Yah Kaisi Vidambana Hai - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

यह कैसी विडम्बना है - भाग ८

“मैम मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूँ,” कह कर संध्या ने अपने पर्स से वह तस्वीर निकाली और मलिक मैम को दिखाया ।

“मैम यह देखिए, यही है ना वह लड़की शालिनी जो तस्वीर में एकदम वैभव के आगे खड़ी है।”

“हाँ संध्या पर तुम मुझे यह क्यों दिखा रही हो?”

“मैम यह वैभव के साथ उसी कॉलेज में पढ़ती थी और उसकी क्लास मेट थी। वह वैभव से प्यार करती थी। उसे शुरू से अपनी सुंदरता और तेज दिमाग़ पर बहुत घमंड था। अपनी सुंदरता के कारण उसे ऐसा लगता था कि यदि वह किसी को पसंद करेगी तो कोई उसे मना कर ही नहीं सकता किंतु वैभव ने उसके प्यार को ठुकरा कर इंकार कर दिया। वैभव के मन में उसके लिए इस तरह की फीलिंग्स थी ही नहीं। वैभव के इंकार करने पर उसने कहा कि वैभव यह इंकार तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा। देख लेना एक दिन तुम्हें पछताना होगा और उसने यह भी कहा कि वह अपना अपमान कभी नहीं भूलेगी। मैम वैभव से बदला लेने के लिए ही वह इस कॉलेज में आई थी। आप ही सोचिए मैम वह वैभव के यहाँ आने के बाद ख़ुद भी यहाँ आई और उस पर इल्जाम लगाने के बाद कॉलेज छोड़ कर भी चली गई। आख़िर क्यों मैम ? इसका कुछ तो मतलब होगा ना?”

प्रोफ़ेसर मलिक हैरान होकर उसकी बातें सुन रही थीं। उन्होंने कहा, “संध्या क्या कोई लड़की इस हद तक गिर सकती है?”

“मैम मैं आपको एक तस्वीर और दिखाती हूँ ताकि आपको उसकी मानसिकता और भी अच्छी तरह से मालूम हो जाए। यह मेरे स्कूल के दिनों की तस्वीर है जब मैं नौवीं कक्षा में थी। उन्हीं दिनों शालिनी दूसरे स्कूल से हमारे स्कूल में आई थी और वह मेरी क्लास मेट थी। मैं भी उसे बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ मैम। वह बहुत ख़ूबसूरत और उतनी ही होशियार भी है। हमारे स्कूल में आने के बाद वह यह सोच रही थी कि उससे बेहतर यहाँ कोई नहीं है परंतु मैम हुआ यह कि परीक्षा में पूरी क्लास में मैं फर्स्ट आ गई। इस बात से उसे इतना आघात लगा कि उसने इसे अपना अपमान समझ कर स्कूल ही छोड़ दिया। जाते समय मुझे यह चैलेंज देकर गई कि याद रखना अगले वर्ष 10 वीं बोर्ड में वह ही पूरे शहर में टॉप करेगी। मैंने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। मैं अपनी पढ़ाई अपने हिसाब से करती रही और पूरे शहर में मैं ही फर्स्ट आई। मैम उसके बाद मैंने उसे कभी नहीं देखा। मैं तो उसे भूल गई लेकिन वह यह भूल नहीं पाई कि मेरी वज़ह से उसकी एक बार फिर हार हुई है। उसने मन ही मन दुश्मनी पाल ली । उसने वह शहर भी छोड़ दिया। दुर्भाग्य वश फिर वह उस कॉलेज में आ गई जहाँ उसे वैभव का इंकार सुनना पड़ा। वैभव तो वह सब भूल कर अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ गया लेकिन शालिनी के जीवन की सुई वहीं अटक गई। इसी बीच उसने यह भी पता लगा लिया कि वैभव और मेरी सगाई हो चुकी है। अपने दोनों दुश्मनों को इस तरह जीवन-साथी बनता देख उसकी ईर्ष्या चरमोत्कर्ष पर होगी। इसीलिए उसने इस तरह वैभव को अपने जाल में फंसा लिया क्योंकि यह उसके जीवन की सबसे बड़ी हार थी।”

“अच्छा तो संध्या क्या वैभव तुम्हारे पति हैं?”

क्रमशः

रत्ना पांडे वडोदरा, (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक