Nafrat se bandha hua pyaar - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 12

सबिता कंस्ट्रक्शन साइट पर खड़ी थी, काम कैसा चल रहा है यही निगरानी कर रही थी। उसका ध्यान बार बार उस फोन कॉल की ओर जा रहा था जो एक घंटे पहले आया था। एक और सुराग मिला था उसे। एक एड्रेस जो किसी दूसरी सिटी का था। ये पहली बार नही था की किसी के घर का पता उसे मिला था अपने इन्वेस्टीगेटर से। हर बार वो उम्मीद करती की वोह इस जगह जरूर मिलेगा लेकिन निराशा ही हाथ लगती। इस बार भी उसने सोचा शायद ये एड्रेस इस बार भी गलत ही होगा लेकिन फिर भी दिल में एक उम्मीद भर कर उसने वहां जाने की सोची। उसने अपने कमर पर बंधी एक चेन निकाली। उस चेन में एक चांदी का दिल के आकार का लॉकेट लगा हुआ था। वोह उस लॉकेट को अपने हाथ में पकड़ कर उसपर अपना अंगूठा फेरने लगी। वोह उसे देख कर कुछ सोच रही थी की तभी उसे बाहर से कुछ शोर सुनाई पड़ा। कुछ लोग भीड़ लगा कर सुरक्षा रेलिंग के ऊपर से लटक कर नीचे पानी में कुछ देख रहे थे। सबिता अपने ऑफिस से निकल कर सीधा वहीं पहुंची जहां भीड़ इकाठा थी और ध्रुव भी उसके पीछे पीछे था।

"ये क्या हो रहा है यहां?" सबिता ने ध्रुव से पूछा जो उसके पीछे ही खड़ा था।

"मुझे नही पता, मैडम, अभी देखता हूं" ध्रुव ने जवाब दिया।

जैसे ही सबिता नज़दीक पहुंची लोगों ने उसके लिए रास्ता छोड़ दिया ताकि वो आगे आ सके। फिर सबिता ने देखा एक औरत नीचे पानी में डूब रही है। आज सुबह ही उन्होंने एक डैम का गेट खोला था ताकी कुछ पानी नहर में जा सके जो कुछ दिनों पहले ही बनाई गई थी। इस प्रोजेक्ट को प्लान करने के दौरान उन्होंने हर तरीके से सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही प्लान किया था। उसके बावजूद भी कैसे वोह औरत पानी में गिर गई, उसे समझ नही आ रहा था।

"जल्दी से एक लंबी और मजबूत रस्सी लाओ," सबिता ने आदेश दिया।

वोह औरत अभी भी पानी में बचने की कोशिश कर रही थी लेकिन सिर्फ उसका सिर ही पानी के बाहर दिख रहा था। वोह पूरी कोशिश कर रही थी की अपने सिर को पानी से बाहर रख सके लेकिन पानी का बहाव बहुत तेज था। वोह बार बार अपने हाथों को ऊपर हवा में हिला रही थी ताकि कोई उसे मदद कर सके। लेकिन लोग उसकी मदद करने के बजाय उसे बस ऊपर से खड़े देख रहे थे।

"कौन है यहां आज का इंचार्ज?" मुझे नाम बताओ उसका, उसका सिर आज रात कुचलने वाला है।"

सब सबिता को देख रहे थे लेकिन डर के मारे किसी की हिम्मत नही हुई की उसका नाम वोह बता दे।

"मैडम, उस औरत का नाम दुर्गा है। और वो हमारे राज्य की ही है। हमने सुना है की वोह सुबह किसी को कह रही थी की उसे कुछ कंकड़(pebbles) चाहिए अपने बेटे के लिए। शायद इसी वजह से वो पानी में गई होगी और पैर फिसल गया होगा।" खड़े लोगों में से ही किसी ने सबिता को बताया।

क्या! उस औरत का एक बच्चा भी है। कैसी पागल औरत है जो अपनी जान की परवाह ना करके वोह फालतू के कंकड़ उठाने पानी में चली गई? सबिता मन में सोचने लगी।

वोह रस्सी कहा है? कितना टाइम लगेगा? सबिता गुस्से से चिल्लाई क्योंकि वोह उस औरत की कोई मदद नहीं कर पा रही थी और ना ही उस औरत को ऐसे डूबते हुए देख पा रही थी।

"वोह लोग ढूंढ रहे हैं जो ज्यादा लंबी हो ताकी उसे फेका जा सके, मैडम?"

