह निकला था।

लीला की मानसिक हालत उस समय स्थिर नहीं थी। वह उस शख्स को भी नहीं पहचान पाई जो उसे इस जगत में सबसे ज्यादा प्यार करता था। विजेंद्र ने लीला को उठाया और घर ले आये। 12 जून 2013 से बिछड़े बच्चे अपनी मां को 19 महीने के अंतराल के बाद देख रहे थे। आखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था।😢😢😢😢😢😢

यह 19 महीने विजेंद्र सिंह राठौर के जीवन का सबसे कठिनतम दौर था। परन्तु इस कठिनाई के बीच भी विजेंद्र के हौसले को एक धागे ने बांधे रखा। वह "प्रेम" का धागा है। एक पति का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और समर्पण जिसने प्रकृति के आदेश को भी पलट कर रख दिया। लीला के साथ बाढ़ में बह जाने वाले अधिकतर लोग नहीं बचे। लीला बच गयी। शायद विजेंद्र प्रभु से भी कह रहे थे.........
"वह जीवित है" और जगतनियंता प्रभु को भी विजेंद्र के प्रेम और समर्पण के आगे अपना फैसला बदलना पड़ा। आज की कहानी एक पति के प्रेम की पराकाष्ठा को समर्पित है।