Yah Kaisi Vidambana Hai - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

यह कैसी विडम्बना है - (अंतिम भाग)

“जी हाँ मैम, मैं इस कॉलेज में इसीलिए आई हूँ ताकि अपने निर्दोष पति को इंसाफ़ दिला सकूँ। यह सच की लड़ाई है मैम और मुझे पूरा विश्वास है कि आप भी सच का ही साथ देंगी। मैम इतने अच्छे लड़के का जीवन क्या आप यूँ ही षड्यंत्र का शिकार होकर बर्बाद होने देंगी? उसने हमेशा अपने स्कूल और कॉलेज में टॉप किया है। लेकिन उसका दुर्भाग्य देखिए कि एक प्रतिष्ठित कॉलेज से उसे ग़लत आरोप लगा कर निकाल दिया गया। परिणाम स्वरुप अब वह एक छोटे से स्कूल में पढ़ा रहा है। मैम क्या इतने सबूत वैभव की बेगुनाही के लिए काफी नहीं हैं?”

प्रोफ़ेसर मलिक एक टक संध्या को निहारे जा रही थीं। उसकी आँखों में उन्हें सच्चाई और विश्वास साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। संध्या के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए उन्होंने कहा, “संध्या मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कोई लड़की किसी का जीवन इस तरह बर्बाद कर सकती है। इस पूरी घटना का एक ऐसा पक्ष भी हो सकता है, कभी दिमाग़ में आया ही नहीं। आज तुमने यह सब सबूत लाकर मेरी आँखें खोल दी हैं। मुझे अपनी ग़लती स्वीकार करने में किसी तरह की कोई शर्म नहीं है। मैं प्रिंसिपल मैम को इस सच्चाई से रूबरू करवाऊँगी और वैभव को उसकी खोई हुई इज़्ज़त भी वापस दिलवाऊँगी। मेरा हमेशा से यह उसूल रहा है कि मैं अगर किसी का अच्छा नहीं कर सकती तो किसी का बुरा करके उसके दुःख की वज़ह भी कभी नहीं बन सकती। संध्या मैं तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूँ।”

“थैंक यू मैम आपने मेरी बातों को अच्छे से सुना, तथ्यों को समझा और माना। अपना समय भी दिया, इसके लिए मैं हमेशा आपकी आभारी रहूँगी।”

“नहीं संध्या मैंने तो सिर्फ़ अपनी ग़लती स्वीकारी है और उसे ठीक करने की अब कोशिश अवश्य ही करुँगी। बाक़ी तो जो भी किया है एक नारी ने, एक पत्नी ने किया है। तुमने तो यहीं एक छोटी-सी मन की अदालत खोल कर रख दी और जज मुझे बना दिया।”

“मैम मैं क्या करती वैभव ने कहा था कि उसे किसी से कोई बदला नहीं लेना है। उसे सिर्फ़ उसके ऊपर लगा यह दाग मिटाना है। मैम शालिनी को अदालत में जाना चाहिए था पर वह डरती होगी कि कहीं उसका झूठ पकड़ा ना जाए। इसीलिए उसने ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया,” संध्या इतना कहते-कहते रो पड़ी।

उसे चुप कराते हुए प्रोफ़ेसर मलिक ने कहा, “संध्या अपने आँसुओं को पोंछ लो। अब तो तुम्हारे ख़ुशी के दिन आने वाले हैं। मैं प्रिंसिपल मैम से बात करके जल्दी से जल्दी वैभव को उसका सम्मान वापस दिलवाऊँगी।”

संध्या अपने घर चली गई लेकिन प्रोफ़ेसर मलिक बेचैन थीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने बिना सोचे समझे यह कैसा अन्याय कर दिया? उन्होंने रात को ही प्रिंसिपल मैम को फ़ोन कर दिया और कहा, “मैम मुझे आप से बहुत ही गंभीर और ज़रूरी विषय में बात करनी है। क्या मैं अभी आप के घर आ सकती हूँ?”

“क्या हुआ मलिक रात के दस बज रहे हैं इस वक़्त? ऐसी क्या बात है मलिक?”