"तो उनसे कहो थोड़ा जल्दी करें! और फिर उस रस्सी को नीचे किनारे से फेकना ना की ऊपर पुल से," सबिता ने निर्देश देते हुए कहा।

सभी लोग घबराए हुए खड़े थे। सिंघम और प्रजापति दोनो के ही लोगों को पानी में तैरना नहीं आता था। यहां तक की सबिता को भी तैरना नहीं आता था। क्योंकि ज्यादा तर ये सब वोह लोग थे जो सुखा पड़ने के बाद पैदा हुए थे। जब पीने के लिए तो मुश्किल से पानी मिल पाता था तो तैरना कहां से सीखते। एकमात्र जल निकाय सिंघम झील थी जो प्रांत में सबसे खतरनाक स्थानों में से एक थी। क्योंकि यह सिंघम, प्रजापति और सेनानी के बीच अस्थिर सीमा में थी।

जैसे ही सबिता ने देखा की कुछ लोग रस्सी को लेकर नीचे पानी के किनारे की तरफ ले जा रहे हैं तभी उसे अपने पीछे पानी में ज़ोर से छपाक की आवाज़ सुनाई पड़ी। शायद कोई कूदा था पुल से नीचे पानी में। सबिता अविश्वास सी देख रही थी की जो भी कूदा है वोह तैर पाएगा या नहीं और उस औरत को बचा पाएगा या नहीं। क्योंकि अंधेरा हो चुका था इसी वजह से वो उस इंसान को ठीक से नही देख पा रही थी की वोह है कौन पर इतना पता चल रहा था की वोह एक आदमी है जो तेज़ी से और बहुदरी से तैरते हुए उस औरत की तरफ बढ़ रहा था। वोह आदमी बिना वक्त गवाए तुरंत ही उस औरत तक पहुंच गया और उसे ऊपर की तरफ खींच लिया। उस आदमी ने एक हाथ से उस औरत को पकड़ा और दूसरे हाथ से पानी में मारते हुए तैरने शुरू कर दिया।

"यहां मूर्खो की तरह खड़े मत रहो, रस्सी फेंको पानी में।" सबिता ऊपर से चिल्लाई उन लोगों पर जो नीचे रस्सी लिए बेफकूफो की तरह खड़े तमाशा देख रहे थे।

उन लोगों ने रस्सी फेंकी और कई प्रयत्नों के बाद उस आदमी ने वोह रस्सी पकड़ ली। दस मिनट बाद, एक लंबा चौड़ा आदमी भीगा हुआ बाहर आया और अपनी बाहों में उस औरत को पकड़े हुए था जो अब तक बेहोश हो चुकी थी। वोह और कोई नही देव सिंघम था। देव ने आराम से उस औरत को ज़मीन पर लेटाया और उसकी छाती को दबाने लगा। कुछ कोशिशों के बाद उस औरत ने खासी करते हुए सारा पानी मुंह से उगल दिया जो भी डूबने के दौरान मुंह में भर गया था। जल्दी ही डॉक्टर भी वहां आ गए और उसे चैक करने लगे। वोह उसकी नसों को चैक कर रहे थे और साथ ही उससे बात करने की भी कोशिश कर रहे थे।
तब तक सबिता भी नीचे आ गई लेकिन उसी दौरान देव, जो उसके आदमियों से घिरा हुआ था, वापिस अपने ऑफिस में जाने के लिए मुड़ गया। सबिता उस औरत के पास आई। वोह औरत बिलकुल बेजान सी अधमरी हालत में पड़ी थी। वोह औरत बहुत कमज़ोर लग रही थी। सबिता उस औरत की बेवकूफी पर उसे एक ज़ोरदार तमाचा मारना चाहती थी, पर उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए क्योंकि सबिता की नज़र उसकी साड़ी की पल्लू में बंधे छोटे छोटे पत्थरों पर चली गई थी जो उस औरत ने अपनी मुट्ठी में दबोच रखा था। सबिता आसानी से गीले कपड़े में बंधे उन छोटे छोटे गोल आकार के पत्थरों को देख सकती थी जो उसने अपने बेटे के लिए इकठ्ठा किए थे।
"इसे इसके घर छुड़वा दो और अगले एक हफ्ते के लिए छुट्टी दे दो," सबिता ने शांत मन से आदेश दिया।

