Its matter of those days - 34 books and stories free download online pdf in Hindi

ये उन दिनों की बात है - 34

अच्छा!! अब हम चलते है, दादाजी का कहना था और सागर का मुँह लटक गया |
इतनी जल्दी!! अभी तो मैंने ठीक से अपनी दिव्या को देखा भी नहीं, सागर ने मन ही मन कहा |
मैं खुद भी मायूस हो गई थी | हम दोनों ही एक दूसरे से मिलने को बेताब थे, लेकिन हाय!! ये मजबूरियाँ, ये दूरियां, हम दोनों को ही तड़पा रही थी पल-पल |
उस पूरे माहौल में सिर्फ हम दोनों ही थे जो मायूस थे, खामोश थे | बाकी सब आपस में बतिया रहे थे | कोई भी नहीं जान सकता था हम दोनों के दिलों की तड़प, मिलने की प्यास, जो दिल में थी वो दिल की दिल में ही रह गई थी | अब तो बस कल का इन्तजार करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था हमारे पास, और मुझे कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही थी |

लेकिन सागर के मन में कुछ और ही चल रहा था | क्योंकि जो उसने एक बार ठान लिया तो उसे पूरा करके ही दम लेता था | उसे कल का इन्तजार करना गवारा नहीं था | वो बस आज दिव्या से मिलना चाहता था, बात करना चाहता था | सागर ने कुछ सोचा और फिर तुरंत ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई |
नैना......तुम आज मैथ्स के क्वेश्चन पूछने आई थी ना!!
हाँ भैया.......पर आप घर पर नहीं थे |
तो फिर जल्दी से बुक लेकर आओ, मैं सॉल्व करवा देता हूँ |
ठीक है बच्चों, तुम पढाई कर लो, ये कहकर पापा और मामाजी दादाजी को उनके घर तक छोड़ने चले गए | इधर मम्मी और मामी भी टीवी देखने में व्यस्त हो गई |

किसी को कुछ पता नहीं चल पाया था लेकिन मुझे जरूर समझ आ गया था की सागर पढाई के बहाने से यहाँ रुका है, सिर्फ मुझसे मिलने के लिए, मुझसे बात करने के लिए | मुझे इतनी खुशी हो रही थी जिसे मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती थी |
नैना ऊपर कमरे में किताब लेने चली गई |
अब बचे सागर और मैं |
वो बैठा था और मैं खड़ी थी | उसने मुझे बैठने का इशारा किया |
मैं बैठ गई |
कैसी हो तुम? उसने बिलकुल धीरे से पूछा
ठीक हूँ | तुम?
मैं बिलकुल भी ठीक नहीं हूँ और इतने में नैना कॉपी-किताब ले आई |
क्यों?
मैंने तुम्हारा दिल जो दुखाया है |
हाँ तो नैना........तुम्हें टाइम एंड डिस्टेंस में प्रॉब्लम है, है ना |
हाँ भैया......बहुत डिफिकल्ट है |
डोंट वरी!! मैं समझा दूंगा, सागर ने उसकी किताब लेते हुए कहा |

दिल तो मैंने भी तुम्हारा खूब दुखाया है, सागर, नीचे देखते हुए मैंने कहा |

नैना जो की हमारे पास बैठी थी का ध्यान हमारी बातों में नहीं था, क्योंकि हम इतना धीरे धीरे बात कर रहे थे की सिर्फ हमारे अलावा और कोई नहीं सुन सकता था | मम्मी और मामी दोनों का ध्यान अभी भी टीवी देखने पर ही था |

सागर ने नैना को मैथ्स के ऐसे आसान ट्रिक्स बताये जिससे कोई भी सवाल चुटकियों में सॉल्व हो जाए | सागर मुझसे बातें भी कर रहा था और नैना की मदद भी कर रहा था | हर मामले में अव्वल था मेरा सागर |
तुमने कितनी आसानी से ये सारे सवाल हल कर दिए, मैंने उसकी तारीफ में कहा |
हाँ.........लेकिन तुम्हें परेशान कर दिया मैंने, जिसका मुझे काफी रिग्रेट हो रहा है | नैना, तुम ये क्वेश्चन सॉल्व करके दिखाओ मुझे |
आई एम सॉरी............उसकी आँखें भीगी सी थी |

परेशान तो मैंने किया था तुम्हें, सागर | माफ़ी तो मुझे तुमसे माँगनी चाहिए | मैं उसकी भीगी आँखों को अपने आँचल से पौंछ लेना चाहती थी, उसे सीने से लगा लेना चाहती थी |

प्लीज.......सॉरी मत कहो | फिर उसके मूड को हल्का करने के लिए मैंने कहा, तुम्हे पता है, तुम्हारे लिए गाजर का हलवा बनाया है मैंने |

सच्ची!!! उसकी भीगी आँखों से ख़ुशी छलक आई |

मैं अभी लाई तुम्हारे लिए और चुपके से जाकर, अपनी चुन्नी में छुपा कर, उसके लिए गाजर का हलवा ले आई जो टिफ़िन में रखा था | सागर ने हाथ पीछे की ओर कर लिया था फिर मैंने उसके हाथ में वो टिफ़िन थमा दिया |

थैंक यू सो मच! दिव्या | तुम्हे पता था!! गाजर का हलवा मेरा फेवरेट है |

हाँ!! बातों-बातों में दादी से पता करवा लिया |

यू आर सो जीनियस!!

थैंक यू!!

कल मिलोगी ना!!
हाँ.......जरूर.......
सागर फ़ौरन उठा और तुरंत ही ये कहकर निकल गया कि वाक़ई आज सारे सवाल हल हो गए |

घर पहुंचकर वो सीधा अपने कमरे में गया | उसने टिफ़िन खोला और हलवे की खुशबू को अपनी साँसों में बसा लिया | उसके लिए जो चिट्ठी दिव्या ने लिखी थी उसे खोलकर पढ़ने लगा |
"प्रिय सागर,


तुम हो तो ही मैं हूँ...........
इतने भी मत रूठो ना मुझसे..........
तुम्हारे बिना नहीं रह सकती मैं...........
ये ज़िन्दगी अब तुम्हारी ही अमानत है.........


तुम्हारी.......सिर्फ तुम्हारी,
दिव्या!!"


दिव्या ने लिपस्टिक लगाकर अपने होंठों के निशाँ उस चिट्ठी पर छोड़े थे, जिसे सागर ने चूम लिया था |
दिव्या!! आई लव यू सो मच!! उसने मदहोश होते हुए कहा |
फिर जब उसने हलवा खाया तो.........अमेज़िंग!! मैं हमेशा तुम्हारे हाथों का बना हलवा तुम्हारे हाथों से ही खाना चाहूंगा, दिव्या!!

उस रात सागर और मैं हम दोनों ही बहुत खुश थे | सागर के बारे में सोचते हुए उसकी मीठी-मीठी यादों में खोते हुए कब नींद ने आ घेरा पता ही ना चला | उस रात नींद भी बहुत अच्छी आई थी |
सुबह जब आँख खुली तो एक मुस्कराहट थी चेहरे पर | फिर उठी, नहाई, तैयार हुई और स्कूल के लिए निकल पड़ी |