“फ़ोन पर मैं आपको नहीं बता सकती और यदि बताऊँगी नहीं तो रात भर सो भी नहीं पाऊँगी।”

“ठीक है इतना ही ज़रूरी है तो आ जाओ।”

“थैंक यू मैम”

प्रोफ़ेसर मलिक ने प्रिंसिपल के घर जाकर अनजाने में हुई अपनी ग़लती स्वीकार करते हुए शुरू से आखिरी तक की पूरी कहानी उन्हें सुना दी। केवल एक ही पक्ष की बात सुनने की अपनी और सभी की ग़लती भी उन्होंने प्रिंसिपल मैम को याद दिलाई।

प्रिंसिपल ने कहा, “मलिक यह तुम्हारी अकेले की ग़लती नहीं है, हमें वैभव की बात सुननी चाहिए थी। हमने उसे मौका ही नहीं दिया। हमें अपनी ग़लती सुधारनी ही होगी। मैं कल ही एक लेटर में उससे माफ़ी मांग लेती हूँ और चेयरमैन सर से बात करके उसे ऑफर लेटर भी भिजवा देती हूँ। इस ग़लती को और लंबा नहीं खींचना चाहिए।”

“हाँ मैम यह सब सुनकर वैभव के पिता को हार्ट अटैक आ गया। वह उन्हें बचा नहीं पाया। वैभव के परिवार को आर्थिक तंगी के दौर से गुजरना पड़ रहा है । बेचारा एक छोटे से स्कूल में नौकरी कर रहा है। हमारी ग़लती के कारण एक निर्दोष का परिवार कहाँ से कहाँ पहुँच गया।”

“तुम ठीक कह रही हो मलिक, यह सिर्फ़ तुम्हारी और मेरी ग़लती नहीं है । यह हमारे समाज में चल रही इस परंपरा की ग़लती है कि हम ऐसा कोई भी विषय होता है तो पुरुष की बात सुनते ही नहीं हैं। कुछ शालिनी जैसी लड़कियाँ इसी बात का फायदा उठाती हैं। लड़कों को भी पूरा मौका मिलना चाहिए उनकी बात रखने का और हमें उनकी भी पूरी बात सुननी चाहिए।”

“दूसरे दिन शनिवार था छुट्टी का दिन, फिर भी प्रिंसिपल मैम अपने कॉलेज गईं। वह इतनी बेचैन थीं कि सोमवार तक का इंतज़ार ना कर पाईं। उन्होंने एक ऑफर लेटर बनाकर प्यून को दिया और कहा, यह वैभव सर के घर जाकर उन्हें दे आओ।”

“जी मैडम”

संध्या आज बहुत ख़ुश थी। इस ख़ुशी को उसने अपने सीने में छुपा कर रखा था। वह जानती थी कि प्रिंसिपल मैम का जवाब ख़ुशियों भरा ही होगा फिर भी उसने वैभव को इस बारे में कुछ भी नहीं बताया। सुबह लगभग 11 बजे दरवाज़े पर दस्तक हुई। संध्या दौड़ी दरवाज़ा खोलने के लिए पर वैभव को देख कर वह वहीं रुक गई।

कॉलेज के प्यून को देखकर वैभव हैरान था, “अरे भोला तुम यहाँ? कैसे आना हुआ?”

“सर प्रिंसिपल मैम ने यह काग़ज़ दिया है आप के लिए।

इतना सुनते ही संध्या भी वहाँ आ गई। वैभव ने लेटर खोला तो वह हैरान रह गया। ऑफर लेटर पढ़ते समय उसकी आँखों से टप-टप आँसू गिर रहे थे। संध्या की आँखों में भी ख़ुशी और अपनी जीत के आँसू छलकते दिखाई दे रहे थे। वैभव ने संध्या को गले से लगा लिया। यह उस विश्वास की जीत थी जो संध्या ने अपने पति वैभव पर किया था। वे एक दूसरे की बाँहों में समाए थे। इस समय यह पल बहुत ख़ुशी के थे। इन्हीं पलों के बीच कुछ आँसू उस दुःख के थे जो वैभव ने इतने समय से भोगा था।

वैभव ने कहा, “थैंक यू संध्या, तुमने यह सब कैसे कर लिया?”