और फिर कुछ सोचते हुए अपनी भौंहे सिकोड़ ली। सबिता प्रोजेक्ट मैनेजर से लोगों की सुरक्षा के बारे में बात करने के लिए उस ओर मुड़ गई।
सबिता अपने आप को एक कमज़ोर और बेवकूफ महसूस कर रही थी। इस हादसे ने सबिता को हिला कर रख दिया था। आधे घंटे तक उस मैनेजर से बातचीत करने के बाद, जो यंहा का इंचार्ज था, सबिता देव के ऑफिस की तरफ बढ़ गई। उसके रूम के बाहर कुछ देर सबिता शांत खड़ी रही और फिर एक गहरी सांस ली। उसे सिर्फ देव सिंघम का शुक्रिया अदा करना था। उसने दरवाज़ा खटखटाया लेकिन अंदर से कोई आवाज़ नही आई कुछ पल रुक कर उसने फिर खटखटाया। उसे लगने लगा शायद वोह अपने ऑफिस में नही है या फिर वो घर जा चुका है। पर वो ये जानती थी की ये नामुमकिन है। देव अपना ज्यादा तर वक्त यहीं कंट्रक्शन साइट पर ही बिताता था। वोह सबिता से ज्यादा देर तक काम करता था। वोह यहां सबसे पहले आता था सबसे देर से जाता था। ज्यादा तर तो वोह नाइट शिफ्ट को देखने के लिए यहीं रात में रुकता था। काम के शुरुवाती पहले हफ्ते में ही सबिता को समझ आ गया था की क्यों यहां बैड और दूसरे लग्ज़री समान रखे गए हैं। कई बार सबिता भी रात को रुकी थी ज्यादा काम की वजह से या फिर जब यहां कोई प्रॉब्लम होती। दोनो पहले से ही प्लान करे हुए शेड्यूल के हिसाब से काम करते थे। जब भी नाइट शिफ्ट होती थी दोनो में से कोई न कोई एक ज़रूर रहता था। क्योंकि सबिता को प्रजापति एस्टेट के और दूसरे भी जरूरी काम होते थे इसलिए देव सिंघम ही ज्यादा तर रात को रुकता था।
"कम इन," तभी अंदर से एक सख्त सी आवाज़ सुनाई पड़ी।
सबिता ने दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। वोह तुरंत वहीं रुक गई जब उसने अपनी आंखों के सामने अंदर का नज़ारा देखा। देव सिंघम शराब की बोतल से कांच के ग्लास में शराब डाल रहा था। उसने सिर्फ एक सफेद रंग की टॉवल अपने कमर के नीचे बांध रखी थी। उसके बाल अभी भी गीले थे, और उसके कपड़े कुर्सी के पीछे सूख रहे थे।
"व्हाट?" देव ने पूछा बिना देखे की कौन है।
उसने जब पीछे मुड़ कर देखा की कौन है तो ग्लास मुंह में लगाए हुए ही उसके हाथ रुक गए।

सबिता को हल्की सी कपकपी महसूस हुई जब उसकी और देव की आंखे आपस में मिली। उसे अपने रिएक्शन को समझते ही थोड़ी चिड़चिड़ाहट होने लगी, और वो तुरंत जा कर सामने कुर्सी पर बैठ गई। जब कुछ देर तक सन्नाटा रहा और देव ने कुछ नही बोला तो सबिता ने चुप्पी तोड़ने की सोची। देव, सबिता को लगातार देख रहा था, और अभी भी ग्लास को हाथ में पकड़े हुए शराब पी रहा था।

"वैल?" सबिता ने चुप्पी तोड़ने की कोशिश की।

देव अभी चुप था। वोह धीरे धीरे कदमों से सबिता की तरफ आया और उसके पास ही टेबल के किनारे से टेक लगा कर खड़ा हो गया। वोह अभी भी ग्लास को हाथ में पकड़े हुए था। दोनो के बीच फासला बहुत कम था जैसे की वोह उसे बहकाने की कोशिश कर रहा हो। उसने कुछ नही कहा बस सबिता की तरफ देखता रहा। काफी देर तक दोनो के बीच सन्नाटा पसरा रहा और अब बेचैनी बढ़ने लगी।

क्यों ये नही पूछ रहा है की मैं यहां क्यों आई हूं? वोही था जो सबसे पहले उससे झगड़ता था और उसका मज़ाक उड़ाता था जब दोनो मिलते थे। अपने कीमती समय को बर्बाद होता देख कर सबिता ने नाराज़गी से सोचा वोह अब शांति तोड़ेगी। क्योंकि दो शिपमेंट आज देर रात आने वाले थे और उसे उन पर भी नज़र रखनी थी ताकि सेनानी से बच कर वोह शिपमेंट प्रजापति तक पहुंच पाएं।

"थैंक्स," सबिता ने देव की आंखों में देख कर कहा।

देव ने अपनी एक आईब्रो ऊपर चढ़ाते हुए कहा, "थैंक्स? किसलिए मुझे शुक्रिया कर रही हो?" उसने पूछा, वोह अभी भी नशे में अपनी नशीली आंखों से उसे देख रहा था। उसकी आवाज़ में अब मदहोशी छाने लगी थी।

सबिता की आंखें तुरंत ही उसके होठों पर ठहर गई और फिर धीरे धीरे उसके नग्न शरीर पर फिसलने लगी। देव की बॉडी सांवली त्वचा में एकदम कड़क, वैल शेप्ड, और उसकी परफेक्ट एब्स थी। लेकिन दूसरे प्रजापति और सिंघम के लोगों के जैसे देव के शरीर की मसल्स भारी नही थी और उसमे नसे भी नही दिखती थी। इसके बजाय, उसके पास चिकनी, सुचारु रूप से आकार की मसल्स थीं जिनमें असीमित शक्ति थी। उसके लुक्स इतने आकर्षक थे की सबिता को हल्का गुस्सा आने लगा था की क्यों वोह इतना आकर्षक दिखता है। उसका मन बेकरार हो गया था और उसके मन में देव के एब्स को छूने की लालसा जाग उठी थी। अपने मन को समझाते हुए उसने अपने एक्सप्रेशन ठीक किए।

"मैं तुम्हे आज के लिए थैंक्यू कहना चाहती थी। जबकि शायद तुम जानते थे की वो प्रजापति की तरफ से है, तुमने अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को साइड में रख कर उस बेगुनाह की जान बचाई।"