“वैभव थैंक यू मत कहो, मैं ख़ुश हूँ कि तुम्हारे प्यार के कारण दहलीज़ से बाहर क़दम रखने से पहले मैंने तुम्हारी बात सुनना ज़रूरी समझा और मेरे क़दम घर में वापस आ गए। तुम्हारी बात सुनने के बाद मुझे पूरा विश्वास हो गया कि तुम एकदम सही कह रहे हो। उसके बाद मुझे कोई शिकायत नहीं रही कि शादी के पहले तुमने मुझे यह क्यों नहीं बताया। मैं तो बहुत ख़ुश हूँ कि मैंने तुम जैसा जीवन साथी पाया है जो एक लड़की की ग़लती होने के बाद भी उससे कोई बदला नहीं लेना चाहता। सिर्फ़ अपनी इज़्ज़त वापस चाहता है वरना हमारे पास जीतने के लिए पर्याप्त सबूत थे।”

वैभव और संध्या की बातें सुनकर निराली भी वहाँ आ गई। उन दोनों की आँखों में भरे हुए आँसू और चेहरे पर संतोष की झलक देखकर निराली ने संध्या से कहा, “संध्या बेटा मुझे तुम पर गर्व है और ख़ुशी है कि मैंने तुम जैसी बेटी पाई है। हमारी यह जीत सिर्फ़ तुम्हारी वज़ह से हुई है। तुमने तो हमारे परिवार की डूबती हुई नैया को किनारे लगा दिया। संध्या मुझे हर समय यह बात सताती थी कि शादी से पहले हमने तुमसे सच्चाई छुपाई। हम बताना चाहते थे लेकिन वैभव के ताऊजी एक ही बात कहते थे कि यह दिन हमेशा ऐसे थोड़ी रहेंगे। हमारी कोई ग़लती नहीं है। यह हालात जल्दी ही ठीक हो जाएँगे। संध्या बहुत ही प्यारी बच्ची है। हमें इस रिश्ते को टूटने नहीं देना है। संध्या तुमने ताऊजी की बात को शत प्रतिशत सही साबित भी कर दिया। बस बेटा उन्हीं की बातें मान कर हमने तुम्हें कुछ भी नहीं बताया था। संध्या बेटा हमें माफ़…।”

“अरे माँ आप यह क्या कह रही हैं। जो भी हुआ था उसमें वैभव की क्या ग़लती थी? बस भाग्य की लिखी वह एक लकीर थी, जो अब मिट गई है। माँ मैं तो बहुत ही भाग्यशाली हूँ जो मुझे आप जैसी इतना प्यार करने वाली माँ और वैभव जैसा पति मिला है।”

संध्या और वैभव ने झुककर निराली के पाँव छूकर उनका आशीर्वाद लिया।

ख़ुशी की यह ख़बर जल्दी ही वैभव की बहन वंदना तक भी पहुँच गई। यह सुनते ही वह दौड़ी चली आई।

उसके बाद संध्या और वैभव अपने ताऊजी के पास गए। ऑफर लेटर दिखाते हुए दोनों ने उनका आशीर्वाद लिया। ताऊजी ने संध्या की तरफ़ देखते हुए कहा, “संध्या तुमने तो वह काम कर दिखाया जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। पूरे परिवार को तुम्हारे ऊपर गर्व है।”

सोमवार को वैभव और संध्या साथ में जब कॉलेज पहुँचे तब कॉलेज का पूरा स्टाफ और सभी स्टूडेंट वैभव के स्वागत के लिए आ गए। यह वह पल थे जब एक पत्नी ने अपने पति को उसकी खोई हुई इज़्ज़त वापस दिलवाई थी। प्रिंसिपल मैम ने आगे बढ़कर वैभव से सॉरी कहते हुए हाथ मिलाया।

उन्होंने कहा, “वैभव बहुत क़िस्मत वाले हो जो तुम्हें संध्या जैसी पत्नी मिली है। जिसने यह लड़ाई लड़ी और जीती भी। हमें हमारी ग़लती का एहसास भी कराया और समाज को एक संदेश भी दिया कि हमेशा लड़के ही ग़लत नहीं होते इसीलिए कोई भी फ़ैसला करने से पहले उनकी बात अवश्य ही सुननी चाहिए ताकि वैभव की तरह किसी निर्दोष को दोषी ना करार दिया जाए।”

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त