देव ने अभी भी कुछ नहीं कहा। उसकी नज़र अभी भी सबिता के चेहरे पर थी जो अब धीरे धीरे उसके कपड़ो पर जाने लगी। सबिता ने साइट पर काम करने की वजह से सादे कपड़े ही पहने थे। उसने एक शर्ट और खाकी रंग की ढीली ढाली ट्राउजर पहना हुआ था। पर जिस तरीके से उसकी निगाहें उसके कपड़ो पर चल रही थी ऐसा लग रहा था की वोह कोई आपत्तिजनक तरीके से बैठी है या उसने मॅट मैले कपड़े पहने है। फिर से एक सिरहन सी उसके शरीर में दौड़ गई।
जबसे उसने प्रजापति एस्टेट को संभाला था उसका काम ऐसा था की वोह ज्यादा तर आदमियों के बीच घिरी रहती थी। वोह उनके साथ काम करते करते बिलकुल उन्ही के जैसे अपने आप को समझने लगी थी। ज्यादा तर समय तो वो ये भूल ही जाति थी की वोह भी एक औरत है। एक औरत जिसकी भी कुछ जरूरत होती हैं, चाहते होती हैं। और देव सिंघम ही था जो उसे हर बार ये एहसास दिलाता था की वोह एक औरत है। उसके शरीर पर रोंगटे खड़े होने लगे जब उसकी नज़रे देव की नजरों से टकरा गई। उसे कुछ अजीब सा एहसास होने लगा क्योंकि देव बस उसे देखे ही जा रहा था। जब देव उसे देखता था, तो सबिता को उसकी आंखों में नफरत अलावा भी कुछ और दिखता था जो वोह कभी समझ नही पाती थी, जो उसे बेचैन कर देता था। और हमेशा की तरह वोह आज भी उसे इग्नोर करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन इस बार वो सक्षम नहीं हो पा रही थी। वोह बहुत असहाय महसूस कर रही थी। देव की आंखे एक बार फिर सबिता के होठों पा आकर रुक गई, जिससे सबिता को वोह वक्त याद आ गया जब उन दोनो ने एक दूसरे को किस किया था।
देव उसके होठों पर ही नज़र रखते हुए अपने ग्लास को नीचे टेबल पर रखा और सबिता की तरफ झुकने लगा। उसके महंगे शराब की गंध सबिता पर अब छाने लगी थी। पता नही क्यों लेकिन सबिता बुत बन कर बैठी रही जबकि उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। देव के होंठ सबिता के होंठों से कुछ इंच की ही दूरी पर थे की अचानक किसी ने बाहर दरवाज़ा खटखटाया जिससे सबिता होश में आ गई।

"देव, नौ बजे की तुम्हारी अपॉइंटमेंट थी और वो आ गाएं हैं। मैने उन्हे मीटिंग रूम में इंतजार करने को कहा है।" एक आवाज़ देव के ऑफिस रूम के बाहर से आती सुनाई पड़ी।
सबिता ने अपनी पलकों को कई बार झपका और फिर उठ खड़ी हुई कुर्सी से। उसकी नज़रे नाराज़गी से चीखने जैसी देव के चेहरे पर पड़ी। उसे समझ नही आ रहा था की उसे गुस्सा इस बात का आ रहा था की बाहर किसी ने आवाज़ देकर उन्हें बीच में रोक दिया या फिर इस बात का की वोह अपने दुश्मन को जिससे वोह नफरत करती है उसे किस करने जा रही थी।
बिना कुछ कहे सबिता दरवाज़े की तरफ बढ़ गई और जैसे ही दरवाज़ा खोला सामने देव का असिस्टेंट खड़ा था। देव के असिस्टेंट ने उसे आदर के साथ ग्रीट किया और बदले में सबिता ने सिर हिला कर जवाब दिया। वोह बिना वक्त गवाए सीधा अपने ऑफिस में घुसी और अपनी चेयर पर बैठने के बाद ही सांस ली।

ये क्या बकवास था? वोह अपने आप को कोसना चाहती थी की ये क्या करने वाली थी। और, वोह भी, उस देव सिंघम के साथ। वोह कैसे अपने आपको उसके सामने असहाय महसूस कर सकती थी सिर्फ उसके आकर्षक शरीर की वजह से। कैसी उसकी तरफ खींची चली गई? वोह सिर्फ उससे नफरत ही नही करती थी बल्कि देव तो एक प्लेबॉय है। वोह कैसे ऐसे घटिया इंसान की तरफ झुक गई।
अगर सबिता उसकी तरफ आकर्षण के कारण झुक जाती तो देव जरूर उसका फायदा उठाता और अपनी जीत पर गर्व करता। वोह उसे पूरी तरीके से बर्बाद कर के रख देता।





















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